पहला आधुनिक कैथलिक गुरुकुल

2 Dec 2019
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नैनीताल
नैनीताल

एक नगर के रूप में नैनीताल की बसावट से भारत में राज करने में अंग्रेजों को बहुत मदद मिली। नैनीताल में ब्रिटिश राज की सामरिक, प्रशासनिक और मंनोरंजन की रुचियों के साथ शिक्षा की आवश्यकताएँ भी पूरी की। भारत में नैनीताल जैसे हिल स्टेशनों के विकास के बाद अभिजात्य वर्ग के ब्रिटिश हुक्मरानों, सिविल सेवा और सेना के उच्चाधिकारियों को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए सात समुद्र पार इंग्लैंड भेजने की जरूरत नहीं रह गई थी। हिल स्टेशनों ने अंग्रेजी शासक और उनके बच्चों को दूसरे लोगों के मुकाबले पदानुक्रम में सर्वोच्च रखा जाना सम्भव बना दिया था। यहाँ औपनिवेशिक राज्य के अभिजात्य वर्ग को श्रेष्ठता तथा उच्चता को कायम रखना आसान था।

तब नैनीताल का स्वच्छ और शुद्ध वातावरण बच्चों के पोषण और विकास के लिए आदर्श था। अंग्रेजों के जो बच्चे मैदानी क्षेत्रों में अनेक बीमारियों से पीड़ित रहते थे। नैनीताल आते ही स्वस्थ हो जाते थे। दुबले, पतले, जिद्दी, चिड़चिड़े और निस्तेज बच्चे नैनीताल आने के तुरन्त बाद तंदुरस्त, मोटे-ताजे, लाल-मटोल और सक्रिय हो जाया करते थे। नतीजतन भारत के दूसरे हिल स्टेशनों की तरह नैनीताल में भी शिक्षा लोकप्रिय हो गई।

इससे पहले गुलाम भारत के ज्यादातर पहाड़ी नगर आधुनिक कैथलिक गुरुकुल और आचार्यकुल में तब्दील हो चुके थे। इसी क्रम में 1869 में यहाँ नेशनल डायोसेजन बॉयज और डायोसेजन गर्ल्स स्कूल खुल गए। ये स्कूल चर्च ऑफ इंग्लैंड के थे। इन्हें कोलकाता के बिशप मिलमैन ने स्थापित किया था। शुरू में ये स्कूल स्टोनले में खुले। तीन साल तक एक साथ चले। तीन साल बाद डेयोसेजन बॉयज और डेयोसेजन गर्ल्स स्कूल अलग-अलग हो गए।

1873 में डेयोसेजन बॉयज स्कूल अयारपाटा पहाड़ी में चला गया, जबकि डेयोसेजन गर्ल्स स्कूल पीटर्स फील्ड, मल्लीताल भेज दिया गया। नैनीताल को विश्व विख्यात बनाने में ब्रिटिशर्स द्वारा अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए यहाँ स्थापित किए गए क्रिश्चियन स्कूलों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

1869-70 में सरकार ने रामपुर के नवाब अलीजाह, फरजान-ए-दिल-पजीर, दौलत-ए-इंदलैशिया, मुखलिस-उद्-दौला, नसीर-उल-मुल्क अमीर-उल-उरमा, ब्रुकहिल लॉज और ब्रुकहिल कॉटेज की 17 एकड़, एक रोड़ और 19 पोल जमीन आवंटित की। प्रकारांतर में यह 1857 के गदर में मदद करने की एवज में रामपुर नवाब को अंग्रेजों की ओर से नजराना भी था।

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