पराली और पंजाब के किसानों का दर्द

30 Oct 2018
0 mins read
पराली से प्रदूषण
पराली से प्रदूषण

प्रतिबन्ध के बावजूद पंजाब में किसानों का हर जाड़े में धान की पराली जलाने की प्रथा से मोह भंग नहीं हुआ है। यह आज भी बदस्तूर जारी है। किसान क्यों ऐसा करने को बाध्य हैं इसी बात की तस्दीक करती हुई जैकब कोशाय और विकास वासुदेव की रिपोर्ट।

अपने खेत में पराली जलाता हुआ किसानअपने खेत में पराली जलाता हुआ किसान (फोटो साभार - द हिन्दू)पटियाला शहर से 50 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे बीबीपुर कस्बा में कई एकड़ धान की फसल कट चुकी है। कुछ खेतों में धान के पौधे अभी भी हरे हैं वहीं, कुछ में धान की बालियाँ सुनहला रंग पकड़ चुकी हैं और कटने के लिये एकदम तैयार हैं। पटियाला से 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित अमृतसर, जहाँ मानसून का प्रभाव अपेक्षाकृत पहले खत्म हो जाता है वहाँ धान की फसल कट चुकी है और खेत जाड़े की फसल के लिये तैयार हैं। पटियाला में ऐसा होने में अभी कुछ वक्त है जिसे खेतों में लगी आग प्रमाणित करती है। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे नीले आसमान में उजले धुएँ के गुबार को साफ देखा जा सकता है।

अक्टूबर तक अमृतसर में आग की 14,321 घटनाएँ दर्ज की गई हैं। ठीक इसके उलट पटियाला में इनकी संख्या मात्र 81 थी। लुधियाना स्थित पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर दूर संवेदी उपग्रहों की सहायता से ऐसी घटनाओं पर नजर रखता है और सरकार को इनकी सूचना देता है। पंजाब में हर वर्ष 20 मिलियन टन पराली पैदा होती है जिसका दो तिहाई हिस्सा जला दिया जाता है। इतनी बड़ी मात्रा में पराली के पैदा होने की मुख्य वजह है धान की कटाई के लिये कम्बाइंड हार्वेस्टर का बढ़ता प्रयोग। किसान इन मशीनों को प्राथमिकता इसलिये देते हैं कि मजदूरों से फसल की कटाई काफी खर्चीली होती है। लेकिन इसका फायदा भी है। मजदूरों की सहायता से काटी गई फसल में पराली की छोटी सी ठूँठ ही खेतों में बच पाती है जिससे बुवाई करने में कोई परेशानी नहीं होती है। वहीं हार्वेस्टर की सहयता से की गई कटाई में 6 से 8 इंच तक लम्बी ठूँठ खेतों में बच जाती है जिसे हटाए बिना बुवाई करना सम्भव नहीं होता।

इस तरह खेतों में खड़ी पराली को हटाने के लिये केवल दो चीजों अर्थात एक माचिस और डीजल की जरुरत होती है। यह कम खर्चीला होने के साथ भी काफी आसान भी होता है। अतः यह कोई अचम्भे की बात नहीं है कि पंजाब में गेहूँ की बुआई के लिये खेतों में आग लगाने की प्रथा इतने सामान्य क्यों हो गई है। कुछ दशक पहले तक मशीन द्वारा पैदा की जाने वाली पराली का प्रबन्धन कठिन नहीं था। उन्हें पैकेजिंग उद्योग वालों को बेच दिया जाता था या खेतों में ही छोड़ दिया जाता था ताकि वे प्राकृतिक क्रिया द्वारा खेतों में ही सड़-गल जाएँ। लेकिन पराली की बढ़ती मात्रा और अगली फसल लगाने की जल्दी ने लागत के प्रति संजीदा किसानों के पास पूरी पराली को जलाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं छोड़ा।

