पर्यावरणीय नैतिकता और गाँधीवादी दृष्टिकोण

2 Oct 2018
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Prosopis cineraria
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आप पर्यावरण और पर्यावरण संबंधी मुद्दों की बुनियादी अवधारणाओं के बारे में जान चुके हैं। आपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकताओं के बारे में भी जानते हैं। पृथ्वी एक है लेकिन विश्व नहीं। हमारे जीवन को बनाए रखने के लिये एक जैवमंडल पर हम सबको निर्भर रहना होता है। अभी तक प्रत्येक समुदाय एवं प्रत्येक देश अपनी उत्तरजीविता के लिये अन्य लोगों पर निर्भर रहता है एवं समृद्धि के लिये इसके प्रभाव के लिये दूसरों पर निर्भर होते हैं।

यह हमारा मौलिक कर्तव्य है कि इस ग्रह पृथ्वी को एक रहने योग्य सभ्य स्थान बनाना है। पृथ्वी पर सद्भाव के साथ रहने की चुनौती उतनी ही पुरानी है जितना कि मानव समाज। पर्यावरण-नैतिकता हमारे दायित्वों और प्रकृति के प्रति अनेक जिम्मेदारियों से जुड़ी है। एक समान जिम्मेदारी निभाना हम सबका बराबर का कर्तव्य है। इस पाठ में आप पर्यावरण नैतिकता के बारे में जानेंगे तथा पर्यावरण और पर्यावरण के प्रति अपने उत्तरदायित्वों एवं गाँधीवादी दृष्टिकोण के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात, आपः

i. नैतिकता की परिभाषा तथा पर्यावरणीय नैतिकता के महत्त्व का वर्णन कर सकेंगे ;
ii. पर्यावरण नैतिकता के दृष्टिकोण की सूची बना सकेंगे ;
iii. पृथ्वी पर सभी जीवों के प्रति सद्भावना का विकास कर पाएँगे ;
iv. प्रकृति के अध्ययन के माध्यम से बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे ;
v. प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने की परंपराओं को याद करने के साथ-साथ धार्मिक विश्वास और प्रकृति के संरक्षण के परंपरागत तरीकों के बीच सहसंबंध बना पाएँगे ;
vi. पारंपरिक उत्सवों, कला, शिल्पों और पारिहितैषी तकनीकों पर प्रकाश डाल पाएँगे तथा इस बात का वर्णन कर पाएँगे कि सामाजिक परंपराओं, विश्वासों व मूल्य किस प्रकार पर्यावरण पर अपना प्रभाव डालते हैं और इसके द्वारा प्रभावित होते हैं ;
vii. संरक्षण के विभिन्न आंदोलनों का वर्णन कर सकेंगे एक सार्वजनिक भागीदारी और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के निर्णय में सार्वजनिक भागीदारी की जरूरत पर जोर दे सकेंगे ;
viii. कार्पोरेट पर्यावरणीय नैतिकता की आवश्यकता के संबंध में बता पाएँगे ;
ix. गाँधीवादी विचारों और उनके पर्यावरण-संरक्षण के लिये वर्तमान चिन्ताओं की प्रासंगिकता की रूपरेखा बता पाएँगे।

26.1 नैतिकता का क्या अर्थ है
नैतिकता दर्शन शास्त्र की एक शाखा है जो मूल्यों एवं आचारों के बारे में बताती है। नैतिकता एक सिद्धान्त है जिसमें हम तय करते हैं कार्य अच्छा है या बुरा, सही है या गलत। एक सदाचारी होने के नाते सही आचरण एवं अच्छे जीवन को अपनाना चाहिए जिससे जीवन का सही उपयोग हो।

लेकिन हर किसी को एक बात याद रखनी चाहिए कि हर एक व्यक्ति की पर्यावरण के प्रति कुछ जिम्मेदारी है क्योंकि वह न केवल भोजन एवं अन्य पदार्थ प्रदान करते हैं बल्कि मानव को अच्छा जीवन जीने के लिये सुरुचिपूर्ण ढंग से संतुष्ट भी करते हैं।

26.2 पर्यावरणीय नैतिकता और उनका महत्त्व
पर्यावरणीय नैतिकता दर्शन शास्त्र का वह भाग है जो मानव और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच नैतिक संबंधों को समझाता है।

जैसा कि पहले ही बताया गया है कि यह आवश्यक है कि मनुष्य को प्रकृति के साथ सद्भाव में जीना सीखना चाहिए। आप पहले से ही जानते हैं कि प्राकृतिक पारितंत्रों के बीच में संतुलन को बनाये रखने के लिये विभिन्न घटकों के बीच विभिन्न प्रक्रियाओं जिनमें स्वांगीकरण एवं पुनःचक्रीकरण शामिल है संतुलित होना चाहिए। लेकिन बढ़ती मानव जनसंख्या के द्वारा संसाधनों के अतिदोहन के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और आर्थिक विकास के कारण पारिस्थितिकीय समस्याओं की वृद्धि होती है। आर्थिक उन्नति की प्राप्ति पर्यावरण की कीमत पर मिलती है। जिसके कारण प्रदूषण में बढ़ोत्तरी, जैव विविधता में कमी एवं आधारभूत संसाधनों की अत्यधिक कमी हो जाती है।

