प्रकृति की गोद में

11 Jul 2014
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केरल का मुन्नार क्षेत्र अपने पहाड़ों और नदियों के लिए जाना जाता है। इसकी हरियाली मन मोह लेती है। इसके कुदरती सौंदर्य के बारे में बता रही हैं प्रज्ञा।

यों तो दक्षिण भारत सैलानियों के लिए स्वर्ग है पर केरल का जवाब नहीं। इनमें मुन्नार बेहद प्रभावित करने वाली जगह है। ब्रिटिश काल से ही मुन्नार को केरल का पर्वतीय स्थल माना जाता है जो चाय बागानों के लिए प्रसिद्ध है। इड्डुक्की जिले में है मुन्नार।

हम लोग कोच्चि होते हुए मुन्नार गए। रास्ते में एक छोटा-सा चिड़ियाघर और पेरियार नदी के किनारे बने एलिफेंट क्रॉल को भी देखा। यहां नहाए-धोए हाथी खड़े थे। एक बहुत बूढ़ा हाथी अपनी अनियंत्रित सूंड के कारण खाने में दिक्कत महसूस कर रहा था तो दूसरी तरफ एक बालिका हाथी जोर-जोर से सिर हिला रही थी और पास लगे सरकंडे को सूंड से खींचकर बड़ी कलाकारी से अपना कान खुजला रही थी। पेड़ों की नगरी है केरल।

मुन्नार तीन नदियों का संगम है- मुदरापुजा, नाल्लथनी और कुण्णला। मुन्नार का अर्थ नदियों का संगम ही है। बारिश और ओस के पानी से पहाड़ों को पोषण मिलता है। यहां तक कि होटलों और घरों में लोग पेड़-पौधे लगाकर पानी डालने की चिंता से मुक्त रहते हैं। व्यवसाय और हरियाली दोनों को देखते हुए महसूस होता है कि यहां नारियल विकास बोर्ड काफी सक्रिय है। मुन्नार जाने के लिए हम लोग ब्रिटिश काल में बनाए गए पुल नेरियमंगलम् से गुजरे। इसके रख-रखाव को देखते हुए कोई नहीं कह सकता कि ये पुल इतना पुराना है। रास्ते में धान के खेत और पेड़ों की गोद में बने घर मन मोह रहे थे।

मुन्नार से पहले सिअपारा नाम का झरना स्वागत में खड़ा था। चार सौ फुट ऊंचाई से गिरता तेज धार का झरना। जमीन से थोड़ी ही ऊंचाई पर चट्टान के भीतर गुफा जैसा रास्ता बना हुआ था, हम लोग हिम्मत करके वहां पहुंच गए। उस गुफा में घुसने पर झरना हमारे एकदम आगे गिर रहा था मानो उस गुफा के परदे का काम कर रहा हो।

रास्ता लंबा होने के बावजूद प्रकृति की ठंडक ने थकान पैदा नहीं होने दी। कुछ देर होटल में रुककर हम लोग मुन्नार देखने निकल पड़े। सबसे पहले हम कण्णनन देवन हिल स्टेट में बने टी-संग्रहालय की ओर गए। अंदर चाय निर्माण और मुन्नार के चाय बागानों से संबंधित फिल्म दिखाई जा रही थी। 1880 में चाय बागान के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई और 1980 में ये कंपनी टाटा फिनले के पास आ गई। पूरा संग्रहालय चाय की खुशबू से महक रहा था। यहां कई किस्म की चाय बिक रही थी।

बाहर अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। मुन्नार तीन नदियों का संगम है- मुदरापुजा, नाल्लथनी और कुण्णला। मुन्नार का अर्थ नदियों का संगम ही है। बारिश और ओस के पानी से पहाड़ों को पोषण मिलता है। यहां तक कि होटलों और घरों में लोग पेड़-पौधे लगाकर पानी डालने की चिंता से मुक्त रहते हैं। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। हारकर वापस लौटना पड़ा।

अगले दिन सुबह नींद खुली चाय बागान में काम करने वालों के लिए बजने वाले सायरन से। ये लोग साढ़े छह बजे से साढ़े बारह बजे तक काम करते हैं। बाद में कड़ी धूप होने के कारण काम करना संभव नहीं हो पाता।

हम लोगों ने आज का सफर टी वैली से गुजरते हुए पौदमेड व्यू प्वाइंट देखने से शुरू किया। यहां से गहरी घाटियां, दूर तक फैले सीढ़ीदार चाय बागान, बादल लदे पहाड़ों के साथ पूरे मुन्नार की प्राकृतिक शोभा को निहारा जा सकता है। रास्ते में चाय बागान के श्रमिक भी दिखाई दिए। उनमें काम करने वाली महिलाएं दिहाड़ी मजदूर हैं जो साड़ी के साथ पुरुषों की कमीज पहने रहती हैं, मच्छरों के आतंक के कारण।

इसके बाद हम लोग माट्टपेट्टी बांध की ओर गए। यह पानी संरक्षण और बिजली उत्पादन दोनों का काम करता है पर आज तो यह सैलानियों का गढ़ बना हुआ था। बारिश के बाद शानदार धूफ का सब लुत्फ उठा रहे थे। दिल्ली, भोपाल और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों से आए सैलानी स्थानीय फल-सब्जियों का सेवन कर रहे थे।

नारियल पानी के अतिरिक्त, लंबे हरे पत्तों वाली छोटी-छोटी गाजर और अनानास धड़ल्ले से बिक रहे थे। कच्ची अमिया की तरह का पाच्चा मांगा चटपटा लाल मसाला डालकर खाया जा रहा था। अमरूद और छोटे बैंगन के आकार का एक जूसी फल टमेटा की मांग भी थी। इसे दबाकर चूसने पर खट्टा-सा स्वाद जुबान पर आता है। फास्ट फूड की जगह ये सेहतमंद खाद्य विकल्प वहां मौजूद थे।

टी स्टेट के फिल्म शूटिंग प्वाइंट से गुजरकर एको प्वाइंट तक हम पैडल बोट से गए और चीख कर पुकारे गए नामों की लौटती प्रतिध्वनि का आनंद लिया। कहा जाता है पूरे केरल में किसी और जगह ये प्रतिध्वनि सुनाई नहीं पड़ती।

झील के किनारे घना जंगल था। बताया गया कि एक बार एक हाथी ने यहां आकर काफी उत्पात मचाया था। हल्की बूंदाबांदी जारी थी।

इसके बाद हम बढ़ चले कुंडला बांध की ओर। इसका दूसरा नाम सेतुपार्वतीपुरम् बांध भी है। यह क्षेत्र समुद्र तल से 1750 मीटर की ऊंचाई पर है। यह बांध भी जल-संरक्षण और बिजली उत्पादन का काम करता है। इस बांध की खासियत है कि यह दक्षिण भारत का पहला आर्चनुमा बांध है। ये सारे स्थल एक ही रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हैं इसलिए अधिक थकान नहीं होती और उत्साह बना रहता है। सारे रास्ते का मुख्य आकर्षण प्रकृति का रंगों से भरपूर विशालकाय कैनवस और चाय पत्तियों से लदे छोटे ट्रैक्टर हैं।

हमारा अगला पड़ाव था टॉप स्टेशन। जगहों के बारे में हमें ड्राइवर सायरस से अधिकांश जानकारियां मिल रही थीं जिसकी अंग्रेजी अच्छी थी और हिंदी में भी पैदल न था, वरना यहां भाषा की दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। शहर से दूर कई जगह ऐसी हैं जहां दुकानदार केवल मलयाली भाषा ही जानते हैं। आपके पूछे गए दाम का जवाब मिलने पर भी आप समझ नहीं सकते कि क्या मूल्य बताया गया है। शुक्र है सायरस हमारे साथ थे।

टॉप स्टेशन की ऊंचाई काफी है। ये मुन्नार से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। गाड़ी एक निश्चित स्थान तक जाती है आगे की यात्रा पैदल पार करनी है। एक किलोमीटर के रास्ते के बाद ढाई किलोमीटर की ढलान है। इसके बाद हम एक चबूतरे पर पहुंचे जिसके आगे सुंदर नजारा बिखरा पड़ा था।

