पर्यावरण विनाश की कीमत चुका रहा बुंदेलखंड

20 Apr 2012
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जो हाल यहां पानी का मई-जून की भीषण गर्मियों में होता था इस बार अप्रैल में ही देखने को मिल रहा है। जालौन जिले पर नजर डालें तो पानी के संकट की एक बानगी नजर आएगी। इस जिले में कुल 1556 तालाब हैं जिसमें 557 आदर्श तालाब हैं जो 2009 से 2011 के बीच बनवाए गए थे लेकिन इनको बनवाते समय पानी भरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई जिसके चलते अब वे बदहाल हैं।

महोबा, 19 अप्रैल। बुंदेलखंड अब पर्यावरण विनाश की कीमत चुकाने लगा है। पहले पानी का जो संकट जून में पैदा होता था वह अब सामने है। पिछले साल के मुकाबले पानी का भू-जल स्तर पंद्रह फुट नीचे जा चुका है और ताल तालाब सूखने लगे हैं। पिछली बार मानसून ठीकठाक रहा पर पिछले एक दशक में जिस तरह बुंदेलखंड के प्राकृतिक संसाधनों को लूटा गया उसके चलते पानी संचय नहीं किया जा सका जिसका नतीजा सामने है। कीरत सागर उन तालाब में एक है जो सैकड़ों साल से इस अंचल के लोगों की प्यास बुझाने के साथ उनका जीवन बना हुआ था पर अब यह खुद जीवन मांग रहा है। पानी का हाल यह है कि कहीं एक फुट तो कहीं चुल्लू भर पानी है। यहां पानी भी ऐसा है जिसे पीने के बाद लोग अस्पताल पहुंच रहे हैं। सिर्फ बुधवार की रात महोबा के जिला अस्पताल में सौ से ज्यादा लोग पानी की बीमारी के चलते पहुंचे। महोबा के सभी बड़े तालाब मसलन मदन सागर, कल्याण सागर, दिसरापुर सागर और विजय सागर संकट में हैं। महोबा में तो बड़े तालाब हैं पर संकट सभी तरह के ताल तालाबों से लेकर नदियों तक पर मंडरा रहा है। यह स्थिति झांसी, हमीरपुर, जालौन से लेकर बांदा तक की है। संकट की मुख्य वजह पहले जंगल का सफाया और फिर खनन के नाम पर पहाड़ को खोदकर खाई में बदल देना है। इस समूची कवायद में ताल तालाब बर्बाद हुए तो नदियां भी सूखने लगीं। यही वजह है कि बेतवा, यमुना, उर्मिल, पहूज, कुंआरी और काली सिंध जैसी कई नदियां बुंदेलखंड में खुद जीवन मांग रही हैं तो उनकी सहायक नदियां दम तोड़ चुकी हैं। नदियों की धारा टूटने का सबसे बड़ा कारण है अत्यधिक खनन।

इससे नदियों की धारा को तो तोड़ा ही गया है साथ ही बहती धारा की दिशा भी बदल दी गई है। सामान्य खनन से सौ गुना अधिक खनन के चलते अब यह अंचल बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हो रहा है। जंगल रहे नहीं और पहाड़ को बारूद लगा कर उड़ा दिया गया ऐसे में पानी के परंपरागत स्रोत तो खत्म हुए ही नदियां पर भी संकट गहरा गया है। पहाड़ में बारूद लगाने का सिलसिला थमा नहीं है जिसके चलते पर्यावरण चौपट हो चुका है। बुंदेलखंड में 1033 वैध खदाने हैं जिनमें 260 सिर्फ महोबा में हैं। इससे अंदाजा लगा सकते हैं इस अंचल में बारूद का कैसा इस्तेमाल हो रहा है। लगातार विस्फोट से सबसे ज्यादा नुकसान पानी के परंपरागत स्रोतों के साथ भू-जल पर होता है। सरकार इस संकट से किस तरह निपटना चाहती है यह देखना रोचक होगा। पिछले कुछ सालों में महोबा जिले में जंगलात विभाग ने कागजों पर जो जंगल उगाए हैं उसका रकबा समूचे महोबा जिले का चार गुना है। यह जंगल किसके कितना काम आएगा यह समझ सकते हैं।

महोबा में हरिश चंद्र के मुताबिक बुंदेलखंड के कुछ क्षेत्रों में पहाड़ों की ब्लास्टिंग की वजह से वातावरण दूषित हो चुका है। पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ पहले हो रहा था वह अब भी जारी है। सरकार सिर्फ उन जिलों को देख रही है जो पहले से ही विकसित है। बुंदेलखंड के महोबा, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, जालौन जिलों में बांधों व नदियों के पानी अपनी छोर ‘छोड़ डैक’ लेवल (खतरे के निशान) तक पहुंच गए हैं। जिसकी वजह से वहां के निवासियों को पीने के लिए भी पानी बड़ी मुश्किल से मिल पा रहा है। एक उम्मीद कुएं व तालाब की रहती थी इस बार उसने भी साथ छोड़ दिया उनकी भी तलहटी सूख रही है। जो हाल यहां पानी का मई-जून की भीषण गर्मियों में होता था इस बार अप्रैल में ही देखने को मिल रहा है।

बुंदेलखंड का प्यास बुझाने वाला कीरत सागर अब खुद पानी मांग रहा हैबुंदेलखंड का प्यास बुझाने वाला कीरत सागर अब खुद पानी मांग रहा हैजालौन जिले पर नजर डालें तो पानी के संकट की एक बानगी नजर आएगी। इस जिले में कुल 1556 तालाब हैं जिसमें 557 आदर्श तालाब हैं जो 2009 से 2011 के बीच बनवाए गए थे लेकिन इनको बनवाते समय पानी भरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई जिसके चलते अब वे बदहाल हैं। इस जिले के चारों ओर पांच बड़ी नदियां हैं जिसमें, यमुना, बेतवा, पहूज, कुंआरी, काली सिंध अब बरसाती नाले में बदलती जा रही हैं।

उरई से सुनील मिश्र के मुताबिक पानी के नाम पर करोड़ों का खेल करने वाले विभागों की करतूतों के कारण एक बार फिर पानी का संकट पैदा होने के आसार दिखने लगे हैं क्योंकि बुंदेलखंड पैकेज में परंपरागत स्रोत कहे जाने वाले 2215 कुओं का जीर्णोद्धार करने के लिए 9.44 करोड़ का बजट लघु सिंचाई विभाग को दिया गया था पर इनकी हालत जस की तस है। इसी तरह जिले के 651 आदर्श तालाबों के लिए 35 करोड़ की धनराशि डीआरडीए को दी गई थी। इसमें से 31 करोड़ खर्च किए गए पर क्या बना यह पता नहीं। ऐसे ही अधिकांश तालाबों को भरा ही नहीं जा सकता क्योंकि तालाब नहरों की ऊंचाई से अधिक पर बनवा दिए गए हैं। दूसरी तरफ जिले में हैंडपंप भी पानी देने से जबाव देने लगे हैं क्योंकि जल स्तर पांच से 10 फुट नीचे चला गया है।

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