प्लास्टिक से हरी-भरी सड़क

आज के समय में प्लास्टिक कचरा एक गहरी चिंता का विषय बना हुआ है। बढ़ते प्लास्टिक कचरे की वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ है। प्लास्टिक कचरे में मौजूद रासायनिक अवयव धरती की उर्वरा शक्ति को खत्म कर देता है। ऐसे में प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए त्यागराज अभियांत्रिकी महाविद्यालय मदुरै के रसायनशास्त्र के प्रोफेसर आर माधवन ने लगभग एक दशक पूर्व बेकार प्लास्टिक से डेढ़ किलोमीटर सड़क बनवाकर भविष्य में बड़े खतरे के खिलाफ लोगों को आश्वस्त किया। केके प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नामक कंपनी ने अपने नेटवर्क के जरिये देश भर में लगभग आठ हजार किलोमीटर प्लास्टिक की सड़कें बनवायी हैं, बता रहे हैं घनश्याम श्रीवास्तव।

प्लास्टिक कचरे की समस्या से जूझते देश में सड़क निर्माण की इस तकनीक से कई राज्यों को एक नयी राह दिखी है। नगालैंड जैसे छोटे राज्य में लगभग 150 किलोमीटर लंबी सड़क इसी तकनीक से बनायी जा चुकी है। अब ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और पांडिचेरी में भी बेकार प्लास्टिक और बिटुमेन मिश्रित सड़कें जल्द ही बननी शुरू हो जायेंगी। विशेषज्ञों के अनुसार, तकनीकी भाषा में कहें तो इस तकनीक से बनी सड़कों की 'मार्शल स्टैबिलिटी वैल्यू' (सड़क की गुणवत्ता का मानक) बढ़ जाती है। हाल के वर्षों में विश्व बिरादरी के लिए प्लास्टिक कचरा गहरी चिंता का सबब बना है। बेकार का प्लास्टिक काफी समय तक नष्ट नहीं होता। इसमें मौजूद रासायनिक अवयव धरती की उर्वरा शक्ति नष्ट कर देते हैं और कई सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व ही इसके कारण खत्म हो चुका है। बेकार प्लास्टिक से बने पॉलिथिन के पैकेट खाकर मर रही गायें और कई शहरों में जल निकास प्रणाली का संकट इसी की देन हैं। लेकिन अब बेकार प्लास्टिक का उपयोग एक उपयोगी काम में हो रहा है। यह उपयोग है बिटुमेन के साथ इसकी पंद्रह फीसद मात्रा मिलाकर सड़क बनाना, जिसमें कई टन बेकार प्लास्टिक एक मजबूत सड़क का ऊपरी कवच बन कर उसे ज्यादा सुरक्षित और टिकाऊ बनाता है। तमिलनाडु को बेकार प्लास्टिक का उपयोग कर सड़क बनाने में 'महारथी' होने का दर्जा हासिल है। उसे यह श्रेय दिलाया है त्यागराज अभियांत्रिकी महाविद्यालय, मदुरै के रसायनशास्त्र के प्राध्यापक आर वासुदेवन ने। उन्होंने नयी तकनीक का इस्तेमाल करके लगभग एक दशक पूर्व बेकार प्लास्टिक से डेढ़ किलोमीटर सड़क बनवा कर भविष्य के बड़े खतरे के खिलाफ मानव समुदाय को आश्वस्त किया। मानव और मवेशियों के लिए काल बन चुके प्लास्टिक के इस्तेमाल का एक बेहतर विकल्प अब देश के सामने है। उनके इस काम से सरकार इतनी प्रभावित हुई है कि अब राष्ट्रीय उच्च पथ और राज्य उच्च पथ की सड़कों को बनाने में बेकार प्लास्टिक के उपयोग पर एक राष्ट्रीय नीति भी बन रही है।

