प्रकाश से भी होता है प्रदूषण

10 Nov 2016
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अपने दैनिक जीवन में प्रकाश प्रदूषण से बचने के लिये कुछ सामान्य सी बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि सबसे पहले जितनी भी गैर-जरूरी बत्तियां, जहाँ भी दिखें, अगर संभव हो तो बंद कर देनी चाहिए। दूसरा सरल उपाय है कि बत्तियों को कवर करके या ढक कर रखना चाहिए। चूँकि ज्यादातर प्रकाश प्रदूषण का कारण ऊपर की ओर उठने वाली रोशनी होती है, इसलिए ऐसी बत्तियों को लगाने की जगह व उनकी दिशा जरूरतानुसार होनी चाहिए। इसी तरह किसी भी प्राचीन महत्व की इमारत को यदि रोशन करना है तो उसे ऊपर से नीचे की तरफ रोशन किया जाना चाहिए न कि नीचे से ऊपर की ओर।

छोटू बहुत देर से सोने की कोशिश कर रहा था परंतु उसे नींद ही नहीं आ रही थी। वह बार-बार छत पर पड़ने वाली परछाइयों और उजाले को देख रहा था। असल में उसके कमरे की सारी बत्तियां बुझ जाने के बाद भी खिड़कियों से बाहर की रोशनी अंदर आ रही थी। छोटू मन ही मन अपने गाँव के बारे में सोचने लगा। वह सोचने लगा कि कैसे उसके गाँव में शहर की चकाचौंध भरी रातों की बजाए आसमान के तारे रात उजली करते हैं। वह सोच ही रहा था कि गाँव में लोग कितने आराम से खुले आसमान में सोते हैं कि तभी उसके पिताजी उसके कमरे में आ गए। पिताजी ने जब उससे जगने का कारण पूछा तो उसने कहा, ‘‘पापा, मैंने कमरे की सारी बत्तियां बुझा दी हैं, फिर भी बाहर जल रही लाइटों से इतनी रोशनी आ रही है कि मुझे नींद ही नहीं आ रही । क्या करूँ’’?

पिताजी ने फिर छोटू को समझाना शुरू किया, ‘‘बेटा गाँव की रातों और शहरी रातों में जो फर्क रोशनी ने पैदा किया है वह एक विशेष प्रकार के प्रदूषण के कारण हुआ है। इस प्रदूषण को रोशनी से होने वाला प्रदूषण या प्रकाश प्रदूषण भी कहते हैं। प्रकाश प्रदूषण का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। करीब सौ वर्ष पहले तक इंसान आसमान इतना साफ एवं काला होता था कि आसमान में ‘आकाश गंगा’ को आसानी से देख सकता था। लेकिन पिछले सौ वर्षों में इंसान ने रोशनी पैदा करने के ऐसे कई उपाय खोज निकाले हैं जिन्होंने अंधेरे नाम की चीज को मिटा सा दिया है। कहीं-कहीं तो रोशनी इतनी होती है कि रात और दिन में कोई अंतर ही नहीं रह गया है। परंतु हाल ही के सालों में उन उपायों के विपरीत परिणाम भी प्रकाश प्रदूषण के रूप में देखने को मिल रहे हैं।’’

‘‘क्या प्रकाश प्रदूषण बहुत हानिकारक है? और यह किस तरह हमारे जीवन को प्रभावित करता है?’’ छोटू ने उत्सुकतापूर्वक प्रश्न किया।

‘‘बेटा, प्रकाश प्रदूषण खतरनाक तो है परंतु यह कोई हौवा या डरने की चीज नहीं है। हाँ, यह उभरती हुई एक गंभीर समस्या अवश्य है। चूँकि अभी इस पर शोध चल रहे हैं इसलिए बहुत कुछ कह पाना तो संभव नहीं है। अभी इसके कुछ ही प्रभाव सामने आए हैं। इसके प्रभावों को जानने से पहले तुम्हें इसके प्रकारों के बारे में जान लेना अच्छा होगा।’’

