पानी और इंजेक्शन से बना रहे दूध!

प्रदेश के विभिन्न शहरों में दुग्ध संघ द्वारा संचालित संस्थाओं के माध्यम से दूध की सप्लाई की जाती है। इसके अलावा रिलायंस, अमूल, दिनशा आदि निजी कंपनियों के दूध की भी बहुतायत में बिक्री की जाती है, लेकिन हाल में आई ताजा रिपोर्ट के बाद पैकेट दूध खरीदने वाले ग्राहक भी दूध के उपयोग में सावधानी बरतने लगे हैं।

सरकारी दावों के बाद भी छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों में निजी डेयरी संचालकों द्वारा दुधारू पशुओं पर खुलेआम इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जा रहा है। व्यापारियों द्वारा दूध के अधिक उत्पादन के लिए इसका उपयोग किया जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो इस तरह का दूध शरीर के लिए हानिकारक होता है। इंजेक्शन का उपयोग करने से जानवरों के खून और दूसरे अवयव भी दूध के रूप में बाहर आ जाते हैं जो मनुष्य के शरीर में दुष्प्रभाव पैदा करते हैं। इससे जानवरों की उम्र भी कम हो जाती है, लेकिन व्यापारी लालच में आकर इंसान और जानवर दोनों के शरीर से खिलवाड़ कर रहे हैं।

यही हाल ग्रामीण क्षेत्रों का है। यहां के दूध व्यवसायियों द्वारा दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए पानी का भरपूर उपयोग किया जाता है। छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर पानी मिला दूध बेचा जाता है। दूध बेचने वाले भी ग्राहकों को यह बताकर बेचते हैं कि शुद्ध और पानी मिले दूध दोनों की कीमत अलग-अलग है। जो ग्राहकों को लेना होता है वह ले लेता है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी दूध का उत्पादन बहुतायत में होता है। लेकिन सरकार के पास इसके अधिकृत आंकड़े नहीं हैं। खुलेआम चल रहे इस व्यापार पर लगाम कसने में सरकार अब तक सफल नहीं हो पाई।

प्रदेश के विभिन्न शहरों में दुग्ध संघ द्वारा संचालित संस्थाओं के माध्यम से दूध की सप्लाई की जाती है। इसके अलावा रिलायंस, अमूल, दिनशा आदि निजी कंपनियों के दूध की भी बहुतायत में बिक्री की जाती है, लेकिन हाल में आई ताजा रिपोर्ट के बाद पैकेट दूध खरीदने वाले ग्राहक भी दूध के उपयोग में सावधानी बरतने लगे हैं। विभागीय जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में रोजाना लाखों लीटर दूध की खपत होती है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो दुग्ध संघ से जुड़े व्यवसायियों द्वारा 35 हजार लीटर दूध की सप्लाई रोज की जाती है। लेकिन निजी क्षेत्रों की दूध सप्लाई के आंकड़े काफी अधिक हैं।

सरकार द्वारा उत्पादन किए जाने वाले दूध की हर घर तक पहुंच नहीं होने और प्रदेश के कई शहरों में इसकी उपलब्धता नहीं होने के कारण राज्य के लाखों लोग आज भी निजी व्यवसायियों से ही दूध खरीदते हैं। प्रदेश के सांची दूध का नाम बदलकर देवभोग कर दिया गया है। इस ब्रांड को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए दुग्ध संघ के साथ सरकार भी जोर लगा रही है।

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