प्रकृतिक का उपहार — मैंग्रोव वन
हमारी धरती अनोखी एवं जीवनदायी है। इसे विभिन्न कारक जीवनदायी बनाए हुए है। जल, जमीन और जंगल हमारी पृथ्वी को अनोखापन प्रदान करते हैं। इन कारकों में से जंगल की जीवन को बनाए रखने में अहम भूमिका है। जंगल या वन हमारी पृथ्वी पर वायुमण्डल में गैसों का सन्तुलन बनाए हुए हैं जिससे यहाँ जीवन सुचारू रूप से चल रहा है।
मैंग्रोव या कच्छ वनस्पतियाँ खारे पानी को सहन करने की क्षमता रखने वाली दुर्लभ वनस्पतियाँ हैं जिनकी ऊँचाई 40 मीटर तक होती है। मैंग्रोव वनस्पतियों के कारण ही तटवर्ती क्षेत्रों में सूनामी, चक्रवात और समुद्री तूफान की विनाशलीला काफी हद तक कम हो जाती है। पृथ्वी पर अलग-अलग मिट्टी, मौसम और परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार के जंगल या वन पाए जाते हैं। वनों की यही विविधता असीम जैव-विविधता को जन्म देती है। ऐसे ही एक अनोखे वन है मैंग्रोव वन। प्रकृति ने इन वनों के रूप में जीवन के विविध रूपों को एक आश्रय स्थल सौंपा है। वास्तव में प्रकृति की रचना विचित्र है। उसने तटबन्धों की रक्षा करने, वृहद समुद्री व थलीय जैव-विविधता को फलने-फूलने के लिए इस धरती पर मैंग्रोव जिसे कच्छ वनस्पति भी कहा जाता है, को खारे पानी में पनपने की क्षमता प्रदान की है। तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव वनस्पतियों ने समुद्र की अनेक विनाशकारी लहरों को धरती पर आने से रोका है।
मैंग्रोव या कच्छ वनस्पतियाँ खारे पानी को सहन करने की क्षमता रखने वाली दुर्लभ वनस्पतियाँ हैं जिनकी ऊँचाई 40 मीटर तक होती है। मैंग्रोव वनस्पतियों से आच्छादित मैंग्रोव वन, भूमि और समुद्री जल के अन्तःसम्बन्धों का अद्भुत उदाहरण हैं। 60 से 70 प्रतिशत तटों पर मैंग्रोव वनस्पतियों को देखा जा सकता है। मैंग्रोव वनस्पतियों के कारण ही तटवर्ती क्षेत्रों में सूनामी, चक्रवात और समुद्री तूफान की विनाशलीला काफी हद तक कम हो जाती है।
मैंग्रोव वनस्पतियों के खारे पानी को सहन करने की क्षमता ही इनके समुद्र तटीय क्षेत्रों में पनपने में सहायक होती है। मैंग्रोव के विकास में खारे पानी का अहम योगदान है इसीलिए यह वनस्पतियाँ ज्वारीय क्षेत्रों में बहुतायत में मिलती हैं। मैंग्रोव वन ज्वारीय खाड़ियों, पश्च-जल (बैक-वाटर), क्षारीय दलदलों में पाए जाते हैं। मैंग्रोव वनस्पतियाँ समुद्र-तटों पर और नदियों के मुहानों पर भी पाई जाती हैं। यह वनस्पति विश्व के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अच्छी फलती-फूलती हैं। मैंग्रोव वनस्पतियों का सर्वोत्तम विकास 20 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले उन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में होता है जहाँ मिट्टी महीन और तट दलदली प्रकृति वाला हो। इस प्रकार की भूमि जैव-तत्वों से भरपूर होने के कारण मैंग्रोव के तीव्र विकास में सहायक होती है।
मैंग्रोव वनस्पतियाँ ‘लवण सहनशीलता गुणों’ के कारण ही समुद्री तटों में पाई जाती हैं। मैंग्रोव वृक्षों की प्रजातियों के निर्धारण में उस क्षेत्र में शुद्ध जल की मात्रा विशेष प्रभाव डालती है। सर्वाधिक लवण सहनशीलता वाले वृक्ष समुद्री तट रेखा के समीप पाए जाते हैं क्योंकि ज्वार का प्रभाव सबसे ज्यादा समुद्री तट रेखा के नजदीक ही देखा जाता है। इस प्रकार स्थलीय क्षेत्र की ओर बढ़ने पर क्रमशः कम लवण सहनशील वृक्षों की संख्या बढ़ने लगती है। मैंग्रोव की कुछ प्रजातियों में लवण के प्रति अद्भुत सहनशीलता देखी गई है।
मैंग्रोव वनस्पतियाँ आंशिक रूप से जल में डूबे रहने पर भी अच्छी पनपती हैं। प्रकृति ने मैंग्रोव वनस्पतियों को समुद्र से जमीन प्राप्त करने की अद्भुत क्षमता प्रदान की है। यह वनस्पतियाँ ज्वारीय क्षेत्रों में मिट्टी रोककर जमीन बनाने में सक्षम हैं। इस प्रकार मैंग्रोव वनस्पतियाँ ज्वार-भाटे के बीच में पनपती रहती हैं और इनकी जड़ें बहती मिट्टी को रोक लेती हैं। मैंग्रोव वनों के तट की ढलान से समुद्र की लहरों का वेग मन्दा हो जाता है और उथली ढलानें जमीन को क्षरण से बचाने के साथ ही ये हवाओं के विरुद्ध भी अवरोधक का कार्य करती हैं।
तालिका- 1 : मैंग्रोव कार्ययोजना के अन्तर्गत भारतीय मैंग्रोव क्षेत्र
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क्रमांक | संरक्षण प्राप्त मैंग्रोव क्षेत्र | राज्य |
1 | सुन्दरवन | पश्चिम बंगाल |
2 | भितरकनिक | उड़ीसा |
3 | महानदी | उड़ीसा |
4 | सुवर्णरेखा | उड़ीसा |
5 | देवी | उड़ीसा |
6 | धामरा | उड़ीसा |
7 | कालीभंजा डीए द्वीपसमूह | उड़ीसा |
8 | कोरिंगा | आन्ध्र प्रदेश |
9 | पूर्व गोदावरी | आन्ध्र प्रदेश |
10 | कृष्णा | आन्ध्र प्रदेश |
11 | पिचवरम | तमिलनाडु |
12 | केजुहुवेली | तमिलनाडु |
13 | मुथुपेट | तमिलनाडु |
14 | रामानाड | तमिलनाडु |
15 | अचरा-रत्नागिरी | महाराष्ट्र |
16 | देवगढ़ | महाराष्ट्र |
17 | विजयदुर्ग | महाराष्ट्र |
18 | मुम्ब्रा-दीवा | महाराष्ट्र |
19 | वितीरलर नदी | महाराष्ट्र |
20 | कुण्डलिका-रवदाना | महाराष्ट्र |
21 | वसासी-मनोरी | महाराष्ट्र |
22 | श्रीवर्धन-वेरल-टुरूमबादी और कालसुरी | महाराष्ट्र |
23 | चारो | गोवा |
24 | उत्तरी अण्डमान | अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह |
25 | दक्षिणी अण्डमान | अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह |
26 | खम्भात की खाड़ी | गुजरात |
27 | कच्छ की खाड़ी | गुजरात |
28 | कूण्डापुर | कर्नाटक |
29 | होनावर क्षेत्र | कर्नाटक |
अनोखी जड़ें
पेड़ों पर अँकुरित होते बीज
अनोखा पारिस्थितिकी तन्त्र
प्रमुख मैंग्रोव क्षेत्र
भारत में स्थित मैंग्रोव क्षेत्र
खतरे में है मैंग्रोव वनस्पतियाँ
मैंग्रोव वनस्पतियों का संरक्षण
(लेखक विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली में परियोजना अधिकारी हैं एवं 'जलवायु परिवर्तन : एक गम्भीर चुनौती' पुस्तक के लिए राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित हैं)
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