पानी और जमीन की चुनौतियों से जूझेगी उत्तराखंड की नई राजधानी गैरसैंण

12 Mar 2020
0 mins read
पानी और जमीन की चुनौतियों से जूझेगी उत्तराखंड की नई राजधानी गैरसैंण
पानी और जमीन की चुनौतियों से जूझेगी उत्तराखंड की नई राजधानी गैरसैंण

अमर उजाला, 12 मार्च, 2020

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गैरसैंण (भराड़ीसैंण) को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा के बाद अब उसके भावी स्वरूप को लेकर सपने गढ़े जाने लगे हैं। सियासी आलोचनाओं और आशंकाओं के बीच ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर तमाम तरह के सवाल भी सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि जनाकांक्षाओं के प्रतीक गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करना एक बात है और उस घोषणा को धरातल पर उतारना उससे एकदम अलग बात है। यानी ग्रीष्मकालीन राजधानी को अस्तित्व में आने के लिए कई चुनौतियों से पार पाना होगा। अमर उजाला ने उन चुनौतियों की पड़ताल करने का प्रयास किया है।

पीने का पानी सबसे बड़ी चुनौती

उत्तरप्रदेश के जमाने में टिहरी बांध बनाने के लिए नई टिहरी शहर का जन्म हुआ। लेकिन गर्मियों में गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। जारी बजट सत्र में मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों व कर्मचारियों को पानी का संकट लगातार गहराता रहा। सरकार को इस संकट की गम्भीरता का शायद इल्म है। तभी तो मुख्यमंत्री ने ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा करने के अगले दिन सीधे चौरड़ा झील का रुख किया, जहाँ से जल संकट के समाधान की राह खोजी जा रही है। दूसरा विकल्प 40 किमी दूर अलकनंदा से पानी लाना होगा। वर्ष 2008 में राजधानी चयन आयोग ने अलकनंदा से पानी लाने पर 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया था।

राजधानी के लिए भूमि जुटाना टेडी खीर

गैरसैंण में 76 प्रतिशत भूमि जंगल है। एक प्रतिशत भूमि पर लोग रह रहे हैं व खेती बाड़ी कर रहे हैं। 23 प्रतिशत भूमि पर ओपन फॉरेस्ट है। यानी राजधानी का बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए जमीन जुटाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। पर्यावरणीय सरोकारों के दबाव के बीच उसे भवनों का निर्माण करना होगा। राजधानी चयन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गैरसैंण में राजधानी बनाने के लिए 1500 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी। यह भी सच्चाई है कि राज्य गठन के बाद से अब तक सत्तारुढ़ रही कोई भी सरकार प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में एक भी नया शहर नहीं बसा सकी है। गैरसैंण उसके सामने एक अवसर है जिसे वह एक ग्रीष्मकालीन राजधानी के बहाने विकसित कर सकती है।

इकोलॉजी की संवेदनशीलता

भराड़ीसैंण में सरकार ने विधानसभा का भव्य भवन बनाया है। मंत्रियों, विधायकों और अधिकारी-कर्मचारियों के लिए आवासीय कॉलोनी भी तैयार की है। लेकिन जानकारों का मानना है कि करीब 8000 फीट की उंचाई पर स्थित भराडीसैण की पहाड़ियां कच्ची हैं। यानी वहां की इकोलॉजी संवेदनशील है। इसलिए उसकी संवेदनशीलता को देखते हुए बुनियादी ढांचा तैयार करना आसान नहीं होगा। सरकार ने मिनी सचिवालय के लिए भूमि खोजी है और उसके लिए 50 करोड़ का प्रावधान किया है। राजधानी में हर विभाग का मिनी निदेशालय स्थापित करना होगा। सचिवालय, विधानसभा, पुलिस मुख्यालय, निदेशालयों के अधिकारी कर्मचारी और अन्य सटाफ के लिए आवासीय सुविधाएं जुटानी होगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर आवासीय निर्माण करने होंगे।

भूगोल तय करना भी आसान नहीं

गैरसैंण का भौगोलिक स्वरूप तय करने में भी नीति नियंताओं के पसीने छूटेंगे। वर्तमान गैरसैंण की भौगोलिक सीमाएं तीन जनपदों चमोली, अल्मोड़ा, पौड़ी गढ़वाल को छूती हैं। इन तीनों जिलों की गैरसैंण से सटी आबादी का बाजार गैरसैंण भी है। हालांकि चमोली जिले के गैरसैंण और अल्मोड़ा के चौखुटिया को मिलाकर सरकार ने गैरसैंण विकास परिषद का गठन किया है और उसके तहत विकास कार्यों को अंजाम भी दिया गया है। लेकिन जानकारों का मानना है कि गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए सरकार को अलग जिले की घोषणा करनी पड़ेगी। राजनीतिक लिहाज से ये इतना आसान नहीं होगा क्योंकि प्रदेश में जिलों के गठन की पहेली पहले ही काफी उलझी हुई है।

ये भी परेशानी

कई वर्षों से अटका है बांध निर्माण का कार्य

भराड़ीसैंण और गैरसैंण में पेयजल संकट के लिए सरकार रामगंगा नदी के डोबालिया घाट पर 20 मीटर ऊंचा दो लाख घन मीटर का छोटा बांध बनाने की तैयारी में है। बांध बनाने के लिए जमीन खोज ली गई है, लेकिन प्रस्तावित बांध निर्माण क्षेत्र में वन भूमि होने की वजह से पिछले कई वर्षों से यह कार्य आगे नहीं बढ़ सका है। गर्मियों में पेयजल संकट गहराने पर लोग पीने के पानी के लिए हैंडपंपों और प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर रहते हैं।

आसपास के क्षेत्रों का भी करना होगा विकास

भराड़ीसैण में बने विधानसभा भवन की दूरी गैरसैंण से करीब 20 किमी है। भराड़ीसैंण की जलवायु समशीतोष्ण है। प्रचुर मात्रा में भूमि नहीं होने से गैरसैंण के अलावा चौखुटिया, पांडुवाखाल, मेहलचौंरी, बछुवाबांण, नागचूलाखाल व दिवालाखाल क्षेत्र को विकसित करना होगा। हालांकि ये सभी कस्बे सड़क से जुड़े हैं।

पैराग्लाइडिंग और तीर्थाटन की हैं संभावनाएं

गैरसैंण प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर कस्बा है। कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के बीच में स्थित होने की वजह से गैरसैंण का महत्व राज्य निर्माण के बाद काफी बढ़ गया है। आदिबदरी सहित कुमाऊं क्षेत्र के धार्मिक स्थलों को विकसित कर यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ाया जा सकता है। पैंसर और दूधातोली की पहाड़ियां गैरसैंण के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। इन पहाड़ियों पर पैराग्लाइडिंग के जरिए रोजगार के साधन जुटाकर राज्य और गैरसैंण क्षेत्र को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनाया जा सकता है।

प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है गैरसैंण

चमोली जिले में दूधातोली और पैंसर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है गैरसैंण। प्रकृति ने इसे करीने से संवारा है। गैरसैंण नगर करीब 7.53 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। समुद्र तल से ऊंचाई की बात करें तो गैरसैंण करीब 1665 मीटर और भराड़ीसैंण करीब, 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

समशीतोष्ण जलवायु होने के कारण चाय की खेती और दलहनी फसलों के लिए यहां की मिट्टी उपजाऊ मानी जाती है। इस ब्लॉक में कुल 95 ग्राम सभाएं हैं। गैरसैंण को नगर पंचायत का दर्जा हासिल है। यहाँ ग्रामीण इलाकों में उत्पादित होने वाले संतरा, नारंगी, आलू, प्याज, लहसुन को पूरे उत्तराखंड में मशहूर माना जाता है।

कहा जाता है कि गैरसैंण में 1803 से 1815 तक गोरखा शासकों का राज रहा। 1815 में गोरखा युद्ध के बाद 1815 से 1947 तक ब्रिटिश शासनकाल रहा। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1839 में गढ़वाल जिले का गठन हुआ और गैरसैंण क्षेत्र को कुमाऊं से गढ़वाल में मिला दिया गया था।

क्लीन ग्रीन हो सकती है प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी

यह जल्द सामने आएगा कि सरकार किस तरह से गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाती है। इतना साफ है कि राजधानी क्लीन और ग्रीन ही होगी। विशेषज्ञों की माने तो यह सिर्फ चाहत नहीं है, बल्कि गैरसैंण के ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में विकास की पहली शर्त है। गैरसैंण का अध्ययन पूर्व में राजधानी चयन आयोग ने भी करवाया था। दिल्ली स्कूल ऑफ प्लानिंग की ओर से टाउन प्लानिंग के हिसाब से हुए अध्ययन में यह सामने आया था कि गैरसैंण पर्यावरण के हिसाव से संवेदनशील है। यहां राजधानी बनती है तो सरकार को भूकंप के साथ ही आपदाओं से बचाव के लिए जरूरी तंत्र तैयार करना होगा।

गैरसैंण के सामने सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण संरक्षण की ही उभर कर आ रही है। यही पर्यावरण है जो गैरसैंण को बचाए हुए है। गैरसैंण में 76 प्रतिशत भूमि या तो संरक्षित या आरक्षित वन है। पर्यावरण संरक्षण के हिसाब से ही राजधानी चयन आयोग ने गैरसैंण को राजधानी बनाने पर बड़ी चुनौती माना था।

बड़ी समस्या

दिल्ली स्कूल ऑफ प्लानिंग की राजधानी चयन आयोग को सौंपी गई रिपोर्ट में ड्रेनेज एक बड़ी समस्या उभर कर आई थी। घरेलू के साथ ही अन्य तरह के कचरे निस्तारण के बिना गैरसैंण में रहना मुश्किल होगा। गैरसैंण हिमालय क्षेत्र में है और यहां कचरो को सही तरीके से नहीं निपटाया तो पर्यावरण प्रदूषण का खतरा बढ़ जाएगा।

पर्यावरण की कीमत पर नहीं हो सकता विकास

सरकार को वैसे यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि प्रदेश में पर्यावरण को ध्यान में रखकर ही विकास कराया जा सकता है। पांच मार्च को भारतीय वन्य जीव संस्थान में प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार विजय के राघवन की अध्यक्षता में बैठक में जीईपी या सकल पर्यावरण उत्पाद की ओर सरकार कदम बढ़ा ही चुकी है। पर्यावरणीय सेवाओं का आंकलन करवाया था। हिमालयी राज्यों की मसूरी में हुई बैठक में सरकार ने स्वीकार किया था कि आपदा की नजर से संवेदनशील पर्वतीय राज्यों को पर्यावरण की कीमत पर विकास से बचना होगा।

गांव जुड़ें अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से

क्लीन-ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए सरकार को गांवों को भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ना होगा। गैरसैंण क्षेत्र में कुल मिलाकर 53 गांव हैं। इन गांवो को शहर के पैरी अर्बन क्षेत्र की तरह विकसित होने की बजाय इन्हें राजधानी के केन्द्र में भी लाना होगा। विशेषज्ञों के मुताबित विकास शहर केन्द्रित न होकर गांव केन्द्रित होना चाहिए। शहरों के विकास के साथ ही मलिन बस्तियां भी पनपने लगती हैं। गैरसैंण में अगर यह हुआ तो सरकार के सामने एक चुनौती कठिन मौसम में संसाधन विहीन लोगों को बचाने की भी होगी। अभी तक प्रदेश का विकास उद्योगों पर ही निर्भर करता रहा है। जाहिर है कि गैरसैंण में इस प्रचलित मॉडल से अलग सरकार को सोचना होगा।