नैतिक मूल्यों या आचारों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि यह किसी भी विकासात्मक प्रक्रियाओं की, शक्ति एवं कमजोरियाँ होती हैं जैसे वनोन्मूलन, बांध का निर्माण, खनन, आर्द्रभूमि से पानी का निकास इत्यादि। बहुत से नैतिक निर्णय लिये गये हैं कि मनुष्य को अपने पर्यावरण के प्रति सद्भावना बनाए रखने की जरूरत है। उदाहरण के लिये क्या किसी को वनों की कटाई जारी रखनी चाहिए? जीवाश्मीय ईंधन का अधिकाधिक प्रयोग कब तक जारी रखना चाहिए? क्या मानव को किसी अन्य प्रजाति के विलोपन का कारण बनना चाहिये? हम कौन से पर्यावरणीय दायित्वों को मानें जिससे कि हम स्वस्थ पर्यावरण अपनी भावी पीढ़ियों के लिये बनाए रख सकें।

वर्तमान संदर्भ में, कई मुद्दों पर गंभीरता से सोच की जरूरत हैः-

जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है तो पानी के लिये भूमिगत जल को निकाला जा रहा है। मृदा जल के अत्यधिक दोहन के कारण जल तालिका के भूमिगत जलस्तर में तेजी से गिरावट आई है और अगर यह लंबे समय तक जारी रहता है तो जल्द ही बहुत से क्षेत्रों में एक रेगिस्तान बन जाएगा। प्रश्न यह उठता है कि मानव की आवश्यकताएँ महत्त्वपूर्ण हैं या यह आवश्यक है पर्यावरण की रक्षा की जाए। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा- दिल्ली क्षेत्र में निर्माण एवं नए नलकूप की बोरिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है। आशा की जाती है कि इन उपायों से क्षेत्र में वनस्पति और भूजल की कमी को रोकने में मदद मिल पाये।


औद्योगिक अपशिष्ट, दोनों प्रकार के ठोस और द्रव पदार्थ आमतौर से आस-पास की भूमि और जल निकायों में बेरोकटोक फेंक दिया जाता है। क्या यह नैतिकता है किसी की चाहर दीवारी के बाहर कूड़ा फेंका जाए? क्या कोई उद्योग पर्यावरण के लिये संवेदनशीलता को वहन कर सकता है या नहीं? क्या पक्षियों, जन्तुओं, पौधों, मृदा एवं जल गुणवत्ता की महत्ता एक उद्यमी के लिये महत्त्वपूर्ण नहीं या पुरुष/स्त्री केवल अपने लाभ के बारे में जानना चाहिए, के बीच क्या कोई संबंध हो सकता है?

 

पर्यावरण नैतिकता का वह मार्गदर्शक बल है कि जिससे हर मानव को अपने आस-पास के वातावरण का ध्यान रखना चाहिए।


पर्यावरणीय नैतिकता प्रयास करती है कि विभिन्न प्रकार के विषयों पर प्रभाव डालें जिसमें कानून, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, पारिस्थितिकी और भूगोल जैसे विषय सम्मिलित हों। यह हमें इस बात पर सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वन्य जीवन से इंसान अधिक महत्त्वपूर्ण है? क्या जन्तुओं के भी कुछ अधिकार हैं? हमारी गैर-मानवी दुनिया की ओर भी क्या किसी तरह की जिम्मेदारी है? इस तरह के प्रश्न पर्यावरण नैतिकता के मुद्दों पर दबाव डाल रहे हैं।

26.3 पर्यावरणीय नैतिकता का दृष्टिकोण
अभी तक सभी नैतिकता एक ही आधार पर विकसित हुई हैं कि एक व्यक्ति समुदाय के परस्पर आश्रित घटकों का एक सदस्य है। मानव समुदाय में अपना स्थान बनाए रखने के लिये प्रतिस्पर्धा करता है लेकिन नैतिक आचरण मनुष्यों को इस काम में सहयोग देने के लिये प्रेरित करते हैं।

पर्यावरण-नैतिकता के मूलतः तीन दृष्टिकोण हैं। एक मत के अनुसार मनुष्य प्रभावी है एवं पृथ्वी ग्रह पर एक प्रमुख महत्त्वपूर्ण स्पीशीज है। मानव ने स्वयं के लाभ के लिये प्रकृति में हेरफेर करके उसका इस्तेमाल किया है। यह मानव केन्द्रित विचार है इसलिये इसे मानव केन्द्रित (Anthropocentric) कहा जाता है।

