पर्यावरणीय प्रदूषण (Environmental Pollution)

12 Apr 2018
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धुआँ उगलती हुई चिमनी-डीजल गाड़ी
धुआँ उगलती हुई चिमनी-डीजल गाड़ी


मानव की विकास सम्बन्धी गतिविधियाँ जैसे भवन निर्माण, यातायात और निर्माण न केवल प्राकृतिक संसाधनों को घटाती है बल्कि इतना कूड़ा-कर्कट (अपशिष्ट) भी उत्पन्न करती हैं जिससे वायु, जल, मृदा और समुद्र सभी प्रदूषित हो जाते हैं। वैश्विक ऊष्मण बढ़ता है और अम्ल वर्षा बढ़ जाती है। अनुपचारित या अनुचित रूप से उपचारित अपशिष्ट (कूड़ा-कर्कट) नदियों के प्रदूषण और पर्यावरणीय अवक्रमण का मुख्य कारण है जिसके फलस्वरूप स्वास्थ्य का खराब होना और फसलों की उत्पादकता में कमी आती है। इस पाठ में आप प्रदूषण के प्रमुख कारणों, हमारे पर्यावरण पर पड़ने वाले उनके प्रभावों और विभिन्न उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, जिनसे इस प्रकार के प्रदूषणों को नियंत्रित किया जा सकता है।

उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात, आपः

- प्रदूषण और प्रदूषक शब्दों को परिभाषित कर सकेंगे ;
- विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों की सूची बना सकेंगे ;
- प्रदूषण के प्रकार, स्रोत, मानव स्वास्थ्य पर उनके दुष्प्रभाव और वायु प्रदूषण, अन्तः वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने का वर्णन कर सकेंगे ;
- जल प्रदूषण, उसके कारण और नियंत्रण का वर्णन कर पायेंगे ;
- तापीय (उष्मीय) प्रदूषण का वर्णन कर पायेंगे ;
- मृदा प्रदूषण, उसके कारण और नियंत्रण का वर्णन कर सकेंगे ;
- विकिरण (रेडिएशन) प्रदूषण, उसके स्रोत और खतरों (संकेतों) का वर्णन कर पायेंगे।

10.1 प्रदूषण और प्रदूषक पदार्थ
मानव गतिविधियाँ किसी न किसी प्रकार से पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती ही हैं। एक पत्थर काटने वाला उपकरण वायुमंडल में निलंबित कणिकीय द्रव्य (Particulate matter, उड़ते हुए कण) और शोर फैला देता है। गाड़ियाँ (ऑटोमोबाइल) अपने पीछे लगे निकास पाइप से नाइट्रोजन, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन का मिश्रण भरा काला धुआँ छोड़ते हैं जिससे वातावरण प्रदूषित होता है। घरेलू अपशिष्ट (कूड़ा-कर्कट) और खेतों से बहाये जाने वाले कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों से युक्त दूषित पानी जल निकायों को प्रदूषित करता है। चमड़े के कारखानों से निकलने वाले बहिर्स्राव गंदे कूड़े और पानी में बहुत से रासायनिक पदार्थ मिले होते हैं और उनसे तीव्र दुर्गंध निष्कासित होती है।

ये केवल कुछ उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि मानव गतिविधियाँ वातावरण को कितना प्रदूषित करती हैं। प्रदूषण (Pollution) को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है- ‘‘मानव गतिविधियों के फलस्वरूप पर्यावरण में अवांछित पदार्थों का एकत्रित होना, प्रदूषण कहलाता है। जो पदार्थ पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं उन्हें प्रदूषक (Pollutant) कहते हैं।’’ प्रदूषक वे भौतिक, रासायनिक या जैविक पदार्थ होते हैं जो अनजाने ही पर्यावरण में निष्कासित हो जाते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव-समाज और अन्य जीवधारियों के लिये हानिकारक होते हैं।

10.2 प्रदूषण के प्रकार
प्रदूषण के निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं:

- वायु प्रदूषण
- ध्वनि प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- मृदा (भूमि) प्रदूषण
- तापीय प्रदूषण (थर्मल प्रदूषण)
- विकिरण प्रदूषण (रेडिएशन प्रदूषण)

10.3 वायु प्रदूषण (AIR POLLUTION)
वायु प्रदूषण औद्योगिक गतिविधियों और कुछ घरेलू गतिविधियों के फलस्वरूप होता है। ताप संयंत्रों, जीवाश्ममय ईंधन के निरन्तर बढ़ते प्रयोग, उद्योगों, यातायात, खनन कार्य, भवन-निर्माण और पत्थरों की खुदाई से वायु-प्रदूषण होता है। वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि वायु में किसी भी हानिकारक ठोस, तरल या गैस का, जिसमें ध्वनि और रेडियोधर्मी विकिरण भी शामिल हैं, इतनी मात्रा में मिल जाना जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव और अन्य जीवधारियों को हानिकारक रूप से प्रभावित करते हैं। इनके कारण पौधे, सम्पत्ति और पर्यावरण की स्वाभाविक प्रक्रिया बाधित होती है। वायु प्रदूषण दो प्रकार का होता है (1) निलंबित कणिकीय द्रव्य (निकले हुए ठोस कण) (2) गैस रूपी प्रदूषक जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), NOx आदि। कुछ वायु प्रदूषक, उनके स्रोत और उनके प्रभाव तालिका 10.1 में दिए गए हैं।

तालिका 10.1 : कणिकीय वायु प्रदूषक, उनके स्रोत और उनका प्रभाव

प्रदूषक

स्रोत

प्रभाव

निलंबित कणिकीय द्रव्य/ धूल

घरेलू, औद्योगिक और वाहनों से निकलने वाला धुआँ (सूट)।

विशिष्ट संघटना पर निर्भर करता है। सूर्य का प्रकाश कम होता है, दृश्यता में कमी और क्षति-क्षरण में वृद्धि होती है।

फेफड़ों में धूल (न्यूमोकोनियोसिस) आदि जमना, अस्थमा, कैंसर और फेफड़ों के अन्य रोग हो जाते हैं

हवा में उड़ती हुई राख

फैक्ट्रियों की चिमनी और पावर प्लांटों से निकलते हुए धुएँ का भाग।

घरों और वनस्पतियों पर ठहर जाती है। हवा में ठोस निलंबित कण (SPM) शामिल हो जाते हैं। निक्षालकों में हानिकारक पदार्थ निहित होते हैं।

10.3.1 कण रूपी प्रदूषक (Particulate Pollutants)
औद्योगिक चिमनियों से निकलने वाली धूल और कालिख वह कणरूपी द्रव्य हैं जो वायु में निलंबित हो जाते हैं। इनका आकार (व्यास) 0.001 से 500 μm तक होता है। 10 μm से कम आकार के कण हवा की तरंगों के साथ बहते रहते हैं। जो कण 10 μm से बड़े होते हैं वे नीचे बैठ जाते हैं। जो 0.02 μm से छोटे होते हैं उनसे वायुविलय (एरोसोल्स) अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं। हवा में तैरने वाले कणों (एसपीएम) का मुख्य स्रोत गाड़ियाँ, पॉवर प्लांट्स (ताप संयंत्र), निर्माण गतिविधियाँ, तेल रिफाइनरी, रेलवे यार्ड, बाजार और फ़ैक्टरी आदि होते हैं।

हवा में उड़ती हुई राख (फ्लाई एश)
थर्मल पॉवर प्लांट में कोयले के जलने की प्रक्रिया में राख उप-उत्पाद की तरह निष्कासित होती है। यह राख वायु और जल को प्रदूषित करती है। जलस्रोतों में भारी धातु प्रदूषण का कारण भी हो सकती हैं। यह राख वनस्पतियों पर भी प्रभाव छोड़ती है क्योंकि यह पत्तियों पर और मिट्टी पर पूरी तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जम जाती है। यह राख ईंट बनाने और भरावन के लिये भी प्रयोग में लाई जाती है।

सीसा (लैड) और अन्य धातुओं के कण
टैट्राइथाइल लैड (TEL) को गाड़ियों की सरल और सहज गति के लिये पेट्रोल में परा-आघात के रूप में प्रयोग किया जाता है। गाड़ियों की निकास नलियों (Exhaust pipe) से निकल कर हवा में मिल जाता है। यदि श्वास के साथ शरीर में पहुँच जाता है तो गुर्दे (वृक्क) और जिगर (यकृत) को प्रभावित करता है और लाल रक्त कणों के बनने में बाधा पहुँचाता है। यदि सीसा पानी और भोजन के साथ मिल जाता है तो एक तरह से विष बन जाता है। यह बच्चों पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है जैसे बुद्धि को कमजोर करता है।

लौह, एल्युमिनियम, मैग्नेशियम, जिंक, और अन्य धातुओं के ऑक्साइड भी बहुत विपरीत प्रभाव डालते हैं। खनन प्रक्रिया और धातुकर्मीय प्रक्रिया में यह पौधों के ऊपर धूल की तरह जम जाता है। इससे कार्यिकीय, जैव-रासायनिक और विकास सम्बन्धी विकृतियाँ पौधों में विकसित हो जाती हैं जो पौधों में जननिक विफलता की ओर योगदान करती है।

