पानी की समस्या से दो चार सरहदी वाशिंदे

कश्मीर में पानी का संकटउर्दू और फारसी के मशहूर शायर अमीर खुसरो ने जम्मू कश्मीर की खूबसूरती बयां करते हुए कहा था, ‘‘गर फिरदौस बर रूए ज़मी अस्त अमीं अस्तो अमीं अस्तो अमी अस्तो’’ अर्थात् धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं पर है और केवल यहीं पर है। इसमें कोई शक नहीं कि प्रकृति ने जम्मू एवं कश्मीर राज्य को इतनी खूबसूरती दी है जिसकी वजह से शायर इसेे धरती का स्वर्ग होने का दावा कर रहा है और आज तक किसी ने इसके दावे को चुनौती नहीं दी है क्योंकि यही सच्चाई है।

यही वजह है कि दूसरे शायर ने धरती के इस स्वर्ग के बारे में कहा था कि यहां की मेहमाननवाज़ी का क्या कहना यहां तो पत्थर भी ठंडे पानी से अपने मेहमानों का स्वागत करते हैं? यहां के पहाड़ों में चश्मों से निकलने वाला पानी आने-जाने वाले मुसाफिरों की प्यास बुझाने का काम आज भी कर रहा है। यह वही राज्य है जहां बैठ कर कोई फैज़ अहमद फैज़ बना तो इसी धरती से कोई महजर, हिबा खातून और कृष्ण चन्दर।

लेकिन अपने ठंडे पानी से मुसाफिरों और पर्यटकों की प्यास बुझाने वाली इस धरती के आम बांशिदें खुद एक-एक बूंद पानी को तरस रहे हैं और ऐसा महसूस हो रहा है मानो यह राज्य धरती का स्वर्ग नहीं बल्कि करबला का तपता रेगिस्तान हो।

पुंछ जिले की तहसील मेंढ़र के अलग-अलग इलाकों में पीने के पानी के लिए लोगों को तरसना पड़ रहा है क्योंकि ज्यादातर वाटर सप्लाई योजनाओं का काम पीएचई विभाग ने अधूरा छोड़ा हुआ है। यही वजह है कि यहां के लोगों को गर्मी के मौसम में भी पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। हालांकि इस इलाके में कई स्थानों पर वाटर सप्लाई की योजनाएं मौजूद हैं लेकिन पाइप लाइन में पानी न होने की वजह से ज़्यादातर पाइप लाइनें जंग लगकर बर्बाद हो चुकी हैं।

मेंढ़र के स्थानीय लोगों के मुताबिक लोगों को ग्राउंड वाटर उपलब्ध कराने के लिए पीएचई विभाग की ओर से कोशिश जरूर की गई थी लेकिन इनकी ओर से चापाकल को लगाने में अनदेखी की गई और मनमाने तरीके से मंत्रालय के फरमान को ताक पर रखकर लोगों को पीने के पानी के लिए तरसाया गया। पीने के पानी की कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकार की ओर से करोड़ों रुपया चापाकल को लगाने पर खर्च किया जा चुका है मगर आज तक लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल सका है।

एक अंदाज़े के मुताबिक पिछले चार सालों में तकरीबन 250 से ज़्यादा चापाकल लगाए गए हैं। लेकिन इनमें से 60 फीसद ऐसे हैं जिनका पैसा सरकारी खज़ाने से निकाल लिया गया लेकिन उनमें से पानी की एक बूंद भी नहीं निकलती है। इसका नज़ारा तहसील के भाटीदार, कालाबन, सलवाह, धारगिलोन, हरनी और मनकोट आदि गांवों में देखा जा सकता है जहां चापाकल तो मौजूद हैं लेकिन इनमें से पानी की एक बूंद तक नहीं निकलती है।

इसका अर्थ यह है कि विभाग के किसी भी अधिकारी का ध्यान इस ओर नहीं है। कालाबन के पंच सलार खान कहते हैं कि पिछले चार सालों से यह चापाकल लगे हुए हैं लेकिन इनके लगने का हमें कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि आज भी पीने का पानी लाने के लिए एक या दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।

उन्होंने इल्ज़ाम लगाते हुए कहा कि पीएचई विभाग के अधिकारी और कार्यकर्ता सिर्फ खज़ाना लूटने पर लगे हुए हैं। उन्होंने आगे बताया कि अगर कोई चापाकल खराब हो जाता है तो जनता चंदा करके उसे ठीक करवाती है जबकि विभाग के कर्मचारी अच्छा खासा वेतन मिलने के बावजूद भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते। ऐसे में राज्य सरकार से हमारा सवाल यह है कि हम गरीब जनता के साथ ज़्यादती क्यों की जा रही है?

मेंढ़र के अलग-अलग इलाकों के लोगों ने संबंधित विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों से तंग आकर डिप्टी कमिश्नर पुंछ से अपील की है कि चापाकल के बारे में सही तरीके से जांच पड़ताल की जाए कि आज तक कितने चापाकल विभाग की ओर से आवंटित किए गए हैं और इस पर कितना पैसा अब तक खर्च किया जा चुका है?