एक दूसरा मानव-केन्द्रित मत यह है कि मानव की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह मानव की भावी पीढ़ियों के प्रति जिम्मेदार बने इसीलिये मानव स्टेवार्ड या रक्षा करने वाले मैनेजर हैं जिन्हें भावी पीढ़ियों के लिये पृथ्वी को अच्छी दशा में छोड़कर जाना चाहिए। मानवजनित दृष्टिकोण के आलोचकों को यह मानव अज्ञानता जैसा लगता है। वे महसूस करते हैं कि अभी तक पता नहीं कितनी मानव स्पीशीज पृथ्वी पर रहती हैं वे पर्यावरण और एक दूसरे के साथ कैसे सहभागिता करते हैं। पर्यावरणीय ज्ञान की बातचीत प्रकृति पर मानव की कुल निर्भरता के और प्रकृति के सभी प्रजाति के लिये है। यह जीवन-केंद्रित या बायोसेंट्रिक (biocentric) दृष्टिकोण है।

उपरोक्त मतों को आगे बढ़ाते हुए यह समझा जाता है कि सभी जीवों के प्रति सद्भावना चाहते हैं तथा सम्पूर्ण पर्यावरण की ओर अपनी श्रद्धा और प्रति सम्मान की मांग रखते हैं। इस तरह के गैर मानवजनित मार्ग जो कि दूसरी स्पीशीजों के प्रति नैतिक जिम्मेदारियों की बात करता है और इस प्रकार के पारितंत्र को पारिकेन्द्रित कहते हैं। इस मत के अनुसार यह अनिवार्य हो जाता है कि इस ग्रह को बचाना जरूरी है। आधारभूत तथ्य यह है कि मानव इस ग्रह को पूर्णतः नष्ट नहीं कर सकता है लेकिन यह ग्रह हमको पूर्णरूप से नष्ट कर सकते हैं। यह हमारी मूलभूत आवश्यकता है कि पर्यावरण की रक्षा करें ताकि हमारी उत्तरजीविता सुरक्षित रह सके एवं हम स्वयं को नष्ट होने से बचा सकें।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रकृति एवं समस्त प्राकृतिक तंत्रों के अपने एक आंतरिक मूल्य होते हैं। यदि मानव जाति को जीवित रहना है तो पर्यावरण को भी बचाने की आवश्यकता है।

26.4 पृथ्वी पर जीवन के लिये सम्मान
दीर्घोपयोगी तरीके से इस ग्रह पर जीवित रहने के लिये हम सभी को इन बातों को हमेशा याद रखना चाहिए-

i. हम सभी के अस्तित्व के लिये जरूरत और उपभोग की सारी वस्तुएँ प्रकृति से मिलती हैं।
ii. हम सब पृथ्वी ग्रह के बारे में बहुत कम जानते हैं।
iii. मानव अपनी उत्तरजीविता के लिये अन्य जीवों पर निर्भर करता है इसलिये उनके प्रति भी हमारा उत्तरदायित्व है।

पृथ्वी हमारा घर है और अन्य सभी प्राणियों के लिये भी उनका घर है। हमें सदियों पुरानी कहावत याद रखने की जरूरत है कि ‘‘जियो और जीने दो’’। यह हमारा कर्तव्य है कि किसी भी प्रकार की हानि से हमारे ग्रह को बचाना है एवं यदि उसे नुकसान पहुँचता है तो उसके भर पाई करने के लिये हमें ही उसकी सहायता करनी है।

पाठगत प्रश्न 26.1
1. परिभाषित कीजिए- (1) नैतिकता, (2) पर्यावरणीय नैतिकता
2. पर्यावरण नैतिकता के दृष्टिकोणों का नाम बताइए।
3. पर्यावरण नैतिकता के लिये एक औचित्य बताइये।

26.5 प्रकृति के साथ सामंजस्य रहने की परंपरा
भारतीय दर्शन शास्त्र में न केवल सब मनुष्यों के लिये ही अच्छा रहने बल्कि सभी प्राणियों के लिये भलाई की बात कही गयी हैं। संस्कृत कविता का सार ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे भवंतु निरामया’’ यही संदर्भित करता है।

‘‘सभी निष्पाप हो सकते हैं और सभी अनुभव खुशियाँ ला सकते हैं।’’
इसका अर्थ है कि वेद, महाभारत और रामायण के सभी मंत्र ब्रहमांडीय सद्भाव और पर्यावरण संरक्षण के बारे में प्रशंसा करते हैं। ये भारतीय प्रणालियाँ न केवल मानवों का सम्मान करती हैं बल्कि अन्य प्राणियों के कल्याण एवं देखभाल के बारे में बताती हैं।