मोहाली में एक किसान धान के खेत में पराली को काटता हुआमोहाली में एक किसान धान के खेत में पराली को काटता हुआ (फोटो साभार - द हिन्दू)एक दशक पूर्व से ही दिल्ली प्रशासन राजधानी में जाड़ों में हवा के प्रदूषण के लिये पराली जलाने की प्रथा को जिम्मेदार ठहरता रहा है। वर्ष 2013 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों को यह निर्देश जारी किया था कि वो पराली जलाने की व्यवस्था पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाएँ और ऐसा करने वालों को कोई रियायत नहीं दें। इसके बाद ही इन राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों और केन्द्र ने जीरो टॉलरेन्स की पॉलिसी अपनाई। एक अनुमान के मुताबिक जाड़े में पराली जलाने से फैली धुंध से जाड़े के दिनों में दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा में 7 से 78 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।

उसी समय से इन राज्यों और खासकर पंजाब में किसानों की स्थिति खराब है। उन्हें पराली जलाने से रोकने के लिये कई प्रकार से प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिनमें अनुनय-विनय करने से लेकर कानूनी प्रावधान भी शामिल हैं।

क्या मशीन इस समस्या के समाधान हैं?

अक्टूबर की शुरुआत में ही बीबीपुर में ग्राम परिषद के दफ्तर में किसानों का एक समूह का जमावड़ा लगा था। इस भवन के अहाते में एक हैप्पी सीडर मशीन, एक पैडी स्ट्रॉ चॉपर और एक स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम रखे गए थे। मूलतः ये मशीन ट्रैक्टर की सहायता से कार्य करते हैं और धान की पराली को छोटे टुकड़ों में काट देतें हैं जो मिट्टी में सड़-गलकर खाद के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। हैप्पी सीडर धान की पराली को काट देता है और पूरे खेत में उसे सामान रूप से बिछा देता है जिससे गेहूँ की बुआई में कोई परेशानी नहीं आती है।

सीडर और चॉपर का इतिहास भारत में बहुत पुराना है। ये अमरिका और ऑस्ट्रेलिया में प्रचलित मशीनों से मिलते-जुलते हैं और इनकी कीमत एक से दो लाख तक रुपए होती है। वर्ष 2016 तक गुरुबंस सिंह जो 70 एकड़ खेत के मालिक हैं और बीबीपुर के सबसे बड़े किसान हैं मशीन से फसल की कटाई से होने वाले फायदे पर बहुत ज्यादा विश्वास नहीं करते थे। राज्य के अबकारी विभाग में बड़े ओहदे पर काबिज गुरुबंस सिंह जब रिटायर हुए तो उन्होंने खेती को ही अपना पेशा बनाया और जमीन को लीज पर दे दिया। उन्होंने कहा कि कुछ सालों से पराली जलाने से पैदा होने वाले खतरों के बारे में हम सुनते आ रहे हैं लेकिन हमारे पास इसके बहुत कम विकल्प बचते हैं।

उन्होंने बताया कि इस साल उन्हें पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक पर्यावरण अभियन्ता ने मशीनों के उपयोग से होने वाले फायदे के बारे में बताया। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एक नई स्कीम लाई गई जिसका उद्देश्य किसानों को मशीन की खरीद पर सहायता देना था। इसके लिये केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को 591 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराया है जिससे किसानों को मशीनों की खरीद उनके मूल्य पर 80 प्रतिशत तक छूट देने का प्रावधान है। गुरुबंस और अन्य 9 किसान बीबीपुर कृषि परिषद के दफ्तर गए और सरकार की स्कीम के तहत उन्हें 10 लाख की मशीन 2 लाख रुपए में मिल गई।

