पानी का नहीं कोई हल, निजी सेक्टर का गला ‘तर’

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स्थायी हल के बजाए सरकार का वैकल्पिक तरीकों पर ध्यान, निजी सेक्टर को मिलता है सीधा फायदा

जल संकट से निपटने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये तो बहा देती है लेकिन इसका स्थायी इन्तजाम करने की दिशा में गम्भीर नहीं है। सारा खर्च पानी के परिवहन और वैकल्पिक इन्तजामात पर होता है। इसका सीधा फायदा निजी सेक्टर उठा रहा है। इस बार भी गर्मी की आहट मिलते ही ये सक्रिय हो गए हैं। इसमें बड़ी संख्या राजनीतिक जमात से जुड़े लोग शामिल हैं।

कुछ ऐसा है गणित

प्रदेश सरकार ने शहरी क्षेत्रों में जल संकट से निपटने के लिए चार साल पहले प्लान बनाया था। इसमें जल-स्रोतों के निर्माण से लेकर स्थायी हल के सारे बन्दोबस्त थे। इस पर करीब 15 हजार करोड़ रुपये खर्च होना था। इस राशि को देखकर अधिकारी पीछे हट गए, जबकि हर साल टैंकरों से जलापूर्ति व अन्य वैकल्पिक इन्तजाम के लिए ही सरकार को एक हजार करोड़ तक खर्च करने पड़ जाते हैं। यह खर्च भी उन इलाकों का है, जहाँ बेहद खराब हालात रहते हैं। इस सालाना खर्च से सरकार जल संकट से केवल दस प्रतिशत अस्थायी राहत दे पाती है।

कितने शहरों में संकट

प्रदेश के 86 शहर ऐसे हैं, जहाँ जल संकट भीषण स्थिति में हैं। गर्मी की शुरुआत में ही मालवा जैसे शहरों की स्थिति खराब होने लगती है। करीब दो दर्जन शहर ऐसे हैं, जहाँ हफ्ते में महज दो बार नल आते हैं। आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ सकते हैं।

जुड़े हैं निहित स्वार्थ

गर्मी के मौसम में पानी से जुड़े निजी सेक्टर के लिए फायदे वाला रहता है। इस कारण निजी सेक्टर जल संकट का स्थायी समाधान होने नहीं देते। राजनीतिक दल से जुड़े अनेक लोगों के टैंकर इस मौसम में लगे रहते हैं। भोपाल-इन्दौर सहित छोटे शहरों में टैंकरों से जलापूर्ति का बड़े पैमाने पर कारोबार होता है। एक टैंकर औसत 150-300 रुपये का पड़ता है। दूसरी ओर पानी के निजीकरण पर भी काम हो रहा है। नलों पर मीटर लगाने की योजना पर छोटे शहरों में क्रियान्वयन शुरू किया गया है। करीब साठ शहरों में इसके लिए टेण्डर हो चुके हैं। सरकार की मंशा सभी शहरों पर इसे जल्द से जल्द क्रियान्वित करने की है।

एक्सपर्ट व्यू

सेक्टर वाइज प्लान जरूरी

सरकार को गम्भीर जल संकट वाले इलाकों के लिए सेक्टर वाइज प्लान बनाना चाहिए। स्थायी इन्तजाम के साथ जल संरक्षण के उपायों पर ध्यान देना चाहिए। मकानों के निर्माण में जल संरक्षण के तय मानकों का पालन नहीं होता है। इस पर भी सख्ती होनी चाहिए। सरकारी जलापूर्ति की व्यवस्था को भी दुरुस्त करने की जरूरत है। अभी कहीं तो भीषण जल संकट है और कहीं पानी व्यर्थ बहाया जा रहा है। यह असन्तुलन घातक है।

-अभिषेक कैथावास, जल विशेषज्ञ

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