प्रकृति और पर्यावरण को ऋग्वेदीय अवधि के समय से ही महत्त्व दिया गया है। कविता बताती है कि ‘‘आकाश एक पिता के समान, पृथ्वी माँ के समान एवं अंतरिक्ष बेटे के तुल्य है।’’ ब्रह्मांड इन तीनों से मिलकर बना एक परिवार है। यदि किसी एक को भी हानि पहुँचाती है तब ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ जाता है।

हमारे कई राज्यों में नए साल की शुरुआत रबी की फसल की कटाई के साथ होती है और इसे अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। पंजाब में बैसाखी, बंगाल में नव बरशो, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में तमिल एवं तेलगू नव वर्ष के रूप में मनाया जाना इसके कुछ उदाहरण हैं। केरल में इस समय को विशु किनी के नाम से मनाया जाता है जिसमें लोकनृत्य किये जाते हैं एवं अनाज, सब्जियों एवं फलों के ढेरों को सजाया जाता है एवं त्यौहार शुरू होने के पहले दिन की सुबह इनको देखना एक शुभ शगुन माना जाता है।

भारतीय उत्सव, पारंपरिक कला और शिल्पों को भी पर्यावरण नैतिकता की दृष्टि से देखा जा सकता है। जैसा कि आप सबको मालूम होगा कि पौधों और पशुओं की पूजा लंबे समय से भारत में की जाती रही है।

टेसू (फ्लेम ऑफ फॉरेस्ट) के फूलों, अनार के छिलकों, हल्दी आदि अलग-अलग रंगों को मिट्टी के लैम्प, तेल और रुई की बत्तियों का उपयोग विशेष अवसरों के दौरान घरों को सजाने के लिये किया जाता रहा है। विशेष व्यंजनों को भी कुछ उत्सवों के समय तैयार किया जाता है, विभिन्न पौधों और पादप उत्पादों का काफी महत्त्व होता है जैसे जो लड्डू अमरेन्थस (रामदाना या चौलाई) से बनाते हैं, खाये जाते हैं।


देश के विभिन्न भागों में लोग विभिन्न पौधों एवं जन्तुओं की पूजा करते हैं। हिन्दुओं के अनेकों देवताओं के अपने वाहन हैं अर्थात वे उन पर सवारी करते हैं। धन की देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू है, दुर्गा सिंह पर सवारी करती है एवं सरस्वती हंस पर विराजमान है, जो मनुष्यों एवं भगवान के बीच एक बंधन प्रकट करता है। पौधे जैसे तुलसी, बरगद, केला, श्रीफल (नारियल) को पूजा के लिये प्रयोग करते हैं। हल्दी का उपयोग कई प्रकार के धार्मिक एवं पवित्र कार्यों के लिये किया जाता है, जो कि हिंदू, इस्लाम एवं बौद्ध संस्कृति से संबोधित हैं। पेड़ों की शृंखला (पूर्वी हिमालय में बांस से लेकर हिमाचल प्रदेश के जंगल तक) या जंगल के एक भाग को ऐसा माना जाता है कि वहाँ पर भगवान या पूर्वजों की आत्माएँ रहती हैं। इस तरह से उन क्षेत्रों को बगैर हानि पहुँचाए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है और यह क्षेत्र ‘‘पवित्र गुफा (Sacred grooves)’’ माना जाता है। इस पवित्र क्षेत्र की विशेषता है कि इस क्षेत्र में पादप एवं जीव जंतु और जैवविविधता विद्यमान रहती है। भारत में राजस्थान में विश्नोई समाज के लोगों ने खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिये अपने जीवन को बलिदान तक कर दिया।

ऐसे भी रिकॉर्ड हैं कि कुछ पवित्र गुफाओं की अपनी सीमाओं के भीतर जल निकाय भी पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में शिकार एवं पेड़ काटने आदि पर प्रतिबंध लगाया गया है ताकि इन क्षेत्रों को आने वाली पीढ़ियों के लिये संरक्षित रखा जा सके। वे प्राकृतिक वनस्पति का प्रकृति में या प्रतिनिधत्व करते हैं। हिमालय में शेरपा कुछ पर्वतों को पवित्र मानते हैं और उन पर नहीं चढ़ते हैं। (जब वे पर्वतारोहण अभियान पर जाते हैं)


भारत में लगभग 13,720 पवित्र गुफाएँ पायी जाती हैं। पौधों की कटाई और पशुओं की हत्या, सामाजिक परंपराओं और प्रतिबंधो के कारण निषेध हैं। सूखी लकड़ी का संग्रहण, शहद एकत्र करने के लिये अनुमति है। ऐसी कई गुफाओं, मंदिरों, स्तूप एवं कब्रगाह देश के विभिन्न भागों पाए जाते हैं।


