प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहार वृक्ष

3 May 2013
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अच्छा होता कि अगर पेड़ काटने से पहले पेड़ लगाए जाते। लेकिन जल्दी जो काटने की है लगाने की नहीं। यही पेड़ पहले वाहनों का धुआं रोकते थे, धूल को घरों में घुसने से रोकते थे, यात्रियों को धूप व बारिश से बचाते थे। बारिश के पानी को अपनी जड़ों के माध्यम से भू जल तक पहुँचाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा और लोगों को समझ आएगा ये पेड़ हमारे लिए कितने लाभदायक थे। नये वृक्षों को यह सब करने में कितना वक्त लगेगा यह भी पक्का नहीं है कि पेड़ लगेंगे भी की नही

वृक्षों का उदाहरण तो लोग कहावतों, मुहावरों में भी करते हैं। वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते, वृक्ष स्वयं अपनी छाया में नहीं बैठते। वृक्ष अपने लिए नहीं वरन् जीवों के लिए अपना सब कुछ समर्पित करते हैं। वृक्ष हमारे जीवन में विशिष्ट महत्व रखते हैं। वृक्षों के बिना सृष्टि की कल्पना करना व्यर्थ हैं। मेरा गांव मेरठ-करनाल मार्ग पर है। मैं हमेशा इस मार्ग से आता जाता रहा हूं। लेकिन हाल ही में सड़क के निर्माण के दौरान सारे पेड़ काट दिए गए हैं। एक भी पेड़ देखने को सड़क के किनारे नहीं बचा। इन पेड़ों के कटने से पूरे मार्ग पर राजस्थान सा नज़ारा देखने को मिलता है। अब लगता ही नहीं कि यह वही गांव है या वही सड़क मार्ग है जहां पहले इन पेड़ों की झुरमुट में पक्षी चहचहाते थे, खेत में काम करने के बाद लोग छाया में बैठकर सुस्ताते थे, बच्चे इन पेड़ों में फल ढूंढ-ढूंढ कर खाते थे और भरी दोपहर में गुल्ली डंडा खेलते थे। गरीब लोग इनकी छोटी-छोटी सूखी टहनियों से अपना चूल्हा जलाते थे। सब कुछ बदला-बदला सा नजर आता है। यही हाल गांव में होने वाले बागों का भी है। शायद ही हमारे क्षेत्र में कोई बाग जीवित बचा हो। वास्तव में पेड़ धरती का श्रृंगार है। इनके बिना धरती की शोभा नहीं है। यही शोभा जीवों के लिए जीवन है।

अच्छा होता कि अगर पेड़ काटने से पहले पेड़ लगाए जाते। लेकिन जल्दी जो काटने की है लगाने की नहीं। यही पेड़ पहले वाहनों का धुआं रोकते थे, धूल को घरों में घुसने से रोकते थे, यात्रियों को धूप व बारिश से बचाते थे। बारिश के पानी को अपनी जड़ों के माध्यम से भू जल तक पहुँचाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा और लोगों को समझ आएगा ये पेड़ हमारे लिए कितने लाभदायक थे। नये वृक्षों को यह सब करने में कितना वक्त लगेगा यह भी पक्का नहीं है कि पेड़ लगेंगे भी की नहीं। साथियों हमें पेड़ों के प्रति जागरूक होने की भी आवश्यकता है एक समय ऐसा भी था जब पीपल, तुलसी आदि पेड़ों को पूजा भी जाता था। इन्हीं पेड़ पौधों से हमे रोगों से दूर रखने के लिए दवाईयाँ भी बनाई जाती थी। इन्हीं पेड़- पौधे के बीच हमारा जीवनयापन होता था। इन्हीं की टहनियों एवं घास-फूस से रहने के लिए घर बनाए जाते थे। पत्थर बेल के पेड़ का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व हैं। इसके फल से बनाए गए शर्बत आदि से कई रोग ठीक हो जाते हैं तथा गर्मी से लोगों को बचाते हैं।