‘‘हाँ, पापा ठीक है। पहले यह बताओ कि प्रकाश प्रदूषण कितने प्रकार का होता है?’’ छोटू ने जिज्ञासापूर्वक कहा।

‘‘प्रकाश प्रदूषण प्रायः तीन प्रकार के होते हैं। पहला प्रकार होता है ग्लेयर यानि चमक वाला प्रकाश प्रदूषण। दरअसल, खुली बत्तियों से फैलने व बिखरने वाले प्रकाश को ग्लेयर कहते हैं। यह आँखों के लिये हानिकारक होता है; बूढ़े लोगों को यह क्षण भर के लिए अंधा-सा बना देता है। और-तो-और जब सामने से कोई गाड़ी ‘हाई बीम’ पर आ रही हो तो ग्लेयर की वजह से ही चालक को परेशानी का सामना करना पड़ता है।’’ पापा ने समझाया।

पापा ने आगे बताया, ‘‘प्रकाश प्रदूषण का दूसरा प्रकार होता है, स्काई ग्लो यानि आकाश प्रदीप्ति। यह प्रभाव घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ज्यादा प्रबल होता है। जब घरों, सड़कों, मॉल आदि की प्रकाश किरणें एक जुट होकर ऊपर आसमान की तरफ उठती हैं, तो इस घटना से ‘स्काई ग्लो’ जन्म लेता है। यह प्रभाव रात के काले आकाश को भी उज्वलित कर देता है। यह स्थिति खगोलशास्त्रियों के लिये परेशानी का एक बड़ा कारण बनती जा रही है। असल में, खगोल वैज्ञानिकों को तारों और दूसरे ग्रहों को सही से देखने के लिये घने अंधेरे वाले आकाश की आवश्यकता होती है। चूँकि इस आसमानी प्रकाश की वजह से रात्रि का अंधेरा कम हो जाता है, इसलिए तारों व ग्रहों को पहचानने और उसके अध्ययन में परेशानी होती है।’’

‘‘और तीसरा महत्त्वपूर्ण प्रकार है लाइट ट्रेसपास यानि प्रकाश अतिचार। यही वह प्रकार है जिसके कारण तुम पिछले एक घंटे से सिर्फ छत ताक रहे हो और गाँव को याद कर रहे हो पापा ने कहा।

इस पर छोटू ने पूछा, ‘‘पापा, प्रकाश अतिचार का क्या मतलब है?’’

पापा ने आगे समझाया, ‘‘असल में प्रकाश का हमारे घरों और दफ्तरों आदि में अनावश्यक घुसपैठ करना ही प्रकाश अतिचार होता है। जब खिड़की के पास से कोई गाड़ी निकलती है तो छत पर जो नाचती हुई परछाइयां नजर आती हैं वे इस प्रकाश के अतिचार के कारण होती हैं। न सिर्फ गाड़ियों की वजह से बल्कि बाहर खड़े खंभों पर लगी बत्तियों से भी रोशनी सीधे घरों में घुसती है। प्रकाश का इस प्रकार अतिचार किसी अत्याचार से कम नहीं! दरअसल, इस तरह के अनावश्यक प्रकाश के कारण हमारे घरों में व आस-पास एक ऐसा माहौल बन गया है जिसके कारण अब हम रोशनी में रहने के आदी बन गए हैं। इसका एक अच्छा प्रभाव तो यह पड़ा कि इंसान को अब नींद नहीं आती है, जिसकी वजह से वह जाने-अनजाने में अपने गाँव को याद तो कर लेता है।’’

छोटू की जिज्ञासा और बढ़ती जा रही थी। आगे उसने पूछा, ‘‘क्या प्रकाश प्रदूषण सिर्फ इंसानों के लिये ही खतरा है? क्या अन्य जीव जन्तु सुरक्षित हैं?’’

