प्रधानमंत्री ने की नदियों को प्रदूषण से बचाने की अपील

29 Aug 2016
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इस बार मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में एक बहुत अच्छा और सामयिक महत्त्व का मुद्दा देश के लोगों के सामने रखा है, वह है हमारी नदियों और जलस्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिये त्योहारों पर बनने वाली गणेश और दुर्गा प्रतिमाओं को पीओपी से बनाने की जगह उन्हें मिट्टी से बनाए जाने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से हम पानी को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं।

गौरतलब है कि हर साल इन त्योहारों पर पीओपी की बनी मूर्तियों के नदी और अन्य जलस्रोतों में प्रवाहित कर देने से बड़ी तादाद में प्रदूषण तो बढ़ता ही है। गाद भी जम जाती है, जो उथला करने के साथ ही पानी को जमीन की नसों में भेजने से रोकती है।

रविवार, 28 अगस्त का दिन... प्रधानमंत्री के मन की बात कहने में कुछ ही पल बाकी हैं। हम एक छोटे से गाँव मेंढकी में हैं। यहाँ की चौपाल पर रेडियो बज रहा है। ग्रामीण इन्तजार कर रहे हैं मन की बात शुरू होने की। यहाँ हर बार ही लोग इकट्ठा होते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात को ध्यान से सुनते हैं।

हर बार उन्हें किसी-न-किसी अच्छे काम की इससे प्रेरणा मिलती है। इस बार भी वे यहाँ इकट्ठा हैं। तभी आकाशवाणी से मन की बात प्रारम्भ होने की उद्घोषणा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवाज गूँज उठी।

उन्होंने कहा - मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार

कुछ ही दिनों में गणेश उत्सव आने वाला है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं और हम सब चाहें कि हमारा देश, हमारा समाज, हमारा परिवार, हमारा हर व्यक्ति, उसका जीवन निर्विघ्न रहे। लेकिन जब गणेश उत्सव की बात करते हैं, तो लोकमान्य तिलक जी की याद आना बहुत स्वाभाविक है। सार्वजनिक गणेश उत्सव की परम्परा- ये लोकमान्य तिलक जी की देन है।

सार्वजनिक गणेश उत्सव के द्वारा उन्होंने इस धार्मिक अवसर को राष्ट्र जागरण का पर्व बना दिया। समाज संस्कार का पर्व बना दिया और सार्वजनिक गणेश उत्सव के माध्यम से समाज-जीवन को स्पर्श करने वाले प्रश्नों की वृहत्त चर्चा हो। कार्यक्रमों की रचना ऐसी हो कि जिसके कारण समाज को नया ओज, नया तेज मिले। और साथ-साथ उन्होंने जो मंत्र दिया था- “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है”- ये बात केन्द्र में रहे। आजादी के आन्दोलन को ताकत मिले।

आज भी, अब तो सिर्फ महाराष्ट्र नहीं, हिन्दुस्तान के हर कोने में सार्वजनिक गणेश उत्सव होने लगे हैं। सारे नौजवान इसे करने के लिये काफी तैयारियाँ भी करते हैं, उत्साह भी बहुत होता है और कुछ लोगों ने अभी भी लोकमान्य तिलक जी ने जिस भावना को रखा था, उसका अनुसरण करने का भरपूर प्रयास भी किया है।

सार्वजनिक विषयों पर वो चर्चाएँ रखते हैं, निबन्ध स्पर्धाएँ करते हैं, रंगोली स्पर्धाएँ करते हैं। उसकी जो झाँकियाँ होती हैं, उसमें भी समाज को स्पर्श करने वाले मुद्दों को बड़े कलात्मक ढंग से उजागर करते हैं। एक प्रकार से लोक शिक्षा का बड़ा अभियान सार्वजनिक गणेश उत्सव के द्वारा चलता है।

लोकमान्य तिलक जी ने हमें “स्वराज हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है” ये प्रेरक मंत्र दिया। लेकिन हम आजाद हिन्दुस्तान में हैं। क्या सार्वजनिक गणेश उत्सव ‘सुराज हमारा अधिकार है’- अब हम सुराज की ओर आगे बढ़ें। सुराज हमारी प्राथमिकता हो, इस मंत्र को लेकर के हम सार्वजनिक गणेश उत्सव से सन्देश नहीं दे सकते हैं क्या? आइए, मैं आपको निमंत्रण देता हूँ..

ये बात सही है कि उत्सव समाज की शक्ति होता है। उत्सव व्यक्ति और समाज के जीवन में नए प्राण भरता है। उत्सव के बिना जीवन असम्भव होता है। लेकिन समय की माँग के अनुसार उसको ढालना भी पड़ता है। इस बार मैंने देखा है कि मुझे कई लोगों ने खास करके गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा- उन चीजों पर काफी लिखा है और उनको चिन्ता हो रही है पर्यावरण की।

कोई श्रीमान शंकर नारायण प्रशान्त करके हैं, उन्होंने बड़े आग्रह से कहा है कि मोदी जी, आप ‘मन की बात’ में लोगों को समझाइए कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हुई गणेश जी की मूर्तियों का उपयोग न करें। क्यों न गाँव के तालाब की मिट्टी से बने हुए गणेश जी का उपयोग करें। पीओपी की बनी हुई प्रतिमाएँ पर्यावरण के लिये अनुकूल नहीं होती हैं। उन्होंने तो बहुत पीड़ा व्यक्त की है, औरों ने भी की है।

मैं भी आप सब से प्रार्थना करता हूँ, क्यों न हम मिट्टी का उपयोग करके गणेश की मूर्तियाँ, दुर्गा की मूर्तियाँ- हमारी उस पुरानी परम्परा पर वापस क्यों न आएँ। पर्यावरण की रक्षा, हमारे नदी-तालाबों की रक्षा, उसमें होने वाले प्रदूषण से इस पानी के छोटे-छोटे जीवों की रक्षा- ये भी ईश्वर की सेवा ही तो है।

गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। तो हमें ऐसे गणेश जी नहीं बनाने चाहिए, जो विघ्न पैदा करें। मैं नहीं जानता हूँ, मेरी इन बातों को आप किस रूप में लेंगे। लेकिन ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा हूँ, कई लोग हैं और मैंने कइयों के विषय में कई बार सुना है - पुणे के एक मूर्तिकार श्रीमान अभिजीत धोंड़फले, कोल्हापुर की संस्थाएँ निसर्ग-मित्र, विज्ञान प्रबोधिनी।

विदर्भ क्षेत्र में निसर्ग-कट्टा, पुणे की ज्ञान प्रबोधिनी, मुम्बई के गिरगाँवचा राजा। ऐसी अनेक-विद संस्थाएँ, व्यक्ति मिट्टी के गणेश के लिये बहुत मेहनत करते हैं, प्रचार भी करते हैं। इको फ्रेंडली गणेशोत्सव- ये भी एक समाज सेवा का काम है। दुर्गा पूजा के बीच अभी समय है।

अभी हम तय करें कि हमारे उन पुराने परिवार जो मूर्तियाँ बनाते थे, उनको भी रोजगार मिलेगा और तालाब या नदी की मिट्टी से बनेगा, तो फिर से उसमें जा कर के मिल जाएगा, तो पर्यावरण की भी रक्षा होगी। आप सबको गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।

उन्होंने गंगा नदी सफाई के मुद्दे पर बात करते हुए कहा - मेरे प्यारे देशवासियों, विकास जब जन-आन्दोलन बन जाये, तो कितना बड़ा परिवर्तन आता है। जनशक्ति ईश्वर का ही रूप माना जाता है। भारत सरकार ने पिछले दिनों 5 राज्य सरकारों के सहयोग के साथ स्वच्छ गंगा के लिये, गंगा सफाई के लिये, लोगों को जोड़ने का एक सफल प्रयास किया।

इस महीने की 20 तारीख को इलाहाबाद में उन लोगों को निमंत्रित किया गया कि जो गंगा के तट पर रहने वाले गाँवों के प्रधान थे। पुरुष भी थे, महिलाएँ भी थीं। वे इलाहाबाद आये और गंगा तट के गाँवों के प्रधानों ने माँ गंगा की साक्षी में शपथ ली कि वे गंगा तट के अपने गाँवों में खुले में शौच जाने की परम्परा को तत्काल बन्द करवाएँगे, शौचालय बनाने का अभियान चलाएँगे और गंगा सफाई में गाँव पूरी तरह योगदान देगा कि गाँव गंगा को गन्दा नहीं होने देगा।

मैं इन प्रधानों को इस संकल्प के लिये इलाहाबाद आना, कोई उत्तराखण्ड से आया, कोई उत्तर प्रदेश से आया, कोई बिहार से आया, कोई झारखण्ड से आया, कोई पश्चिम बंगाल से आया, मैं उन सबको इस काम के लिये बधाई देता हूँ।

मैं भारत सरकार के उन सभी मंत्रालयों को भी बधाई देता हूँ, उन मंत्रियों को भी बधाई देता हूँ कि जिन्होंने इस कल्पना को साकार किया। मैं उन सभी 5 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने जनशक्ति को जोड़ करके गंगा की सफाई में एक अहम कदम उठाया।

मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ बातें मुझे कभी-कभी बहुत छू जाती हैं और जिनको इसकी कल्पना आती हो, उन लोगों के प्रति मेरे मन में एक विशेष आदर भी होता है। 15 जुलाई को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में करीब सत्रह-सौ से ज्यादा स्कूलों के सवा-लाख से ज्यादा विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठी लिखी।

किसी ने अंग्रेजी में लिख दिया, किसी ने हिन्दी में लिखा, किसी ने छत्तीसगढ़ी में लिखा, उन्होंने अपने माँ-बाप से चिट्ठी लिख कर के कहा कि हमारे घर में शौचालय होना चाहिए शौचालय बनाने की उन्होंने माँग की, कुछ बालकों ने तो ये भी लिख दिया कि इस साल मेरा जन्मदिन नहीं मनाओगे, तो चलेगा, लेकिन शौचालय जरूर बनाओ।

सात से सत्रह साल की उम्र के इन बच्चों ने इस काम को किया। और इसका इतना प्रभाव हुआ, इतना भावनात्मक असर हुआ कि चिट्ठी पाने के बाद जब दूसरे दिन स्कूल आया, तो माँ-बाप ने उसको एक चिट्ठी पकड़ा दी शिक्षक को देने के लिये और उसमें माँ-बाप ने वादा किया था कि फलानी तारीख तक वह शौचालय बनवा देंगे। जिसको ये कल्पना आई, उनको भी अभिनन्दन, जिन्होंने ये प्रयास किया, उन विद्यार्थियों को भी अभिनन्दन और उन माता-पिता को विशेष अभिनन्दन कि जिन्होंने अपने बच्चे की चिट्ठी को गम्भीर ले करके शौचालय बनाने का काम करने का निर्णय कर लिया। यही तो है, जो हमें प्रेरणा देता है।

कर्नाटक के कोप्पाल जिला, इस जिले में सोलह साल की उम्र की एक बेटी मल्लम्मा - इस बेटी ने अपने परिवार के खिलाफ ही सत्याग्रह कर दिया। वो सत्याग्रह पर बैठ गई। कहते हैं कि उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था और वो भी खुद के लिये कुछ माँगने के लिये नहीं, कोई अच्छे कपड़े लाने के लिये नहीं, कोई मिठाई खाने के लिये नहीं, बेटी मल्लम्मा की जिद ये थी कि हमारे घर में शौचाल होना चाहिए।

अब परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं थी, बेटी जिद पर अड़ी हुई थी, वो अपना सत्याग्रह छोड़ने को तैयार नहीं थी। गाँव के प्रधान मोहम्मद शफी, उनको पता चला कि मल्लम्मा ने शौचालय के लिये सत्याग्रह किया है, तो गाँव के प्रधान मोहम्मद शफी की भी विशेषता देखिए कि उन्होंने अठारह हजार रुपयों का इन्तजाम किया और एक सप्ताह के भीतर-भीतर शौचालय बनवा दिया। ये बेटी मल्लम्मा की जिद की ताकत देखिए और मोहम्मद शफी जैसे गाँव के प्रधान देखिए। समस्याओं के समाधान के लिये कैसे रास्ते खोले जाते हैं, यही तो जनशक्ति है।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘स्वच्छ-भारत’ ये हर भारतीय का सपना बन गया है। कुछ भारतीयों का संकल्प बन गया है। कुछ भारतीयों ने इसे अपना मकसद बना लिया है। लेकिन हर कोई किसी-न-किसी रूप में इससे जुड़ा है, हर कोई अपना योगदान दे रहा है। रोज खबरें आती रहती हैं, कैसे-कैसे नए प्रयास हो रहे हैं।

भारत सरकार में एक विचार हुआ है और लोगों से आह्वान किया है कि आप दो मिनट, तीन मिनट की स्वच्छता की एक फिल्म बनाइए, ये शार्ट फिल्म भारत सरकार को भेज दीजिए, वेबसाइट पर आपको इसकी जानकारियाँ मिल जाएँगी। उसकी स्पर्द्धा होगी और 2 अक्टूबर ‘गाँधी जयन्ती’ के दिन जो विजयी होंगे, उनको इनाम दिया जाएगा।

मैं तो टीवी चैनल वालों को भी कहता हूँ कि आप भी ऐसी फिल्मों के लिये आह्वान करके स्पर्द्धा करिए। क्रिएटिविटी भी स्वच्छता अभियान को एक ताकत दे सकती है, नये स्लोगन मिलेंगे, नए तरीके जानने को मिलेंगे, नई प्रेरणा मिलेगी और ये सब कुछ जनता-जनार्दन की भागीदारी से, सामान्य कलाकारों से और ये जरूरी नहीं है कि फिल्म बनाने के लिये बड़ा स्टूडियो चाहिए और बड़ा कैमरा चाहिए; अरे, आजकल तो अपने मोबाइल के कैमरा से भी आप फिल्म बना सकते हैं। आइए, आगे बढ़िए, आपको मेरा निमंत्रण है।

मेरे प्यारे देशवासियों, आपने मुझे भले प्रधानमंत्री का काम दिया हो, लेकिन आखिर मैं भी तो आप ही के जैसा एक इंसान हूँ और कभी-कभी भावुक घटनाएँ मुझे जरा ज्यादा ही छू जाती हैं। ऐसी भावुक घटनाएँ नई-नई ऊर्जा भी देती हैं, नई प्रेरणा भी देती हैं और यही है, जो भारत के लोगों के लिये कुछ-न-कुछ कर गुजरने के लिये प्रेरणा देती हैं।

पिछले दिनों मुझे एक ऐसा पत्र मिला, मेरे मन को छू गया। करीब 84 साल की एक माँ, जो रिटायर्ड हैं, उन्होंने मुझे ये चिट्ठी लिखी। अगर उन्होंने मुझे अपनी चिट्ठी में इस बात का मना न किया होता कि मेरा नाम घोषित मत करना कभी भी, तो मेरा मन तो था कि आज मैं उनको नाम दे करके आपसे बात करूँ और चिट्ठी उन्होंने ये लिखी कि आपने जब गैस सब्सिडी छोड़ने के लिये अपील की थी, तो मैंने गैस सब्सिडी छोड़ दी थी और बाद में मैं तो भूल भी गई थी। लेकिन पिछले दिनों आपका कोई व्यक्ति आया और आपकी मुझे एक चिट्ठी दे गया। इस गिव आईटी अप के लिये मुझे धन्यवाद पत्र मिला। मेरे लिये भारत के प्रधानमंत्री का पत्र एक पद्मश्री से कम नहीं है।

देशवासियों, आपको पता होगा कि मैंने कोशिश की है कि जिन-जिन लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी, उनको एक पत्र भेजूँ और कोई-न-कोई मेरा प्रतिनिधि उनको रूबरू जा कर के पत्र दे। एक करोड़ से ज़्यादा लोगों को पत्र लिखने का मेरा प्रयास है। उसी योजना के तहत मेरा ये पत्र इस माँ के पास पहुँचा। उन्होंने मुझे पत्र लिखा कि आप अच्छा काम कर रहे हैं।

गरीब माताओं को चूल्हे के धुएँ से मुक्ति का आपका अभियान और इसलिये मैं एक रिटायर्ड टीचर हूँ, कुछ ही वर्षों में मेरी उम्र 90 साल हो जाएगी, मैं एक 50 हजार रुपए का डोनेशन आपको भेज रही हूँ, जिससे आप ऐसी गरीब माताओं को चूल्हे के धुएँ से मुक्त कराने के लिये काम में लगाना। आप कल्पना कर सकते हैं, एक सामान्य शिक्षक के नाते रिटायर्ड पेंशन पर गुजारा करने वाली माँ, जब 50 हजार रुपए और गरीब माताओं-बहनों को चूल्हे के धुएँ से मुक्त कराने के लिये और गैस कनेक्शन देने के लिये देती हो।

सवाल 50 हजार रुपए का नहीं है, सवाल उस माँ की भावना का है और ऐसी कोटि-कोटि माँ-बहनें उनके आशीर्वाद ही हैं, जिससे मेरा देश के भविष्य के लिये भरोसा और ताकतवर बन जाता है और मुझे चिट्ठी भी उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नहीं लिखी। सीधा-साधा पत्र लिखा- मोदी भैया। उस माँ को मैं प्रणाम करता हूँ और भारत की इन कोटि-कोटि माताओं को भी प्रणाम करता हूँ कि जो खुद कष्ट झेल करके हमेशा कुछ-न-कुछ किसी का भला करने के लिये करती रहती हैं।

मेरे प्यारे देशवासियों, पिछले वर्ष अकाल के कारण हम परेशान थे, लेकिन ये अगस्त महीना लगातार बाढ़ की कठिनाइयों से भरा रहा। देश के कुछ हिस्सों में बार-बार बाढ़ आई। राज्य सरकारों ने, केन्द्र सरकार ने, स्थानीय स्वराज संस्था की इकाइयों ने, सामाजिक संस्थाओं ने, नागरिकों ने, जितना भी कर सकते हैं, करने का पूरा प्रयास किया। लेकिन इन बाढ़ की खबरों के बीच भी, कुछ ऐसी खबरें भी रहीं, जिसका ज्यादा स्मरण होना जरूरी था।

एकता की ताकत क्या होती है, साथ मिल कर के चलें, तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है? ये इस वर्ष का अगस्त महीना याद रहेगा। अगस्त, 2016 में घोर राजनैतिक विरोध रखने वाले दल, एक-दूसरे के खिलाफ एक भी मौका न छोड़ने वाले दल और पूरे देश में करीब-करीब 90 दल, संसद में भी ढेर सारे दल, सभी दलों ने मिल कर के जीएसटी का कानून पारित किया। इसका क्रेडिट सभी दलों को जाता है और सब दल मिल करके एक दिशा में चलें, तो कितना बड़ा काम होता है, उसका ये उदाहरण है।

उसी प्रकार से कश्मीर में जो कुछ भी हुआ, उस कश्मीर की स्थिति के सम्बन्ध में, देश के सभी राजनैतिक दलों ने मिल करके एक स्वर से कश्मीर की बात रखी। दुनिया को भी सन्देश दिया, अलगाववादी तत्वों को भी सन्देश दिया और कश्मीर के नागरिकों के प्रति हमारी संवेदनाओं को भी व्यक्त किया। और कश्मीर के सम्बन्ध में मेरा सभी दलों से जितना इंटरेकशन हुआ, हर किसी की बात में से एक बात जरूर जागृत होती थी।

अगर उसको मैंने कम शब्दों में समेटना हो, तो मैं कहूँगा कि एकता और ममता, ये दो बातें मूल मंत्र में रहीं। और हम सभी का मत है, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का मत है, गाँव के प्रधान से ले करके प्रधानमंत्री तक का मत है कि कश्मीर में अगर कोई भी जान जाती है, चाहे वह किसी नौजवान की हो या किसी सुरक्षाकर्मी की हो, ये नुकसान हमारा ही है, अपनों का ही है, अपने देश का ही है। जो लोग इन छोटे-छोटे बालकों को आगे करके कश्मीर में अशान्ति पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं, कभी-न-कभी उनको इन निर्दोष बालकों को भी जवाब देना पड़ेगा।

मेरे प्यारे देशवासियों, देश बहुत बड़ा है। विविधताओं से भरा हुआ है। विविधताओं से भरे हुए देश को एकता के बन्धन में बनाए रखने के लिये नागरिक के नाते, समाज के नाते, सरकार के नाते, हम सबका दायित्व है कि हम एकता को बल देने वाली बातों को ज्यादा ताकत दें, ज्यादा उजागर करें और तभी जा करके देश अपना उज्ज्वल भविष्य बना सकता है और बनेगा। मेरा सवा-सौ करोड़ देशवासियों की शक्ति पर भरोसा है। आज बस इतना ही, बहुत-बहुत धन्यवाद।

मन की बात कार्यक्रम तो खत्म हो गया था पर हमने गाँव के लोगों को टटोला, उनसे बातचीत की और पूछा कि आप लोग क्या करने वाले हैं अब तो उन्होंने बताया कि वे प्रधानमंत्री की बात पर अमल करेंगे।

मेंढकी गाँव के लोगों ने तो यह तय कर लिया है कि वे इस बार अपने तालाब को बचाने के लिये गाँव में कहीं भी पीओपी की प्रतिमाएँ स्थापित नहीं करेंगे पर क्या आपने अभी तक तय नहीं किया है। जल्दी कीजिए, आप और हम नहीं सोचेंगे-बदलेंगे तो कौन चिन्ता करेगा हमारी नदियों, तालाबों और जलस्रोतों की।
 

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