पर्यावरण में दखलअंदाजी से तैयार किया था कोरोना वायरस

21 Mar 2020
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पर्यावरण में दखलअंदाजी से तैयार किया था कोरोना वायरस
पर्यावरण में दखलअंदाजी से तैयार किया था कोरोना वायरस

प्रो. आरबी सिंह
सेक्रेटरी जनरल, इंटरनेशनल ज्योग्राफिकल यूनियन


मौजूदा वैश्विक महामारी कोरोना वायरस कोविड 19 के पहले मामले की आधिकारिक पुष्टि 31 दिसंबर 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में हुई थी। उसके बाद यह वायरस तेजी से फैला। देखते देखते इसने चीन के अन्य शहरों को अपनी जद में लेते हुए पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया। यूं ही नहीं है कि यह वायरस एक शहर में पैदा हुआ है। पीटर दास्जाक बताते हैं, ‘हमने प्राकृतिक पर्यावरणीय पारिस्थितिकीय प्रणाली में दखलअंदाजी से वायरस तैयार किया था’। वायरस को उनके कुदरती प्रश्रय (मेजबानों) से हटाया और चाहा कि वे नये प्रश्रय से तालमेल बिठा लें और फिर इन्हें इंसानों तक पहुंचाया या उनमें डाल दिया। जैसा कि कोविड़ 19 महामारी से स्ष्ट है कि शहरी स्वास्थ्य जोखिम तेजी से फैलते हैं, यकायक वैश्विक स्वास्थ्य आपदाकाल बन सकते हैं। इस महामारी से अब तक दो लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। सात हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। अभी भी संक्रमित होने वालों और मरने वालों की संख्या दिनांदिन बढ़ने पर है। कोविड 19 मानव स्वास्थ्य, उत्पादन, जीवन, सामाजिक आचार व्यवहार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गंभीर असर डाल रहा है।

भौगोलिक निगरानी

कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई में ज्योग्राफिकल इंफाॅरमेशन सिस्टम्स (जीआईएस) तथा बिग डाटा तकनीकों ने अनेक तरीकों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 23 जनवरी को चीन की सरकार ने निर्णायक फैसला करते हुए वुहान शहर को सील कर दिया। हुबेई प्रांत में सभी शहरों तक पहुंचने वाले बाहरी रास्तों को बंद कर दिया। प्रत्येक प्रांत ने प्राथमिक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे संक्रमण को शुरुआत में तो फैलने से काफी हद तक रोक दिया गया था। चीन ने काफी इंसानी और सामाजिक आर्थिक नुकसान उठाने के बाद स्वयं और शेष विश्व को बचाने और संक्रमण पर नियंत्रण के लिए समय नहीं गंवाया। तीन फरवरी को निर्माण किए जाने के मात्र दस दिन बाद ही, हुशेनहाल अस्पताल, वुहान में एक हजार बिस्तरों का अस्पताल, शुरू कर दिया। आठ फरवरी को लीहेनशन अस्पताल, जो 1600 बिस्तरों का अस्पताल है, का निर्माण कार्य पूरा करके जनता के लिए खोल दिया गया। इस बीच देश भर से चिकित्सकीय स्टाफ को संक्रमण से पार पाने के लिए हुबेई प्रांत प्रांत भेज दिया गया। 

बारह फरवरी को स्थानीय सरकार ने वे उपाय करने शुरू कर दिए जिनसे संक्रमण को महामारी में तब्दील होने से रोका जा सके। नतीजा हुआ कि संक्रमण के नये मामले आने का सिलसिला कम होने लगा। इस दौरान चिकित्साकर्मियों ने जीआईएस और बिग डाटा तकनीक का इस्तेमाल किया। यह बेहद वैज्ञानिक और तकनीकी मदद है जो सरकार को मिलती है। इससे संक्रमण की स्थिति का आंकलन करने में सुविधा होती है। तद्नुरूप बचाव व कारगर नियंत्रण उपाय संभव हो पाते हैं। 

आज मुख्य चुनौती यह है कि उन रणनीतियों का पता लगाया जाए, जिनसे पारंपरिक तकनीकी तरीकों के साथ तालमेल बिठाया जा सके। त्वरित सामाजिक प्रबंधन के लिए सटीक जानकारी तत्काल हासिल हो सके। इसके अलावा, बिग डाटा के इस दौर में, डाटा अब सरकार की तरफ से मुहैया नहीं कराया जाता है, बल्कि विभिन्न उद्यमों से जुटाया जाता है। फलस्वरूप, जीआईएस को डाटा एकत्रीकरण में समस्या आती है। विभिन्न डाटा से निष्कर्ष तक पहुंचने में दिक्कत आती है। जरूरी है कि सरकारें कारोबारी उद्योग और अकादमिक साथ मिलकर संबद्ध नीतियां तैयार करें। तकनीक के स्तर पर बिग डाटा के लिए भौगोलिक विश्लेषण तरीकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। अभी और आने वाले समय में जीआईएस के विकास को मजबूत करना होगा, ताकि त्वरित जानकारी हासिल करने के लिए डाटा आधारित प्रणाली तैयार की जा सके। 

तेजी से फैला कोविड 19

कोविड 19 का तत्काल पता नहीं लग पाता। यही कारण है कि यह तेजी से फैला और महामारी का रूप ले लिया। ऐसी स्थिति में जरूरी है, कि जीआईएस और बिग डाटा तकनीक से विश्लेषण किए जाएं और संक्रमण संबंधी जानकारी तेजी से मुहैया हों, ताकि समय रहते मदद पहुंचाई जा सके। इस संक्रमण के भौगोलिक रुझानों, चिकित्सा सामग्री की मात्रा, जनसंख्या और सामाजिक मनोविज्ञान का तीन स्तरों पर विश्लेषण किया। व्यक्तिगत स्तर पर भौगोलिक रूप से संक्रमण के फैलाव को जाना और मरीजों की जानकारी ली गई। समूह के स्तर पर जनसंख्या के प्रवाह का अनुमान लगाकर भौगोलिक फैलाव को जाना गया। क्षेत्रीय स्तर पर भौगोलिक जोखिम, चिकित्सकीय संसाधनों की आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन का विश्लेषण तथा भौगोलिक अंतर की दृष्टि से चिकित्सकीय परिवहन की क्षमता का विश्लेषण तथा सामाजिक धारणाओं को जाना गया।

2018 में विश्व की 55 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में आबाद थी। उम्मीद है कि 2050 तक यह बढ़कर 68 प्रतिशत हो जाएगी। शहरों में आबादी का घनत्व भी सर्वाधिक होता है, इतिहास उठाकर देख लें। शहरों में ही संक्रामक रोग फैलने के सर्वाधिक मामले प्रकाश में आते रहे हैं। लेकिन शहर ही हैं, विशेषकर विकसित देशों में, जहां ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में औसत आयु ज्यादा होती है। दरअसल, शहरों में साफ सफाई का अच्छे से ध्यान रखा जाए तो कोई महामारी फैलने की आशंका ज्यादा नहीं होती है। यदि फैलती है तो सर्वाधिक प्रभावित भी शहरी आबादी ही होती है। कोविड 19 ने इस डर को पुष्ट कर दिया है, कि शहरों पर यह संक्रमण रोग फैलते रहे हैं, उनके लिए कोई न कोई कारगर दवा हमारे पास रही है, लेकिन कोविड 19 के मामले में निराशाजनक पहलू यह है कि इसके उपचार के लिए अभी तक कोई कारगर दवा मौजूद नहीं हो पाई है।


 

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