26.6 पर्यावरणीय नैतिकता को मन में बैठाना
यह आम बात है कि हमें बचपन से ही अच्छी आदतों व दृष्टिकोणों को ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए। बचपन में सिखायी गयी अच्छी बातें जीवन भर काम आती हैं। फिर भी इसके लिये यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि प्रत्येक बच्चे को पर्यावरण के प्रति आदर भाव को शुरू से एक आवश्यक कर्तव्य के रूप में बताना चाहिये। यदि बच्चों को कुछ मुद्दों के बारे में बताया जाए तो वे उनको समझेंगे एवं उनको सुलझाने का प्रयास करेंगें, जब वे बड़े होकर प्रशासक, नीति निर्माता, अध्यापक या फिर राजनेता बनेंगे।

विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कुछ क्रियाकलाप जैसे- (i) पेड़ों को लगाना एवं उनकी देखभाल करना (ii) राष्ट्रीय पार्कों एवं अभ्यारण्यों को देखने जाना (iii) प्रकृति के संरक्षण से संबंधित कहानी/ कविता/नाटक तैयार करना भी शामिल करना चाहिये। स्कूल एवं उसके आस-पास के स्थानों को हरा-भरा बनाने के लिये, शादी के मंडपों, आकर्षक पोस्टर बनाना एवं पर्यावरण से संबंधित संदेशों को विभिन्न कक्षाओं के लिये प्रत्येक वर्ष में होने वाली प्रतियोगिताओं में शामिल करना चाहिये।

बच्चों में प्रकृति का अध्ययन जीवों के प्रति प्यार व अपने वातावरण को व्यवस्थित करने की आदत का विकास करता है।

‘भूमि संबंधी मूल्य’ (land ethic) एक ऐसा विचार है जो प्रत्येक नागरिक के मन में अवश्य होना चाहिये। इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति भूमि का नागरिक है और इस प्रकार उसके स्वास्थ्य के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। भूमि की क्षमता का स्वास्थ्य स्वःनवीकरण के लिये है। संरक्षण हमारा प्रयास होगा कि हम उसे समझे एवं इस क्षमता को संरक्षित कर पाएँ।

पाठगत प्रश्न 26.2
1. पर्यावरणीय नैतिकता या मूल्यों के बारे में बच्चों को क्यों पता होना चाहिए?
2. जीवन में पर्यावरण के साथ सद्भाव की दो परम्पराएँ बताइए।
3. पवित्र गुफा किसे कहते हैं?

26.7 संरक्षण आंदोलन एवं सार्वजनिक भागीदारी
1. सरकार जागरुकता पैदा करने व स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी अकेले नहीं उठा सकती। यहाँ हर कदम पर सार्वजनिक भागीदारी के लिये आम आदमी की जरूरत है। यदि आम आदमी जागरूक हो जाए कि स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है, इस प्रकार से वे बनायी गयी नीतियों पर अपना निर्णय बता सकते हैं।

2. पश्चिमी घाटों में शांत घाटी परियोजना पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन और जन प्रतिनिधित्व की वजह से समाप्त कर दी गयी थी। इससे इस क्षेत्र के वर्षा वनों को बचाने में मदद मिली जो कि विश्व में जैव विविधता वाला एक हॉट स्पॉट है।

3. आप पहले ही जान चुके हैं कि राजस्थान के विश्नोई समाज ने एक बार स्थानीय खेजड़ी पेड़ों (प्रोसोपिस स्पाइसीगेरा) को बचाने के लिये अपने जीवन का बलिदान किया था।

4. एक जाने-माने पर्यावरणीय कार्यकर्ता एवं वकील एम-सी- मेहता ने केन्द्र, भारत सरकार के विरुद्ध जनहित याचिका दायर की। उनका मुख्य उद्देश्य भारत के ताजमहल को मथुरा रिफाइनरी से निकलने वाले बहिर्पदार्थों से बचाना था। इस प्रसिद्ध मामले के कारण प्रत्येक नागरिक का शुद्ध हवा, जल एवं भूमि पर अधिकार है, की जागरूकता उत्पन्न हुई। इस एक मामले के फैसले ने अन्य जनहित याचिकाओं के लिये दरवाजे खोल दिये और न्यायालय ने उन पर अपना निर्णय भी दिया।

5. इसके कारण कुछ ऐसे मामले भी प्रकाश में आए जैसे कि दिल्ली एवं एन.सी.आर. (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से प्रदूषण उत्पन्न करने वाले उद्योगों को बाहर स्थानान्तरित कर दिया गया; दिल्ली एवं एनसीआर में सीएनजी के उपयोग की अनिवार्यता का अभियान चलाया गया। ‘‘हरा ईंधन स्वच्छ ईंधन’’ के अभियान ने दिल्ली में कार में सीसारहित पेट्रोल के उपयोग का अभियान चलाया। ऐसा भारत में पहली बार हुआ था। ये सभी उदाहरण यह दर्शाते हैं कि यदि जागरूकता या सक्रियता व्यक्तिगत रूप से, जन संगठनों, गैर सरकारी संगठनों के द्वारा प्रसारित की जाए तो निश्चय ही एक स्वच्छ पर्यावरण की कल्पना की जा सकती है।

6. बांधों के विरुद्ध प्रदर्शन करना एक विवादास्पद मुद्दा है और नर्मदा बचाओ आंदोलन अत्यंत सक्रिय रूप से नर्मदा बांध से हटाये गये लोगों के लिये किया जाने वाला आंदोलन है। (इस बांध के निर्माण के कारण बहुत से लोग विस्थापित हो रहे हैं।) इसी तरह का मुद्दा टिहरी बांध के ऊपर भी उठा है।

जनता की जागरूकता सरकार एवं क्षेत्रीय/स्थानीय लोगों के बीच धनात्मक एवं फलदायक सहयोग को भी बढ़ावा देता है। संयुक्त वन प्रबंधन प्रणालियाँ सरकारी साधनों एवं स्थानीय निवासियों के संयुक्त प्रयासों से ही वनों का संरक्षण, वनीकरण कार्यक्रम, वन्यजीव प्रबंधन एवं अन्य दूसरे प्राकृतिक संसाधनों के लिये कार्य करना संभव हो सकता है।

26.8 कारपोरेट पर्यावरणीय नैतिकता
व्यवसाय प्रबंधन में नैतिकता अत्यंत आवश्यक है। पिछली सदी के दौरान एक ऐसा सबक लिया गया कि अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। कार्पोरेट जगत की अब एक सबसे मूलभूत जिम्मेदारी पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने की है। उद्योगों से एक बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन किया जाता है एवं इन अपशिष्टों का निपटान या प्रदूषण के स्तर को कम करने की एक कीमत होती है।

अपशिष्ट पदार्थों के नियंत्रण की कीमत ही कम्पनी का लाभ होता है। ऐसा इस कारण है कि उद्योगों से निकले अपशिष्ट पदार्थों को किसी नदी में फेंक देना उन पदार्थों को अपशिष्ट जल संशोधन सुविधा द्वारा उपयोगी बना देना कम कीमत का सौदा होता है। हवा में निष्काषित अपशिष्टों में आने वाली कीमत फिल्टर द्वारा अवशोषित किये गये पदार्थों की तुलना में सस्ती है। इस प्रकार प्रदूषण का फैलना अनैतिक एवं कभी नष्ट न होने वाला है, लेकिन कार्पोरेट जगत को भी इस तरह की प्रणालियों को कीमतों में कटौती करने एवं लाभ कमाने के लिये अपनाना चाहिये। इस प्रकार से ऐसे निर्णय थोड़े समय के लाभ के लिये न होकर लंबे समय के समाज तक हित के लिये होना चाहिये।

हाल ही के पर्यावरणीय आंदोलनों को व्यवसाय में लगे हुए समुदायों को पर्यावरणीय मूल्य की जानकारी के लिये उपयोग किया जा रहा है। औद्योगिक घराने अब कार्यक्षम, हरी एवं स्वच्छ तकनीकों के उपयोग में लाने के लिये काफी रुचि दिखाने लगे हैं। अब कम कार्बन युक्त फुट प्रिंटों के लिये सौर कार व तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है।

कुछ महानगरों में कार्पोरेट घरानों ने महानगरों में जगह-जगह हरियाली हेतु एवं ‘‘बगीचों’’ को शहर के ‘‘फेफड़ों’’ की तरह काम करने संबंधी विकास के कार्य स्वयं अपनी निगरानी में लिये हैं। कार्पोरेट घराने स्कूली बच्चों एवं कॉलेज के युवा पीढ़ी के लिये पर्यावरण संबंधी शीर्षकों एवं मुद्दों पर प्रतियोगिताओं के आयोजन में पुरस्कार वितरण करने के लिये आयोजक बनते हैं।

उपरोक्त सभी के साथ EIA (पर्यावरण प्रभावी मूल्यांकन) को नये व्यवसाय संबंधी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिये लागू करने पर जोर दिया गया है।

बहुत से जन साधारण द्वारा आयोजित कार्यक्रमों एवं आंदोलनों को अब पारिहितैषी प्रणालियों के रूप में काम में लाया जा रहा है। उदाहरण के लिये पुणे के एक गैर-सरकारी संगठन (निरमालय) गणेश चतुर्थी के अवसर पर उपयोग करने वाले फूलों से कम्पोस्ट तैयार करता है और इसे पृथ्वी को भेंट कर देता है।

 

दुर्गा पूजा की अनेक समितियों ने भी पारम्परिक कार्बनिक पेंटों एवं अन्य तकनीकों को पुनः खोज लिया है ताकि विषालु प्लास्टिक पेंट एवं अजैव-निम्नीकरणीय पदार्थों को मूर्तियाँ बनाने एवं पूजा स्थलों को सजाने के लिये प्रयोग करें।


पाठगत प्रश्न 26.3
1. उस PIL का उदाहरण दीजिये जिसने पर्यावरणीय प्रदूषण के विरुद्ध कदम उठाया है।
2. कार्पोरेट पर्यावरणीय नैतिकता का क्या अर्थ है?
3. पर्यावरण के प्रति सद्भावना के लिये व्यावसायिक घरानों द्वारा लिये एक-एक नैतिक कदम बताइये।

26.9 गाँधी विचारधारा एवं उनका वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण संरक्षण के प्रति महत्त्व अथवा गांधाजी की विरासत
मोहनदास करमचंद गाँधी (1869-1948) का जीवन एवं काम भारत के पर्यावरण संबंधी आंदोलन पर अपना एक अविस्मरणीय प्रभाव रखते हैं। महात्मा गाँधी को भारतीय पर्यावरण आंदोलन में एक सारस्वत की तरह माना जाता है। पर्यावरण कार्यकर्ता गाँधीजी के अहिंसात्मक विरोध या सत्याग्रह पर अत्यधिक भरोसा रखते हैं एवं भारी उद्योगों के विरुद्ध गाँधी दर्शनशास्त्र पर भी अत्यधिक विश्वास करते हैं जो कि गरीबों एवं पद-दलितों को विस्थापित या दबा देता है।

चिपको आंदोलन (चंडी प्रसाद भट्ट एवं सुंदरलाल बहुगुणा), बाबा आमटे एवं मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन) इन सभी को आंदोलन करने की प्रेरणा गाँधीजी से ही मिली। अन्य दूसरे समूह जैसे सुलभ इंटरनेशनल जो हरिजनों एवं सफाई कर्मियों के स्तर को ऊँचा उठाने, जो कि अंधेरों से घिरे हुए थे, के लिये काम करता है, यह भी गाँधीजी के विचारों से ही प्रेरित थे। गाँधीजी वास्तव में सबसे पहले पर्यावरणविद थे जिन्होंने आधुनिक औद्योगिक समाज के कारण होने वाले पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में ध्यान दिया था। 1909 में ‘हिंद स्वराज’ में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने लिखा था कि वर्तमान दर से होते हुए विकास के कारण किस प्रकार से मनुष्य का मनुष्य द्वारा एवं मनुष्य के द्वारा प्रकृति का शोषण किया जा रहा है।

गाँधीजी ने मितव्ययता एवं साधारण जीवन जीने पर जोर दिया था जिसका यह अर्थ नहीं है कि अपनी खुशियों के लिये पर्यावरणीय मूल्यों का सम्मान नहीं करे। फिर भी ऐसा माना जाता है कि व्यर्थ उपभोग करने में कोई खुशी नहीं है। खुशियाँ एक दूसरे के साथ सोहार्द्रपूर्वक रहते हुए एवं प्रकृति के साथ आती हैं। खुशियाँ जीवों के शोषण पर आधारित नहीं होनी चाहिये। इससे पृथ्वी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिये लेकिन ये कुछ क्रियाशील कार्यों एवं क्रियाकलापों एवं आपसी सहयोग के द्वारा आनी चाहिए। पर्यावरणीय नैतिकता प्रकृति एवं उसकी उदारता के प्रति सौहार्दपूर्वक व्यवहार के बारे में हमें सिखाती है।

भारत की वृद्धि एवं विकास के लिये की जाने वाली सभी योजनाओं में पर्यावरणीय मूल्यों को एक अभिन्न अंग के रूप में माना जाना चाहिये, अंतिम परन्तु कुछ कम नहीं, गाँधीजी ने जो कहा था, उसे हमें भूलना नहीं चाहिए।

‘‘प्रकृति माँ हमारी पर्याप्त जरूरतों को पूरा कर सकती हैं परन्तु हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती हैं।’’

पाठगत प्रश्न 26.4
1. चिपको आंदोलन का संस्थापक कौन है?
2. सुलभ इंटरनेशनल किस प्रकार के काम करता है?
3. गाँधीजी को सबसे पहला पर्यावरणविद क्यों कहा जाता है?
4. गाँधीजी का मुख्य नारा क्या था?