बीबीपुर के ही एक अन्य किसान हरदीप सिंह बताते हैं कि उनके गाँव में करीब 800 घर और 1200 एकड़ धान की खेती है। फसल पक चुकी है और काटने को तैयार है। ये मशीनें एक दिन में 10 एकड़ में लगी फसल की कटाई कर सकती हैं। वे बताते हैं कि पराली को काटने सहित अन्य कामों के लिये केवल तीन से चार मशीनें उपलब्ध हैं। इनकी सहायता से यदि काम किये जाये तो लगातार इनका 120 दिनों तक इस्तेमाल करना होगा लेकिन किसानों के पास खेतों को खाली करने के लिये मात्र 60 दिनों का समय होता है। हरदीप सिंह बताते हैं कि इस साल पंजाब के विभिन्न हिस्सों में बारिश की कमी के कारण फसल की कटाई के लिये अलग-अलग समय पर हो रही है इसीलिये किसानों के पास पराली को जलाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बच जाता है।

फसल की कटाई के लिये कम समय होने के कारण उन किसानों को जिन्हें इन मशीनों की जरूरत है क्रम के हिसाब से 150 रुपए प्रति घंटा के शुल्क पर उन्हें गाँव के दफ्तर द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। अभी ये मशीन चमक रहें हैं क्योंकि ये अभी-अभी ही फैक्टरी से आये हैं। इनकी आयु सात से आठ वर्ष की है लेकिन इनका इस्तेमाल साल में मात्र एक महीने के लिये होगा। इन मशीनों के इस्तेमाल से गेहूँ के उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा इनके रख-रखाव के लिये भी पैसों की जरूरत होगी लेकिन सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी में इन्हें नहीं जोड़ा गया है।

मोहाली के एक गाँव में जलता हुआ परालीमोहाली के एक गाँव में जलता हुआ पराली (फोटो साभार - द हिन्दू)फिर भी गुरुबचन सिंह इस बात को लेकर आशावान हैं कि इस बार खेतों में पराली नहीं जलाई जाएगी। परन्तु इन हार्वेस्टरों में बहुत सारी कमियाँ हैं जैसे बीबीपुर में खरीदी गई मशीनें केवल बड़े ट्रैक्टर में फिट होने के काबिल हैं जबकि अधिकांश किसानों के पास छोटे ट्रैक्टर हैं। ऐसी ही परेशानी दूसरे गाँव में भी है।

रूपनगर के रोलु माजरा गाँव के किसान अजायब सिंह जिनके पास तीन एकड़ धान की खेती है कहते हैं कि हैप्पी सीडर के पूर्ण इस्तेमाल के लिये 45 से 55 हॉर्स पावर के ट्रैक्टर की जरूरत होती है लेकिन मेरे पास जो ट्रेक्टर है वह केवल 35 हॉर्स पावर का है। वो कहते हैं कि आप ही बताएँ कि इस मशीन का इस्तेमाल मेरे खेत में कैसे होगा? उनका कहना है कि सरकार छोटे और सीमान्त किसानों की समस्या समझे बिना ही सरकार इन मशीनों को बढ़ावा दे रही है और पराली प्रबन्धन के कारण उन पर आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा। हैप्पी सीडर के काम करने की गति पर सवाल उठाते हुए वे यह कहते हैं कि इससे गेहूँ की बुआई में काफी वक्त लगेगा और किसानों को अपने क्रम का इन्तजार करना पड़ेगा। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि किसानों को भाड़े पर बड़ा ट्रैक्टर लेना पड़ेगा जो उन पर आन्तरिक बोझ बढ़ा देगा। अजायब सिंह ने कहा, “गाँव का स्वयं सहायता समूह मजबूत नहीं है अतः इन मशीनों का लाभ तभी मिलेगा जब इनकी संख्या में वृद्धि होगी।”

सरकारी आँकड़े के मुताबिक पंजाब में 1.85 मिलियन किसान परिवार हैं जिनमें 65 प्रतिशत छोटे और सीमान्त किसान हैं। राज्य में उपलब्ध 5.03 मिलियन हेक्टेयर जमीन में से 4.23 मिलियन हेक्टेयर पर खेती होती है। पटियाला में लगभग 270,000 हेक्टेयर जमीन कृषि के अन्तर्गत है जिसमें राज्य के अन्य भागों की तरह ही धान-गेहूँ के पैटर्न पर खेती की जाती है। धान की बुआई जुलाई में एवं कटाई अक्टूबर-नवम्बर में होती है जबकि गेहूँ जाड़े की फसल है एवं इसकी कटाई मार्च-अप्रैल के महीने में होती है।

