पर्यावरण प्रदूषण : अस्तित्व संकट और हम

22 Jul 2014
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जल प्रदूषणमनुष्य जहां एक ओर दुनिया का सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली प्राणी है, वहीं दूसरी ओर वह अपने अदूरदर्शी कृत्यों से अपने को सर्वाधिक मूर्ख साबित करने पर तुला हुआ है। वर्तमान में विश्व के मानव समुदाय की प्रवृत्ति ठीक वैसी ही है, जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति उसी डाल को काटे, जिस पर वह स्वयं बैठा है।

वस्तुतः मनुष्य मनोवैज्ञानिक रूप से इस तथ्य को मुश्किल से ही समझकर व्यवहार में प्रवृत्त होता है कि किसी कर्म (Action) के समय के आधार पर दो परिणाम (Result) हैं-

तात्क्षणिक परिणाम (Instant Result)
दूरगामी परिणाम (Distance Result)

ये परिणाम प्रियता व परमार्थ के आधार पर दो प्रकार के हैं-
सृजनात्मक या कल्याणकारी (Creative or Beneficial)
विध्वंसात्मक या हानिकर (Destructive or Harmful)

वर्तमान विश्व के विकसित और विकासशील देशों ने विकास के नाम पर जो कुछ किया है या वे जो कुछ कर रहे हैं, उससे सृजनात्मक विकास नहीं हुआ या हो रहा, बल्कि विश्व गहराते जलवायु-परिवर्तन संकट (Climate-change) और असमय प्रलय की ओर बढ़ रहा है, इसलिए आवश्यक है कि जीवन के अस्तित्व की रक्षा के लिए नैष्ठिक प्रयास किए जाएं स्तर पर, वे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय या वैश्विक।

इन प्रयासों का विवेचन करने से पूर्व आइए जरा प्रदूषण, उसके प्रकारों व उनके घातक परिणामों की पड़ताल कर लें-

पर्यावरण (Environment) का अर्थ


पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘परि’ + ‘आवरण’। ‘परि’ का अर्थ है- चारों ओर और ‘आवरण’ का अर्थ है-घेरा। वह घेरा जो हमारे चारों ओर व्याप्त है और जिसमें हम जन्मते, बढ़ते व जीवनयापन करते हैं, पर्यावरण कहलाता है। अंग्रेजी शब्द Environment भी French भाषा से व्युत्पन्न और यौगिक शब्द (Compound Wrd) है- Enviros =En +Virons । en = in अर्थात अंदर तथा virous = circuit = surrounding अर्थात घेरा। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (क) के अनुसार, ‘प्रभावकारी दशाओं का वह संपूर्ण योग, जिसमें जीवधारी निवास करते हैं, पर्यावरण कहलाता है।’

ये पर्यावरण दो प्रकार का होता है-
1. भौतिक पर्यावरण – जैसे-भूमि, जल, वायु, आकाश, पर्वत, पठार, नदी, वन, समुद्र, सूर्य, प्रकाश आदि।

2. सांस्कृतिक पर्यावरण – जैसे-परिवार, समाज, राष्ट्र, भाषा, कला, संस्कृति, साहित्य, शिल्प, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि।

पर्यावरण का क्षेत्र


मोटे तौर पर पर्यावरण को निम्न चार भागों में बांटा गया है-

1. स्थल मंडल (Lithosphere)
2. वायुमंडल (Atmosphere)
3. जल मंडल (Hydrosphere)
4. जीव मंडल (Biosphere)

पारिस्थितिक-तंत्र व पारिस्थितिकी (Eco-system and Ecology)- अर्नेस्ट हिकल के अनुसार ‘जैविक और अजैविक समूह के पारस्परिक अंतर्संबंध व प्रक्रिया से निर्मित तंत्र को पारिस्थितिक-तंत्र व इसका अध्ययन करने वाले विज्ञान की शाखा को पारिस्थितिकी कहते हैं।’

पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution) –


ओडम के अनुसार, ‘वातावरणीय जल, वायु, मिट्टी आदि के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में अवांछनीय और हानिकारक परिवर्तन ही प्रदूषण है।’

अध्ययन की सुविधा के लिए पर्यावरण प्रदूषण को निम्न छह प्रकारों में विभाजित किया गया है-

1. वायु प्रदूषण (Air Pollution)
2. जल प्रदूषण (Water Pollution)
3. मृदा प्रदूषण (Land Pollution)
4. ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution)
5. रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radio-active Pollution)
6. इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण (Electronic Pollution)

1. वायु प्रदूषण (Air Pollution)


‘पृथ्वी के चारों ओर उपस्थित गैसों के समूह के घेरे अर्थात् वायुमंडल में अवांछनीय और हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति वायु प्रदूषण है।’वायुमंडल की सामान्य संरचना निम्नानुसार है-

क्र.

गैस/अवयव

प्रतिशत

1

नाइट्रोजन

78.09

2

ऑक्सीजन

20.95

3

आर्गन

0.93

4

कार्बन डाइऑक्साइड

0.03

5

नियान, हीलियम मीथेन अन्य गैस

अत्यल्प

6

भूमि के निकट कुछ कण जैसे- धूल, परागकण, बीजाणु आदि

अत्यल्प

 



प्रकृति विभिन्न चक्रों के माध्यम से इनका सांगठनिक संतुन बनाए रखती है-

1. नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle)
2. ऑक्सीजन चक्र (Oxygen Cycle)
3. कार्बन चक्र (Carbon Cycle)

इस वायुमंडल को ताप परतों या तापमंडलों में बांटा गया है-

1. क्षोभ मंडल (Troposphere 0-18 km)
2. समताप मंडल (Stratosphere 10-50 km)
3. मध्य मंडल (Mesosphere 50-80 km)
4. आयनमंडल (Ionosphere 80-400 km)
5. बर्हिमंडल (Exosphere above 400-)

वायु प्रदूषण स्रोत (AirPollution Sources)


वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले दो स्रोत हैं, जिनमें गैसीय या कणिक वायु प्रदूषक निकलते हैं-

(क) प्राकृतिक स्रोत-जैसे-
1. ज्वालामुखीय उद्गार – धुआं, राख, कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य
2. उल्का पिंड-धरती के वायुमंडल या धरती से टकराने वाले क्षुद्रग्रह या उल्कापिंडों के जलने से निकली गैसें, धूलकण इत्यादि।
3. पौधों द्वारा निःसृत्त अल्प कार्बन डाइऑक्साइड (हालांकि पौधे दिन में ऑक्सीजन देकर स्वयं प्रकृति को शुद्ध करते हैं)।
4. सूक्ष्मजीव अपघटन से भी सड़न पैदा करने वाली गैसें निकलकर वायु प्रदूषण फैलाती हैं।

वायु प्रदूषण

(ख) मानवजनित स्रोत


1. धुआं उगलती औद्योगिक चिमनिया
2. ऑटोमोबाइल, मोटर वाहन
3. घरेलू दहन
4. बढ़ती जनसंख्या
5. वन विनाश
6. कचरा निपटान
7. अनियंत्रित खनन
8. रेडियोधर्मी अपशिष्ट

कुछ प्रमुख वायु प्रदूषक निम्न प्रकार हैं-

क्र.

प्रमुख वायु प्रदूषक

स्रोत

1

कार्बन मोनोऑक्साइड

ईंधन दहन, अपूर्ण दहन

2

कार्बन डाइऑक्साइड

जीवाश्म ईंधन/ काष्ठ आदि दहन

3

सल्फर के ऑक्साइड

जीवाश्म ईंधन/ काष्ठ आदि दहन

4

मीथेन

जीवाणु अपघटन/बायोगैस

5

नाइट्रोजन ऑक्साइड

दहन

6

क्लोरो-फ्लोरो कार्बन

शीतल (एयरकंडीशनर, फ्रिज)