तालिका 10.2 : आवासीय और औद्योगिक क्षेत्र में 24 घंटे में होने वाले प्रदूषकों के संकेंद्रण (mg/m3) का वार्षिक औसत (वर्ष 2000)
स्वीकार्य एस.पी.एम.- आवासीय 140-200 मिग्रा/मी3, औद्योगिक 360-500 मिग्रा/मी3

शहर

आवासीय क्षेत्र

औद्योगिक क्षेत्र

आगरा

349

388

भोपाल

185

160

दिल्ली

368

372

कानपुर

348

444

कोलकाता

218

405

नागपुर

140

157

10.3.2 गैसीय प्रदूषक (Gaseous pollutants)
पॉवर प्लांटों, उद्योगों, विभिन्न प्रकार की गाड़ियों - निजी और व्यावसायिक दोनों ही ईंधन के रूप में पेट्रोल या डीजल का प्रयोग करते हैं और गैसीय प्रदूषक जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड को, कण रूपी द्रव्य के साथ धुएँ के रूप में हवा में छोड़ते हैं। ये सभी मनुष्यों और वनस्पति पर हानिकारक प्रभाव छोड़ते हैं तालिका 10.3 की सूची में ऐसे ही कुछ प्रदूषक दिये गये हैं। इनके स्रोत और कुप्रभाव को भी तालिका में दिखाया गया है।

तालिका 10.3 : गैसीय वायु प्रदूषक, उनके स्रोत और प्रभाव

प्रदूषक

स्रोत

हानिकारक प्रभाव

कार्बन यौगिक (CO और CO2)

 

सल्फर यौगिक (SO2 और H2S)





 

नाइट्रोजन यौगिक (NO और N2O)







 

हाइड्रोकार्बन (बैंजीन, इथाइलीन)



 

निलंबित कण द्रव्य (SPM) हवा में निलंकित  कोई ठोस द्रव्य कण (राख, धूल, सीसा)













 

रेशे (कपास, ऊन)

मोटर वाहन, लकड़ी और कोयले के जलने से

 

शक्ति संयत्रों व रिफाइनरी ज्वालामुखी-विस्फोट



 

मोटरवाहन द्वारा छोड़ा गया धुआँ, वायुमण्डलीय अभिक्रिया






 

मोटरवाहन व पेट्रोलियम उद्योग



 

भापशक्ति संयंत्र, निर्माण गतिविधियां धातु कर्मीय प्रक्रियायें मोटर वाहन














 

वस्त्र उद्योग व कालीन बुनने वाला उद्योग


 
  • श्वसन सम्बंधी समस्याएँ

  • हरित गृह प्रभाव

 
  • मानवों में श्वसन समस्याएँ

  • पौधों में क्लोरोफिल की कमी (क्लोरोसिस)

  • अम्ल वर्षा

 
  • मानवों में आँखों व फेफड़ों में जलन

  • पादपों की उत्पादकता में कमी होना

  • अम्ल वर्षा से पदार्थों (धातुओं व पत्थर) को क्षति पहुँचना

  • श्वसन समस्यायें

  • कैंसर उत्पन्न करने वाले गुण

  • दृश्यता में कमी होना श्वसन समस्यायें

  • लाल रक्त कणिकाओं के विकास में व्यवधान उत्पन्न करता है व फेफड़े के रोग व कैंसर उत्पन्न करता है।

  • धूम (धुआँ + कुहरा) निर्माण के कारण दृश्यता में ह्रास (कमी होना) व रोगियों में दमा रोग की बढ़ोत्तरी होती है।

 
  • फेफड़ों के विकार

10.3.3 वायु प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण
(i) भीतरी (इनडोर) वायु प्रदूषण

भवनों के गलत डिजाइन से वायु का संचार ठीक से नहीं हो पाता और बन्द स्थानों की वायु प्रदूषित होती है। पेन्ट, कालीन, फर्नीचर आदि कमरे में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (Volatile Organic Compound, VOCs) उत्पन्न करते हैं। रोगाणुनाशी पदार्थ, धूमीकरण आदि के प्रयोग से हानिकारक गैस पैदा होती है। अस्पतालों के कचरे में जो रोगजनक तत्व पाये जाते हैं वह हवा में रोग के बीजाणु के रूप में रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप अस्पतालों से संक्रमण आता है या यह एक व्यवसायजन्य स्वास्थ्य बाधा है। भीड़ भरे स्थानों में, गन्दी बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी और जैविक ढेर को जलाने से बहुत धुआँ उठता है। जो बच्चे और महिलाएँ धुएँ के सीधे और अधिक सम्पर्क में आते हैं, उनको श्वसन समस्याएँ बहुत और भीषण होती हैं जिसमें नाक का बहना, खांसी, खराब गला, सांस लेने में कठिनाई, आवाज के साथ श्वास और छींक आदि की समस्याएँ सम्मिलित हैं।

(ii) भीतरी प्रदूषण का निराकरण और नियंत्रण
लकड़ी और गोबर के उपलों के प्रयोग के स्थान पर स्वच्छ ईंधन जैसे जैविक गैस (बायोगैस), मिट्टी का तेल या बिजली का प्रयोग करें। लेकिन बिजली की आपूर्ति बहुत सीमित होती है। खाना बनाने के लिये सुधारित स्टोव, धूम्र रहित चूल्हों की उष्मीय क्षमता अधिक होती है और धुएँ जैसे प्रदूषकों का निकास भी कम होता है। घर का नक्शा ऐसा होना चाहिये जिसमें रसोईघर में शुद्ध हवा का आना-जाना ठीक ढंग से हो, उचित वायु संचार हो।

बायोगैस और सी-एन-जी- (संपीडित प्राकृतिक गैस) के प्रयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। पेड़ों की ऐसी प्रजातियाँ जो कम धुआँ देती हैं जैसे बबूल (एकेशिया निलोटिका) लगाना चाहिये और उनकी लकड़ी का ही उपयोग करना चाहिये। लकड़ी का कोयला (चारकोल) का उपयोग अधिक सुरक्षित है। घर के अंदर या कमरों में जैविक कूड़े से जो प्रदूषण होता है उसे ढककर रखने से कम किया जा सकता है। भीतरी (Indoor) प्रदूषण को रोकने के लिये कूड़े का पृथक्करण, स्रोत पर ही पहले से कूड़े को उपचारित करना, और कमरों की शुद्धता करना आदि बहुत सहायक तरीके हैं।

(iii) औद्योगिक प्रदूषण का निराकरण और नियंत्रण
औद्योगिक प्रदूषण को निम्न विधियों द्वारा काफी हद तक रोका जा सकता हैः

(क) ऊर्जा संयंत्रों और फर्टिलाइजर संयंत्रों में स्वच्छ ईंधन का प्रयोग किया जाय। जैसे एलएनजी (तरल प्राकृतिक गैस), यह सस्ती होने के साथ ही पर्यावरण सहयोगी भी है।

(ख) पर्यावरण सहयोगी औद्योगिक प्रक्रियाओं को अपनाएँ जिससे प्रदूषकों और हानिकारक अपशिष्टों का निकास कम हो।

(ग) ऐसी मशीनों को लगाया जाय जो कम प्रदूषकों का निष्कासन करें। जैसे फिल्टर, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर (Electrostatic Precipitator), इनरशियल कलैक्टर्स (Inertial collectors), स्क्रबर, ग्रेवल बैड फिल्टर या ड्राइ स्क्रबर। इनका विस्तृत वर्णन नीचे किया जा रहा है।

(i) फिल्टर- गैस की धारा से ही ठोस कणों को फिल्टर दूर कर देते हैं। फिल्टर कपड़े से, रेत से, बड़ी छलनी से या फैल्ट पैड से बने होते हैं। फिल्टर की बैगहाउस पद्धति सर्वाधिक प्रचलित है और यह सूत या सिंथेटिक कपड़े (कम ताप के लिये) से बने होते हैं। उच्च ताप के लिये ग्लासक्लांथ का प्रयोग होता है। (उच्च ताप 290°C तक के लिये)

(ii) इलेक्ट्रो स्टेटिक प्रेसिपिटेटर (ESP)- ऊपर उठने और उत्पन्न होने वाली धूल आयन और आयनित कण पदार्थों से युक्त होती है, और आयन में परिवर्तित होने वाला कणरूपी पदार्थ विपरीत धरातल पर एकत्रित हो जाता है। इन कणों को, कभी-कभी धरातल को हिला कर या झाड़कर धरातल से हटाया जाता है। ईएसपी का प्रयोग बॉयलर, भट्टियों, और थर्मल पावर प्लांट की अनेक दूसरी इकाइयों, सीमेंट फैक्टरी, स्टील प्लांट आदि में होता है।

(iii) जड़त्वीय कलैक्टर्स (जड़त्वीय संचयकर्ता)- यह इस सिद्धान्त पर कार्य करता है कि गैस में एसपीएम का जड़त्व उसके विलायक (सॉल्वेन्ट) से अधिक होता है और क्योंकि कणरूपी पदार्थ समूह का स्वभाव ही जड़त्व (जड़ता या स्थिरता) होता है तो यह उपकरण भारी पदार्थों को कुशलता से एकत्रित कर लेता है। गैस क्लीनिंग प्लांट में प्रायः ‘साइक्लोन’ जड़त्वीय कलेक्टर का प्रयोग प्रायः होता है।