यह एक नियमित अभ्यास है

बीबीपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर लुधियाना जिले में ही स्थित रोला गाँव में लगभग एक एकड़ वाले धान के खेत में आग लगी है। बिहार का रहने वाला उपेन्द्र नाम का एक मजदूर थ्रेसर से निकले भूँसी को जो खेत की परिधि में पड़ा है उसे खेत में डाल रहा है ताकि आग अच्छे से जले। उसने बताया कि वह केवल 300 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी के खातिर अपने मालिक के आदेश का पालन कर रहा है। उसे यह भी नहीं पता था कि उसके मालिक का नाम क्या है।

रोला गाँव के ही एक अन्य किसान सरबजीत सिंह ने बताया कि धान की कटाई के बाद खेतों में आग लगाना यहाँ हर साल होने वाला एक नियमित अभ्यास है। उन्होंने बताया कि उनके गाँव सहित इलाके के अन्य 50 गाँवों में न ही कोई मशीन उपलब्ध कराई गई है और न ही पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में किसानों के बीच कोई जागृति फैलाई गई है।

हालांकि राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने अब तक 8000 उपकरण किसानों के बीच में वितरित कर चुके हैं। इसके साथ ही उनका यह भी दावा है कि राज्य में 4795 कस्टम हायरिंग सेंटर बनाए जा चुके हैं जहाँ से किसान इन मशीनों को किराए पर ले सकते हैं। सरबजीत के अनुसार इन मशीनों के लिये प्रति एकड़ 5000 रुपए खर्च करना पड़ता है वहीं खेतों में लगी पराली को आग के हवाले करने के लिये केवल कुछ लीटर डीजल खर्च करना पड़ता है। खेतों के आकार और डीजल के इस्तेमाल के अनुसार भी मशीनों पर आने वाला खर्च बदलता रहता है। ऐसा बहुत सारे किसानों का कहना है जिनके लिये मशीनों के इस्तेमाल पर होने वाले खर्च को वहन करना मुश्किल है। अक्टूबर के मध्य तक पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खेतों में पराली जलने वाले किसानों पर 8,92500 रुपए का जुर्माना लगाया है लेकिन वसूली 3,05000 रुपए की ही हो सकी है। इस फाइन को एन्वायरनमेंटल कम्पनसेशन सेस का नाम दिया गया है।

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बोर्ड के पर्यावरण अभियन्ता गुलशन राय बताते हैं कि अक्सर किसानों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे जुर्माने की राशि का भुगतान हाथों-हाथ कर सकें। वहीं नाम न उजागर करने की शर्त पर विभाग के एक अन्य अफसर ने बताया कि वे अक्सर किसानों पर जुर्माने के लिये दबाव नहीं बनाते हैं क्योंकि प्रति एकड़ इसके लिये उन्हें 2500 रुपए चुकाना पड़ता है। अफसर बताते हैं कि सेटेलाइट से मिली तस्वीरों के माध्यम से विभाग को पराली जलाने की सटीक जानकारी मिल जाती है लेकिन किसानों से डील करना उनके लिये बहुत ही मुश्किल भरा काम होता है। वे कहते हैं सम्बन्धित किसान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये उन्हें पटवारी की मदद लेनी पड़ती है। इसके अलावा किसान जुर्माने से बचने के लिये विरोध के साथ ही गरीबी और जानकारी के न होने का भी वास्ता देते हैं।

इसके अलावा अफसरों को कभी-कभी हिसंक किसानों के समूह का सामना करने का भी खतरा रहता है। फसलों की बुआई और कटाई का समय किसानों के लिये बहुत दबाव वाला समय होता है क्योंकि उन्हें मौसम और अनाज की बिक्री सम्बन्धी बहुत सारी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है। एक अन्य अफसर ने बताया- “ऐसे बहुत सारे वाकए हुए हैं जब अफसरों को किसानों ने घेर लिया है। वे पूछते हैं कि क्यों उन पर जुर्माना लगाया गया, क्यों उनके पड़ोसी को छोड़ दिया गया। इसके अलावा उन्हें ढेर सारे किसान यूनियन के साथ ही राजनीतिक पार्टियों का भी समर्थन हासिल रहता है। इस तरह की परिस्थितियों से हमारा हर साल सामना होता है। इस साल भी कुछ बदला नहीं है।”

पंजाबपंजाब (फोटो साभार - द हिन्दू)लुधियाना निवासी जसपाल सिंह नाम के एक अन्य किसान ने बताया कि डीजल की बढ़ती कीमत भी एक पहलू है जब किसान यह तय करता है कि मशीन अथवा खेतों में आग लगाकर पराली की समस्या से निपटे। जसपाल सिंह ने कहा, “प्रति एकड़ मशीन चलने के लिये पाँच लीटर डीजल की आवश्यकता होती है। अगर हम आलू उगाते हैं तो 20 लीटर प्रति एकड़। ऐसा इसलिये होता है कि हैप्पी सीडर केवल धान की पराली को ही हटा सकता है और गेहूँ की बुआई कर सकता है। इसीलिये आलू की बुआई करने के लिये मल्चर प्लाऊ जैसे उपकरणों का भी इस्तेमाल करना पड़ता है जो खर्च को बढ़ा देता है।”

पंजाब के साथ हरियाणा में भी किसानों को भूजल अतिदोहन करने की अनुमति नहीं है क्योंकि इन राज्यों के किसान धान की खेती करते हुए पूरे खेत को पानी से भर देते हैं। इसके कारण भी किसानों को अगली फसल के लिये खेतों की सफाई करने के लिये मात्र दो से तीन सप्ताह का ही समय मिलता है। इसी कारण खेतों में आग लगाना ही पसन्द करते हैं ताकि उनका समय बच सके।

सरकार का पक्ष

लेकिन अफसरों का कहना है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में कमी आई है। सरकारी आँकड़े के अनुसार इस वर्ष 21 सितम्बर से 21 अक्टूबर के बीच पूरे राज्य से मात्र 2589 पराली जलाने के मामले प्रकाश में आये हैं वहीं इसी दरम्यान पिछले वर्ष 7613 मामले प्रकाश में आये थे। इसके अलावा एक स्वतंत्र शोधकर्ता हिरेन जेठवा जो अमरीका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (american national aeronautics and space administration) से जुड़े हुए हैं ने बताया है कि इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में कमी आई है। इनके द्वारा किये गए अध्ययन में यह सामने आया है कि पंजाब और हरियाणा में 1 अक्टूबर से 22 अक्टूबर के बीच इस वर्ष पराली जलाने के 5893 मामले प्रकाश में आये हैं जबकि इसी दरम्यान पिछले वर्ष 12194 और वर्ष 2016 में 16275 मामले प्रकाश में आये थे।

इन आँकड़ों के आधार पर पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बोर्ड के सदस्य सचिव कुर्नेश गर्ग कहते हैं कि पराली जलाने के मामलों में कमी लाने के लिये सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम अपना असर दिखा रहे हैं। कुर्नेश गर्ग ने हाल ही में मीडिया से बात करते हुए बताया, “इसके लिये हमने इस वर्ष बहुत सारे कदम उठाए हैं। फसल के बचे अंश यानि पराली के इस्तेमाल से सात बायोमास आधारित पावर प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं जिनकी संयुक्त रूप से उत्पादन क्षमता 62.5 मेगावाट है।” इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि उनके महकमें के अफसरों द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि पराली में आग लगाने से मिट्टी में उपस्थित सभी पोषक तत्त्व खत्म हो जाएँगे और उन्हें फसल के उत्पादन के लिये ज्यादा खाद का इस्तेमाल करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कृषि उपकरणों का इस्तेमाल पराली जलाने पर आने वाले खर्च की तुलना में मात्र 300 रुपए प्रति एकड़ ज्यादा है और यह वातावरण के साथ स्वास्थ्य को भी नुकसान नहीं पहुँचाता है। इसके लिये सरकार द्वारा विज्ञापन भी जारी किये जा रहे हैं ताकि लोगों को इसके बारे में प्रशिक्षित किया जा सके।

पंजाब के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (डेवलपमेंट) विश्वजीत खन्ना के मुताबिक टनों की मात्रा में पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है। इसके कारण मिट्टी से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फॉस्फोरस, 25 किलोग्राम पोटेशियम, 1.2 किलोग्राम सल्फर के साथ ही 400 किलोग्राम जैविक तत्वों की क्षति होती है। इतना ही नहीं मिट्टी उर्वरता का विकास करने वाले कृमियों का भी ह्रास होता है। वर्तमान में 4.3 मिलियन टन धान की पराली जो इसकी कुल मात्रा का 21.82 प्रतिशत है को विभिन्न माध्यमों से खपाया जा रहा है।

इस बात को इंगित करते हुए कि मशीनीकरण ही पराली से जुड़ी समस्या को खत्म करने का एक मात्र जरिया नहीं है खेती विरासत मिशन जो जैविक कृषि को बढ़ावा देने वाली एक संस्था है से जुड़े उमेन्द्र दत्त ने कहा कि इस समस्या को समाप्त करने के लिये मशीन एक मात्र आंशिक उपाय हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल पूरे वर्ष में कुछ ही दिनों के लिये होता है। वे कहते हैं कि इसके लिये जरुरी है कि किसानों को फसलों के विविधीकरण के लिये प्रेरित किया जाये जिसका फोकस व्यापारिक के साथ-ही-साथ घरेलू जरूरतों पर भी हो।

इतना कुछ किये जाने के बाद भी पंजाब और दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी इस बात के लिये पूरी तरह से आशान्वित नहीं हैं कि पराली जलाने की प्रथा को पूरी तरह समाप्त किया जा सकेगा। गर्ग ने कुछ दिनों पहले मीडिया को जानकारी देते हुए यह बताया था कि वर्ष 2016 में कुल 80,879 पराली जलाने के मामले दर्ज किये गए थे जबकि 2017 में ये घटकर 43,660 हो गए। गर्ग ने कहा, “इस साल इस आँकड़े में हम 50 प्रतिशत गिरावट की आशा रखते हैं जो लगभग 2016 की तुलना में पिछले साल दर्ज की गई गिरावट के लगभग है।” परन्तु स्टेट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों के साथ ही किसानों का भी यह मानना है कि पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली के वातावरण पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। वे कहते हैं कि अक्सर हम देखते हैं कि पंजाब की तुलना में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा रहता है और यदि यह पराली जलाने से ही होता है तो यहाँ भी वैसी ही स्थिति होनी चाहिए थी। यह साबित हो चुका है कि प्रदूषण के लिये जिम्मेवार कण हजारों किलोमीटर का सफर तय कर सकने के साथ ही काफी लम्बे समय तक वातावरण में बने रह सकते हैं। पंजाब में खेतों में जलाई जाने वाली पराली का असर दिल्ली में जाड़े के दिनों में फैलने वाले धुन्ध पर कितना होता है यह अभी तक पूरी तौर पर निश्चित नहीं किया जा सका है। हालांकि हावर्ड विश्वविद्यालय द्वारा मार्च 2018 में प्रकाशित किये गए एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में मौजूद 7 से 78 प्रतिशत PPM 2.5 कणों का कारण खेतों में लगने वाली आग है।

