परिशिष्ट-2 - जल के आध्यात्मिक प्रयोग

‘जल’ के केवल भौतिक उपयोग नहीं होते, बल्कि कुछ ऐसे उपयोग भी हैं जो सत्य होते हुए भी अविश्वसनीय हैं। इन्हें आध्यात्मिक प्रयोग कहा जा सकता है।

(1) तर्पण-सनातन धर्म में यज्ञ, अनुष्ठान, पूजन तथा पितृपक्ष में ‘तर्पण’ करना अनिवार्य माना जाता है। यह तर्पण मृतात्माओं के लिए नहीं, बल्कि उन शक्तियों के लिए किया जाता है। जो हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं। इन प्राकृतिक देवशक्तियों में ब्रह्मा आदि त्रिदेव, प्रजापति, अन्य देवता, वेद, छन्द, ऋषि, पुराणाचार्य, गन्धर्व, अप्सरा, नाग, सागर, पर्वत, सरिताएँ, मनुष्य, यक्ष, राक्षस, पिशाच, भूत, सुपर्ण, पशु, वनस्पतियाँ, औषधियाँ तथा चार प्रकार के भूत-ग्राम सम्मिलित हैं। दश ब्रह्मा, कपिलादि सात ऋषि, आठ पितर, चौदह यम तथा वसु, रुद्र, और आदित्य स्वरूप हमारे पूर्वज एवं गायत्री, सावित्री और सरस्वती स्वरुपा-नारी पूर्वजाएँ भी शामिल हैं। तत्पश्चात् वे लोग भी शामिल हैं- जिनका तर्पण कोई नहीं करता। इन सभी के लिए तिल मिश्रित जल (तिलोदकम्) से ‘तर्पण’ किया जाता है। प्राचीन ऋषियों का विचार है कि तिल मिश्रित जल से तथाकथित देवशक्तियों को ‘तृप्ति’ प्राप्त होती है। इससे प्रसन्न होकर वे हमारे जीवन में अनुकूल प्रभाव डालती हैं। जब हमारे मैंगनीज़ डाय ऑक्साइड और नौसादर से बने ‘ड्राई सैल’ के द्वारा विद्युत प्राप्त कर सकते हैं और उसके द्वारा चलित मोबाइल या वायरलेस रेडियो के माध्यम से हजारों किलोमीटर दूर तक अपना संदेश भेज सकते हैं, तब तिल मिश्रित जल और कुश के द्वारा क्या देव शक्तियों को ‘तृप्त’ नहीं किया जा सकता? यह अनुसंधान का विषय है।



(2) शीघ्र निरापद प्रसव
आजकल की नवयुवतियों का जब ‘प्रसवकाल’ निकट आता है, तब अत्यन्त पीड़ा होती है और प्रायः आपरेशन के बिना ‘प्रसव’ ही नहीं होता। किन्तु ‘जल का एक प्रयोग’ ऐसा भी है जिसमें बिना किसी पीड़ा या ‘रिस्क’ के शीघ्र प्रसव हो जाता है और किसी प्रकार का कोई खतरा भी नहीं रहता।

इस प्रयोग के लिए सर्वप्रथम निम्नलिखित मंत्र को ‘सिद्ध’ कर लेना पड़ता है। तत्पश्चात् जब प्रयोग का अवसर आये तब गर्भिणी-महिला के घर से ही स्वच्छ लोटे में शुद्ध जल मंगाकर धरती के स्पर्श तथा दूसरों की दृष्टि से बचाना पड़ता है। जल ले जाने वाला उस जल को शीघ्र पिला दे तो गर्भिणी को बिना किसी कष्ट के प्रसव हो जाता है। मन्त्र निम्नलिखित है-

मुक्ता पाशा विमुक्ताश्च, मुक्ता सूर्येण रश्मयः।
मुक्ता5 सर्वभयाद् गर्भ, एहि मा चिर मा चिर स्वाहा।।

(3) पवित्रीकरण- निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर तीन बार ‘आचमन’ (जल को मुँह में डालने) से पूरा शरीर तथा अन्तःकरण पवित्र हो जाता है-

ऊँ अपवत्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थां गतोSपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं, स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
 

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