लेकिन अब तो सिर्फ कटान ही कटान हैं सड़कों, कालोनी बसाने के नाम पर पेड़ों की बलि दे रहे हैं। कई तरह के वृक्ष आडू, देशी कीकर, बरगद, पीपल, शहतूत, जमोया आदि पेड़ अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। ये वही पेड़ा है जो पहले घरों की शोभा बढ़ाते थे। पहले घरों में नीम के पेड़ लगाए जाते थे। यें पेड़ मानव एवं पशुओं को बीमारी से बचाते थे। नीम के पेड़ के नीचे रहने से एलर्जी व सांस से संबंधित रोग नहीं होते हैं। इनकी पत्तियों एवं छाल से लोग दवाईयां भी बनाते हैं। खेत में नीम का पेड़ होने पर दीमक नहीं लगती तथा खेत उपजाऊ होता है। भूमि में नमी बनाए रखता है। यह पेड़ ऐन्टीफंगस, ऐंटीबायोटिक एवं एंटी बैक्टीरियल होता है। हानिकारक कीड़े-मकोड़ो को भी समाप्त करता है।

यजुर्वेद में ऋषि वृक्षों के प्रति अत्यंत आदर भाव दर्शाते हुए कहते हैं कि हमें बीज, जंगल, वृक्ष, औषधि सभी के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान करना चाहिए। पेड़ हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। वृक्ष हमें प्रदूषण से भी बचाते है ये हमें ऑक्सीजन देते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य विशाक्त गैसों को अवशोषित करते हैं। पीपल, अशोक, कदम्ब, इमली, वट, छोटी बेर वाली झाडियां गैस धुआं सोखने की क्षमता रखते हैं।

लेकिन अब हम वृक्षों से दूर हटते जा रहे हैं। हमारी आने वाली पीढ़ियाँ शायद कई पेड़ों को नहीं देख पाएगी। आश्चर्य की बात है कि हमारे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे सामान्य पेड़ों के बारे में नहीं जानते हैं उनके औषधिय एवं अन्य गुणों की तो बात ही छोड़ दीजिए। पहले जब हम जूनियर हाई स्कूल में पढ़ते थे तो हमारे मास्टर जी हरबेरियम बनवाते थे जिसमें बच्चों को क्षेत्रीय स्तर के सभी पेड़ों व घास-फूस की जानकारी एवं पहचान कराई जाती थी। जिसमें बच्चे इन हरबेरियम में पेड़ पौधों के चित्र एवं उनके कुछ अंश चिपकाए जाते थे। जिससे बच्चें इन सबके बारे में अच्छी तरह से जान जाते थे। लेकिन अब तो ऐसा कुछ है ही नहीं। हमारे स्कूली पाठ्यक्रम भी इन सब से दूर हो गए हैं। अध्यापकों की भी इन सब में रूचि नहीं हैं। अभिभावक भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते हैं। जबकि यह हम सबके लिए बहुत जरूरी है। समाज में हमारे पुराने लोग वैद्य जो पेड़-पौधों से दवाईयां बनाते थे अब नहीं रहे और उनकी नई पीढ़ी ने इसको स्वीकार नहीं किया। जिससे हमारा पुराना ज्ञान समाप्त हो गया।

हमें दोबारा फिर अपने आने वाली पीढ़ियों को पेड़-पौधे के प्रति जागरूक करना होगा। जहां पेड़ काटे जाते हैं उससे पहले वहां पेड़ लगाए जाएं। हमारे जो वन बचे हुए हैं उनको संरक्षित किया जाए। प्रत्येक घर में कम से कम एक पेड़ अवश्य हो तभी हम अपने पेड़-पौधों को बचा सकते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं तभी हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। प्रत्येक स्कूल में हर्बल गार्डन बनाए जाएं जिससे बच्चे अपने प्रकृति को जाने तथा स्वयं ही उनका लाभ उठाने में सक्षम हो सके।

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