7

हैलो कार्बन्स

अग्निशामक यंत्र

8

विभिन्न धूलकण

विभिन्न उद्योग, निर्माण, विस्फोट

 



वायु प्रदूषण के दुष्परिणाम


1. खराब मानव स्वास्थ्य, असमय मौतें- किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

बंद कमरे में सांस घुटी जाती है
खिड़की खोलूं तो जहरीली हवा आती है।


वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न श्वसन रोग, ऊतक क्षय दमा (Asthama) कैसंर, टी.बी., अवसाद, दृष्टिदोष, कंठावरोध, नेत्रों में जलन, छींक, खांसी, उल्टी, केंद्रीय तंत्रिकातंत्र (CNS) के रोग आदि होते हैं। विभिन्न उद्योगों के सूक्ष्म धूलकण निम्न बीमारियों को जन्म देकर विभिन्न श्रमिकों, निकट रहवासियों की असमय मौत, खराब स्वास्थ्य का कारण बनते हैं। जैसे-

क्र.

धूल के प्रकार

रोग

1

कोयले के धूल कण

एन्थ्राकोसिस (Anthracosis)

2

रेत

सिलिकोसिस (Silicosis)

3

लौह धूल

लौहमयता (Siderosis)

4

एस्बेस्टास

एस्बेस्टोसिस (Asbestosis)

5

कपास धूल

बिसिनोसिस (Byssinosis)

6

गन्ने की धूल

बेगासोसिस (Bagassosis)

7

अन्न धूल

कृषक फुफ्फुस (Farmer’s Lung)

 



2. वैश्विक तापवृद्धि और जलवायु परिवर्तन (Global Warming & Climate Change) –


पृथ्वी का औसत तापमान 15 डिग्री C है, किंतु बढ़ती जनसंख्या व वायु प्रदूषण के कारण इस ताप में लगभग 1 डिग्री C की वृद्धि हो गई है। यह वृद्धि 2 डिग्री C होने के पर अनियंत्रित हो जाएगी। यदि यह वृद्धि 5-6 डिग्री C तक हो जाए तो पृथ्वी पर-

1. ध्रुवीय बर्फ पिघलने से समुद्र के तटीय इलाके व कई द्वीप, देश डूब जाएंगे। कुछ समय पूर्व द्वीप देश मालदीव ने विश्व समुदाय का ध्यान खींचने के लिए समुद्र के भीतर अधिवेशन ‘त्राहिमाम्’ करके वैश्विक चेतना को झकझोरा था।

2. जीवन लुप्त हो जाएगा। जीवों की प्रजनन क्षमता, गर्भधारण शक्ति, जीवनी-शक्ति नष्ट हो जाएगी। प्रायः समस्त जीव-जंतु पेड़-पौधे मर जाएंगे।

3. अत्यधिक ताप से तमाम जल-स्रोत सूख जाएंगे, जिससे जल संकट गहरा जाएगा।

4. कृषि भूमि बंजर हो जाएगी, जिससे फसल पकने की प्रक्रिया पूरी तरह प्रभावित होगी।

5. बचे-खुचे मनुष्यों व प्राणियों का स्वास्थ्य बहुत खराब होगा, जीना भी दूभर हो जाएगा।

6. देश-समाज में अपराध, असंतोष, विद्रोह, गृह-कलह और गृहयुद्ध की घटनाएं भी बढ़ जाएंगी।

7. पृथ्वी जीवित ग्रह की बजाय मृत ग्रह हो जाएगी।

3. ओजोन परत क्षय (Ozone Layer Depletion) –


पृथ्वी के चारों ओर स्थित वायुमंडल के समताप मंडल (10-40 कि.मी.) के एक हिस्से 15-35 कि.मी. के बीच ओजोन गैस(Ozone gas O क्यूब) की एक परत पाई जाती है। यह गैस ऑक्सीजन गैस से ही बनती है। इसका रंग हल्का नीला व गंध सड़ी मछली की तरह होती है। यह हमारे लिए रक्षक आवरण है, क्योंकि यह सूर्य से आने वाले त्वचा कैंसरकारी, मोतियाबिंदकारी, हानिकर पराबैंगनी विकिरण (Ultra-violet Radiation) को अवशोषित कर सिर्फ लाभकारी विकिरणों अवरक्त (Infra-red) व दृश्य प्रकाश (VisibleRays) को ही धरती तक आने देती है।