(vi) स्क्रबर (Scrubber गैस शुद्ध करने का उपकरण)- ये आर्द्र संचयकर्ता होते हैं। ये गैस की धारा से वायुविलय (ऐरोसॉल) कणों को हटाते हैं। ये या तो धरातल से ही आर्द्र कणों को इकट्ठा करके दूर कर देते हैं या उन कणों को स्क्रबिंग तरल पदार्थ से गीला कर दिया जाता है। इस तरह से वे कण सहायक गैसीय माध्यम से इंटरफेस स्क्रबिंग लिक्विड तक जाने में अटक जाते हैं।

गैसीय प्रदूषक नम स्क्रबर के तरल पदार्थ में सोख लिये जाने से दूर हो सकते हैं। परन्तु यह इस बात पर निर्भर करता है किस प्रकार की गैस को दूर करना है। उदाहरण के लिये सल्फर डाइऑक्साइड को दूर करने के लिये क्षारीय घोल की आवश्यकता है क्योंकि इसमें सल्फर डाइऑक्साइड घुल जाती है। गैसीय प्रदूषक किसी सक्रिय ठोस धरातल पर सोख लिया जा सकता है। ठोस धरातल जैसे सिलिका जैल, एल्युमिना, कार्बन आदि। सिलिका जैल वाष्पकणों को दूर करती है। कोयला व पेट्रोलियम संसाधक उद्योगों से निकलने वाले तरल पदार्थों को संघनित करने से अनेक उप-उत्पाद प्राप्त होते हैं।

ऊपर दिये गये उपकरणों के उपयोग के अतिरिक्त प्रदूषकों को नियंत्रित करने के कुछ अन्य उपाय भी हैं:-

- चिमनियों की ऊँचाई में वृद्धि करने से।
- उन उद्योगों को बंद कर दें जो पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।
- प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को शहर और घनी आबादी वाले क्षेत्र से दूर कर दिया जाये।
- उचित चौड़ाई वाली हरित पट्टी (ग्रीन बैल्ट) को विकसित और रक्षित करना।

(iv) वाहन सम्बन्धी प्रदूषण का नियंत्रण
- वाहनों से निष्कासित होने वाले धुएँ का स्तर निश्चित होने से और उसका पालन करने से प्रदूषण में कमी आयेगी। उत्प्रेरक कन्वर्टर वाहनों के उत्सर्जन को कम करता है। अतः उसकी मजबूती का स्तर निर्धारित होना चाहिए।

- दिल्ली जैसे शहरों में गाड़ियों को नियमित अंतराल पर प्रदूषण नियंत्रण परीक्षण कराना और उसका प्रमाणपत्र (पीयूसी) रखना अनिवार्य है। इससे यह निर्धारित होता है वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषक नियमों की सीमा के अंतर्गत ही है।

- पेट्रोल की तुलना में डीजल काफी सस्ता है जिससे डीजल के प्रयोग को बल मिलता है। सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिये डीजल में सल्फर की मात्रा घटाकर 0.05% कर दी गई है।

- पहले इंजन के सहज रूप से चलने के लिये और ऑक्टेन स्तर को बढ़ाने के लिये पेट्रोल में टैट्राइथाइल लैड के रूप में लैड मिलाया जाता था। वाहन उत्सर्जन में लैड कणों को रोकने के लिये पेट्रोल में लैड के मिश्रण पर रोक लगा दी गई है।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाहनों में अन्य ईंधन जैसे सीएनजी के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

पाठगत प्रश्न 10.1
1. प्रदूषक और प्रदूषण को परिभाषित कीजिए।
2. प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले किन्हीं तीन उपकरणों का नाम बताइये।
3. भीतरी वायु प्रदूषण को रोकने के दो साधन बताइये।
4. पीयूसी प्रमाणपत्र क्या है?

10.4 ओजोन परत में छेद - कारण और ओजोन की क्षति से होने वाली हानि
समतापमंडल में एक ओजोन परत होती है जो सूर्य से निकलने वाली तीव्र पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रा वॉयलेट) के विकिरण (रेडियेशन) से हमारी रक्षा करती है। रसायनों जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), जिसका उपयोग फ्रिज, एअरकंडीशनर, अग्निशामक यंत्रों¸, सफाई करने वाले विलायकों, एअरोसोल्स (सुगंधित द्रव्यों की स्प्रे केनों, औषधियों, कीटनाशकों) से निकलने वाली क्लोरीन से ओजोन परत को क्षति पहुँचती है क्योंकि CFCs ओजोन परत में फैले ओजोन कणों को ऑक्सीजन (O2) में बदल देता है। ओजोन की मात्र में कमी होती जाती है और यह UV विकिरणों के प्रवेश को नहीं रोक सकती है। इसके कारण आर्कटिक (उत्तर ध्रुवीय क्षेत्रों) और अंटार्कटिक (दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्रों) के ऊपर ओजार परत या ढाल पतली होती जा रही है।

इसको ही ओजोन छिद्र के नाम से जानते हैं। इसके कारण पराबैंगनी किरणों के विकिरण का पृथ्वी पर मार्ग खुल जाता है जिसका परिणाम है धूप के कारण झुलसना (सनबर्न), आँखों में मोतियाबिंद और अंधापन, जंगलों में कम उत्पादन आदि। ‘‘मान्ट्रियल प्रोटोकॉल’’ जिसमें 1990 में सुधार किया गया था, उसमें ओजोन परत को हानि पहुँचाने वालें CFCs को पूर्ण रूप से हटाने का निश्चय किया गया था।

10.5 भूमंडलीय ऊष्मन (ग्लोबल वार्मिंग) और हरित ग्रह प्रभाव
कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, वाष्प कण और क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसी वायुमंडलीय गैसें जब पृथ्वी से बाहर जाने वाले अवरक्त (Infra-red इंफ्रारेड) विकिरणों का मार्ग बाधित कर देने में समर्थ होती हैं। पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित अवरक्त विकिरण (रेडिएशन) इन गैसों के बीच से नहीं निकल सकता। जिसके कारण यह नीचे ही फंस कर तापीय ऊर्जा या वातावरण में गर्मी में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार से वैश्विक वायुमंडल के तापमान में वृद्धि हुई है। तापमान की वृद्धि को ग्रीनहाउस की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है।

वानस्पतिक बगीचों में इन गैसों को ग्रीनहाउस (Green House) गैसों के नाम से जाना जाता है और इनके द्वारा उत्पन्न उष्णता को ग्रीनहाऊस प्रभाव कहा जाता है। यदि शताब्दी के बदलने के साथ इन ग्रीनहाउस गैसों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो तापमान 5°C तक बढ़ सकता है। इसके कारण ध्रुवीय बर्फ पिघलने से समुद्रों में जलस्तर बढ़ जायेगा जिसके कारण तटीय तूफान बढ़ जाएँगे, तटीय क्षेत्रों और पारितंत्रों जैसे जलमग्न क्षेत्र और दलदल की भी क्षति होगी।

10.6 ध्वनि प्रदूषण (NOISE POLLUTION)
ध्वनि एक सबसे अधिक व्यापक प्रदूषक है। संगीतमय घड़ी दिन में मधुर लग सकती है, परन्तु रात को सोते समय तकलीफ दे सकती है। शोर को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं- ‘व्यर्थ की ध्वनि’ या ‘कोई भी ऐसी ध्वनि जो सुनने वाले के लिये रुचिकर न हो।’ उद्योगों का शोर - जैसे पत्थरों का काटना और कूटना, स्टील को तपा कर पीटना (लोहार का काम), लाउडस्पीकर, अपना सामान बेचने के लिये विक्रेता का चिल्लाना, भारी परिवहन वाहनों के चलने से, रेलगाड़ियाँ और हवाई जहाज आदि कष्टदायक ध्वनि उत्पन्न करते हैं जिससे रक्तचाप का बढ़ना, क्रोध आना, कार्य कुशलता में कमी, श्रवण शक्ति का क्षीण होना आदि परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं।

प्रारम्भ में ये अल्पकाल के लिये हो सकते हैं परन्तु यदि ध्वनि का स्तर तीव्र हो रहा है तो स्थायी रूप से भी हो सकती है। अतः अत्यधिक कोलाहल पर नियंत्रण करना अत्यन्त आवश्यक है। ध्वनि की उच्चता का स्तर डेसिबल (डीबी) में नापा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने ध्वनि का स्तर दिन में 45 डीबी और रात्रि में 35 डीबी निश्चित किया है। 85 डीबी से उच्च स्तर पर होने वाली ध्वनि हानिकारक है। तालिका संख्या 10.4 में कुछ सामान्य गतिविधियों की ध्वनि की तीव्रता दी गई है।

तालिका 10.4: कुछ ध्वनि स्रोत और उनकी तीव्रता

स्रोत

तीव्रता

स्रोत

तीव्रता

चुपचाप बातचीत

20-30 dB

रेडियो संगीत

50-60 dB

उच्च आवाज में बातचीत

60 dB

यातायात ध्वनि

60-90 dB

घास काटने की मशीन

60-80 dB

भारी वाहन ट्रक

90-100 dB

हवाई जहाज की ध्वनि

90-120 dB

अंतरिक्ष यान का

140-179 dB

बीट संगीत

120 dB

प्रक्षेपण

 

