पर्यावरण : सामाजिक मुद्दे

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पर्यावरणीय समस्याओं के अनेक कारणों ने जीवनयापन की निर्भरता के अन्य आयामों को उजागर कर दिया है, जिससे समस्त नागरिकों को जीवनयापन हेतु सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। पर्यावरण जीव-जंतुओं, मनुष्य आदि को प्रभावित करता आया है। इसमें असंतुलन होने पर यह विकराल रूप धारण कर लेता है, जैसे गंभीर बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं- बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी, गर्म हवा, ठंडी हवा, भूस्खलन, भू-क्षरण, मरुस्थलीयकरण इत्यादि ओजोन परत को भी प्रभावित कर रहा है। मानव जीव-जगत् का विकसित सदस्य है। प्राचीनकाल से ही मानव और प्रकृति का घनिष्ठ संबंध रहा है। आदिकाल से ही सभ्यता के विकास में प्रकृति ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पर्यावरण बाहरी प्रभावों की वह संपूर्ण श्रेणी है, जो किसी जीव को प्रभावित करती है। वह स्थान जहां कोई जीव रहता है, उसे आवास कहा जाता है।

जहां पर्यावरणीय अवस्थाओं का विशेष समुदाय पाया जाता है, उसे पर्यावरणीय संकुल कहा जाता है। पर्यावरण उन समस्त भौतिक एवं जैविक दशाओं का योग है, जो किसी जीव की अनुक्रियाओं के लिए उत्तरदायी होता है। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि वायुमंडल के चारों ओर फैले हुए वातावरण को हम पर्यावरण कहते हैं।

मनुष्य द्वारा ही प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है। मनुष्य ने ही प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनेक बेहतर प्रयास किए हैं। अब ये प्रयास धीरे-धीरे प्रकृति में परिवर्तन का कारण बन गए हैं। मनुष्य ही प्रकृति को संवारता है और उसे नष्ट भी करता है, जिससे वह जाने-अनजाने में स्वयं प्रभावित होता है।

आधुनिकता के नाम पर आज मनुष्य प्रकृति का स्वामी बनने के प्रयास में लगा हुआ है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु क्रूरता से वनों को नष्ट कर दिन-प्रतिदिन नई-नई इमारतें, सड़कें, भवन, कारखानें आदि बनाता जा रहा है, जिससे पर्यावरण में असंतुलन का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिसे हम आज ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के नाम से जानते हैं। जनसंख्या में निरंतर असाधारण वृद्धि एवं औद्योगिक व कृषि विकास के कारण अनेक तरह की पर्यावरणीय समस्याओं ने जन्म लिया है।

औद्योगिक उत्पादन बढ़ने के साथ ग्रीन टेक्नोलॉजी पर भी जोर दिया जा रहा है, जिससे पर्यावरण के विकास को बढ़ावा मिला है। वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि मनुष्य को आर्थिक उपलब्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए। मनुष्य के अंदर यह अवधारणा होनी चाहिए कि बिना पर्यावरण को क्षति पहुंचाए आर्थिक उन्नति को प्राप्त करना चाहिए, जिससे विकास की गति में भी अवरोध न हो और प्राकृतिक संतुलन भी बनाया जा सके। यह तभी संभव हो पाएगा जब मनुष्य स्वयं इसके प्रति जागरूक हो और पर्यावरण की महत्ता को समझे।

पर्यावरणीय समस्याओं के अनेक कारणों ने जीवनयापन की निर्भरता के अन्य आयामों को उजागर कर दिया है, जिससे समस्त नागरिकों को जीवनयापन हेतु सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। पर्यावरण जीव-जंतुओं, मनुष्य आदि को प्रभावित करता आया है। इसमें असंतुलन होने पर यह विकराल रूप धारण कर लेता है, जैसे गंभीर बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं (बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी, गर्म हवा, ठंडी हवा, भूस्खलन, भू-क्षरण, मरुस्थलीयकरण इत्यादि) यह ओजोन परत को भी प्रभावित कर रहा है, जिसमें सामान्य प्राणी के समक्ष गंभीर संकट रहा है। वर्तमान में यह सामाजिक समस्या का रूप ले रहा है।

1. जनसंख्या में निरंतर की समस्या बात देश की प्रगति में अवरोध की भांति खड़ी है, क्योंकि इससे निरंतर नगरों का विस्तार होने से मांग की तुलना में ऊर्जा की आपूर्ति नहीं हो रही है।

2. तीव्र औद्योगीकरण के कारण प्रतिदिन नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना हो रही है, जिनके लिए वनों को तीव्र गति से नष्ट किया जा रहा है। इससे कहीं बाढ़ एवं कहीं अकाल की समस्या सामान्य हो गई है। परिणामस्वरूप हजारों की संख्या में लोग शरणार्थी का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।

