पहाड़ की विरासत - नौला-धारा
(Heritage of pahad : Naula-Dhara)



हिमालयी क्षेत्र सदियों से पानी, पहाड़ों, नदियों, जलवायु, जैवविविधता एवं वृहत्त सांस्कृतिक विविधता का मूल रहा है। लेकिन गंगा-यमुना नदियों का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड, जो समस्त उत्तर भारत को सिंचता है, आज खुद प्यासा है। यहाँ पानी का मुख्य माध्यम प्राकृतिक जल स्रोत है। जो वनाच्छादन की कमी, वर्षा का अनियमित वितरण एवं अनियंत्रित विकास प्रक्रिया के कारण सूखते जा रहे हैं। ऐसे में जब जलागम की पाइप लाइनें, स्वजल द्वारा लगाए गए हैण्डपम्प से पानी मिलना बन्द हो जाता है, तब लोगों का ध्यान प्राकृतिक स्रोतों की ओर जाता है। जो आज मरणासन्न की स्थिति में हैं।

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर जिलों में चिराग संस्था के माध्यम से एवं अर्घ्यम, एक्वाडेम, पीएसआई सस्थाओं के सहयोग से प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम किया जा रहा है। इस काम में स्थानीय लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के साथ महिला नेतृत्व आधारित जल समितियों का निर्माण किया गया है। जिसके माध्यम से नौले के जलग्रहण क्षेत्र में खाल, चेकडैम, कन्टूर ट्रेंच, एवं वृक्षारोपण का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही जल की गुणवत्ता की जाँच एवं भूजल प्रबन्धन, एवं स्रोत सम्बन्धित जागरुकता बढ़ाने का काम किया जा रहा है। संस्था द्वारा पिछले कुछ सालों मेें लगभग 53 जल समितियों के माध्यम से 90 से अधिक जल स्रोतों पर काम किया गया। जिनमें जनसहयोग एवं जनभागीदारी के माध्यम से नौलों, पनेरों और धारों पर गाँवोें में जल संवाद स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। जंगलों में वृक्षारोपण, वनाग्नि, पर्यावरण संरक्षण आदि के कार्यों को समिति के माध्यम से किया जा रहा है।

प्रस्तुत डाक्यूमेंट्री में प्राकृतिक जल स्रोत की उपयोगिता के साथ उनकी वर्तमान दशा एवं उस क्षेत्र में किये गए सामुदायिक प्रयासों को दिखाने का प्रयास किया गया है।

विशेष आभार- श्री केसर सिंह, चिराग संस्था
निर्माता- इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)
निर्देशक - डाॅ. मुकेश बोरा
शोध एवं कैमरा- वैशाली मांगलिया, मृदुल पांडगरे
सम्पादन- विवेक पांडे

 
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