पठानातीर के लोगों ने बताया कि हालांकि विभाग की ओर से बार-बार योजनाओं को पूरा करने और जनता तक साफ पानी पहुंचाने के वादे ज़रूर किए गए लेकिन ज़मीनी स्तर पर धांधलियों के सिवा कुछ नज़र नहीं आता। इसकी वजह से लोगों में पीएचई विभाग के प्रति गुस्सा भरा हुआ है जबकि विभाग के कर्मचारी पैसे का सही जगह पर इस्तेमाल होने का बहाना बना रहे हैं।

मेंढ़र के अलग अलग इलाकों कालाबन, पठानातीर, जगाल, मनकोट, अड़ई, छतराल, हरनी, धारगिलोन और गोरसाई के लोगों के मुताबिक कई इलाकों के लिए रोज़ाना वाटर टैंकर रवाना किए जाते हैं लेकिन वह भी तेल का बहाना बनाकर गायब रहते हैं जिसकी वजह से इस इलाके के लोगों को पानी की परेशानी का सामना करना पड़ता है। जम्मू कश्मीर से निकलने वाले एक अंग्रेजी अखबार डेली एक्सेलसियर के अनुसार पानी की समस्या से उकताए लोगों ने 19 जून को मेंढ़र-सूरनकोट रास्ता जाम कर दिया। महिलाएं और बच्चे भी पानी के खाली बर्तन लेकर सड़क पर बैठ गए।

पुंछ जिले की तहसील मेंढ़र के अलग-अलग इलाकों में पीने के पानी के लिए लोगों को तरसना पड़ रहा है क्योंकि ज्यादातर वाटर सप्लाई योजनाओं का काम पीएचई विभाग ने अधूरा छोड़ा हुआ है। यही वजह है कि यहां के लोगों को गर्मी के मौसम में भी पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। हालांकि इस इलाके में कई स्थानों पर वाटर सप्लाई की योजनाएं मौजूद हैं लेकिन पाइप लाइन में पानी न होने की वजह से ज़्यादातर पाइप लाइनें जंग लगकर बर्बाद हो चुकी हैं।

पिछले दिनों हुए मेंढ़र के इलाके छजला पोठी जियारत पर उर्स के मौके पर उस वक्त पीएचई विभाग की पोल खुल गई जब प्रशासन और नायब तहसीलदार, सुरनकोट के दो सप्ताह पहले कहने के बावजूद भी पानी की सप्लाई उर्स के मौके पर भी नहीं की जा सकी और पानी घोड़ों के ज़रिए एक किलोमीटर की दूरी से लाद कर लाना पड़ा। इससे इस बात का साफ पता चलता है कि पीएचई विभाग इस क्षेत्र में कितनी संजीदगी से काम कर रहा है।

जब एक प्रशासक के कहने पर भी उर्स में पानी सप्लाई नहीं की जा सकती तो भला एक आम आदमी पानी की उम्मीद कैसे कर सकता है? पानी की सप्लाई के बारे में जब नायब तहसीलदार लतीफ खान से बात की गई तो उनका कहना था कि मैंने दस दिन पहले स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को कहा था कि उर्स के दौरान पानी का ख्याल रखा जाए लेकिन इनकी कमी के चलते आज मुझे घोड़ों के ज़रिए पानी मंगवाना पड़ा।

उन्होंने आगे कहा कि इनकी लापरवाही की वजह से लोगों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा और इस तपती गर्मी के मौसम और कड़ाके की धूप में एक या दो किलोमीटर दूर से घोड़ों पर पानी लाद कर लाना पड़ा। इस संबंध में जब पीएचई विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने मैकेनिकल विभाग पर इल्ज़ाम लगाना शुरू कर दिया कि इनकी वजह से पानी की सप्लाई नहीं हो पाई।

इस बारे में एसडीएम, मेंढ़र रमेश कुमार का कहना था कि मैं पूरे मामले की छान बीन करूंगा और जो भी दोषी पाया गया उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि जब स्वास्थ्य विभाग एक दरगाह पर उर्स के दौरान पानी की सप्लाई नहीं करवा पाया तो वह मेंढ़र तहसील में पानी की सप्लाई क्या करवाता होगा? यहां पर कई स्थानों पर यह भी देखने को मिला है कि पानी की पाइप लाइनें लीक हो रही हैं और कुदरत का अनमोल तोहफा लोगों को नसीब होने के बजाए बर्बाद हो रहा है। पानी की पाइपें लीक होने के बावजूद भी सरकार से मोटा वेतन पाने वाले लाइन मैन भी इसको ठीक करने नहीं आते हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि पानी लोगों के घर में पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो रहा है।

जम्मू कश्मीर के लोगों की अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए निगाहें अब आगामी विधानसभा चुनावों पर टिकी हैं। किंतु यह तो वक्त ही बताएगा की क्या यह चुनाव वाकई लोगों की प्यास बुझा पाएगा या हर बार की तरह इस बार फिर जनता छली जाएगी।

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