पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता के प्रभाव

23 Sep 2018
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वैश्विक उष्णता की एक झलक
वैश्विक उष्णता की एक झलक
सारांश
यह आलेख पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता के प्रभाव के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है इस आलेख में पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों पर ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव के विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण किया गया है इस आलेख के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि दुनिया भर में चारों ओर कैसे तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हो रहे हैं ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव के लिये कौन जिम्मेदार हैं और उनकी कौन सी गतिविधियाँ इसके लिये जिम्मेदार हैं? मौसम कैसा है और वर्षा का पैटर्न में क्या बदलाव आ रहा है, तूफानों और अन्य घटनाओं से यह कैसे प्रभावित हो रहा है वास्तव में ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव से इस खूबसूरत पृथ्वी की रक्षा करने के लिये इन तथ्यों पर विचार करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ताकि ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को कम किया जा सके। ऊर्जा के संरक्षण के लिये सबसे उपयोगी तरीका क्या हो सकता है जिससे कि पर्यावरण की रक्षा कर उसके संतुलन में मदद की जा सकती है।

भूमिका
वैश्विक उष्णता पृथ्वी पर दोनों तरह के अर्थात नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव डालती है वास्तव में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के कारण ही वैश्विक उष्णता बढ़ती है जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण ही इन गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि होती है दुनियाभर में तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है और यह पृथ्वी पर हर महाद्वीपीय क्षेत्र को प्रभावित कर रही है यह प्रक्रिया ग्रीन हाउस प्रभाव के रूप में जानी जाती है यह एक समस्या बन गई है क्योंकि बहुत सा सौर विकिरण धरती के वातावरण में फँस कर रह जाता है इस वजह से पृथ्वी के तापमान दिन-दिन बढ़ता ही जा रहा है इस उष्मा को बनाए रखने के लिये ग्रीन हाउस गैसें ही जिम्मेदार हैं। यदि वातावरण में ग्रीन हाउस गैसें बढ़ती है, तो और सौर विकिरण परावर्तित होकर नहीं जा पाता है और जिससे हमारा यह ग्रह गर्म हो जाता है।

पृथ्वी की सृष्टि के समय से जलवायु की स्थिति काफी बदल गई है पृथ्वी का औसत तापमान समय के साथ बदल गया है और इसलिये वातावरण में गैसों के मिश्रण में वृद्धि हुई है अब ऐसा लगता है कि हाल में मानव की गतिविधियाँ जैसे जीवाश्म ईंधन भंडार के अत्यधिक उपयोग के कारण पृथ्वी की गर्मी भी अधिक हो रही है वैज्ञानिकों का यह मानना है कि पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता के प्रभाव के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहना तब तक मुश्किल है जब तक कि उसके भविष्यगत परिणामों के बारे में कुछ पता नहीं चल जाता।

लेकिन वैश्विक उष्णता के प्रभाव के बारे में बहुत सी भविष्यवाणी करना संभव है जैसे हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ टोपियों में तेजी से पिघलन, इस वजह से समुद्र के स्तर में वृद्धि हो सकती है, वर्धित वैश्विक तापमान, वन क्षेत्र, पौधे और पशु आबादी के स्थान में परिवर्तन और उनकी हानि आदि। इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में बारिश में कमी आ सकती है, और अब जहाँ हरा भरा वन क्षेत्र रहा है वह गायब हो जाएगा और उसकी जगह रेगिस्तान ले लेगा इसके अलावा उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ेगी जिसके कारण कुछ समुद्रों का संचलन और अम्लता संतुलन बदल सकता है।