इस जगह की खासियत यह है कि यह जगह केरल की सीमा का अंत और तमिलनाडु की सीमा की शुरुआत है। पैदल रास्ता पार कर सामने तमिलनाडु स्थित मदुरै का विशाल मैदान दिखाई देता है। पहाड़ों की गोद में लेटा रेतीला मैदान। मौसम यहां भी अनपेक्षित था। कभी बारिश तो कभी धुंध।

खाना खाने के बाद हम लोग मुन्नार के केरल वन विभाग के फ्लोरीकल्चर सेंटर पहुंचे। सड़क किनारे बना यह सेंटर काफी आकर्षक है। यहां विभिन्न प्रजातियों के पौधे हैं। सीढ़ीनुमा लंबे चबूतरों पर फूलों की पौध, कई किस्म के कैक्टस, बेलें यहां काफी सुंदर व्यवस्था के साथ सजाई गई हैं। ऐसा लग रहा था जैसे कि फूलों की नगरी में घूम रहे हों। पौधों की अच्छी साज-संभाल की जा रही थी। यहां के सुंदर पौधों में गुलबी रंग का बेबी बल्श, नागफनी की कई किस्में, आर्किड्स, वनीला प्लांट, संतरी, भूरे, हरे रंग का पक्षी के मुंह जैसा बर्ड ऑफ पैराडाइस। पतली पत्तियों वाला फीनिक्स पाम, लाल-हरे रंग का कैट्स-टेल। अनगिनत रंगों के बीच प्रकृति कृत्रिम रूप में ही सही पर अपनी धज के साथ यहां मौजूद थी। एलीफेंट इयर और एलिफेंट टीथ कैक्टस भी यहां था। आगे चंदन भी बिक रहा था जिसका मूल्य दस हजार रुपए किलो था।

मुन्नार का हमारा अंतिम पड़ाव था हाइडल पार्क। पल्लीवासल स्थित यह पार्क केरल का प्रथम पन बिजली परियोजना थी। यह 1944 में बना था। अब यह यहां केवल प्रतीक चिह्न के रूप में ही है। यहां अब पनबिजली परियोजनाएं नहीं है, पर एक विशाल खूबसूरत पार्क है। अंदर गुलाब ही गुलाब हैं। ये जगह भी मुन्नार की अन्य जगहों की तरह व्यवस्थित और खूबसूरत है। पूरे मुन्नार में कहीं भी आपको बदइंतजामी और गंदगी नहीं मिलेगी। साफ-सुथरा, शांत और सुंदरता से भरपूर है मुन्नार।

मुन्नार से विदा लेने का दिन आया। लौटते समय हम रास्ते में पड़ने वाले आट्टकल जल प्रपात को नजदीक से देखने गए। इसकी दूधिया धारा और पानी के गिरने की आवाज मुन्नार घूमते समय घाटियों में आसानी से देखी-सुनी जा सकती है।

यह विशालकाय झरना सप्तम स्वर में बेहद ऊंचाई से गिरता है और टाटा पैकेजिंग सेंटर से ठीक आगे है। यहां एक पुल पर खड़े होकर इसे काफी नजदीक से देखा। अब तक देखे गए झरनों के मुकाबले यह ऊंचा और भयाक्रांत करने वाला था। चट्टानों से टकराती धारदार लहरें ऐसी लगती हैं कि एक कदम आगे बढ़ाया और आपका समूचा अस्तित्व खत्म। इसे देखकर ही पैरों में अजीब सा कंपन होता है। झरने में उतरने की मनाही थी क्योंकि ये कई लोगों का जीवन लील चुका है।

मुन्नार और पल्लीवासन के बीच यह झरना मुन्नार का बड़ा आकर्षण है। पानी की विविध छवियां, घाटी के मोहक सौंदर्य के पार्श्व में गोलाकार विशाल पहाड़ जिनकी गोद में फैले ढलवां और सीढ़ीनुमा चाय बागान। इन मोहक दृश्यों को लिए असीम विस्तार में डूबा है मुन्नार।(संपर्कः pragya3k@gmail.com)

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