मोटर साइकिल

105 dB

जेट इंजन

140 dB

10.6.1 ध्वनि प्रदूषण के स्रोत
ध्वनि प्रदूषण की समस्या निरन्तर बढ़ने वाली समस्या है। सभी मानव गतिविधियाँ भिन्न-भिन्न स्तरों पर ध्वनि-प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं। ध्वनि प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं जो घर के अन्दर और बाहर दोनों ही जगह हैं।


भीतरी स्रोत (इनडोर स्रोत)- इसमें रेडियो, टेलीविजन, जनरेटर, बिजली के पंखे, एयर कूलर, एयरकंडीशनर, विभिन्न घरेलू उपकरण और पारिवारिक विवाद से उत्पन्न शोर निहित हैं। शहरों में ध्वनि प्रदूषण अधिक है क्योंकि शहरों में आबादी घनी है, उद्योग अधिक है और यातायात जैसी गतिविधियाँ अधिक हैं। अन्य प्रदूषकों की भाँति शोर भी औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और आधुनिक सभ्यता का एक उप-उत्पाद (By Product) है।

बाह्य स्रोत- लाउडस्पीकरों का विवेकहीन प्रयोग, औद्योगिक गतिविधियाँ, मोटरगाड़ियाँ, रेल-यातायात, हवाई जहाज और बाजार, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गतिविधियाँ, खेलकूद और राजनैतिक रैलियाँ ध्वनि प्रदूषण के बाह्य स्रोत हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती में काम आने वाली मशीनें, पम्प सेट ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत होते हैं। त्योहारों, शादियों और अन्य अनेक अवसरों पर आतिशबाजी का प्रयोग भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देता है।

10.6.2 ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण सबसे अधिक परेशानी और झल्लाहट पैदा करता है। इससे नींद में विघ्न पड़ता है, उच्च रक्तचाप (Hypertension) हो सकता है, भावात्मक समस्याएँ जैसे क्रोध, मानसिक अवसाद और चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो सकता है। ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति की कार्य कुशलता और क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

10.6.3 ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण
निम्न बातों को अपनाने से ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित या फिर कम किया जा सकता है-

- गाड़ियों के उचित रखरखाव और अच्छी बनावट से सड़क यातायात के शोर को कम किया जा सकता है।
- ध्वनि कम करने के उपायों में ध्वनि टीलों का निर्माण, ध्वनि को क्षीण करने वाली दीवारों का निर्माण और सड़कों का उचित रखरखाव और सीधी सपाट सतह होना आवश्यक है।
- रेल इंजनों की रीट्रोफिटिंग (Retrofitting), रेल की पटरियों की नियमित वेल्डिंग और बिजली से चलने वाली रेलगाड़ियों का प्रयोग या कम शोर करने वाले पहियों का प्रयोग बढ़ाने से रेलगाड़ियों द्वारा उत्पन्न शोर में भारी कमी आयेगी।
- हवाई यातायात के ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये वायुयानों के उड़ने और उतरने के समय उचित ध्वनि रोधक लगाने और ध्वनि नियमों को लागू करने की आवश्यकता है।
- औद्योगिक ध्वनियों को रोकने के लिये भी ऐसे स्थानों पर जहाँ जेनरेटर हों या ऐसे क्षेत्र जहाँ पर बहुत शोर वाली मशीनें हों, ध्वनिसह उपकरण लगाने चाहिये।
- बिजली के औजार, बहुत तेज संगीत और लैण्डमूवर्स, सार्वजनिक कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का प्रयोग आदि रात्रि में नहीं करना चाहिये। हॉर्न का प्रयोग, अलार्म और ठंडा करने वाले मशीनों का प्रयोग सीमित होना चाहिये। ऐसी आतिशबाजी जो शोर करती है और प्रदूषण फैलाती है उनका प्रयोग सीमित करना चाहिये जिससे शोर और वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
- घने पेड़ों की हरियाली (ग्रीन बैल्ट) भी ध्वनि प्रदूषण को कम करने में सहायक होती हैं।

पाठगत प्रश्न 10.2
1. ध्वनि क्या है और इसे किस इकाई में नापा जाता है?
2. ध्वनि प्रदूषण के दो हानिकारक प्रभाव बताइये।
3. ध्वनि प्रदूषण के दो महत्त्वपूर्ण भीतरी और बाहरी स्रोत बताइये। इनमें से प्रत्येक प्रकार के प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है?

10.7 जल-प्रदूषण
जल में अनिच्छित या अवांछनीय पदार्थों का मिला होना या पाया जाना ही जल-प्रदूषण कहलाता है।

जल प्रदूषण एक सबसे गम्भीर पर्यावरणीय समस्या है। जल प्रदूषण मानव की अनेक गतिविधियों के कारण होता है जैसे औद्योगिक, कृषि और घरेलू कारणों से होता है। कृषि का कूड़ा-कचरा जिसमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक मिले होते हैं। औद्योगिक बहिर्स्रावों के साथ-साथ विषालु पदार्थों का मिलना, मानव और जानवरों का निष्कासित मल-जल सभी जल-प्रदूषण का कारण हैं। जल-प्रदूषण के प्राकृतिक कारणों में मृदा अपरदन, चट्टानों से खनिजों का रिसाव और जैव पदार्थों का सड़ना निहित है। नदियाँ, झरने, सागर, समुद्र, ज्वारनदमुख, भूमिगत जलस्रोत भी बिंदु और गैर बिंदु स्रोतों के कारण प्रदूषित होते हैं। जब प्रदूषक किसी निश्चित स्थान से नालियों और पाइपों के द्वारा पानी में गिरता है तो वह बिंदु स्रोत प्रदूषण (Point source pollution) कहलाता है।

निश्चित स्थान फैक्टरी, पॉवर प्लांट, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हो सकते हैं। इसके विपरीत गैर-बिन्दु स्रोत (Non point source) में प्रदूषक बड़े और विस्तृत क्षेत्र से आते हैं जैसे खेतों, चारागाहों, निर्माण स्थलों, खाली पड़ी खदानों और गड्ढों, सड़कों और गलियों से बहकर आने वाला कूड़ा सम्मिलित है।

10.7.1 जल-प्रदूषण के स्रोत
प्रदूषित जल से उत्पन्न होने वाले रोगों और अनेकों अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का मुख्य स्रोत जल-प्रदूषण ही है। खेतों से बहकर आए पानी से आने वाले तलछट और अनुपचारित या आंशिक रूप से उपचारित सीवेज का निष्कासन और औद्योगिक कचरा, ठोस कचरा या धूल का निष्कासन जलस्रोतों के अन्दर या उनके आस-पास करना गम्भीर रूप से जल प्रदूषण का कारण हैं। पानी की पारदर्शिता इस गन्दगी के कारण कम हो जाती है जिससे पानी के अन्दर प्रकाश की किरणों का पहुँचना बहुत कम हो जाता है और फलस्वरूप जलीय पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण में भी कमी आ जाती है।

(i) कीटनाशकों और अकार्बनिक रसायनों के कारण प्रदूषण
- खेती में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशक जैसे डीडीटी व अन्य पदार्थों के उपयोग आदि से जल निकाय प्रदूषित होते हैं। जलीय जीव, पानी से उन कीटनाशकों को लेकर, उन कीटनाशकों से प्रभावित होकर खाद्य शृंखला से जुड़ जाती है (इस विषय में जलीय) और उच्च पोषण स्तर में एकत्रित (सांद्रित) होकर यह प्रदूषण खाद्य शृंखला के अन्तिम छोर तक पहुँच जाता है।

- सीसा, जिंक, आर्सेनिक, तांबा, पारा और कैडमियम ये सभी धातुएँ फैक्टरी से निकले औद्योगिक जल में मिले रहते हैं जिनका मनुष्यों और अन्य पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भूमिगत जल में आर्सेनिक प्रदूषण पाया गया है। आर्सेनिक से प्रदूषित जल वाले कुओं का पानी प्रयोग करने पर शरीर के अंगों जैसे रक्त, नाखून और बालों में आर्सेनिक पदार्थ जमा हो जाता है जिससे अनेक चर्म रोग जैसे शुष्क त्वचा, ढीली त्वचा, त्वचा विकृति यहाँ तक कि चर्म कैंसर रोग हो सकते हैं।

- जल संकाय का प्रदूषण पारे (मर्करी) से होने पर मनुष्यों में मिनामाटा रोग और मछलियों में ड्रॉप्सी रोग हो जाता है। जस्ते के कारण डिस्प्लैक्सिया हो जाता है और कैडमियम का जहर इताई-इताई रोग का कारण होता है।

- समुद्र में तेल का प्रदूषण (तेल रिसाव) पानी के जहाजों, तेल के टैंकरों, उनके उपकरणों और पाइपलाइनों के कारण होता है। तेल के टैंकरों के दुर्घटनाग्रस्त होने से बहुत बड़ी मात्रा में समुद्र में तेल फैल जाता है जिससे समुद्री पक्षियों की मृत्यु हो जाती है और समुद्री जीवों और तटों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(ii) थर्मल प्रदूषण (तापीय प्रदूषण)
पॉवर प्लांट्स-ऊष्मीय और नाभिकीय, रासायनिक और अन्य अनेक उद्योग ठंडा करने के उद्देश्य के लिये बहुत मात्रा में जल का प्रयोग करते हैं (लगभग सम्पूर्ण प्राप्त जल का 30 प्रतिशत जल) और प्रयोग किया हुआ गर्म पानी नदियों, जलधाराओं और समुद्र में छोड़ दिया जाता है। बॉयलर और गर्म करने की प्रक्रिया से निकली बेकार (व्यर्थ) ऊष्मा ठंडा करने वाले जल का तापमान बढ़ा देती है। गर्म पानी जिस जल में मिलता है उसका तापमान आस-पास के जल के तापमान से 10 से 15°C तक अधिक बढ़ जाता है। यह तापीय प्रदूषण (Thermal pollution) कहलाता है।

पानी का तापमान बढ़ने से पानी में घुली ऑक्सीजन कम हो जाती है जिसके कारण जलीय जीवन पर प्रतिकूल (विपरीत) प्रभाव पड़ता है। स्थलीय पारितंत्र से विपरीत जलनिकायों का तापमान स्थिर और स्थायी रहता है, बहुत अधिक परिवर्तित नहीं होता। अतः जलीय जीवन को एक से स्थिर तापमान में रहने का अभ्यास हो जाता है और जल के तापमान में थोड़ा सा उतार-चढ़ाव जलीय वनस्प्ति और जीवों पर गहरा प्रभाव डालती है। उन्हें तापमान में बहुत परिवर्तन का अनुभव नहीं होता है। अतः पॉवर प्लांट से निष्कासित गरम जल जलीय जीवों पर विपरीत प्रभाव डालता है। जलीय वनस्पति और जीव तो गरम उष्ण कटिबंधीय जल में रहते हैं, वे खतरनाक रूप से तापमान की उच्च सीमा में रहते हैं। विशेषकर भीषण गर्म महीनों के दौरान तापमान की सीमा में हल्का सा परिवर्तन इन जीवों पर तापीय दबाव पैदा कर देता है।

जलनिकायों में गर्म पानी का विसर्जन मछलियों के खान-पान पर असर डालता है, उनका उपापचय बढ़ जाता है जो उनके वृद्धि पर प्रभाव डालता है। उनकी तैरने की क्षमता घट जाती है। जीवभक्षी पशुओं से दूर भागना और अपने शिकार का पीछा करना उनके लिये कठिन हो जाता है। बीमारियों से उनकी लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। तापीय प्रदूषण के कारण जैवविविधता कम हो जाती है। तापीय प्रदूषण को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि गर्म पानी को ठंडा करने वाले तालाब में इकट्ठा कर लिया जाए और ठंडा होने के बाद ही उसे किसी जल निकाय में विसर्जित करना चाहिये।

10.7.2 भूजल (भूमिगत जल) प्रदूषण
सम्पूर्ण विश्व में बहुत अधिक लोग पीने, घरेलू काम, औद्योगिक और कृषि में प्रयोग आने वाले जल के लिये भूजल पर ही निर्भर रहते हैं। प्रायः भूजल शुद्ध जलस्रोत होता है। फिर भी अनेक मानव गतिविधियाँ जैसे सीवेज का अनुचित निपटारा, खेत की उर्वरक और कृषि रसायनों का ढेर लगा देना और औद्योगिक कूड़े के कारण भूमिगत जल प्रदूषण होता है।

भूमिगत जल का प्रदूषण10.7.3 यूट्रोफिकेशन (सुपोषण)
घरेलू कूड़ा कर्कट (अपशिष्टों) का विसर्जन, खेती के बचे अंश, भू-स्राव और औद्योगिक कचरा जब जल निकायों में मिलता है तो जल निकायों में बड़ी तीव्रता से पोषकों की वृद्धि होती है। जल निकायों में अधिक पोषक-समृद्धि होने से डकवीड, वॉटर हायासिन्थ (जलकुम्भी), फाइटोप्लैंक्टॉन (पादप प्लवक) और दूसरी जलीय वनस्पतियों, जलीय जीवों की वृद्धि होती है जिसके कारण जल में घुली हुई ऑक्सीजन की माँग (Biological demand for oxygen, BOD) बढ़ जाती है। जितनी वनस्पति बढ़ती है, उतनी मरती भी है। यहाँ तक कि मरे हुए सड़े-गले पौधों और जैविक पदार्थों से पानी में घुली ऑक्सीजन (Dissolved oxygen) की मात्रा कम होती है जिसके कारण बड़ी संख्या में आबादी का नाश होता है और मछली तथा अन्य जलीय जीवों की आबादी में वृद्धि होती है।

पौधों के मरने और सड़ने गलने से एक अप्रिय गन्ध पैदा होती है और वह जल मनुष्य के प्रयोग योग्य नहीं रहता। पादप प्लवकों और शैवालों के बहुत अधिक और अचानक वृद्धि से पानी का रंग हरा हो जाता है। जिसे वॉटर ब्लूम के (Water bloom) नाम से जाना जाता है या ‘एल्गल ब्लूम’ (Algal bloom) भी कहते हैं। यह पौधा पानी में विषाक्त तत्व छोड़ता है, जिसके कारण बड़ी संख्या में मछलियाँ मरती हैं। जलसंकाय की इसी ‘पोषक समृद्धि’ को सुपोषण (Eutrophication) कहते हैं। देश में झीलों और जलसंकायों के यूट्रोफिकेशन की बढ़ती संख्या के लिये मानव-गतिविधियाँ उत्तरदायी हैं।

10.7.4 जल-प्रदूषण को नियंत्रित करने की विधियाँ और जल का पुनर्चक्रण
जल प्रदूषण का नियंत्रण

घरेलू और उद्योगों से बहाया जाने वाला बेकार और गंदा पानी या कूड़े के ढेरों के गंदे पानी को सीवेज (मल-जल) कहा जाता है। इसमें वर्षा का पानी या सतह से बहकर आने वाला जल भी हो सकता है। इस जल को उपचारित (ट्रीटमेंट) करने के लिये दो अवस्थाएँ होती हैं- प्रारम्भिक उपचार और द्वितीयक (सेकंडरी) उपचार। इसके अन्तर्गत निहित होता हैः 1. तलछट (सेडिमेंटेशन), 2. जमाव/गुच्छा सा बनना (गुच्छन), 3. निथारना/छानना, 4. विसंक्रमण, 5. हल्का बनाना और 6. गैसों का मिश्रण। प्रथम चार बातें प्रारम्भिक उपचार में आती हैं। प्रारम्भिक उपचार में निहित तीन बातें तैरने वाले कणीय पदार्थों को दूर करते हैं। द्वितीयक उपचार उन जैव पदार्थों को हटाता है जो प्राथमिक उपचार के बाद अपनी सूक्ष्मजीवी विघटन से बच जाते हैं।

द्वितीयक उपचार के बाद निकलने वाला जल साफ हो सकता है पर उसमें भारी मात्रा में नाइट्रोजन, अमोनिया के रूप में, नाइट्रेट और फास्फोरस मिला होता है जो जिस भी जल संकाय में, नदी, तालाब या झीलों में मिलेगा, सुपोषण की समस्या को पैदा करेगा। तृतीय उपचार का अर्थ पोषक तत्वों को समाप्त करता है, रोग जनक बैक्टीरिया के संक्रमण को हटाता है, एरिएशन (गैसों के मिश्रण) से हाइड्रोजन सल्फाइड दूर होता है, और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होती है तब वह जल जलीय जीवों और वनस्पतियों के उपयोग के योग्य होता है। सीवेज या गन्दे पानी को इस प्रकार उपचारित करने के लिये विशेष रूप से ट्रीटमेंट प्लांट (उपचार संयंत्र) बनाये जाते हैं। प्राथमिक उपचार के बाद जो शेष बचता है उसे गाद या ‘स्लज (Sludge)’ कहते हैं।

10.7.5 जल पुनर्चक्रण (Water recycling)
बढ़ती जनसंख्या के साथ दिन-प्रतिदिन जल की आवश्यकता भी तीव्रता से बढ़ रही है। परन्तु जल की उपलब्धता सीमित है, लेकिन जल स्रोतों जैसे नदी, झरनों और भूमिगत जल से निरंतर तीव्र गति से पानी निकालने से इनमें पानी की कमी भी हो रही है और पानी की गुणवत्ता में भी कमी आ रही है। अतः यह आवश्यक है कि उपलब्ध पानी का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए। यह तभी होगा जब व्यर्थ किये जल को पुनः चक्रित करके, उपचारित या अनुपचारित करने के पश्चात ही कुछ विशेष कार्यों के लिये प्रयोग किया जाए। पुनः चक्रित का अर्थ है दूषित जल को उपचार (शोधन) संयंत्र या जलसंकाय में डालने से पहले पुनः प्रयोग में लाया जाए। इस प्रकार दूषित जल को बार-बार पुनः चक्रित करके उपचारित या अनुपचारित रूप में एक ही प्रयोगकर्ता द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

10.7.6 जल-प्रदूषण का नियंत्रण
निम्नलिखित सावधानियों को अपनाकर जल प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता हैः-

(क) अपने तरीकों में बदलाव लाकर पानी की जरूरत को कम किया जाना चाहिए।
(ख) उपचारित या अनुपचारित किये बिना पानी का पुनः उपयोग किया जाना चाहिए।
(ग) जहाँ तक सम्भव हो उपचारित जल का पुनः चक्रण अधिकतम की जाए।
(घ) पानी को बेकार और व्यर्थ कम से कम करना चाहिए।

पाठगत प्रश्न 10.3
1. उन धातुओं का नाम बताइये जिनके पेयजल में अधिक मात्रा में होने से मिनामाटा और इताई-इताई रोग हो जाता है।
2. जब उर्वरक और सीवेज (मल जल) जल निकायों में मिलते हैं तो पादप प्लवक और एल्गी तीव्रता से बढ़ते हैं। इस प्रक्रिया को क्या कहते हैं।
3. प्रारम्भिक उपचार क्या है? प्रारम्भिक उपचार के द्वारा फैक्टरी से बाहर निकलने वाले दूषित जल से क्या दूर किया जाता है?
4. औद्योगिक संस्थानों में शीतलन (कूलिंग) के लिये प्रयोग किया जाने वाला जल नदियों में सीधा बहा दिया जाता है, इससे किस हद तक जलीय तापमान बढ़ता है?
5. तापीय (थर्मल) प्रदूषण मछलियों की तैरने की क्षमता पर क्या प्रभाव डालता है?
6. जलीय जीवों की उपापचय पर तापीय प्रदूषण क्या प्रभाव छोड़ता है?
7. दूषित जल के प्रारम्भिक उपचार के बाद बचने वाले अंश को क्या नाम दिया गया है?

10.8 मृदा प्रदूषण (SOIL POLLUTION)
मृदा की गुणवत्ता और इसकी उर्वरक शक्ति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाले किसी भी पदार्थ का भूमि में मिलना ‘मृदा प्रदूषण’ कहलाता है। प्रायः जल भी भूमि को प्रदूषित करने वाला एक प्रदूषक है। प्लास्टिक, कपड़ा, ग्लास (काँच), धातु और जैव पदार्थ, सीवेज, सीवेज गाद, निर्माण का मलबा, ऐसा कोई भी ठोस कूड़ा जो घरों, व्यवसायों और औद्योगिक संस्थानों से निकलता है मृदा प्रदूषण में वृद्धि करता है। राख, लोहा और लोहे का कचरा, चिकित्सकीय और औद्योगिक कूड़ा जिन्हें कहीं भी जमीन पर डाल दिया जाता है, मृदा प्रदूषण के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इसके साथ ही उर्वरक और कीटनाशक जो खेती में प्रयोग किये जाते हैं, मिट्टी में मिल जाते हैं और नगर के कूड़े कर्कट से गड्ढों को भरना मृदा प्रदूषण के कारण हैं। अम्लीय वर्षा और प्रदूषकों का शुष्क संग्रह जो धरती के तल पर किया गया हो, मृदा प्रदूषण को बढ़ावा देता है।

10.8.1 मृदा प्रदूषण के स्रोत
प्लास्टिक थैलियां - कम घनत्व वाली पॉलीथीन (Low density polythylene, LDPE) से प्लास्टिक थैलियां बनती हैं जो वास्तव में कभी भी नष्ट नहीं होती हैं, इसके कारण एक विकराल पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो गया है। फेकी हुई थैलियां नालियों को और सीवेज व्यवस्था को बंद कर देती हैं। उन थैलियों में बचा खुचा खाना या सब्जी आदि के छिलके फेंकने से गायें और कुत्ते उन्हें वैसे ही खा लेते हैं और प्लास्टिक के कारण दम घुटने से उनकी मौत हो सकती है। प्लास्टिक एक अजैव निम्नकरणीय पदार्थ है और प्लास्टिक के कूड़े के ढेर के साथ जलने पर अत्यधिक विषालु और जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, फॉस्जीन, डायोक्सिन और अन्य जहरीले क्लोरीनीकृत यौगिक निकलते हैं।

औद्योगिक स्रोत- इसमें धूल, राख, रासायनिक अवशिष्ट, धातु और नाभिकीय कचरा सम्मिलित है। बड़ी संख्या में औद्योगिक रसायन, रंजक, एसिड इत्यादि किसी न किसी प्रकार से मिट्टी में मिल जाते हैं और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं यहाँ तक कि कैंसर का भी कारण बन जाते हैं। कृषि सम्बन्धी स्रोत- कृषि रसायन विशेषकर रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक भूमि को प्रदूषित करते हैं। इन खेतों से बहने वाले पानी के साथ बहकर आने वाले उर्वरक जल निकायों में मिल जाते हैं, जिस कारण जलसंकायों में सुपोषण की समस्या हो जाती है। कीटनाशक दवाइयाँ बहुत विषाक्त होती हैं जो मनुष्यों और पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिसके कारण श्वास- सम्बंधी समस्याएँ, कैंसर और मृत्यु भी सम्भव है।

10.8.2 मृदा प्रदूषण का नियंत्रण
बिना विचारे अविनाशी ठोस कूड़े को कहीं भी फेंकने से बचना चाहिये।

मृदा प्रदूषण को रोकने के लिये प्लास्टिक थैलियों का उपयोग रोकना होगा। इसके स्थान पर कपड़े का या निम्न स्तर की सामग्री जैसे कागज आदि का प्रयोग करना चाहिये। सीवेज का प्रयोग उर्वरकों या भराव के लिये करने से पूर्व अच्छी तरह उपचारित कर लेना चाहिए। घरों से, खेती से निकलने वाले जैविक पदार्थ और अन्य चीजों को अलग-अलग छांट लेना आवश्यक है जिससे वर्मिकम्पोस्टिंग (Vermicomposting) हो सके। यह एक लाभकारी उर्वरक को उप-उत्पाद की तरह उत्पन्न करता है। औद्योगिक कचरे को फेंकने से पहले हानिकारक पदार्थों को हटाने के लिये उचित रूप से उपचारित कर लेना चाहिए। जैव चिकित्सा सम्बन्धी कूड़े को पृथक ही एकत्रित करना चाहिये और उचित रूप से जलाने वाले उपकरणों (Incinerators) में भस्म कर देना चाहिए।

पाठगत प्रश्न 10.4
1. मृदा प्रदूषण को परिभाषित कीजिए।
2. प्लास्टिक बैग पर्यावरण के लिये सर्वाधिक परेशानी पैदा करने वाली वस्तु क्यों है।
3. वर्मिकम्पोस्टिंग जैविक कूड़े को एक उपयोगी पदार्थ में बदल देती है। यह पदार्थ किस उपयोग में आता है?

10.9 विकिरण (रेडियेशन) प्रदूषणः स्रोत और खतरे
विकिरण प्रदूषण प्राकृतिक पृष्ठभूमि में पाये जाने वाले विकिरणों में वृद्धि के कारण होता है। विकिरण प्रदूषण के बहुत से स्रोत हैं जैसे नाभिकीय तापीय संयंत्रों द्वारा निकले नाभिकीय अपशिष्ट, खनन और नाभिकीय पदार्थों की प्रक्रियाओं द्वारा। नाभिकीय प्रदूषण का सबसे भयानक उदाहरण 1986 में रूस में होने वाली चेरिनोबिल आपदा थी, लेकिन उसका प्रभाव आज तक कायम है।

10.9.1 विकिरण (Radiation)
रेडिएशन ऊर्जा का एक रूप है जो अंतरिक्ष से यात्रा करता है। विघटित होते रेडियोएक्टिव न्यूक्लाइडस से उत्पन्न होने वाला विकिरण प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। विकिरण को दो समूहों में बांट सकते हैं। नान-आयोनाइजिंग और आयोनाइजिंग रेडिएशन (आयनों में परिवर्तित होने वाला और आयनों में परिवर्तित नहीं होने वाला) नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन (आयनों में परिवर्तित नहीं होने वाला विकिरण) स्पेक्ट्रम की लम्बी तरंगदैर्घ्यों पर विद्युत चुम्बकीय तरंगों से निर्मित होता है जिनकी परास समीप की पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावॉयलेट किरणों) से रेडियो तरंगों तक होती है। इन तरंगों में इतनी ऊर्जा होती है कि जिस माध्यम से ये गुजरती हैं, उसके परमाणुओं (एटम) और अणुओं को उत्तेजित कर देती हैं जिससे उनके कंपन की गति बढ़ जाती है पर इतनी दृढ़ नहीं कि उन्हें ऑयनों में बदल सके। माइक्रोवेव अॅवन में रेडिएशन से खाद्य पदार्थ में होने वाले जल के परमाणुओं में कंपन की गति तीव्र हो जाती है जिससे पदार्थ का तापमान बढ़ जाता है।

आयोनाइजिंग (ऑयनों में परिवर्तित होने वाले) रेडिएशन जिस माध्यम से गुजरता है उसके परमाणु और अणुओं को आयनों में परिवर्तित कर देता है। विद्युत चुम्बकीय रेडिएशन जैसे लघु तरंगदैर्घ्य, पराबैंगनी विकिरण, एक्स किरणें और गामा किरणें, ऊर्जा से भरे कण जो नाभिकीय प्रक्रिया में उत्पन्न होते हैं, विद्युत शक्ति से सम्पन्न कण जैसे अल्फा व बीटा कण जो रेडियोधर्मी सड़न में पैदा होते हैं और न्यूट्रॉन जो नाभिकीय विखण्डन में उत्पन्न होते हैं।

उपर्युक्त सभी जीवों के लिये हानिप्रद हैं। नाभिकीय प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाले विद्युतीय कण माध्यम के परमाणु या अणु से इलेक्ट्रॉनों को तोड़ने की पर्याप्त शक्ति रखते हैं जिससे ऑयन निर्मित हो जाते हैं। उदाहरण के लिये जल अणुओं में उत्पन्न आयनों से ऐसी प्रतिक्रिया हो सकती है जो प्रोटीन और दूसरे महत्त्वपूर्ण अणुओं के बन्धों को तोड़ सकती है। इसका एक उदाहरण होगा कि अगर एक गामा किरण एक कोशिका से गुजरती है डीएनए के पास के जलीय अणु आयनों में बदल सकते हैं और आयनों की डीएनए के साथ प्रतिक्रिया उन्हें तोड़ सकती है। रासायनिक बंधो को तोड़कर इनसे रासायनिक परिवर्तन भी हो सकता है जिसके कारण जीवधारी ऊतकों को हानि पहुँचती है। आयोनाइजिंग रेडिएशन से जैविक व्यवस्था को नुकसान पहुँचता है अतः ये प्रदूषक की श्रेणी में आते हैं।

10.9.2 रेडिएशन हानि (विकिरण से होने वाली हानि)
आयोनाइजिंग विकिरण से होने वाली जैविक हानि को विकिरण हानि (रेडिएशन डैमेज) का नाम दिया गया है। बड़ी मात्रा का विकिरण कोशिका को नष्ट कर देता है जिससे उसके सम्पर्क में आने वाले जीव प्रभावित होते हैं और शायद आने वाली पीढ़ी भी। प्रभावित कोशिका में उत्परिवर्तन हो सकता है जिसके फलस्वरूप कैंसर भी हो सकता है। विकिरण की एक बड़ी मात्र जीव को मार भी सकती है।

विकिरण से होने वाली हानि को दो प्रकारों में विभाजित कर सकते हैं- (अ) शारीरिक हानि (इसे विकिरण रोग भी कहते हैं) (ब) आनुवांशिक हानि (जैनेटिक) शारीरिक (सोमेटिक) हानि उन कोशिकाओं की हानि है जिनका प्रजनन से सम्बन्ध नहीं होता। शारीरिक हानि में त्वचा का लाल होना, बालों का झड़ना, अल्सर होना, फेफड़ों में फाइब्रोसिस, छिद्रों का बनना, श्वेत रक्त कोशिकाओं में कमी होना और आँखों में मोतियाबिंद आना। यह हानि कैंसर और मृत्यु के रूप में भी हो सकती है। अनुवांशिक (जेनेटिक) हानि में उन कोशिकाओं पर प्रभाव पड़ता है जिनका सम्बन्ध प्रजनन से है। इस हानि से प्रजनन सम्बन्धी विकार उत्पन्न होता है। जीन में परिवर्तन होने से असामान्यता उत्पन्न होती है। यह जीव विकार अगली पीढ़ी में भी स्थानांतरित हो जाता है।

10.9.3 रेडिएशन मात्रा (विकिरण की मात्रा)
विकिरण द्वारा होने वाली जैविक हानि इस बात से तय होती है कि विकिरण की तीव्रता कितनी थी और विकिरण के सामने अनावृत रहने की कालावधि कितनी थी। जैविक व्यवस्था में रेडिएशन द्वारा जमा की गई ऊर्जा की मात्रा पर यह निर्भर करती है। मनुष्यों पर रेडिएशन के अनावरण के प्रभावों के अध्ययन में यह समझना आवश्यक है कि किसी कण द्वारा किया गया जैविक नुकसान केवल जमा की गई कुल ऊर्जा पर निर्भर नहीं करता बल्कि कणों द्वारा जितनी दूरी तय की गई है, उसमें होने वाली प्रति यूनिट ऊर्जा हानि की दर पर भी निर्भर होता है (या रेखिक ऊर्जा स्थानांतरण) उदाहरण के लिये अल्फा कण प्रति यूनिट जमा ऊर्जा की दर से अधिक हानि पहुँचाते हैं न कि दूसरे इलेक्ट्रॉन।

विकिरण के प्रभाव और मात्रा
मानव के समतुल्य मात्रा की परम्परागत यूनिट रैम (rem) है - जो मनुष्य में विकिरण समतुल्य के लिये मान्य है।

कम मात्रा पर, जो हम प्रतिदिन बैकग्राउन्ड रेडिएशन (< 1m rem) से प्राप्त करते हैं, कोशिकाएँ हानि को तीव्रता से ठीक कर देती हैं। अधिक मात्रा पर (100 rem तक) कोशिकाओं में हानि को ठीक करने की क्षमता नहीं होती और ये कोशिकाएँ या तो स्थाई रूप से परिवर्तित हो जाती हैं या मर जाती हैं। ये परिवर्तित कोशिकाएँ असामान्य कोशिकाओं को जन्म देती चली जाती हैं, जब वे भागों में बंटती हैं और कैंसर का कारण भी बन जाती हैं।

अधिक उच्च मात्रा पर भी कोशिकाएँ तीव्र गति से प्रतिस्थापित नहीं होती हैं और ऊतक कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। इसका एक उदाहरण ‘विकिरण रोग’ (Radiation sickness) है। यह दशा पूरे शरीर को उच्च मात्रा देने के परिणामस्वरूप होती है। (> 100 rem)

नाभिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाले यंत्रों (रिएक्टर) में होने वाले नाभिकीय विस्फोट और दुर्घटनाएँ नाभिकीय खतरों के सबसे गम्भीर बड़े स्रोत हैं। नागासाकी और हिरोशिमा में होने वाले परमाणु विस्फोट (Atomic explosion) के प्रभाव को आज तक भुलाया नहीं जा सका। नाभिकीय रिएक्टर की दुर्घटना, जो 1986 में चेरिनोबिल (Chernobyl) में हुई थी, में अनेक वैज्ञानिक मारे गये थे और रेडियो न्यूक्लाइड की भारी मात्रा वातावरण में फैलने के फलस्वरूप आस पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने भी लम्बे समय तक विकिरण हानि को झेला था।

नाभिकीय पॉवर प्लांट में दुर्घटनाएँ
नाभिकीय यंत्र में नाभिकीय विखंडन से बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न होती है जो यदि नियंत्रित नहीं की गई तो यन्त्र की ईंधन छड़ें भी पिघल जाती हैं। यदि यह पिघलना किसी दुर्घटना के कारण होता है तो इससे बहुत खतरनाक रेडियोधर्मी पदार्थ बड़ी मात्रा में निकलते हैं जो वातावरण में घुलकर मनुष्य, पशुओं और पेड़-पौधों के लिये विनाशकारी परिणाम उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार की दुर्घटना और रिएक्टर को फटने से बचाने के लिये रिएक्टर का डिजाइन पूर्ण सुरक्षित और अनेक सुरक्षा विशिष्टताओं के साथ होना चाहिये।

इन सुरक्षा साधनों के होते हुए भी नाभिकीय पॉवर प्लांट की दो बड़ी दुर्घटनाएँ उल्लेखनीय हैं-
1- ‘‘थ्री माइल आइलैण्ड’’ मिडलटाउन यू.एस.ए. में सन 1979 में और दूसरी यू.एस.एस.आर. के चेरिनोबिल (Chernobyl) में 1986 में। इन दोनों मामलों में अनेक दुर्घटनाओं और गल्तियों के परिणामस्वरूप रिएक्टर अधिक गर्म हो गया और बहुत सी रेडिएशन बाहर निकल गई और वातावरण में फैल गई। थ्री माइल आइलैण्ड के रिएक्टर का रिसाव अपेक्षाकृत कम था अतः तुरन्त ही कोई हताहत नहीं हुआ। जबकि चेरनोबिल के रिएक्टर का रिसाव बहुत भारी मात्रा में था जिससे अनेक कार्यकर्ता मारे गये और रेडिएशन पूरे यूरोप में जगह-जगह बड़े क्षेत्र में फैल गया था। शहर को खाली करके लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया था। और प्लांट को बंद कर दिया गया था। ये दो महाविनाश सदा याद दिलाते रहते हैं कि नाभिकीय पॉवर रिएक्टर को निरन्तर सुरक्षा साधनों से सम्पन्न रखना चाहिये। नये नवीन साधन लगाते रहना आवश्यक है। नाभिकीय पनडुब्बी में होने वाली दुर्घटनाएँ भी इसी ओर संकेत करती हैं।

पाठगत प्रश्न 10.5
1. माइक्रोवेव अवन में किस प्रकार का विकिरण उत्पन्न होता है?
2. रेडिएशन की अवशोषित मात्रा का उपयोग बताइये।
3. कुछ दिन निरन्तर ली गई रेडिएशन की कितनी मात्रा, आंतरिक अंगों के अनावृत होने पर, उनको हानि पहुँचा सकती है?

आपने क्या सीखा
- प्रकृति के घटक जैसे वायु, जल, मृदा, वन और मात्स्यकी ऐसे संसाधन हैं जिनका मनुष्य द्वारा बहुत अधिक उपयोग किया गया और उनका प्रदूषण शहरीकरण और औद्योगीकरण के ही उप-उत्पाद हैं।

- प्रदूषण औद्योगीकरण और शहरीकरण का अवांछनीय उप-उत्पाद है।

- जो एजेंट (कारक) प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष किसी भी रूप से प्रदूषण के लिये उत्तरदायी है, उन्हें प्रदूषक कहते हैं।

- प्रदूषण छः प्रकार का होता है- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ऊष्मीय (तापीय) प्रदूषण, विकिरण प्रदूषण आदि।

- वायु प्रदूषण औद्योगिक और कुछ घरेलू गतिविधियों के कारण होता है।

- वायु प्रदूषक दो प्रकार के होते हैं (1) निलंबित कणीय पदार्थ और (2) गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड CO2, NOx आदि।



- स्वच्छ ईंधन जैसे बायोगैस, केरोसिन (मिट्टी का तेल) या बिजली का प्रयोग वायु प्रदूषण को रोकता है।

- कूड़े की विभिन्न वर्गों में छंटाई, स्रोत पर ही पूर्व उपचार, और कमरों के निर्जर्मीकरण से भीतरी प्रदूषण को रोका जा सकता है।

- स्वच्छ ईंधन, फिल्टर, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर, इनरशियल कलैक्टर्स, और स्क्रबर के प्रयोग से औद्योगिक प्रदूषण से बचाव और उसका नियंत्रण हो सकता है।

- क्लोरोफ्लोरोकार्बन से ओजोन परत की क्षति होती है जिसके कारण आर्कटिक और अंटार्कटिका क्षेत्र में यह क्षीण हो गई है। इसे ओजोन छिद्र कहते हैं।

- भूमंडल के तापमान में वृद्धि अथवा हरित गृह (ग्रीन हाउस) गैसों (CO2, मीथेन) द्वारा उत्पन्न होने वाले उष्ण प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

- शोर भी अन्य प्रदूषणों की भांति ही औद्योगीकरण, शहरीकरण और आधुनिक जीवन शैली का उप-उत्पाद है।

- शोर के इनडोर स्रोत में रेडियो, टेलीविजन से उत्पन्न ध्वनियाँ हैं और आउटडोर में लाउडस्पीकरों का प्रयोग, औद्योगिक गतिविधियाँ, गाड़ियाँ, रेल यातायात और हवाइजहाज आदि का शोर है।

- पानी में अवांछित पदार्थों का पाया जाना जल-प्रदूषण कहलाता है।

- जल-प्रदूषण के प्राकृतिक कारणों में मृदा अपरदन, चट्टानों से खनिजों का रिसाव, और जैविक पदार्थों का सड़ना निहित है।

- पॉवर प्लांट्स और अन्य उद्योग शीतलन के लिये बहुत पानी का प्रयोग करते हैं और गरम पानी को नदियों, धाराओं और समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है। यह व्यर्थ की गर्मी ठंडे पानी के तापमान को 10-15°C तक बढ़ा देती है इसे ‘‘तापीय प्रदूषण’’ कहा जाता है।

- सीवेज का अनुचित विसर्जन, खेती में प्रयुक्त खाद और रसायनों का ढेर, औद्योगिक कचरा भूमिगत-जल को प्रदूषित करते हैं।

- जल निकायों में पोषक तत्वों की समृद्धि को सुपोषण कहते हैं।

- घरेलू, औद्योगिक या कूड़े के ढेर से निकलने वाला गन्दा पानी सामान्य रूप से सीवेज के नाम से जाना जाता है।

- भूमि में ऐसे पदार्थों का मिश्रण जिनसे उसकी उर्वरक क्षमता और गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़े उसे मृदा प्रदूषण कहते हैं।

- मृदा प्रदूषण के मुख्य स्रोत प्लास्टिक बैग, औद्योगिक स्रोत और कृषि स्रोत हैं।

- विकिरण एक प्रकार की ऊर्जा है जो अन्तरिक्ष से यात्रा करती है। विकिरण (रेडिएशन) को दो भागों में बांट सकते हैं आयन में परिवर्तित न होने वाला रेडिएशन और दूसरा आयनों में परिवर्तित होने वाला रेडिएशन।

पाठांत प्रश्न
1. ‘‘प्रदूषण’’ और ‘‘प्रदूषक’’ को परिभाषित कीजिए।
2. गाँव के घरों के अन्दर रहने वाली गृहणी की वातावरण सम्बन्धी समस्याओं की सूची बनाइये। उनको कम करने या समाप्त करने के लिये सुझाव दीजिये।
3. दिल्ली जैसे शहर में गाड़ियों के लिये सीएनजी को ईंधन के रूप में प्रयोग में क्यों लाया गया? क्या इससे कोई अन्तर पड़ा?
4- ‘मॉट्रियल प्रोटोकाल’ के अनुसार क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उत्पाद बन्द कर दिया जाय। क्यों?
5. एक ऐसी पर्यावरण सहयोगी विधि बताइये जिससे लाभदायक ढंग से मानव निर्मित कूड़ा और पशुओं का कूड़ा समाप्त किया जा सके।
6. रासायनिक उर्वरक कृषि और फसलों के लिये उपयोगी होते हैं। वे पर्यावरण में प्रदूषण कैसे फैलाते हैं?
7. उद्योगों से निकलने वाले कणीय पदार्थों से होने वाले प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है?
8. पीयूसी प्रमाणपत्र (PUC) क्या है? क्या यह आवश्यक है और किसके लिये? आपके विचार में क्या यह वास्तव में लाभदायक है?
9. चिकित्सकीय कूड़ा क्या है? इसको हानिकारक अपशिष्ट क्यों कहा जाता है? चिकित्सकीय कूड़े को समाप्त करने का सुरक्षित ढंग क्या है?
10. प्राथमिक उपचार के बाद पानी की गुणवत्ता में वृद्धि करने के तरीकों को बताइये।
11. जलीय जीव जैसे मछलियों के जीवन पर थर्मल प्रदूषण क्या प्रभाव डालता है और इसके क्या कारण हैं? थर्मल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये आप क्या सुझाव देंगे।
12. आयोनाइजिंग और नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
13. नाभिकीय प्रदूषण से मनुष्य को होने वाले संभावित खतरों की सूची बनाइये।
14. विकिरण द्वारा कैंसर कैसे संभव है?
15. मृदा प्रदूषण, इसके कारण और नियंत्रण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

पाठगत प्रश्नों के उत्तर
10.1
1. (अ) पर्यावरणी प्रदूषण के कारण बनने वाले संवाहकों को ‘प्रदूषक’ कहते हैं।
(ब) मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप वातावरण में अवांछित पदार्थों का जुड़ना।
2. फिल्टर्स, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर (ईपीसी) इनरशियल कलैक्टर्स (जड़संचयकर्ता), स्क्रबर, गैस शुद्ध करने का उपकरण (कोई तीन)
3. पाठ देखें
4. पीयूसी प्रमाणपत्र (PUC सर्टिफिकेट) सिद्ध करता है कि वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषक नियमों की सीमा में ही हैं।

10.2
1. कोई भी ऐसी आवाज जिसे सुना जा सके, डेसिबल (Db)
2. नींद में विघ्न, संवेगात्मक समस्याएँ, चिड़चिड़ापन (कोई दो)
3. गाड़ियों का उचित रख-रखाव और अच्छी बनावट, ध्वनि को कम करने वाले साधनों का उपयोग, वायुयानों के उड़ने और उतरने के समय ध्वनि का प्रयोग, बिजली की रेलगाड़ियों का चलन, ध्वनि संघकों का प्रयोग।

10.3
1. मरकरी और कैडमियम।
2. सुपोषण
3. प्रारम्भिक उपचार तैरने वाले पदार्थों का दूर करते हैं और धातु कण भी प्राथमिक उपचार में ही दूर हो जाते हैं।
4. जल के वांछित तापमान में 10 से 15°C वृद्धि
5. मछलियों की तैरने की क्षमता कम होती है।
6. जलीय जीवों की उपापचय (मैटाबॉलिज्म) में वृद्धि होती है और उनका विकास प्रभावित होता है।
7. गाद (स्लज)।

10.4
1. भूमि की गुणवत्ता और उसकी उर्वरक शक्ति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाले किसी भी पदार्थ का भूमि में मिलना मृदा-प्रदूषण कहलाता है।
2. प्लास्टिक बैग अविनाशी हैं कभी नष्ट नहीं होती इसलिये इनके विकराल पर्यावरणी संकट उत्पन्न हो गया है।
3. यह पदार्थ एक उर्वरक (खाद) है जो खेती के काम आता है।

10.5
1. नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन (आयनों में परिवर्तित न होने वाला विकिरण)
2. विकिरण का अवशोषण वह मात्रा है जो शरीर के भाग में एकत्रित होने वाली ऊर्जा को शरीर के उस भाग (जिसके द्वारा विकिरण को अवशोषित किया गया) के द्रव्यमान से भाग करने पर प्राप्त होती है।
3. उच्च मात्र (100 rem तक) आन्तरिक अंगों का उसमें अनावृत होने से उनकी हानि होती है।
 

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