वैश्विक उष्णता की वजह से मौसम में बदलाव की एक झलकवैश्विक उष्णता की वजह से मौसम में बदलाव की एक झलक वैश्विक उष्णता का पृथ्वी पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है और इस प्रभाव को खत्म या कम करने के लिये ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने की जरूरत है। अनियंत्रित औद्योगिकरण के कारण इन गैसों के उत्सर्जन की प्रक्रिया जो शुरू हो गई है तो इसके कारण होने वाले भौतिक और जैविक परिवर्तनों को नियंत्रित करने के लिये सैकड़ों साल से भी अधिक का समय लग सकता है और इसके साथ यह भी देखना है कि किसी और प्रकार से ग्रीन हाउस गैसों में विमोचन नहीं हो पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता के प्रभाव को कम करने के लिये बायोमास ऊर्जा को वैकल्पिक अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयोग, इस दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। वन और पेड़ पौधे भी भविष्य की ऊर्जा के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि अपने जीवन काल में वे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी प्रमुख ग्रीनहाउस गैस को ऑक्सीजन में बदलने में मदद करते हैं और बायोमास से उत्पादित ऊर्जा का यह एक प्रमुख स्रोत हैं।

बायोमास ईंधन आमतौर से पौधों और अन्य सेल्यूलोज सामग्री से आता है, लेकिन यह ईंधन भी नगर निगम के कचरे और अन्य स्रोतों से बनाया जा सकता है यह बायोमास ऊर्जा अन्य कई रूपों के विपरित एक नवीकरणीय वैकल्पिक ऊर्जा है जो पर्यावरण के लिये अनुकूल है, और इन ऊर्जा परियोजनाओं को कम से कम लागत में न्यूनतम संभावित समस्याओं के साथ एक व्यापक पैमाने पर लागू किया जा सकता है हम सभी को वैश्विक उष्णता को रोकने और पृथ्वी की रक्षा करने के लिये अपने-अपने स्तर पर कार्य करने की जरूरत है बायोमास ऊर्जा और अन्य कोई नवीकरणीय वैकल्पिक ऊर्जा3 का उपयोग हमें इस काम को पूरा करने में मदद कर सकते हैं।

पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता के प्रभाव अनेक प्रकार के हैं हालाँकि उन सभी प्रभावों को नकारात्मक नहीं कहा जा सकता है फिर भी उनका समग्र प्रभाव अच्छा नहीं है। मौसम और बारिश का पैटर्न बदलने से तूफानों और अन्य घटनाओं का बुरा प्रभाव पड़ सकता है और इसकी वजह से जिन क्षेत्रों में बहुत वर्षा होती है उनका अब रेगिस्तान के रूप में अंत हो सकता है। वैश्विक उष्णता को रोकने के लिये या उसके बुरे प्रभावों से पृथ्वी की रक्षा के लिये अनेकों उपायों पर विचार किया जा सकता है इसके लिये वास्तविक ऊर्जा संरक्षण सबसे प्रभावी तरीका है। इसका मतलब है कि यह जीवाश्म ईंधन के ऊर्जा स्रोतों या अन्य प्रकार के ऊर्जा स्रोतों का न्यूनतम उपयोग करना चाहिए जिससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर रोक लग सके। इसके बजाय, जैसे बायोमास ऊर्जा और पृथ्वी के अनुकूल वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग करें।

हमें क्यों चिंता करनी और क्यों नहीं करनी चाहिए?
- वैश्विक उष्णता के प्रभाव बहुत अलग और परस्पर विरोधी हो सकता है।
- पृथ्वी और मानव जाति पर वैश्विक उष्णता के नकारात्मक प्रभाव एक चिंता का विषय है।
- ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को न्यूनतम करने और बंद करने से वैश्विक उष्णता की गति धीमी हो जाएगी।

पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता का प्रभाव बहस का एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है, और सभी वैज्ञानिक इस पर सहमत नहीं हैं कि वैश्विक उष्णता वास्तव में एक चिंता का विषय है। कुछ लोग कहते हैं कि वैश्विक उष्णता में सभी कुछ बुरा नहीं है बल्कि इसके सकारात्मक और नकारात्मक अर्थात दोनों तरह के प्रभाव हो सकते हैं।6 इससे जुडे कुछ तथ्य चिंतनीय रहे हैं, लेकिन वहाँ भी कुछ ऐसे पक्ष हैं जिससे यह बात सामने आती है कि यह उष्णता मानव जाति के लिये लाभदायक भी हो सकती है। एक आम धारणा है कि वैश्विक उष्णता का मतलब है पूरी दुनिया का गरम हो जाना और यह पूर्णत: सच नहीं है। इसके बजाय तापमान में यह जो परिवर्तन हो रहा है यह किसी भी दिशा में जा सकता है। पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों में तापमान कम है, जबकि दूसरी तरफ अन्य क्षेत्रों को गर्मी से झुलसना पड़ रहा है।

