प्रदूषण नियंत्रणः बने दीर्घकालीन नीति

6 Nov 2019
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प्रदूषण नियंत्रणः बने दीर्घकालीन नीति
प्रदूषण नियंत्रणः बने दीर्घकालीन नीति

आज देश के केंद्र में दिल्ली का प्रदूषण जरूर है लेकिन उम्मीद है कि इस ऑड-ईवन वाहन योजना (odd-even vehicle scheme) का दूरगामी प्रभाव अन्य महानगरों पर भी पड़ने वाला है। इसका कारण बिल्कुल साफ है कि उनमें भी जहरीली हवा का प्रकोप दिखाई पड़ता है।

दीपावली पर देश में आमतौर पर त्योहार की गहमागहमी रहती है, लेकिन दिल्ली जहरीली हवा को क्षेल रही होती है। इस बार भी देश की राजधानी प्रदूषण के कारण धूल भरी धुध (स्माॅग) में लिपटी हुई है और यहां रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। इस परेशानी को लेकर नीतिगत फैसले लिए जा रहे हैं और ऐसा ही फैसला दिल्ली के लिए एक बार फिर ‘‘ऑड-ईवन वाहन योजना’’ (odd-even vehicle scheme) के तौर पर लिया गया है। लेकिन, पुराने अनुभवों के आधार पर बात करें तो इस ऑड-ईवन वाहन योजना के फाॅर्मूले से बहुत उम्मद नहीं हैं। हो सकता है कि इस योजना से थोड़े समय के लिए कुछ राहत मिल भी जाएग, लेकिन लंबे समय के लिए राहत नहीं मिलने वाली। इस मामले में फिलहाल बहुत कुछ करने की जरूरत हैं 

दिल्ली में ऑड-ईवन वाहन योजना (odd-even vehicle scheme) चार नवंबर से शुरू की गई है और यह 15 नवंबर तक लागू रहने वाली है। इस योजना के तहत सड़कों पर प्रदूषण फैलाते वाहनों की संख्या आधी करके, प्रदूषण स्तर पर में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है। निस्संदेश देश के केंद्र में दिल्ली का प्रदूषण (delhi pollution) जरूर है, लेकिन उम्मीद है कि इस योजना का प्रभाव अन्य महानगरों पर भी पड़ने वाला है। कारण साफ है कि उनमें भी जहरीली हवा का प्रकोप दिखाई पड़ता है। उदाहरण के लिए पिछले एक महीने के दौरान केवल बेंगलुरु ही ऐसा शहर रहा जिसमें 31 में से 16 दिन सांस लेने योग्य वायु मौजूद रही। अन्य शहरों में दीपावली पर चलाए जाने वाले पटाखों के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organisation) के पीएम 2.5 मानक स्तर से अधिक प्रदूषित वायु थी। यद्यपि इन शहरों में दिल्ली जैसी परेशानी नहीं थी। इसके बावजूद दिल्ली की ऑड-ईवन वाहन योजना (odd-even vehicle scheme) का असर इन शहरों पर देर-सबेर पड़ने वाला है।

कार और बाइक ही नहीं फैलाते प्रदूषण

ऑड-ईवन वाहन योजना (odd-even vehicle scheme) के माध्यम से यातायात के कारण होने वाले प्रदूषण में कमी आने की उम्मीद की जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कार और बाइक प्रदूषणयुक्त जहरीली हवा छोड़ते हैं, लेकिन प्रदूषण की समस्या का केवल ये ही कारण तो नहीं है। केवल दिल्ली में ही काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायर्नमेंट एंड वाॅटर (सीईईडब्ल्यू) प्रदूषण से संबंधित अध्ययनों के मुताबिक कुल प्रदूषण में यातायात संबंधी प्रदूषण की हिस्सेदारी 18 से 39 प्रतिशत तक रहती है। प्रदूषण के स्तर में इतना बड़ा अंतर यह साबित करता है कि प्रदूषण मापने के मामले में कई जटिलताएं हैं। हालाकि किस समय नमूने लिए गए और कहां-कहां पर लिए गए, इस बात बात ने यातायात संबंधी प्रदूषण के स्तर में इतना बड़ा अंतर पैदा किया है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुल प्रदूषण में वाहनों से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी काफी अधिक रही है।

भले ही अध्ययनों में बड़ा अंतर हो, लेकिन दिल्ली को वायु प्रदूषण (air pollution) से बचाने के लिए कोई दीर्घकालीन प्रभावी नीति बनानी ही होगी। केवल वाहनों पर नियंत्रण के जरिए वायु प्रदूषण (air pollution) को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसके लिए यातायात से होने वाले प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण के अन्य कारक जैसे विद्युत संयंत्र, पराली जलाने के कारण उठने वाले धुएं, निर्माण कार्य के दौरान उठने वाली धूल पर भी नियंत्रण करना होगा। लेकिन, यह केवल दिल्ली में ही नहीं होना चाएिह, बल्कि ऐसा पूरे उत्तर भारत की गंगा पट्टी क्षेत्र में होना चाहिए क्योंकि यहां से दिल्ली का वातावरण काफी हद तक प्रभावित होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली भौगोलिक रूप से घिरी हुई है। पराली जलाने से तो यहां होने वाले प्रदूषण को केवल बढ़ावा मिलता है।

समूचे क्षेत्र में प्रदूषण को समाप्त करना कठिन जरूर हो सकता हे, लेकिन यह कार्य असंभव बिल्कुल नहीं है। चीन के शहर बीजिंग को देखें, पूर्व में यह लंबे समय तक दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में रहा किंतु अब यह सर्वाधिक प्रदूषित 100 शहरों की सूची से बाहर हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र की बीजिंग के प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित रिपोर्ट करहती है कि वहां वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण के साथ कोयले के उपयोग से उठने वाले धुएं पर भी नियंत्रण किया गया। एक बार को बीजिंग का उदाहरण छोड़ भी दें, लेकिन सबसे पहले हमें अपनी सोच और कार्यशैली में बदलाव करना होगा। हमें कानून बनाने, उन्हें सख्ती से लागू करने, चरणबद्ध योजना, प्रभावी नियंत्रण क्षमता विकसित करने और उच्च स्तर जन जागरुकता की आवश्यकता है।

ऑड-ईवन योजनाः दो विचार

  • पहला विचार - ऑड-ईवन वाहन योजना क्या प्रदूषण रोकने में प्रभावी होगी ? इसका जवाब जनवरी 2016 व अप्रेल 2016 के दौरान हुए ऐसे प्रयोगों के परिणामों से पता चल सकता है। ऑड-ईवन वाहन योजना से पूर्व और बाद के प्रदूषण स्तर को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (central pollution control board) का अध्ययन कहता है कि प्रदूषण स्तर में कमी आई हो सकती है, किंतु इसके पीछे केवल एक यही कारण नहीं हो सकता। करंट साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन का दावा है कि इस योजना से प्रदूषण में बढ़ोतर हुई। इसके मुताबिक योजना लागू होने से बाहर निकलने वाले लोगों ने जिस दिन जिस नंबर के वाहन की बारी थी, उसके बजाय अन्य उपलब्ध वाहन जैसे टैक्सियां या तिपहिया वाहनों का जमकर इस्तेमाल किया। इससे प्रदूषण का स्तर बढ़ा।
  • दूसरा विचार - एन्वायर्नमेंट साइंस एंड पाॅलिसी जर्नल में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में सैटेलाइट डेटा व एयर पाॅल्यूशन स्टेशन डेटा (air pollution station data) के आधार पर कहा गया, कि ऑड-ईवन वाहन योजना के कारण दिल्ली के प्रदूषण में 4-5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी इंस्टीट्यूट के मुताबिक प्रदूषण के स्तर में इससे ज्यादा कमी आई। यदि दिल्ली में प्रदूषण स्तर का अध्ययन करने वाली एजेंसियों के आंकड़ों और निकटवर्ती शहरों जैसे गुरुग्राम, नोएडा आदि जहां ऑड-ईवन योजना लागू नहीं हुई, के आकंड़ों की तुलना से पता चलता है कि जनवरी 2016 में सर्दियों में वायु प्रदूषण दिन में 14 से 16 प्रतिशत घटा, किंतु अप्रैल 2016 में इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। इसका दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उल्लेख किया था।

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