आईआईटी कानपुर में वायु प्रदूषण सम्बन्धित मामलों के विशेषज्ञ सचिदानंद त्रिपाठी कहते हैं कि दिल्ली में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को जरूरत से ज्यादा तूल दे दिया गया है। त्रिपाठी ने कहा, “मैं यह नहीं कहता कि दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिये पराली की आग जिम्मेवार नहीं है पर उतनी नहीं जितना कहा जाता है। दिल्ली में होने वाले 60 प्रतिशत प्रदूषण के लिये वहाँ स्थित कल-कारखाने, कोयला और वाहनों से निकलने वाला धुआँ जिमेवार है।”

अंग्रेजी में पढ़ने के लिये दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

TAGS

stubble burning in punjab in Hindi, punjab pollution control board in Hindi, central pollution control board in Hindi, problems being faced by farmers of the state in Hindi, indian institute of technology kanpur in Hindi, harvard university in Hindi, happy seeder in Hindi, amritsar in Hindi, patiala in Hindi, air pollution in delhi, particulate matter in hindi, punjab pollution control board, punjab pollution control board biomedical waste, punjab pollution control board chairman, punjab pollution control board contact number, punjab pollution control board recruitment, punjab pollution control board bathinda, punjab pollution control board recruitment 2017, punjab pollution control board jalandhar, punjab pollution control board sangrur, environment compensation charge, compensation charges meaning, ecc charges in real estate, environment compensation, environment compensation charge, compensation charges meaning, green tax exemptions, environment compensation charge delhi, notification no- f 10(13)/env/2015/6167-6189, environment compensation charge under ngt, green tax in delhi notification pdf, environment compensation charge under ngt, environment compensation charge notification, national green tribunal judgements, recent ngt judgements, ngt order on environment clearance, ngt construction order, latest news on ngt order, ngt report on delhi pollution, ngt notification on pollution, environment compensation charge supreme court order, environment compensation and benefits, why is compensation and benefits important, list of employee benefits, compensation and benefits package example, compensation and benefits examples, purpose of compensation and benefits, compensation and benefits policy, types of employee benefits, compensation and benefits in hrm, What is compensation and benefits HR?, What degree do you need to be a compensation and benefits manager?, How can I improve my compensation system?, What are the advantages of a fair compensation system?, What are the four major types of employee benefits?, What are the four types of compensation?, How much do compensation and benefits managers make?, How do I become a Compensation and Benefits Specialist?, What is CEBS certification?, What are compensation systems?, Do higher wages increase productivity?, What does ESOP stand for?, What is the meaning of fair compensation?, What is the pay for performance program?, What is fair compensation?, compensation environment definition, compensation from environment agency, environment compensation cess, what is environment compensation cess, What are the problems facing agricultural farmers?, What are the problems associated with agriculture?, What are the major problem of Indian agriculture?, What are the problems that India is facing?, What are the problems of Indian farmers?, What are the problems in agriculture?, What are the problem faced by farmers?, What are the disadvantages of Agriculture?, How can farmers reduce fertilizer runoff?, Is planning in India successful?, Why farmers are Suiciding?, What are the different ways of increasing production from same piece of land?, What's the biggest problem in the world?, What are the problems of India?, How can I solve all my problems?, problems faced by indian farmers pdf, problems faced by farmers wikipedia, essay on problems faced by indian farmers, what problems do farmers face, problems faced by indian farmers today, problems faced by farmers in agriculture, problems faced by indian farmers ppt, problems faced by small farmers, happy seeder price in india, happy seeder technology, happy seeder video, happy seeder wikipedia, happy seeder manufacturer, happy seeder machine price, happy seeder punjab, happy seeder pdf, paddy straw chopper, paddy straw chopper price, ks paddy straw chopper price, paddy straw chopper shredder, paddy straw chopper price in punjab, paddy chopper price, shaktiman straw chopper, gobind paddy chopper price, gobind paddy straw chopper.

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading