पानी की कमी के चलते चरमराती स्कूली शिक्षा

13 Dec 2014
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जम्मू प्रान्त के पुंछ जिले में सितम्बर माह में आई बाढ़ के बाद हर जगह पानी-ही-पानी था और इस पानी ने ज़बरदस्त तबाही और बर्बादी मचाई थी। लेकिन अब लोगों को खाना-बनाने, पीने, कपड़े-धोने, नहाने और दैनिक जीवन की दूसरी आवश्यकताओं के लिए साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। जून, 2014 में एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 1823 गाँव ऐसे हैं जहाँ पर हर किसी को पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह संख्या 13 प्रतिशत है। इसके अलावा सात प्रतिशत अर्थात् 950 गाँवों ऐसे हैं जहाँ पानी की सुविधा अभी भी उपलब्ध नहीं है। जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनाव की 16 सीटों पर तीसरे चरण के तहत 58 प्रतिशत मतदान हुआ। भारी ठण्ड और अलगावादियों के चुनाव बहिष्कार के बीच 1,781 मतदान केन्द्रों पर बड़ी संख्या में वोटर सुबह से लाइन में लगे थे। जम्मू एवं कश्मीर में जिस तरह से तीन चरणों के तहत होने वाले मतदान में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है उससे साफ है कि राज्य की जनता सत्ता की कमान किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी को सौंपना चाहती है जो राज्य में बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए ज़रूरी कदम उठाए। बाढ़ के बाद राज्य में स्थिति अभी भी बेहाल बनी हुई है।

जम्मू प्रान्त के पुंछ जिले में सितम्बर माह में आई बाढ़ के बाद हर जगह पानी-ही-पानी था और इस पानी ने ज़बरदस्त तबाही और बर्बादी मचाई थी। लेकिन अब लोगों को खाना-बनाने, पीने, कपड़े-धोने, नहाने और दैनिक जीवन की दूसरी आवश्यकताओं के लिए साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। जून, 2014 में एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 1823 गाँव ऐसे हैं जहाँ पर हर किसी को पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह संख्या 13 प्रतिशत है। इसके अलावा सात प्रतिशत अर्थात् 950 गाँवों ऐसे हैं जहाँ पानी की सुविधा अभी भी उपलब्ध नहीं है।

कहने को तो जल ही जीवन है लेकिन जहाँ पर जल ही नहीं, वहाँ जीवन कैसा होगा, इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं। पुंछ के दूरदराज़ क्षेत्रों में लोगों को दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए साफ पानी तो दूर, पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा है। पुंछ ब्लाक के झुलास गाँव में पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है।

इस बारे में झुलास के मोहल्ला पटियाँ के स्थानीय निवासी मोहम्मद खालिद ने बताया कि हमें पानी डेढ़ किलोमीटर की दूरी से लाना पड़ता है। उनका कहना था कि बरसात के दिनों में खासतौर से पशुओं के लिए पीने के पानी का इन्तज़ाम करना एक बड़ी चुनौती है। यहाँ पर पानी का कोई साधन नहीं है। यहाँ लिफ्ट स्कीम ही पानी का एक मात्र विकल्प है जिससे पानी की समस्या दूर हो सकती है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह स्कीम कहीं नज़र नहीं आती है। झुलास के देरियाँ पब्लिक स्कूल में भी पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए है। इस स्कूल में 3 अध्यापक हैं जबकि 31 छात्र-छात्राएँ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैैंं जिनमें 13 लड़के एवं 18 लड़कियाँ शामिल हैं।

अध्यापक मोहम्मद आजि़म ने बताया कि स्कूल में मिड डे मील का खाना बनाने के लिए अथवा बच्चों के पीने के लिए पानी एक किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है। स्कूल में शौचालय भी नहीं है जिसकी वजह से बच्चों को शौच खुले में करना पड़ता है। अगर शौचालय बना भी दिया जाए तो उसके लिए पानी का कोई साधन नहीं है। उन्होंने आगे बताया कि 7-8 महीनों से लिफ्ट स्कीम का काम शुरू हुआ है लेकिन उससे भी पानी की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।

इस बारे में जब पीएचई के जिला एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर सरवन सिंह से बात हुई तो उन्होंने कहा ‘‘जनसंख्या बढ़ने की वजह से लिफ्ट स्कीम अब सफल नहीं हो पा रही है। झुलास में पानी की आपूर्ति, सुधार और विस्तार के लिए नई योजना बनाई गई है लेकिन इसके लिए अभी सरकार से पैसा नहीं आया है।’’ आगे सहायिका नसीम अख्तर ने पानी की समस्या के बारे में बताते हुए कहा कि स्कूल में पानी की व्यवस्था न होने के कारण से हमें खाना बनाने के लिए पानी दो-तीन किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है और उसके बाद बच्चों के लिए खाना बनाना पड़ता है। उन्होंने आगे बताया कि मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं जिसकी वजह से मेरे पास इतना समय नहीं होता कि मैं रोज़ इतनी दूर से पानी लाऊँ।। इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल में गैस का इन्तज़ाम न होने की वजह से जंगल से खाना बनाने के लिए लकड़ियाँ भी इकट्ठी करनी पड़ती हैं।

पानी की समस्या के बारे में झुलास गाँव के मोहल्ला देरियाँ के रहने वाले मोहम्मद जै़द ने बताया कि जो भी छात्र या छात्रा सुबह उठकर मुँह हाथ धोएगा वह स्कूल नहीं जाएगा। यह बात सुनकर पहले तो हमें हैरानी हुई कि ज़ैद क्या कहना चाहते हैं? बाद में उन्होंने विस्तार से बताया कि जो भी छात्र या छात्रा सुबह मुँह हाथ धोने के लिए दो-तीन किलोमीटर दूर जाएगा वह भला स्कूल कैसे जा पाएगा? कुछ बच्चे तो सुबह बिना मुँह हाथ धोए ही स्कूल चले जाते हैं और उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता है क्योंकि इसके सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है।

इस बात से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि यहाँ के बच्चे किन-किन परेशानियों का सामना करके शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। देखने के लिए तो इन गाँवों और मोहल्लों में बहुत बड़ी-बड़ी पाइप लाइनें बिछी हुई हैं लेकिन वह भी किसी काम की नहीं है। लिहाज़ा फिलहाल इस गाँव में पानी की समस्या ही सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि इसका असर प्रत्यक्ष रूप से बच्चों की शिक्षा पर देखने को मिल रहा है।

यह समस्या गाँव में बच्चे-बच्चे की ज़बान पर है। इन लोगों को 23 दिसम्बर की मतगणना के बाद राज्य में बनने वाली सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। शायद यही वजह है कि यहाँ की जनता ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इनकी समस्या का हल होता है या नहीं या फिर इनके सपनों पर भी पानी फिर जाएगा।

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