3. पारंपरिक ऊर्जा के साधन कोयला, पेट्रोल, अन्य जीवाश्म, ईंधन आदि के भंडार निरंतर कम होते जा रहे हैं।

4. प्राकृतिक आपदाओं तथा बहुउद्देशीय बांध-निर्माण योजनाओं के कारण पुनर्वास की समस्या महत्वपूर्ण होती है। इसमें व्यक्तियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापित किया जाता है, जिससे उनकी संस्कृति और जीवनशैली में परिवर्तन हो जाता है।

5. गरम होती धरती, पर्यावरण को निरंतर प्रभावित कर रही है, जिससे समुद्र व वनों पर जीवन बसर करने वाली विश्व की आधिकांश जनसंख्या को अत्यधिक कष्टों का सामना करना पड़ रहा है, इससे उनके कार्यों में शिथिलता आ गई है।

6. पर्यावरण में असंतुलन के कारण नहरों के जल में लवण की मात्रा बढ़ती जा रही है, जिससे धरती बंजर होकर अनुपयोगी होती जा रही है, जिसके कारण कृषकों को अपने मूल निवास स्थान से पलायन करना पड़ रहा है।

7. औद्योगिक देशों में अम्लीय वर्षा सबसे बड़ी समस्या है। अम्लीय वर्षा या तेजाबी वर्षा वायु प्रदूषण का एक विनाशकारी प्रभाव है। पर्यावरण पर अम्लीय वर्षा के प्रभाव अत्यंत घातक व दूरगामी होते हैं। इसका जल मनुष्य, जंतु, वनस्पति व मृदा के लिए हानिकारक होता है।

8. पर्यावरण प्रदूषण के कारण वायुमंडल में ओजोन गैस की कमी हो जाती है। ओजोन गैस ही ऑक्सीजन गैस के रूप में मानवीय श्वास के रूप में प्रयोग होती है। ओजोन परत में क्षरण पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरे की घंटी है। ओजोन के क्षरण से भयावह परिणाम पृथ्वीवासियों को भुगतने होंगे। सूर्य की पराबैंगनी किरणों के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है, जिससे वनस्पति व जीव-जंतु झुलस जाते हैं। आंखों को नुकसान तथा त्वचा के कैंसर की संभावना बढ़ रही हैं। जन सामान्य में ओजोन संरक्षण के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रतिवर्ष 16 सितंबर को ओजोन परत संरक्षण दिवस मनाया जाता है।

9. ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के कारण वातावरण में अनेक दुष्प्रभावों की आशंका है। इनमें भूमंडल के तापमान में वृद्धि, समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि, वनस्पति तथा प्राणियों के जीवन पर संकट, कृषि पर प्रभाव, मानव जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है।

10. भारत कृषि मानसून पर आधारित होता है और मानसून अनिश्चित है। पर्यावरण में असंतुलन के कारण ऋतु-चक्र बदलता रहता है। इसका सर्वाधिक प्रभाव कृषि पर पड़ सकता है। इस हेतु मानसून संरचनाओं का नव-निर्माण कर कृषि की प्रणालियों में परिवर्तन किया जा सकता है।

पर्यावरण और मनुष्य के मध्य आदिकाल से ही घनिष्ठ संबंध रहा है। अतः पर्यावरण मानव को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। आधुनिक मानव समाज के वैज्ञानिक प्रयोगों के उत्पादों से मानव स्वयं को अलग रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगों से पर्यावरण पर पड़ने वाले व्यापक प्रभावों की भी अनदेखी नहीं कर सकते, क्योंकि मानव जीवन के अस्तित्व को बनाए रखना आवश्यक है। युद्धकालिक या सामाजिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत शरणार्थियों को थोड़ी-बहुत सहायता फिर भी मिल जाती है, परंतु पर्यावरण शरणार्थियों को पूरे संसार में किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिलती। सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। साथ-ही-साथ मनुष्य को स्वयं पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूक होना चाहिए। इसके लिए स्कूलों और महाविद्यालयों में भी पर्यावरण शिक्षा दी जा रही है, ताकि बच्चे पर्यावरण के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर सकें।

संदर्भ


1. पर्यावरण अध्ययन, डॉ. रतन जोशी
2. पर्यावरण अध्ययन, डॉ. नरेंद्र गल सुराणा, डॉ. राजकुमारी सुराणा
3. पर्यावरण विज्ञान, डॉ. विजय कुमार तिवारी
4. पर्यावरण, डॉ. शिवेशप्रताप सिंह

सहायक प्राध्यापक (वाणिज्य)
कल्याण पी.जी. कॉलेज, भिलाई

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