आपने क्या सीखा
i. पृथ्वी ग्रह एकमात्र मनुष्यों के लिये ही रहने योग्य स्थान है।
ii. एक मूल्य नैतिकता एक सिद्धांत है जो हम तय करते हैं कि एक कार्य अच्छा है या बुरा है सही है या फिर गलत है। दर्शन शास्त्र की शाखा जो नैतिक मूल्यों और सिद्धान्तों के बारे में बात करती है।
iii. पर्यावरणीय मूल्य दर्शनशास्त्र का वह भाग है जो मनुष्य और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच नैतिक संबंध बनाए रखता है।
iv. हमें प्रकृति, सभी जीवित प्राणियों का सम्मान करना सीखना चाहिए, यह याद रखना चाहिए।
v. प्रकृति और पर्यावरण को ऋग्वेदीय काल के बाद से ही महत्त्व दिया गया है।
vi. पारंपरिक प्रथाओं में कहा गया है कि पर्यावरण के मित्र बनो।
vii. क्रियाकलाप जैसे पेड़ लगाना, राष्ट्रीय पार्कों एवं अभ्यारण्यों की सैर, प्रकृति पर कहानियाँ या कविता या नाटक तैयार करना आदि कार्यकलापों को विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
viii. आधुनिक काल में संसाधनों के दिन अंधाधुंध प्रयोग और बढ़ते प्रदूषण के कारण अत्यंत खतरनाक परिणाम आ रहे हैं। इस प्रकार के पर्यावरण नैतिकता की भावना को प्रत्येक के मन में जागृत करने की जरूरत महसूस हुई है।
ix. गाँधीवादी दर्शन की अवधारणा प्रकृति के साथ सह अस्तित्व को बढ़ावा देता है।

पाठांत प्रश्न
1. पर्यावरण नैतिकता से क्या अर्थ है?
2. पर्यावरण नैतिकता के दृष्टिकोण क्या हैं?
3. पर्यावरणीय नैतिकता की आवश्यकता क्यों महसूस की गयी है?
4. एक उपयुक्त उदाहरण की मदद से समझाइए कि भारतीय शास्त्रों की पर्यावरण नैतिकता की अवधारणा को कैसे समझाया गया है?
5. ‘‘पवित्र गुफाओं’’ से क्या अर्थ है?
6. बच्चों को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता क्यों है?
7. व्यवसाय व्यावसायिक घराने पर्यावरणीय नैतिकता के किन तरीकों का उपयोग करती हैं?
8. गाँधीजी के कथन का अर्थ क्या है, ‘‘प्रकृति माँ हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त देती है लेकिन हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती है।
9. पर्यावरण नैतिकता के उदाहरण के रूप में तीन पारंपरिक प्रथाओं में संबंध स्थापित कीजिए।
10. सामग्री जमा करके टिप्पणी लिखिएः
(1) चिपको आंदोलन (2) नर्मदा बचाओं आंदोलन अनैतिक पर्यावरणीय के बारे में बताता है। और उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन आंदोलन पर प्रकाश डालता है।

पाठगत प्रश्नों के उत्तर
26.1
1. (i) यह दर्शन शास्त्र की एक शाखा है जो नैतिकता और मूल्यों को बताती है।
(ii) पर्यावरणीय आचार दर्शनशास्त्र का एक भाग है जो मानव और प्राकृतिक वातावरण के बीच नैतिक संबंधों के बारे में विचार करता है।
2. जीवजनित, पारिकेन्द्रित, बायोसेन्ट्रिक या जीवन केंद्रित।
3. यदि मानवजाति को जीवित रहना है तो पर्यावरण को संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है।

26.2
1. क्योंकि उनको अपने बचपन में ही आदतें और व्यवहार प्राप्त करना चाहिए। यह आवश्यक है कि शुरू से ही पर्यावरण के प्रति सद्भावना पैदा करना आवश्यक हो जाता है।
2. प्रकृति के सम्मान के लिये, पौधों और जन्तुओं के प्रति सम्मान करना।
3. एक क्षेत्र यह बताता है कि उसमें पादपजात और जन्तुजात फलते-फूलते हैं और जैव विविधता बनाए रखी जा रही है। इन क्षेत्रों को भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित कर रहे हैं।

26.3
1. एम. सी. मेहता ने मथुरा रिफाइनरी से निकलने वाले बहिर्बहावों से ताजमहल की सुरक्षा के लिये एक जनहित याचिका दायर की गयी थी।
2. कार्पोरेट जगत की यह मूलभूत जिम्मेदारी है कि वह राष्ट्र को एक स्वच्छ पर्यावरण दे।
3. हरी एवं स्वच्छ तकनीकी का प्रयोग; हरे-भरे क्षेत्रों का विकास एवं बगीचे लगाना (कोई एक)

26.4
1. चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा।
2. हरिजनों एवं सफाई कर्मियों को जमीन से ऊपर उठाने के लिये जहाँ वे गाँधीजी के विचारों से प्रभावित थे।
3. वह आधुनिक औद्योगिक समाज के कारण पर्यावरण संकट का अनुमान लगाते थे।
3. प्रकृति मां हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है परन्तु हमारे लालच को पूरा करने में असमर्थ है।


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