पर्वतीय जलागम क्षेत्रों में जल अभयारण्य विकास

डाॅ. जी.सी.एस.नेगी एवं वरुन जोशी
गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान, कोसी, अल्मोड़ा की श्रीनगर शाखा द्वारा पौड़ी जिले के डुगरगाड़ सूक्ष्म जलागम में जल स्रोतों का विस्तृत अध्ययन एवं एक विलुप्त होते स्रोत का उपचार के बाद प्रभाव आँकलन किया। इस जलागम में कुल औसत वार्षिक वर्षा 1876 मि.मि. है जिसका लगभग 37 प्रतिशत भाग सतही बहाव द्वारा नालों से बह जाता है। इस क्षेत्र में घरेलू उपयोग हेतु पानी की औसत खपत 37 लीटर/दिन/व्यक्ति मापी गई, जिसका 25 प्रतिशत भाग कपड़े धोने, 20 प्रतिशत बर्तन साफ करने, 13 प्रतिशत पेयजल व खाना पकाने व 11 प्रतिशत भाग घरों की सफाई में खर्च होता है।

अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि जल स्रोत का जल प्रवाह मुख्य रूप से स्रोत के जल समेट क्षेत्र में पड़ने वाली वर्षा के उपयोग एवं स्थिति पर निर्भर करता है। वर्षा जल के अवशोषण को बढ़ाने के लिये किये गये उपचारों के प्रभाव का आँकलन के लिए वर्ष 1994 में सूक्ष्म जलागम के एक विलुप्त होते जल स्रोत (जिसका जल समेट क्षेत्र 18.5 हेक्टेयर है) को जल अभयारण्य विकास के अन्तर्गत लिया गया। वर्ष 1995 में स्रोत के जल समेट क्षेत्र में विभिन्न अभियान्त्रिक, वानस्पतिक एवं सामाजिक कार्य किये गये। स्रोत के जल समेट क्षेत्र में किये गये विभिन्न उपचारों के कारण जल स्रोत का प्रवाह 1055 लीटर/दिन (1995) से बढ़कर वर्ष 2000 से 2153 लीटर/दिन हो गया। उपचार के उपरान्त स्रोत का वर्षवार प्रवाह निम्न तालिका में दिया गया है।

तालिका: विलुप्त होते स्रोत में उपचार के बाद जलप्रवाह

 

औसत वर्षा (मि.मि.)

जल स्रोत औसत प्रवाह (ली./दिन)

कुल वार्षिक प्रवाह (m3/y)

वर्षाजल का संरक्षण वर्षा का%

भूजल वर्षा

(1 जुलाई-30 जुलाई)

अप्रैल-जून (90 दिन)

जुलाई-मार्च

(270 दिन)

अप्रैल-जून

(90 दिन)

जुलाई-मार्च

(270 दिन)

 

 

1994-1995

110

846

1055

50,388

12,403

7.0

1995-1996

201

1366

1271

59,009

16,494

5.7

1996-1997

428

831

3081

56,998

15,881

6.8

1997-1998

243

1052

4093

31,790

9190

3.8

1998-1999

154

1183

1360

109,024

30,409

12.3

1999-2000

505

982

2153

124,036

34,416

12.5

 

इस अध्ययन से स्पष्ट होता है कि स्रोत के जल समेट क्षेत्र में वर्षा जल के अवशोषण को बढ़ाने के लिये किये गये विभिन्न कार्यों से जल स्रोत के प्रवाह में वृद्धि होती है।

विस्तृत जानकारी हेतु कृपया संस्थान में कार्यरत डाॅ. जी.सी.एस.नेगी एवं वरून जोशी से सम्पर्क करें।

साभारः माॅउटेन रिसर्च एण्ड डेवलमेंट, वा. 22 नं.1, फरवरी 2002: 29-31

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