राह आसान नहीं, भविष्य में होगा लाभ

नगर पंचायत अध्यक्ष पुष्कर सिंह रावत का कहना है कि भराड़ीसैंण को राजधानी घोषित किए जाने पर क्षेत्र में खुशी का माहौल है, लेकिन राह आसान नहीं है। बजट की व्यवस्था के साथ ही सचिवालय और अधिकारी-कर्मचारियों के लिए आवास की व्यवस्था भी सरकार को करनी है। भविष्य में अच्छे विद्यालय, अस्पताल और सड़कों का निर्माण होने से जनता को लाभ होगा।

भूमि की बिक्री पर रोक हटाना गलत

पूर्व दायित्वधारी सुरेश कुमार विष्ट का कहना है कि राजधानी की घोषणा से पूर्व क्षेत्र की भूमि की बिक्री पर लगी रोक को हटा सरकार ने लोगों के मालिकाना हक को खत्म करने की कोशिश की है। स्थाई राजधानी की खातिर पूर्व सरकार ने रोडमैप तैयार कर निर्माण करवाए थे। कुछ कार्यों के लिए धन भी अवमुक्त करा दिया था, लेकिन मौजूदा सरकार ने इस दिशा में कुछ नहीं किया।

समूचे पहाड़ का होगा संतुलित विकास

कर्णप्रयाग के पूर्व विधायक अनिल नौटियाल का कहना है कि गैरसैंण को राजधानी घोषित कर उत्तराखंड के शहीदों और आम जनमानस की भावनाओं के अनुरूप कार्य किया है। पहाड़ की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। यही राज्य बनाने का उद्देश्य था। गैरसैंण के कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के मध्य में स्थित होने से इसका महत्व राजधानी के क्षेत्र  में अतुलनीय है।

पर्वतीय शैली का रखा जाए ध्यान

पर्वतीय शैली के भवन बने, बारिश के पानी को बचाने की पूरी व्यवस्था हो, चौड़ी पत्तियों के पेड़ों का पौधरोपण हो। गैरसैंण पर्यावरण रूप से अत्यधिक संवेदनशील है। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि भूकंप, आपदा से बचाव का पर्याप्त इंतजाम हो। भवन और अन्य निर्माण में स्थानीय सामग्री का ही उपयोग हो। राजधनी का स्वरूप देहरादून जैसा नहीं होना चाहिए। - सुरेश भाई, पर्यावरणविद् एवं समाज सेवी

पर्यावरण मित्र राजधानी ही हो

गैरसैंण के ग्रीष्मकालीन राजधानी होने से पहली बुनियादी जरूरत तो पूरी हो जाती है। यह है कि पर्वतीय प्रदेश की राजधानी पहाड़ में ही हो। दूसरी जरूरत है पहाड़ की राजधानी में रह रही सरकार की समझ भी पहाड़ की हो। मौसम से डर कर सत्र से पहले ही सत्ता पक्ष के सदस्य भराड़ीसैंण से चले आए थे। प्रदेश सरकार सकल पर्यावरण उत्पाद पर भी काम कर रही है। जाहिर है कि गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी को पर्यावरण मित्र के रूप में विकसित करना होगा। राजधानी के लिए पानी का इतंजाम करना एक चुनौती होगी। मौसम बदलाव के कारण यह चुनौती और बढ़ेगी। गांवों के विकास की ओर भी सरकार को देखना होगा। - अनिल जोशी, संस्थापक निदेशक, हैस्को

टाउन प्लानर के नजरिए से हो विकास

यह साफ कि गैरसैंण को राजधानी के रूप में विकसित करने पर पर्यावरण का ध्यान रखना होगा। राजधानी के विकास की नगर नियोजन के हिसाब से भी देखना होगा। टाउनशिप के विकास में टाउन प्लानर के हिसाब से ही देखा जा सकता है। - इंदु कुमार पांडे, पूर्व मुख्य सचिव एवं राज्य आयोग के अध्यक्ष


 

TAGS

Gairsain, gairsain issue, gairsain uttarakhand, rajdhani gairsain, water crisis uttarakhand, water crisis india, water crisis hindi, problems in gairsain, gairsain ki chunautiyan.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading