प्रेरणा जगाती पानी फिल्म - रिसर्जेन्स

28 Mar 2017
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रिसर्जेन्स
रिसर्जेन्स


लोरेन आइसली का एक बयान है - 'यदि धरती पर कोई जादू है, तो वह पानी है।' इस बयान की पुष्टि करते कारनामें भी आज कई हैं और फिल्में भी कई। ऐसी फिल्मों की शृंखला को आगे बढ़ाती एक फिल्म देखने का मौका मुझे मिला। फिल्म का नाम है - रिसर्जेन्स यानी पुनरोत्थान। फिल्म - 'रिसर्जेन्स', पूर्वी राजस्थान के जिला करौली के गाँव भूड़खेडा, गाँव मंडौरा और फैदल का पुरा में हुए एक सफल पानी प्रयास पर केन्द्रित है। दिल्ली स्थित युवा आर्ट्स के बैनर तले बनी यह फिल्म, युवा निर्माता-निदेशक श्री अंकित शर्मा की कल्पनाशीलता और तथ्यपरक समझ का एक सरल-निर्मल प्रतिबिम्ब है।

 

'रिसर्जेन्स' का भूगोल


कथानक है कि यशोदा की कोख में जन्मी जिस कन्या को कंस ने मारने का प्रयास किया, वह कंस के हाथ से छूटकर जिस स्थान पर आई, वही आज जिला करौली है। उस कन्या के नाम पर आज यहाँ कैलादेवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। कभी यहाँ चंबल का पानी पीकर बड़े हुए बागियों की दहाड़ें थी। उन दहाड़ों के कारण ही तथाकथित विकास के लिये भूमि कब्जाने वाली करौली में कम पहुँचे। लिहाजा, यह इलाका लम्बे अरसे तक आधुनिक विकास के संत्रास से बचा रहा। फिल्म, जिला करौली को 'एक अल्प विकसित जिला' कहती है; मैं इस तथाकथित 'अल्प विकास' को ही करौली की प्राकृतिक वैभव संरक्षण की दिशा में राहत की सबसे बड़ी बात मानता हूँ।

 

'रिसर्जेन्स' की कथावस्तु


फिल्म की कथावस्तु 60 परिवारों के जिस गाँव - गढ़ मंडौरा से शुरू होती है, वहाँ कभी पानी का संकट था। कुएँ- बोरवेल सब फेल हो रहे थे। निवासी भैरो सिंह समेत सभी ग्रामीणों की पेशानी पर चिन्ता के निशान दिखाई देने लगे थे। नजदीक गाँव महाराजपुरा में तरुण भारत संघ नामक संस्था के सहयोग से हुए काम ने बंजर भूमि में आशा और जीवन की किरणों का संचार किया था।

इस संचार से प्रभावित गाँववासियों ने भी अपना हौसला बाँधा। खर्च का एक-तिहाई जोड़ा। हर स्तर पर हिस्सेदारी की। जादू यह हुआ कि अगले मानसून में जो भी बूँदे बरसी, वे व्यर्थ नहीं गईं। हनुमानसागर (150 लाख लीटर), पीपरवाड़ी पोखर (140 लाख लीटर), काचरेवाला ताल (2900 लाख लीटर) और सदन वाला ताल (700 लाख लीटर) ने मिलकर एक ही बारिश में 3790 लाख लीटर की विशाल जलराशि संजो ली। इस संजोई जलराशि के कारण धरती का पेट भरा, तो बंजर धरती भी तीन गाँवों का पेट भरने लायक हो गई। बकौल राजेन्द्र सिंह, जो हाथ कभी दूसरों की मजदूरी करते थे, वे दूसरों को मजदूरी देने लायक हो गए। यह पानी का जादू नहीं, तो और क्या है?

 

'रिसर्जेन्स' का आलेख व फिल्मांकन


फिल्म में तरुण भारत संघ के निदेशक - मौलिक सिसोदिया का एक बयान बताता है कि यह काम सिर्फ पानी का काम नहीं है; यह पानी के काम को प्रवेश बिन्दु बनाकर किया गया जलस्वराज और ग्रामस्वावलम्बन का काम है। हकीकत यही है कि तरुण भारत संघ, पिछले तीन दशक में खासकर अलवर के इलाके में इसी दृष्टि के साथ काम करता रहा है। अलवर के कई गाँव इस दृष्टि के पुख्ता प्रमाण हैं।

भांवता -कोल्याला समेत अनेक गाँव अब न अपने जंगल के लिये सरकार की ओर ताकते हैं और न खेती, मवेशी, बुनियादी पढ़ाई, दवाई और रोजगार के लिये। किन्तु यह फिल्म इस दृष्टि को स्थापित करने में थोड़ी चूक गई है; फिर भी यह कहना होगा कि कर्णप्रिय संगीत, तथ्यपरक बयानों और बदलाव स्थापित करते दृश्यों के जरिए फिल्म यह स्थापित करने में सफल रही है कि पानी के जरिए जादू सम्भव है। यदि इस जादू को करने की तैयारी हो, तो जलवायु परिवर्तन के इस दौर में भी गरीब-गुरबा समुदायों के अस्तित्व का संरक्षण सम्भव है।

 

'रिसर्जेन्स' के सवाल व प्रेरणा


मौलिक सिसोदिया ने अपने एक बयान में कुछ बुनियादी सवाल उठाए हैं, जो सूखे को लेकर कोहराम और आत्महत्या वाले इलाकों के नीति नियन्ताओं से हर-हाल में पूछे जाने चाहिए - “धरती माँ को प्यासा किया किसने? धरती माँ की प्यास बुझाए कौन? क्या इतनी बारिश नहीं होती कि धरती माँ की प्यास बुझ सके’’ जाहिर है कि जवाब एक ही है कि बारिश होती है, लेकिन उसके पानी को हम व्यर्थ जाने देते हैं। इंजीनियरिंग की ताजा पढ़ाई ने अधिकतम जल निकासी सिखाई; अब हम पारम्परिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक को जोड़कर अधिकतम जलपुनर्भरण सीखें। बकौल गोपाल सिंह, करौली की प्रेरणा यही है और फिल्म की भी।

 

'रिसर्जेन्स' का शेष परिचय


फिल्म को भारतीय जीवन बीमा निगम हाउसिंग फाइनेन्स लिमिटेड, द फ्लो पाटर्नरशिप, विवेकानंद इंस्टीट्यूट आॅफ प्रोफेशनल स्टडीज तथा तरुण भारत संघ, जलबिरादरी, जल-जन जोड़ो अभियान और जलबिरादरी का सहयोग प्राप्त है। निर्माता-निदेशक श्री अंकित शर्मा के अनुसार, फिल्म - 'रिसर्जेन्स' को अभी कई पुरस्कारदाता कमेटियों के पास भेजा गया है। उनकी शर्तों के अनुसार, उनका निर्णय आने तक सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। अतः फिल्म देखने के लिये हमें अभी प्रतीक्षा करनी होगी। फिर भी मेरी नजर में 'रिसर्जेन्स' एक प्रेरक फिल्म है। फिल्म की अवधि: 29 मिनट और आलेख की भाषा: अंग्रेजी है। अंग्रेजी दर्शकों की सुविधा की दृष्टि से हिन्दी संवादों पर अंग्रेजी ग्राफिक्स दिये गए हैं। जाहिर है कि फिल्म अंग्रेजी दर्शकों के लिहाज से बनाई गई है। हिन्दी दर्शकों की सुविधा के लिये अंग्रेजी आलेख पर हिन्दी ग्राफिक्स भले ही नहीं दिये गए हों, लेकिन फिल्म जिस प्रवाह में बहती है, वह किसी भी भाषा-भाषी के लिये फिल्म में दर्शाए बदलाव को समझना मुमकिन बनाती है। जब मौका आये तो खासकर, ग्रामीण जल प्रबन्धन पर काम कर रहे लोगों, पंचायत प्रतिनिधियों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। फिलहाल आप resugencethefilm.com पर फिल्म की एक झलक देख सकते हैं।

 

 

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