इस अनोखे विकल्प से वन और पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन भी हैरत में हैं। वे कहती हैं, 'विनाश की ओर ले जा रहे प्लास्टिक का इतना बेहतर उपयोग शायद ही कुछ हो सकता है।' इस प्रयोग से उत्साहित होकर चेन्नई में राष्ट्रीय ग्रामीण सड़क विकास एजेंसी (एनआरआरडीए) ने बेकार प्लास्टिक से सड़क बनाने के बाकायदा दिशा निर्देश जारी किये हैं। यह निर्देश बंगलुरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वासुदेवन, प्रोफेसर जुस्तो और प्रोफेसर वीरराघवन के शोध के बाद जारी किया गया है। इन प्रोफेसरों ने ऐसी सड़कें बना कर इन पर कई साल शोध किया और पाया कि ये सड़कें पानी के संपर्क में आने से टूटती नहीं हैं। इन पर चलने वाले वाहनों की रफ्तार अच्छी होती है। खर्च भी कम होता है। बाद में चेन्नई नगर निगम ने अपने क्षेत्र में ऐसी कई सड़कें बनवायीं। बंगलुरू में लगभग एक दशक से प्लास्टिक सड़कों पर काम कर रही केके प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नामक कंपनी ने प्लास्टिक की सड़कें बना कर शहर की सूरत ही बदल दी है। कंपनी अपने नेटवर्क के जरिये कचरा बीनने वालों, निगम के कर्मियों और अपने कर्मचारियों के जरिये घरों और कूड़ेदानों से बेकार प्लास्टिक जमा करती है और इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर इसमें असफाल्ट मिलाया जाता है। उसके बाद बिटुमेन मिलाकर सड़क बनायी जाती हैं। कंपनी ने देश भर में लगभग आठ हजार किलोमीटर प्लास्टिक की सड़कें बनवायी हैं।

चेन्नई और बंगलुरू के वैज्ञानिकों के शोध पर खरी उतरी प्लास्टिक की सड़कों ने एक साल पहले पुणे प्रशासन को भी ऐसा ही प्रयास करने पर प्रेरित किया। पुणे कैंटोनमेंट बोर्ड (पीसीबी) ने हचिंसन स्कूल के सामने वाली आधा किलोमीटर सड़क इसी तकनीक से बनवायी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी इस सड़क की गुणवत्ता की सराहना की है। पीसीबी के उपाध्यक्ष प्रसाद केसरी के अनुसार, 'यह सड़क आम सड़कों के मुकाबले सस्ती है। प्रयोग के तौर पर हम ऐसी कई सड़कों का निर्माण शुरू कर रहे हैं, जिन पर ज्यादा भारी वाहन नहीं चलते।' पुणे में बनी इस सड़क में नब्बे फीसद बिटुमेन और दस फीसद बेकार प्लास्टिक का उपयोग हुआ है। इनमें बिस्किट और गुटखे के रैपर समेत पानी की बोतलों का भी उपयोग किया गया है। प्रशासन ने पाया कि सड़क बनाने में प्रति मीटर सिर्फ 325 रुपये का खर्च आया।

झारखंड के जमशेदपुर में भी टिस्को और जुस्को के संयुक्त अभियान के तहत पिछले साल पर्यावरण दिवस पर जमशेदपुर के लोगों को हरियाली के कई नये अभियानों के साथ प्लास्टिक की सड़क का तोहफा मिला। यहां जुस्को क्षेत्र में राज्य की दूसरी एक किलोमीटर लंबी सड़क बिटुमेन और बेकार प्लास्टिक के मिश्रण से बनायी गयी है। जुस्को ने इसे 'ग्रीन रोड' का नाम दिया है। पर्यावरण दिवस पर इस सड़क का उद्घाटन किया गया। लोगों ने इसे हैरत से देखा भी। इसके पूर्व शहर के आयकर कार्यालय के पास भी ऐसी ही सड़क बनायी गयी थी।

उधर,पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में पॉलिथीन के खिलाफ पिछले साल चलाये गये अभियान का फायदा यह हुआ कि वहां की 138 किलोमीटर सड़क को बिटुमेन और बेकार कचरे से बनाना संभव हुआ। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक सप्ताह का 'पॉलिथीन हटाओ, पर्यावरण बचाओ' अभियान चलाया और घर-घर से लगभग डेढ़ हजार क्विंटल बेकार प्लास्टिक एकत्र किया। हिमाचल प्रदेश ऐसा पहला राज्य है, जिसने पॉलिथीन को पूरी तरह प्रतिबंधित करने में सफलता पायी है। हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और लोक निर्माण विभाग ने तीन प्रमुख सड़कों का चयन कर शिमला के आसपास पायलट प्रोजेक्ट के तहत सड़क बनाने का निश्चय किया।

सड़कों की ऊपरी परत चढ़ाने में जो प्लास्टिक उपयोग में लाया गया, उसमें कैरी बैग, प्लास्टिक के कप और गिलास, लैमिनेटेड प्लास्टिक, पान मसाले के रैपर, अल्युमिनियम के फॉयल, बिस्किट, चॉकलेट के रैपर, दूध और किराने के सामानों की पैकिंग वाले प्लास्टिक का उपयोग किया गया। चार महीने की समीक्षा के बाद पाया गया कि प्लास्टिक और एस्फाल्ट मिश्रित इन सड़कों पर कोई दरार नहीं आयी और उनकी गुणवत्ता बरकरार रही। लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता नरेश शर्मा ने तो यहां तक कहा कि बेकार प्लास्टिक ने लगभग 15 फीसद बिटुमेन बचाया, जिससे प्रति किलोमीटर सड़क निर्माण पर पैंतीस से चालीस हजार रुपये की बचत हुई।

प्लास्टिक की सड़कों के मामले में महानगर कोलकाता भी पीछे नहीं है। वहां इंडियन सेंटर फॉर प्लास्टिक इन द एनवायरमेंट (आइसीपीई) ने रीसाइकिल्ड प्लास्टिक का उपयोग कर सन् 2009 में कल्याणी और सन् 2010 में अशोक नगर और चंदन नगर में कई किलोमीटर सड़क बनायी है। यह अलग बात है कि अब कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण (केएमडीए) ने भी लगातार बढ़ रहे प्लास्टिक कचरे के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाया है। प्राधिकरण आइसीपीई के साथ मिलकर प्लास्टिक और फाल्ट मिश्रित सड़क का निर्माण करने जा रही है।

प्लास्टिक कचरे की समस्या से जूझते देश में सड़क निर्माण की इस तकनीक से कई राज्यों को एक नयी राह दिखी है। नगालैंड जैसे छोटे राज्य में लगभग 150 किलोमीटर लंबी सड़क इसी तकनीक से बनायी जा चुकी है। अब ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और पांडिचेरी में भी बेकार प्लास्टिक और बिटुमेन मिश्रित सड़कें जल्द ही बननी शुरू हो जायेंगी। विशेषज्ञों के अनुसार, तकनीकी भाषा में कहें तो इस तकनीक से बनी सड़कों की 'मार्शल स्टैबिलिटी वैल्यू' (सड़क की गुणवत्ता का मानक) बढ़ जाती है। ये सड़कें जल-जमाव जैसी समस्याएं भी झेल जाती हैं। सड़कों के टूटने की दर काफी कम है और बरसात के पानी से इनमें गड्ढे नहीं बनते। सड़कों पर भारी वाहनों के चलने से भी ये नहीं धंसतीं। ऐसी सड़कों में बिटुमेन का फीसद अपेक्षाकृत कम होता है,जिससे सड़क बनाने की लागत कम हो जाती है। सड़क के रख-रखाव पर कम खर्च होता है और वे पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से भी बची रहती हैं।

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