इन दोनों तथ्यों का संबंधित क्षेत्र में जीवन के ऊपर एक व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, और साथ में यहाँ यह पता लगाना भी जरूरी है कि क्या इन प्रभावित क्षेत्रों में जीवन का अस्तित्व संभव है या नहीं है। ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन वैश्विक उष्णता की समस्या का एक हिस्सा है, लेकिन यह इस समस्या के लिये अकेला जिम्मेदार नहीं है। वैश्विक उष्णता के कारण पृथ्वी के इतिहास की पर्तों में छिपा हुआ है, समस्या यह है कि मनुष्य इस निरंतर प्रक्रिया को प्रभावी रूप से तेज कर रहा है यह समस्या पर्यावरण में प्रदूषण की वृद्धि की वजह से हुई है, और साथ ही वनों की कटाई और मनुष्यों की अन्याय विकासपरक गतिविधियाँ भी इसके लिये जिम्मेदार हो सकती है7

वैश्विक उष्णता की वजह से पिघलती बर्फवैश्विक उष्णता की वजह से पिघलती बर्फ वैश्विक उष्णता के प्रभाव के कई नकारात्मक पहलू भी हो सकते हैं। ध्रुवीय बर्फ की टोपी पिघल रही है, और इस पिघलन के चलते पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। तापमान बदलने के कारण विभिन्न प्रजातियाँ मर सकती हैं और यह कारक उनके आवासीय क्षेत्रों को गैर-आबाद बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, और यह भी वैश्विक उष्णता का ही एक प्रभाव है। समुद्री जलस्तर के बढ़ने के कारण अनेकों द्वीप समूह पानी में समा सकते हैं जिसके फलस्वरूप निवासियों के रहने के लिये कोई भू-क्षेत्र बचा नहीं रहेगा। फसल के लिये उर्वर भूमि भी जलमग्न हो सकती है जिसके परिणाम में दुनिया के लिये भोजन की आपूर्ति कम हो जाएगी। दुनियाभर में अनाज के रूप में प्रयुक्त कई फसलें तटीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं, और इन क्षेत्रों में बाढ़ आने से यह फसल प्रभावित हो सकती है।

समुद्रों का यह बढ़ता जलस्तर अनाज के उत्पादन में इतनी कमी ला सकता है जिससे की पूरी दुनिया की आबादी प्रभावित हो सकती है। वैश्विक उष्णता की वजह से बर्फ की टोपी पिघलने से धीरे-धीरे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, और साथ ही समुद्र के तापमान में भारी फेरबदल हो रहा है। पृथ्वी के समुद्रों के कुछ क्षेत्रों में गर्म जल का अर्थ है शक्तिशाली तूफानों का बनना जोकि बहुत शक्तिशाली हो सकते हैं और गंभीर नुकसान पहुँचा सकते हैं8। हरिकेन और उष्णकटिबंधीय तूफान तेजी से विकसित और मजबूत हो सकते हैं। यह प्राकृतिक आपदाओं के खतरे जैसे भारत में टायफून और अमरीका में हरिकेन और कटरीना के खतरे को बढ़ाता है। गर्म तापमान का मतलब है कि कीड़े और कीटाणुओं के पनपने की गति में वृद्धि हो सकती है और यह मानव जाति के लिये बड़ी समस्या बन सकती है, क्योंकि ठंडे तापमान के अभाव में इनकी वृद्धि को नियंत्रित करने का कोई प्रमुख कारण न रह जाएगा9

अंटार्कटिक हिमखंड पर वैश्विक उष्णता के प्रभावअंटार्कटिक हिमखंड पर वैश्विक उष्णता के प्रभाव पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता का हर प्रभाव नकारात्मक नहीं है। गर्म तापमान का मतलब है कि कुछ क्षेत्रों जो पहले रहने योग्य नहीं थे भविष्य में वे रहने योग्य हो सकते हैं। मौसम के मिजाज बदलने से भी कुछ क्षेत्रों के लिये एक सकारात्मक बात हो सकती है। अफ्रीका में रेगिस्तान भी पनप सकते हैं यदि पर्याप्त वर्षा नहीं हुई।

वे क्षेत्र जो सूखे और अकाल प्रभावित रहे हैं जलवायु परिवर्तन का अनुभव कर सकते हैं जोकि इन समस्याओं के समाधान में सहायक हो सकता है। ऐसी जगहें जहाँ पर गर्मी तीव्र हो और जीवन के लिये कठिन परिस्थितियाँ वहाँ, शीतलीकरण तापमान को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। वैश्विक उष्णता के वजह से पौधों और जानवरों की नई प्रजातियाँ विकसित हो सकती हैं और इसके लिये धरती और उसकी जनसंख्या को कई लाभ हो सकते हैं जहाँ पृथ्वी पर वैश्विक उष्णता के सभी प्रभाव नकारात्मक नहीं है, वहीं इसके कई नकारात्मक पहलू भी हैं जो इस समस्या के बारे में चिंता करने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं जीवाश्म ईंधन के प्रयोग कम करने और पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रित करने से वैश्विक उष्णता के प्रभाव को एकदम से तो खत्म नहीं किया जा सकेगा परंतु इसके द्वारा इस प्रक्रिया को निश्चित रूप से कुछ धीमा करके नियंत्रित किया जा सकता है। एक निश्चित प्रक्रिया के तहत पृथ्वी शीतलन और वार्मिंग के चक्र के माध्यम से गुजरती है, और दूसरा हिमयुग बहुत जल्दी हो सकता है यदि उचित कदम नहीं उठाए गए हैं। वैश्विक उष्णता चिंता का विषय है परन्तु यह कोई आतंक का विषय नहीं10

अभिस्वीकृति
लेखक राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के निदेशक और सी.एस.आई.आर. के महानिदेशक के गहरे प्रोत्साहन और अच्छी रूचि के लिये आभारी हैं।

संदर्भ :
1. Gore, Al, An Inconvenient Truth; The Planetary Emergency of Global Warming and What We can Do About it, Rodale, Emmaus PA, (2006), P. (148)
2. Brown, Lester, Plan B 2.0; Rescuing a Planet Under Stress and a Civilization in Trouble, Norton, Ny Ny, 2006, p. 600-61
3. “Greenhouse Gases, Carbon Dioxide and Methane, Rise Sharply in 2007,’’ Science daily, 24 April 2008
4. Brown, Lester, Plan B2.0; Rescuing a Planet Under Strees and a Civilization in Trouble, Norton, NY NY, 2006, p. 60
5. Brown, Lester, Plan B2.0; Rescuing a Planet Under Stress and a Civilization in Trouble, Norton, NY NY, 2006, p. 63
6. Brown, Lester, Plan B2.0; Rescuing a Planet Under Stress and a Civilization in Trouble, Norton, NY NY, 2006, p. 64
7. Brown, Paul, and Leipold, Gerd, Global Warning: The Last Chance for Change, Reader’s Digest, Pleasantville NY, 2007, p. 131-132
8. Brown, Paul, and Leipold, Gerd, Global Warning: The Last Chance for Change, Reader’s Digest, Pleasantville NY, 2007, p. 15
9. Brown, Lester, Plan B2.0; Rescuing a Planet Under Strees and a Civilization in Trouble, Norton, NY NY, 2006, p. 59
10. Brown, Paul, and Leipold, Gerd, Global Warning: The Last Chance for Change, Reader’s Digest, Pleasantville NY, 2007, p. 153
11. Pearce, Ferd With Speed and Violence; why Scientists Fear Tipping Points in Climage Change, Beacon Press, Boston, 2007, p. 40

वरिष्ठ वैज्ञानिक, समुद्री प्रदूषण आकलन और पर्यावरण विष-विज्ञान प्रयोगशाला, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, डोना पाउला, गोवा - 403004

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