दरअसल, छोटू की नींद उड़ चुकी थी और अब वह अपने पिताजी की भी नींद उड़ाने में लगा था।

‘‘दुर्भाग्यवश इंसानों ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका असर अन्य जीव-जंतुओं पर न पड़ा हो। इंसान अपने किए की सुध सिर्फ तब लेता है जब उस पर सीधा प्रभाव पड़ने लगता है। इस सच्चाई से प्रकाश प्रदूषण भी अछूता नहीं है। प्रकाश प्रदूषण से पारितंत्र यानि ईकोसिस्टम पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे वन्य जीवों की निशाचर जीवनशैली पर बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे जीव जो रात्रि के अंधकार के अनुरूप ढले हुए थे, अब उन्हें छिपने की जगह नहीं मिल रही है। इसलिए उनके सामने विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। साथ ही साथ इससे पेड़-पौधों की जीवन पद्धति पर भी बुरा असर हुआ है।’’ पापा ने प्रकाश प्रदूषण से होने वाले खतरों को विस्तार से समझाया।

आगे उन्होंने बताया कि प्रकाश प्रदूषण ने प्रवासी पक्षियों के रास्तों व पैटर्न्स पर भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। साथ ही साथ पशुओं की आपस में प्रतिस्पर्धात्मक अंतःक्रियाओं, शिकार-शिकारी संबंधों आदि को भी प्रभावित किया है। उन्होंने समझाया कि किसी भी जीव की जिंदगी सिर्फ दो पहलुओं - रात या दिन के आस-पास ही गुंथी होती है। परंतु जब रात या दिन में कोई अंतर महसूस न हो तो चाहे इंसान हो या जानवर उसकी जीवन गति सामान्य नहीं रह पाती, जिसके कारण उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

छोटू ने चिंतित होते हुए पूछा, ‘‘तो क्या हम इस विषय में कुछ नहीं कर सकते? क्या हमारी धरती को अब एक और इस विचित्र प्रदूषण का बोझ भी झेलना होगा?’’

‘‘ऐसा नहीं है, प्रकाश प्रदूषण से बचने के लिये वैज्ञानिकों व नवाचारकों ने कई सुझाव दिए हैं। इस प्रदूषण को रोकने के लिये कई सरल उपाय उपयोग में लाए जा सकते हैं।’’ पापा ने बताया।

‘‘पापा, क्या आप इन उपायों के बारे में कुछ और बता सकते हैं’’, छोटू ने उत्सुकतावश पूछा।

आगे उन्होंने बताया, अपने दैनिक जीवन में प्रकाश प्रदूषण से बचने के लिये कुछ सामान्य सी बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि सबसे पहले जितनी भी गैर-जरूरी बत्तियां, जहाँ भी दिखें, अगर संभव हो तो बंद कर देनी चाहिए। दूसरा सरल उपाय है कि बत्तियों को कवर करके या ढक कर रखना चाहिए। चूँकि ज्यादातर प्रकाश प्रदूषण का कारण ऊपर की ओर उठने वाली रोशनी होती है, इसलिए ऐसी बत्तियों को लगाने की जगह व उनकी दिशा जरूरतानुसार होनी चाहिए। इसी तरह किसी भी प्राचीन महत्व की इमारत को यदि रोशन करना है तो उसे ऊपर से नीचे की तरफ रोशन किया जाना चाहिए न कि नीचे से ऊपर की ओर। और तुम जानते हो कि आजकल एलईडी यानि लाइट एमिटिंग डाये का उपयोग बढ़ा है, क्योंकि यह ग्लेयर नहीं करती हैं, इसलिए रोशनी के लिये इनको भी उपयोग में लाया जा सकता है। इससे ऊर्जा भी बचेगी, पैसा भी बचेगा और प्रदूषण भी नहीं होगा।’’

पापा छोटू को समझा ही रहे थे कि कुछ बड़बड़ाते हुए छोटू की मम्मी आई और खिड़की पर लगे पर्दे खींच दिए और बोली कि लो, हो गया प्रदूषण बंद, अब सो जाओ, कल सुबह जल्दी जो उठना है।

सम्पर्क


हिमांशु शर्मा
बी.टेक छात्र, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली, ई-मेल : himanshu1996sharma@gmail.com


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