पलायन आयोग-अठारह वर्ष में चले अढ़ाई कोस

10 Aug 2018
0 mins read
उत्तराखण्ड में पलायन निरन्तर जारी है
उत्तराखण्ड में पलायन निरन्तर जारी है

उत्तराखण्ड में पलायन निरन्तर जारी है (फोटो साभार - डाउन टू अर्थ)5 मई 2018 को राज्य पलायन आयोग एवं ग्राम विकास विभाग द्वारा राज्य में हो रहे पलायन पर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की गई। रिपोर्ट प्रस्तुत कर बेशक सरकार अपनी पीठ थपथपा रही हो, परन्तु वास्तविक चुनौती राज्य से हो रहे पलायन को रोकना है। जो आँकड़े आयोग द्वारा दिये गए हैं, उनमें नया कुछ भी नहीं है। फिर भी रिपोर्ट में पूरे राज्य में समान रूप से हो रहे पलायन की बात चौंकाती जरूर है और यह पूर्व सरकारों के नक्कारेपन को भी दर्शाती है।

रिपोर्ट कहती है कि 2011 के बाद राज्य के 734 गाँव उजाड़ हो चुके हैं। इनमें सर्वाधिक 186 गाँव पौड़ी जनपद से हैं। राज्य के कुल 7950 ग्राम पंचायतों में से 6338 को पलायन से प्रभावित माना गया है। राज्य भर में आजीविका के लिये पलायन करने वालों की दर 50 प्रतिशत है। शिक्षा और स्वास्थ्य को भी इसमें जोड़ दिया जाय तो यह दर 75 फीसदी हो जाती है।

पौड़ी जनपद में तो यह दर 80 फीसदी है। इसका सीधा मतलब है कि पलायन करने वाले चार लोगों में से तीन का कारण रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य है। हालांकि 25 प्रतिशत लोगों के पलायन का कारण सड़क, बिजली, पानी, संचार, बैंकिंग, यातायात जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव और जंगली जानवरों द्वारा खेतों को नुकसान और भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी को माना गया है।

विगत दस वर्षों में एक लाख अठारह हजार नौ सौ इक्यासी लोग अपना आशियाना छोड़ चुके हैं, राज्य से अन्यत्र पलायन करने वालों की दर कुल पलायन का 29 प्रतिशत है और इसी तरह के पलायन को रोकना सरकार का लक्ष्य भी होना चाहिए। हालांकि पलायन से पूर्व यह जानना सम्भव नहीं है फिर भी इसके लिये समग्रता से कार्य करने की आवश्यकता है।

सरकार निश्चित रूप से अपना काम करेगी, लेकन एक सुधी सजग और राज्य हितैषी नागरिक के रूप में हम भी अपने सुझाव सरकार को दे सकते हैं, अब यह सरकार पर है कि वह इन सुझावों पर कितना अमल करती है।

1. अक्सर यह देखने को मिलता है कि जो लोग राज्य से बाहर पलायन कर चुके होते हैं उन्हें राज्य में उनकी थोड़ी सी सफलता पर भी हीरो की तरह पेश किया जाता है भले ही उनकी दूसरी-तीसरी पीढ़ी वहाँ रह रही हो। इसके बजाय हमें राज्य में कार्य कर रहे उन युवाओं को बढ़ावा देना होगा, जो रिवर्स माइग्रेशन का उदाहरण हैं और अपने क्षेत्र में स्वरोजगार अपनाकर सहकारिता के साथ कार्य कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि अपने विज्ञापनों के जरिए ऐसे लोगों को नायक के रूप में प्रचारित-प्रसारित करें।

2. पलायन को रोकने के लिये राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा जैसा सौ दिनों का रोजगार गारण्टी कार्यक्रम शुरू किया जाय, मनरेगा की खामियों से बचते हुए इसे जल संरक्षण और कृषि से भी जोड़ा जाय।

3. राज्य बनने के बाद पहाड़ की आर्थिकी का सबसे ज्यादा नुकसान कुकुरमुत्तों की तरह उग आये बी.एड. और बी.टेक संस्थानों ने किया है जिन्होंने लाखों रुपए देकर मान्यता अर्जित की और जनता की जेबें ढीली कर करोड़ों रुपए कमाए, परन्तु यहाँ के युवाओं को आजीविका के लिये अन्यत्र भटकने के लिये मजबूर कर दिया। इस तरह के संस्थानों को निरुत्साहित कर उद्यमिता आधारित कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाय।