परंतु ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ. जॉय फॉरमैन के 30-35 साल के शोध से 1950 में ज्ञात हुआ कि अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप से भी बड़े आकार के क्षेत्र में ओजोन परत की सांद्रता में 50-60 प्रतिशत कमी आ गई है। इसे ‘ओजोन छिद्र’ (Ozone Hole) का नाम दिया गया।

इससे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए ओजोन क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन को सीमित करने के लिए 16 सितंबर, 1987 को 33 देशों के प्रतिनिधियों ने मांट्रियल (कनाडा) प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। तभी से इस दिन को को ‘ओजोन संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

ओजोन परत की क्षरण प्रक्रिया के कारण निम्न हैं-

i. क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (C.F.C.)- रेफ्रिजरेटरों, एयरकंडीशनर्स एवं स्प्रे-कैन डिस्पेंसर आदि में प्रयुक्त होने वाली C.F.C. गैसें।
ii. सल्फेट एयरोसाल- औद्योगिक क्षेत्रों से उत्सर्जित।
iii. नाइट्रोजन एयरोसाल- सुपरसोनिक विमानों से निसृत।
iv. पराबैंगनी विकिरण (UV-Rays)- सूर्य का एक विकिरण।

4. अम्ल वर्षा (Acid Rain)


सामान्यतः वर्षा जल न तो अम्लीय होता है, न क्षारीय, बल्कि शुद्ध रूप से उदासीन होता है। उसका Ph (पीएच) 7 होता है, किंतु सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फर ट्राइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि प्रदूषक गैसों की जलवाष्प से क्रिया के कारण वह अम्लीय हो जाता है। अम्लीय वर्षा जल का गिरना ही अम्ल वर्षा है।

SO2 सल्फर डाइऑक्साइड + O ऑक्सीजन = SO3 सल्फर ट्राइऑक्साइड SO3 सल्फर ट्राइऑकस्इड +H2O जल = H2SO4 सल्फ्यूरिक अम्ल (तेजाब), NO2 नाइट्रोजन ऑक्साइड +H2O= जल HNO3 नाइट्रिक अम्ल

इस तेजाबी वर्षा से निम्न हानियां हैं -1. त्वचा रोग, 2. खराब स्वास्थ्य, 3. खराब फसल, 4. भू-उर्वरता नष्ट करना, 5. वृक्षों, पर्वतों, स्मारकों, भवनों का असमय क्षरण।

5. दुर्घनाजनित वायु प्रदूषण (Accidental Air Pollution) –


इसमें बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं। जैसे-
1. भोपाल गैस कांड (मेथिल आइसोसायनेट MIC + फास्जीन गैस रिसाव) (2-3 दिसंबर)
2. चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना, रूस (26 अप्रैल, 1986)

6. जीव विलुप्तिकरण (Extinction of Various Creatures) -


प्रकृति का हर जीव खाद्य-श्रृंखला व प्राकृतिक चक्रों की महत्वपूर्ण कड़ी होता है। ऐसे में प्रदूषण से विलुप्ति के कगार पर जाने वाले अथवा विलुप्त जीवों ने प्रकृति के समक्ष खाद्य श्रृंखला, प्राकृतिक चक्रीकरण एवं नियंत्रण को बुरी तरह प्रभावित किया है।

जल प्रदूषण

2. जल प्रदूषण/जल संकट (Water Pollution/Crisis)


“जल (H2O) में सामान्यतः कुछ लाभाकरी खनिज लवण संतुलित आहार के कुछ अंश के रूप में विद्यमान रहते हैं, परंतु इसमें जहरीले रसायनों, कीटाणुओं, अस्वच्छता आदि की उपस्थिति ही जल प्रदूषण है।”

पृथ्वी पर लगभग 70 प्रतिशत पानी है जिसका 3 प्रतिशत ही पेय रूप में है, बाकी अपेय/अशुद्ध है। इस 3 प्रतिशत पेयजल का लगभग 90 प्रतिशत से भी अधिक भाग भूगर्भ जल के रूप में है, जिसका जल-स्तर अधिकाधिक और अविवेकपूर्ण दोहन, अपव्यय और संरक्षणहीनता और अपुन्रभरण के कारण खतरनाक रूप से घट रहा है और मोटरपंपों, ट्यूबवेलों से निकाला गया भूगर्भ जल तेजी से प्रदूषित हो रहा है।

नदी, तालाबों, झीलों आदि का भी जल निम्न कारणों से तेजी से प्रदूषित हो रहा है-

1. औद्योगिक कचरा – उद्योगों के खतरनाक विषैले रसायनों से युक्त अपशिष्ट पादर्थ बड़े पैमाने पर जल प्रदूषण फैला रहे हैं।

2. घरेलू कचरा/दिनचर्या – हम जाने अनजाने रोज सैकड़ों लीटर शुद्ध जल को अशुद्ध बनाते हैं, जैसे-फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट द्वारा, साबुन-सोडा, शैंपु, द्वारा सेप्टिक टैंक द्वारा, डिटरजेंट द्वारा, रंजकों, द्वारा, कृषि-कार्य में प्रयुक्त कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों आदि के द्वारा।

जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव –


जल प्रदूषण के निम्न प्रकार हैं-

1. प्रदूषित जल के सेवन से डायरिया, पेचिश, टायफाइड, पीलिया, टी.बी. आंत्ररोग, श्वसन रोग आदि उत्पन्न होते हैं। फ्लोराइडयुक्त जल के सेवन से हड्डियां विशेषकर पैरों की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। सीसा आदि की उपस्थिति से असमय बुढ़ापा और मौत की स्थितियां बनती हैं।

2. जल संकट।
3. वनस्पति क्षय।
4. भू-उर्वरता में कमी।
5. जीव विलुप्तिकरण।

मृदा प्रदूषण

3. भूमि प्रदूषण (Land Pollution)


सामान्य स्थिति में भूमि मूल जीवनदायी है, किंतु प्रदूषण की स्थिति में भूमि में हानिकारक अवांछनीय पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। प्रदूषित जल एवं कचरा इसके प्रमुख कारण हैं।

भूमि प्रदूषण के कारण-


1. औद्योगिक कचरा,
2. घरेलू कचरा,
3. कीटनाशक, खरपतवार नाशक,
4. नाभिकीय परीक्षण/ परमाणु विस्फोट।

प्रभाव


1. भूमि की ऊर्वरता कम या नष्ट हो जाती है।
2. उत्पन्न पौधे, औषधियां विषाक्त हो जाती हैं।
3. भूमि पर प्रवाहित जल एवं उसके द्वारा भू-गर्भ तक पहुंचने वाला जल भी प्रदूषित हो जाता है।

4. ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution)


अप्रिय और हानिकर उच्च तीव्रता की ध्वनि की उपस्थिति ही ध्वनि प्रदूषण है। शोर/ध्वनि को ‘डेसिबल’ (dB) से नापते हैं।

सामान्य श्रवण शक्ति वालों के लिए 25-30 डेसिबल की ध्वनि पर्याप्त होती है। 80 या इससे अधिक डेसिबल की ध्वनि श्रवण क्षमता पर बुरा असर डालती है। इससे स्थाई बहरापन भी हो सकता है।

ध्वनि की आवृत्ति नापने की इकाई को ‘हर्ट्ज’ कहते हैं। मनुष्य का श्रव्य परास 20 से 2000 हर्ट्ज है। इससे कम या अधिक हर्ट्ज आवृत्ति वाली ध्वनि को मनुष्य नहीं सुन सकता।

ध्वनि के स्रोत, उनकी तीव्रता तथा उनका स्तर (प्रकृति)

क्र.

स्रोत

तीव्रता (डेसीबल में)

स्तर प्रकृति

1

फुसफुसाहट/बुदबुदाहट

10-25

शांत

2

धीमा रेडियो/ घड़ी की टिक-टिक

30-40

मधुर

3

वार्तालाप

50-60

सामान्य

4

हल्का यातायात

70

शोरगुल

5

व्यस्त बस्तियां/प्रिटिंग प्रेस

80

शोरगुल

6

मोटर साइकिल

90

प्रबल

7

जेट इंजन/स्टीरियो डिस्को संगीत

105

बहुत प्रबल

8

जेट याद/सायरन व हॉर्न

150

पीड़ाजनक

9

अंतरिक्ष यान/मिसाइल उड़ान

150-170

पीड़ाजनक

 



नोट : 80-90 डेसिबल के ऊपर की ध्वनि तीव्रता कष्टदायी होती है।

शोरगुल प्रदूषणविश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दिन में 45 डेसिबल तथा रात में 35 डेसिबल तक की ध्वनि को कर्णप्रिय और मानवीय स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक सुरक्षित बताया है।

स्वीकार योग्य ध्वनि सीमा


क्र.

क्षेत्र

तीव्रता (डेसिबल में)

1

स्टूडियो

30-38

2

सभा भवन

34-38

3

विद्यालय

38-42

4

प्रार्थना स्थल

38-42

5

चिकित्सालय

38-42

6

आवास

34-42

7

रेस्टोरेंट

50

8

स्टोर्स/सुपरमार्केट

50-54

9.

कार्यालय

46-50

10

स्पोर्टस हॉल/जिम्नेजियम/स्विमिंग पूल

42-46

11

होटल

46-50

12

वर्कशॉप्स

70

 



ध्वनि प्रदूषण के कारण-


1. अनेक प्रकार के वाहन जैसे-मोटरकार, बस, ट्रेन, हवाई जहाज आदि।
2. ध्वनि विस्तारण यंत्र (Loudspeaker)
3. डीजे साउंड (DJ Sound)
4. तेज बजते रेडियो/टीवी
5. मशीनों की आवाजें

ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव-


1. श्रवणशक्ति दोष,
2. जीवों की उपापचय क्रिया में बाधा,
3. अनिद्रा,
4. चिड़चिड़ापन/पागलपन,
5. अवसाद/आत्महत्या की प्रवृत्ति,
6. उच्च रक्तचाप,
7. अपराध/हिंसा की प्रवृत्ति,
8. गर्भपात/जननक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव

5. रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radio-active Pollution)


कुछ विशेष तत्वों से अदृश्य रेडियो-सक्रिय विकिरण निकलते रहते हैं, जिन्हें रेडियोधर्मी पदार्थ कहते हैं. इनका उपयोग परमाणु बम बनाने, नाभिकीय विस्फोट/परीक्षण करने, परमाणु ऊर्जा घर में बिजली पैदा करने में होता है।

रेडियोएक्टिव प्रदूषणइन समस्त प्रक्रियाओं में वायुमंडल में हानिकारक रेडियोधर्मी विकिरण अल्फा, बीटा, गामा, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन कण उत्पन्न होते हैं, जिनसे उत्पन्न प्रदूषण से निम्न हानियां हैं

1. खराब स्वास्थ्य, घटती जीवनी शक्ति,
2. अंगों की घटती कार्यक्षमता,
3. कैंसर, ट्यूमर,
4. आनुवांशिक रोग,
5. बंधत्व,
6. अपंगता, विकलांगता,
7. उपापचय प्रक्रिया विकृति,
8. असमय गर्भपात

6. इलेक्ट्रॉनिक –प्रदूषण (Electronic Pollution)


इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से निकलने वाली अदृश्य इलेक्ट्रॉनिक विकिरणों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण तथा प्लास्टिक को पुनः चक्रित (Re-cycle) कर पुनः प्रयुक्त (Reuse) न कर फेंक देने/ अस्वीकृत (Refuse) करने की आदत ने प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाकर पर्यावरण का बहुत नुकसान किया है।

निवारण के उपाय –

उपर्युक्त समस्त प्रकार के पर्यावरण प्रदूषणों, संकटों से बचने के लिए निम्न स्तरों पर विभिन्न प्रयास किए जाने चाहिए-

1. व्यक्तिगत प्रयास
ये प्रकाश व्यक्तियों द्वारा किए जाने चाहिए।

1. हर व्यक्ति कम-से-कम 10 पेड़ लगाए।
2. व्यक्तिगत स्तर पर पानी की बचत करें।
3. एयरकंडीशनर से 25 डिग्री C से नीचे ताप लाने से बचे।
4. सामान्य बल्बों की जगह सी.एफ.एल. बल्ब का प्रयोग करें।
5. मोटर वाहनों के बदले साइकिल व सामूहिक वाहन बस ट्रेन आदि का प्रयोग बढ़ाएं।
6. स्वयं पर्यावरण-साक्षर (Eco-literate) बने न बनाएं।
7. पर्यावरण का संरक्षण करें। न प्रदूषित करें, न किसी को प्रदूषित करने दें।

इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण2. सामुदायिक प्रयास
1. ग्रामों, शहरों की विभिन्न कॉलोनियों, वार्डों में रहने वाले लोग सामूहिक रूप से वृक्षारोपण करें।
2. अपशिष्ट उपचार की वैज्ञानिक विधि अपनाएं।
3. पेड़ों को कटने से बचाएं।
4. पर्यावरण जागरुकता फैलाएं।
5. पर्यावरण संबंधी बैठक, प्रतियोगिता, सम्मेलन आदि करते रहें। बच्चों को भी प्रोत्साहित और पुरस्कृत करें।
6. प्लास्टिक व पॉलीथिन का विवेकपूर्ण प्रयोग करें, पुनः चक्रित Recycle करें, Reuse करें, Refuse नहीं।
7. भूगर्भ जल का स्तर सुधारने, वर्षा जल संग्रहण (Rain Water Harvesting), छत जल संग्रहण (Roof Water Harvesting), वृक्षारोपण, जलडबरी निर्माण, तालाब, निर्माण तालाब, संरक्षण को अपनाएं व सघन रूप से प्रचारित-प्रसारित करें।
8. जैविक खाद का प्रयोग करें, जहरीले कीटनाशकों के बदले जैविक हरित तकनीक प्रयोग करें।
9. ऊर्जा का विवेकपूर्ण प्रयोग करें।
10.पर्यावरण से संबंधित शास्त्रीय बातों को भी प्रचारित, प्रसारित करें। जैसे-
11. माता भूमिः पुत्रों अहं पृथ्वियाः। -अथर्ववेद, 12.1.12
(भूमि माता है, हम माता के पुत्र हैं।)

12. दशकूप समावापी-दश वापी समो हदः।
दश हद समापुत्रः दश समो द्रुमः –मत्स्य पुराण
(दस कुओं के बराबर एक बावली, दस बावली के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के समान एक पुत्र और दस पुत्रों के समान एक रोपित वृक्ष होता है।)

13. पवग गुरु, पाणी पिता, माता धरती महतु। - जपुजी साहब, 15.1
(पवन गुरु है, पानी पिता है, धरती माता है)

14. छिति जल पावक गगन समीरा,
पंच रचित यह जीव शरीरा। - श्रीरामचरित मानस

15. Thy will be done on Earth – bible Mathew 6.9/10
(परमेश्वर तेरी ही आज्ञा का पृथ्वी पर अनुपालन हो।)

16. भूमिः आपः अनलो अनिलो खं मनो बुद्धि एव च।
अहंकार इतीयं में भिन्नाः प्रकृति अष्टधा। -गीता

(मेरी प्रकृति अष्टधा है-1. भूमि, 2. जल. 3. वायु, 4. अग्नि, 5. आकाश, 6. मन, 7. बुद्धि, 8. अहंकार।)

17. अल्लाह नुरूस्भावातिवSलअर्दि। -कुरान शरीफ 24/35(अल्लाह प्रकाश है, पृथ्वी और आकाश का।)

18. अश्वत्थमेकं पिचुमंदेकं न्य्गरोधमेकं दश पुष्पजाति।द्वे-द्वे दाड़िमातुलुंगे पंचाम्ररोपी नरकं न याति।।
(एक पीपल, एक नीम, एक बरगद, दस पुष्पीय पौधे, दो अनार, दो संतरे, पांच आम के वृक्षों का रोपण करने वाला मनुष्य नरक नहीं जाता।)

19. प्राचीन ग्रथों में विभिन्न ग्रहों और नक्षत्रों की प्रसन्नता, कृपा आदि प्राप्ति के लिए वृक्षारोपण का विधान है। उसे प्रचारित-प्रसारित करें। कितने धन्य है हमारे ऋषि-मुनि चिंतक...ग्रह-नक्षत्र को आधार बनाकर ही सही, पर पर्यावरण की चेतना जगाने का काम वर्षों पूर्व कर दिया था।

20. पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न पर्व मिल-जुलकर मनाएं। प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों का रोचक आजोन करें। जैसे-

तिथि समय

पर्यावरण दिवस पर्व

02 फरवरी

विश्व जलग्रहण दिवस (World Wetland Day)

21 मार्च

विश्व वानिकी दिवस (International Forest Day)

22 मार्च

विश्व जल दिवस (World Water Day)

08 मई

प्रवासी पक्षी (Migrating Birds Day)

22 मई

विश्व जैव-विविधता दिवस (Biodiversity Day)

01 जून

विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day)

05 जून

विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)

10 जून

विश्व भूगर्भ जल दिवस (Underground Water Day)

1-7 जुलाई

राष्ट्रीय वन-महोत्सव (National Forest Festival)

16 सितंबर

ओजोन संरक्षण दिवस (Ozone Conservation Day)

03 अक्टूबर

विश्व प्रकृति दिवस (World Nature Day)

06 अक्टूबर

विश्व वन्यप्राणी दिवस (World Wildlife Day)

1-7 अक्टूबर

विश्व वन्यजीव सप्ताह (World Wilidlife Week)

26 नवंबर

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (Environment Conservation Day)

 



3. राष्ट्रीय प्रयास –


भारत सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, जल संरक्षण अधिनियम बनाकर इनके संरक्षण के लिए प्रयास किया है। गंगा एवं यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने का भी प्रयास जारी है, परंतु इस सबके लिए नागरिकों की जागरुकता और सहभागिता की महती आवश्यकता है।

4. वैश्विक प्रयास-


विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) अंतर-महाद्वीपीय जलवायु परिवर्तन समिति (IPCC), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) आदि संस्थाएं, पर्यावरण संस्थाएं पर्यावरण संरक्षण, जागरूकता आदि के लिए काम कर रही हैं। फिर भी कोपनहेगन सम्मेलन, कानकुन सम्मेलन से वे अपेक्षित परिणाम नहीं निकले, जिनकी विश्व को आज भी दरकार है।

अंत में निम्न पंक्तियों के साथ वृक्षारोपण व पर्यावरण जागरूकता का आह्वान है-

पृथ्वी हमारी सुंदर ग्रह, गृह उपवन-उद्यान है,
इसकी रक्षा करने में हम सबका कल्याण है।
पृथ्वी नहीं रही तो हम ही कहां रहेंगे,
चेतनाहीनता मौत है...जागरण ही उत्थान है।।


आगर हिंदी साहित्य समिति, मुंगेली, जिला, बिलासपुर-495334 (छ.ग.)

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