पानी

19 Aug 2009
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पानी बचाये रखने की सलाह भी बुजुर्गों ने दी है और यह भी कहा है कि पानी जैसी चीज़ के लिये मना करना मनुष्यता नहीं है। लोग तो जनसेवा के लिये पानी का वितरण करते हैं, प्याऊ खोलते हैं, पानी पिलाकर पुण्य लूटते हैं। यह बात अलग है कि अब लोग पानी मोल बेचते हैं। कभी-कभी समर्थ और शक्तिवान अच्छों-अच्छों को पानी पिलाकर ठिकाने लगाते हैं और बदले में दूसरों से शाबासी बटोरते हैं। रावण ने अच्छों-अच्छों को पानी पिलाया था तो भगवान राम ने रावण को भी पानी पिया दिया । यों, लोग अपने पुरखों को पानी देकर उनकी आत्मा को शांत करते हैं। भारत वर्ष में तो लोग पुत्र को इसीलिये महत्वपूर्ण मानते हैं कि वह पिता की मृत्यु के बाद पानी देकर संसार से मुक्त करता है।पानी उन पाँच महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है जिनसे किसी प्राण की रचना होती है। ‘क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व यह रचित शरीरा’ इसीलिए पानी को जीवन कहा गया है । इसकी महिमा अनन्त है। मौक़ा आने पर पानी लोगों को पानी-पानी कर सकता है, पानी में बहा सकता है। व्यक्ति सेवा सत्कार से व्यवहार और उदारता से किसी को भी पानी-पानी कर सकता है। यानी कठोर स्वभाव के व्यक्ति को भी प्रसन्न कर सकता है। लेकिन यदि वही कठोर व्यक्ति किसी की कुचाल पकड़ लेता है तो सरे आम उस कुचाली व्यक्ति का पानी उतारकर बेइज्जत भी कर सकता है।

पानी तो पानी है। कभी नल के बल ऊपर चढ़ता है- ‘नल बल जल ऊँचे चढ़ै। अपने कार्यों से, किसी के उत्तेजित करने से, किसी के सहारे से, कभी-कभी अहंकार से व्यक्ति में ऐसा पानी चढ़ता है कि वह सारी मर्यादाओं को एक तरफ रख देता है। लोग खुले आम कहते हैं कि उस पर ऐसा पानी चढ़ा है कि किसी की सुनता ही नहीं। वह समाज का प्रभावशाली व्यक्ति अपने किन्हीं कर्मों के कारण किसी और बड़े समर्थ से भिड़कर मिट जाता है अथवा क़ानून के हाथ पड़कर दण्डित होता है तो वही पानी जो चढ़ा था तुरन्त उतर जाता है। और तब लोग कहते हैं कि उसका पानी उतर गया या उतार दिया गया, अर्थात् प्रतिष्ठाहीन हो गया और फिर उसी हालत में ऐसा पिटा हुआ, पानी उरता हुआ व्यक्ति पानी की धार से असहाय सा बन जाता है। कोई टेक नहीं, कोई सहारा नहीं।

पानी खरे को खोटा और खोटे को खरा बना देता है। पीतल या चांदी के जेवर में सोने का पानी चढ़ा दिया जाये तो उसकी रौनक अलग ही होती है और जब वह पानी उतर जाता है तो आभूषण किसी काम का नहीं रहता । पानीदार का महत्व ही अलग होता है, चाहे व्यक्ति हो या अनाज या रत्न। जिसका पानी आबदार है उसी का रूआब है, प्रभाव है, प्रतिष्ठा है। जिसमें पानी ही नहीं है वह व्यक्ति हो या रत्न, किसी काम का नहीं। लोग पानीरहित व्यक्ति को कायर, कापुरुष और न जाने क्या-क्या कहते हैं। चेहरे का पानी चला जाय तो शकल शोभाहीन हो जाती है। आँखों का पानी उतर जाय, चला जाय, मर जाए तो आदमी निर्लज्ज और बेशर्म हो जाता है। शरीर में पानी का अभाव हो जाए तो वह व्यक्ति नाना प्रकार के रोगों का शिकार हो जाता है। व्यक्ति और रत्न तो छोड़िये, चूना जैसी चीज़ भी पानी रहित होने पर बेकार हो जाती है। रहीम कवि ने लिखा था- ‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे मोती मानस चून।’

पानी बचाये रखने की सलाह भी बुजुर्गों ने दी है और यह भी कहा है कि पानी जैसी चीज़ के लिये मना करना मनुष्यता नहीं है। लोग तो जनसेवा के लिये पानी का वितरण करते हैं, प्याऊ खोलते हैं, पानी पिलाकर पुण्य लूटते हैं। यह बात अलग है कि अब लोग पानी मोल बेचते हैं। कभी-कभी समर्थ और शक्तिवान अच्छों-अच्छों को पानी पिलाकर ठिकाने लगाते हैं और बदले में दूसरों से शाबासी बटोरते हैं। रावण ने अच्छों-अच्छों को पानी पिलाया था तो भगवान राम ने रावण को भी पानी पिया दिया । यों, लोग अपने पुरखों को पानी देकर उनकी आत्मा को शांत करते हैं। भारत वर्ष में तो लोग पुत्र को इसीलिये महत्वपूर्ण मानते हैं कि वह पिता की मृत्यु के बाद पानी देकर संसार से मुक्त करता है। उनकी आत्मा को तृप्ति प्रदान करता है। वैसे पानी से पतला कुछ भी नहीं होता।’ पर पानी को कोई मुट्ठी में बंदकर नहीं रख सकता । पानी अपनी राह खुद बनाता है। पानी में रहकर कोई मगर से बैर करने की भूल नहीं रकता ।

पानी के रूप अलग और गुणधर्म भी अलग हैं। किसी का पानी ठंडा और किसी का गर्म। यद्यपि ये दोनों ही अच्छे नहीं माने जाते। जिसका पानी ठण्डा होता है वह कुचकर ही नहीं सकता-प्राय: निकम्मा होता है और जिसका पानी गर्म होता है वह जल्दी उत्तेजित होकर कुछ भी कर बैठता है। जिसकी आँख में पानी होता है वह शीलवान होता है, जिस की बात में पानी है वह दमदार होता है। बहरहाल पानी बड़ा महात्वपूर्ण है। इसके बिना जीवन संभव नहीं है। इसे बहुत संभालकर रखना चाहिये। आल लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं, इसका दुरुपयोग घातक है।

सम्पर्क - डॉ. गंगा प्रसाद बरसैंया
एम. आई.जी-12, चौबे कॉलोनी, छतरपुर,
मध्यप्रदेश
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