4. राज्य के केन्द्रस्थल गैरसैंण को राजधानी घोषित किया जाय। इससे राजधानी क्षेत्र देहरादून में बसने की प्रवृत्ति में तो कमी आएगी ही साथ में गैरसैंण के 150 किलोमीटर की परिधि में पलायन की दर न्यून हो जाएगी।

5. किसी भी उद्योग को संचालित करने में बिजली की आश्यकता होती है। सरकार को चाहिए कि राज्य के प्रत्येक तोक तक बिजली पहुँचाकर 24 घंटे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करें।

6. राज्य के प्रत्येक क्षेत्र में पेयजल उपलब्ध कराना। इतिहास गवाह है कि सभ्यताओं का विकास और विनाश दोनों जल के कारण हुआ है। पौड़ी जनपद में पलायन का एक बडा कारण पानी की अनुपलब्धता भी रही है, जिसने दशकों पूर्व यहाँ की कृषि को नष्ट कर दिया था। जिन क्षेत्रों में पानी नहीं होता, वहाँ के लोगों का बहुत अधिक समय इसके इन्तजामात में व्यय होता है।

7. आज राज्य में स्वास्थ्य सेवाएँ बुरी तरह चरमरा गई है। राज्य के मेडिकल कॉलेजों से निकले डॉक्टरों को सरकार दुर्गम क्षेत्र में सेवा नहीं करा पा रही है। मेेडिकल कॉलेजों में सीटें बढ़ाकर इन क्षेत्रों में उनका ठहराव सुनिश्चित करना होगा। सभी जिलों में कम-से-कम एक मेडिकल कॉलेज खोला जाना चाहिए और विकासखण्ड स्तर पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खोलकर प्राथमिक सामुदायिक और जिला चिकित्सालयों को आपस में जोड़ा जाना चाहिए।

8. राज्य में शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिये न्याय पंचायत स्तर पर एक से बारहवीं तक के मॉडल आवासीय विद्यालय खोले जाने चाहिए, जहाँ प्रतियोगितात्मक परीक्षा के आधार पर शिक्षकों को भेजा जाय। आठवीं के बाद विद्यार्थियों के कौशल विकास पर बल दिया जाय और नियुक्तियों और पठन-पाठन में सरकारी हस्तक्षेप को न्यूनतम कर दिया जाय।

9. बिजली, सड़क, पानी, संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा और बैंकिंग जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है और राज्य भर में इनकी उपलब्धता और अनुपलब्धता पर एक व्यापक सर्वे सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर किया जाय और उसके बाद इन क्षेत्रों में विकास को फोकस किया जाय।

10. जब 2005 में नारायण दत्त तिवारी सरकार में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना प्रारम्भ की गई तो इस योजना के व्यापक प्रचार-प्रसार के बावजूद इसमें मुख्यतः होटल एवं वाहन खरीदने के लिये ऋण दिये गए और उसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ। सरकार को चाहिए कि अगर वह किसी प्रकार की स्वरोजगार योजना लाती है तो पूर्व योजनाओं की खामियों और खूबियों का अवश्य अध्ययन करे और ऋण देने वाले क्षेत्रों का भी चिन्हीकरण करें।

पलायन को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन काफी हद तक कम किया जा सकता है क्योंकि स्वैच्छिक रूप से पलायन करने वालों की भी एक बड़ी तादाद है। समाज विज्ञानियों के आँकड़ों को यदि आधार माना जाय तो 2050 तक देश की आबादी स्थिर हो जाएगी और तब देश की आबादी एक सौ साठ करोड़ होगी। इनमें 80 करोड़ की आबादी शहरों में निवास करेगी जो कि वर्तमान मेें 36 करोड़ है तब भारत की ग्रामीण जनसंख्या 80 करोड़ होगी जो आज 84 करोड़ है। राज्य के सन्दर्भ में भी यह आँकड़ा इसी तरह का होगा। सरकार को यह भी चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों के आस-पास हो रहे कस्बों का संरचनात्मक विकास करें ताकि राज्य से बाहर की ओर हो रहे पलायन को रोका जा सके।

 

TAGS

cause of migration in uttarakhand, migration in uttarakhand pdf, reasons of migration in uttarakhand, essay on migration in uttarakhand, increasing migration in uttarakhand, out migration in uttarakhand, reverse migration in uttarakhand, migration data of uttarakhand, reason for migration in uttarakhand, migration data of uttarakhand, how to stop migration from uttarakhand, migration rate in uttarakhand, migration problem in uttarakhand.

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading