पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जलाशय : ऐतिहासिक विरासत

3 Apr 2009
0 mins read
दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में जल संकट गहराने से जल संसाधनों के संरक्षण और वर्षा जल संचयन पर विचार हो रहा है ऐसे में जल समस्या पर काम करने वाली संस्था जनहित फाउंडेशन ने भारत की जल संस्कृति से आम आदमी को रूबरू करवाने का प्रयास किया। 'पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जलाशय : ऐतिहासिक विरासत' नामक पुस्तक में भारत की प्राचीन जल संचयन प्रणालियों के अलावा दिल्ली से सटे मेरठ और उसके आस-पास मौजूद ऐतिहासिक जलाशयों का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया है।

पुस्तक में संकलित जल संसाधनों का दोहरा महत्व है। अपने सौ पुत्रों के श्राध्द के लिए युधिष्ठिर द्वारा गांधारी को भेंट में मिला गांधारी तालाब हो, अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित पक्का तालाब या फिर ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ कुंड की राख से बना पवित्र गंगोल तालाब इन जलाशयों का अस्तित्व ऐतिहासिक कारणों से भी जरूरी था और पानी की आपूर्ति के लिए भी।

संस्था द्वारा साल 2003 में करवाए गए अध्ययन 'पानी घणो अनमोल' के अनुसार, सरकारी दस्तावेज इस बात के गवाह हैं कि अकेले मेरठ जिले में 3062 तालाब मौजूद हैं। आदिकाल से मौजूद इन जलाशयों की लगातार उपेक्षा का ही नतीजा है कि इनमें से 80 फीसदी से ज्यादा जलाशय खत्म हो चुके हैं। सरदाना के पास स्थित सलवा गांव में 37 जलाशय थे जिसके चलते यह गांव पानी के संकट से दूर था लेकिन 2007 में स्थिति यह है कि सलवा गांव बूंद-बूंद पानी को तरस रहा है।

पुस्तक इस बात पर जोर देती है कि जल संकट से निपटने के लिए पुरातत्व विभाग की सहायता से इस ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण भी जरूरी है और वर्षा जल संचयन को दोबारा अपनाना भी।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading