पक्षियों के हिस्से का पानी पी गया इंसान

25 Jun 2009
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पानी की किल्लत हो तो इंसान बोतलबंद पानी खरीद सकता है या फिर सरकार को बाध्य कर सकता है कि व्यवस्था उनके लिए पानी की व्यवस्था करे. लेकिन पक्षियों का क्या? पानी तो पक्षियों को भी चाहिए. लेकिन मनुष्य की स्वार्थ बुद्धि कितनी जटिल हो गयी है कि उसने अपने अलावा प्रकृति में सबके लिए जीवन के दरवाजे बंद कर दिये हैं. राजस्थान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला केवलादेव घना पक्षी विहार अब अपने अस्तित्व के लिए संधर्ष करता नजर आ रहा है इसके पीछे का कारण है पानी, जिस पर होने वाली राजनीति ने पक्षियों का स्वर्ग कही जाने वाली इस प्राकृतिक संपदा के समक्ष गम्भीर संकट खडा कर दिया है।

जिसके लिए अब ट्यूबवैलों का सहारा लिया जा रहा है। क्या हजारों पक्षियों, जंगली और पानी के जीवों के आश्रय बने इस विशाल क्षेत्र को ऐसे अल्प संसाधनों से पुर्नजीवन दिया जा सकता हैं। किसी समय पर 400 पक्षी प्रजातियों को आशियाना देने वाले इस पक्षी विहार में आज बमुश्किल 50 प्रजाति ही दिखाई पडती है जिनमें अधिकांश देशी ही है। इस अभ्यारण्य में इस समय लगभग पॉच हजार पक्षी है जिनमें ईंग्रेट,बुड पैकर,ग्रीन पीजन, पैराकीट, उल्लू, हार्नबिल, किंग फिशर, जैकाना, सनवर्ड, ब्लैक नेक स्टार्कं, इंडियन सारस प्रमुख है। इनमें जलकौवे, सारस, लकबक बगुले, जलसिघे और कछुए जो जल के जीव है के लिए परेशानियॉ कहीं बहुत अधिक बढ गई हैं। सभी झीलों का पानी लगभग सूख चुका है जमीन में दरारें दिखाई देने लग गई है ऐसे में केवल मानसून की अच्छी बारिश से ही उम्मीद की जा रही है।

इस पक्षी विहार की पहचान साईबेरिया से चलकर आने वाले सारसों के कारण थी जो अब बर्षों से यहॉ नही आ रहे है। बर्ष 2002 से इन पक्षियों ने यहॉ आना बंद क्या किया, पक्षी विहार के लिए अपशकुन के दिन आरम्भ हो गये, और फिर 2004 से इन्द्र देवता ने भी अपना कोप भाजन इस क्षेत्र को बना लिया जिसके चलते पानी का एक गम्भीर संकट यहॉ खडा हो गया है। आज घने को तकनीकी रूप से दुनिया के सामने रखने के लिए वेब की दुनिया से जोडे जाने की तैयारियां तो चल रहीं है मगर उसको बचाने के लिए आवश्यक पानी की व्यवस्था करने हेतू स्थायी और सार्थक प्रयास कहीं होते नजर नहीं आ रहे है। आम तौर पर घने को मई जून के महीनों में बंद कर दिया जाता रहा है मगर इस बार कुछ तथाकथित घना प्रेमियों ने धरने प्रदर्शनों की नौटंकी कर उसे इन दिनों में भी खुला रखने के सरकारी आदेश मिलने के बाद खुशी के इजहार करते अपने फोटो छपवा लिऐ है मगर पानी की समस्या को लेकर कोई सुगबुगाहट कहीं दिखाई दी हो ऐसा नहीं है।

घने की झीलों के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था गम्भीर नदी से होती रही है, जिसे रोककर करौली जिले में पॉच नदियों का संगम कर पॉचना बॉध बना दिया गया, उसके बाद इस पक्षी विहार के लिए पानी का संकट खडा हो गया ।पॉचना से चलकर भरतपुर पहुंचने वाले पानी पर राजनीति की ऐसी काली छाया पडी की इस राश्ट्रीय धरोहर के अस्तित्व पर ही संकट खडा होने जा रहा है क्योंकि पानी के बिना प्रकृति और पक्षी अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हुए यहॉ बहुत दिनों तक बने रहेगें इस बात की उम्मीद कम ही की जा सकती है। दूसरी ओर यहॉ पर्यटकों के लिए भी स्तरीय सुविधाओं का अभाव दिखाई देता है। कभी देशी विदेशी पक्षियों के मधुर कलरव से गुंजायमान रहने वाले इस पक्षी अभ्यारण्य की स्थिति अब धीरे धीरे बदतर होती चली जा रही है राजनीति के धुरंधर चुनावों के वक्त भले ही भरतपुर को पानी दिलाने की बात कहते हो मगर उसमें भी इस पक्षी विहार की कहीं कोई चर्चा सुनाई नही देती है। आम आदमी की उदासीनता राजनेताओं से कही अधिक है वो भी नहीं चाहते कि इस पहचान के साथ जिले और प्रदेश का नाम जुडा रहे, उनका मानना है कि जब भरतपुर से बडे बडे उधोग धन्धे और कम्पनियॉ रूखसत कर गई तो इस पहचान के साथ जुडे रहने से क्या होना है ।

अब जबकि प्रदेश और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है और बहुत दिनों बाद कांग्रेस प्रत्याशी भरतपुर से जीत कर संसद पहुंचा है, जो जलदाय विभाग के उच्च पद से ही सेवानिवृत है तथा जिसका संबंध भरतपुर को चंबल का पानी पहुंचाने के लिए गत कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना से रहा है। अब इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि इस अभ्यारण्य के लिए पानी की स्थायी व्यवस्था के साथ इसकी बेहतरी के लिए कुछ किया जा सकेगा। इस संदर्भ में एक और बात महत्वपूर्ण बात है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गॉधी चुनाव प्रचार के दौरान भरतपुर आने पर अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए सर्दियों में एक बार फिर से घना घूमने का वायदा कर गऐ है लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह हो जाती है कि आज 6 टयूबैलों के भरोसे खडी ये अनमोल धरोहर और इसकी अमानत शोरगुल करते सुन्दर विहग तब तक यहॉ रूक पाऐगें या फिर अपने लिए और किसी बेहतर आशियाने की तलाश में यहॉ से दूर कहीं के लिए उडान भर जाऐगें। आज भरतपुर जिले के कस्बों और गॉवों में रोजाना पीने के पानी के लिए सड़कों पर खुले आम प्रदर्शन हो रहे है मगर प्रकृति के सुन्दर उपहार कहे जाने वाले इन मूक पक्षियों और जानवरों के लिए कहीं से कोई आवाज उठती नजर नहीं आ रहीं है ये मानवीय संवेदनाओं के सिकुडते स्वरूप को साकार करती कहानी है जिसकी इबारत इस पक्षी विहार के लिए आने वाले दिनों का अच्छा संकेत नहीं दे रही हैं।
 
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