पुस्तक विमर्श : हर एक पेड़ जरूरी होता है

Book cover
Book cover

‘‘यह वनस्थली खड़ी है विविध पुष्पचिन्हों से सज्ज्ति हरित साड़ी पहनकर अपने कोमल शरीर पर, अकारण अंकुरित पुलक से सिहरी पक्षियों के कलरव में बारम्बार कहलास करती हुई’’ (मलयालम के महान कवि जी.शंकर कुरूप के काव्य संग्रह ‘औटक्कुशल’ (बाँसुरी) की एक रचना)

महात्मा गाँधी हों या फिर महात्मा बुद्ध, दोनों ने ही अपने आहार को पेड़ों से मिलने वाले उत्पादों या फलों तक सीमित किया था। इन दोनों महान आत्माओं वन-उत्पाद को अपना आहार बनाने का उद्देश्य महज अपनी उदरपूर्ति या स्वास्थ्य नहीं आँका था। वे अपने अनुयायियों को संदेश देना चाहते थे कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएँ। पेड़ पहाड़ पर भी लग सकता है और पथरीली जमीन पर भी। वह जहाँ भी अपनी जड़े फैलाएगा, समृद्धि, शांति व सुख लेकर आता है। मानव विकास की कहानी के साथ स्थापत्य के प्रतिमान स्थापित होते रहे, कई मंदिर, महल बने, किले, भवन बने और मानव निर्मित ये संरचनाएँ काल के गाल में समाती रहीं। लेकिन प्रकृति द्वारा निर्मित ‘इमारत’ यानि पेड़ अक्षुण्ण रहे, अकाल में भी, प्राकृतिक आपदाओं में भी और युग के नष्ट होने में भी। आज भारत में कई स्थानों पर सैंकड़ों साल पुराने वृक्ष देखे जा सकते हैं। ये पेड़, अनगिनत पशु-पक्षी, जीव-जन्तु के आवास और भोजन का माध्यम होते हैं। ‘वृक्ष खेती’ शीर्षक की पुस्तक अपील करती है कि पहले से खड़े बड़े-छोटे पेड़ों को उनकी पूरी उम्र तक जीने का अवसर दें। इनके पत्ते, फूल-फल, टहनी, रंग-रूप पीढ़ियों तक प्राकृतिक शोभा बढ़ाते है। यह पुस्तक भूख, जलवायु परिवर्तन और ऐसी ही अन्य भूमंडलीय समस्याओं का समाधान वृक्षों से खोजने की मागदर्शिका है।

पुस्तक का पहला अध्याय है - ‘वृक्षों से आहार’। इसमें बताया गया है कि दुनिया के सूखे या बारानी इलाके, जहाँ मौत नाचती है, वहाँ भी पेड़ किस तरह लोगों की भूख मिटाते हैं। फिर वर्षा वन का पानी से घिरा इलाका हो या फिर गर्म देश की नम भूमियाँ, ऊँचे पहाड़ हों या फफूंदी के जंगल, सुमद्र या अन्य कोई इलाका, हर जगह पर्यावास, सहजीवन और जीव-जीवन का आधार पेड़ ही होते हैं। पेड़ अकेले इंसान या जीव-जीवन की उदर-पूर्ति का ही माध्यम नहीं हैं- गर्माती धरती का बढ़ता पारा रोकने में भी उनकी अहम भूमिका है। कार्बन डायआक्साईड, मीथेन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा सीमा से ज्यादा बढ़ने के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है। ताप के साथ ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं व उसके कारण समुद्रों का जल स्तर भी बढ़ रहा है। यदि पानी का स्तर ऐसे ही बढ़ता रहा तो आने वाले 500 सालों में समुद्र का जल स्तर 13 मीटर बढ़ सकता है और इसके चलते 100 लाख वर्ग किलोमीटर ऐसी धरती खारे समुद्र में बह जाएगी, जहाँ आज खेत हैं। अब पूरी पृथ्वी पर जो संकट मंडरा रहा है, तो इसका निदान भी मात्र अधिक से अधिक पेड़ लगाना ही है जो कार्बन डायआक्साईड को सोखने की क्षमता रखते हैं। पुस्तक के दूसरे अध्याय में पेड़ की इसी महिमा के साथ कृषि वानिकी से ग्रामीण जीविका में बढ़ोत्तरी, पेड़ों से इमारती व जलावन पर भी विमर्श करता है।

पुस्तक के तीसरे अध्याय में बताया गया है कि किस तरह बड़े पेड़ों का आधिक्य खेतों में फसल उत्पाद को बढ़ाता है। इस अध्याय में खेती और वृक्ष प्रजनन के इतिहास, फलदार पेड़ों की पारम्परिक और आधुनिक बागवानी पर भी प्रकाश डाला गया है। सबसे बड़ी बात की हर शब्द बेहद सहज व सरल शब्दों में है और पाठक को उसे समझने व क्रियान्वयन में कोई दिक्कत नहीं होगी।

पुस्तक के आखिरी अध्याय में पचास से अधिक प्रजाति के वृक्षों, उनके गुणों, उनको उगाने के तरीकों, उनसे प्रकृति व जीव-जगत को लाभ पर प्रकाश डाला गया है। इसमें ताड़, नारियल, इमली, अंजीर, कटहल, बरगद, चिनार, टीक, केला रतालू, पपीता, नागफनी जैसे ऐसे पेड़ों की चर्चा है जिनका बाकायदा जंगल सजाया जा सकता है। इन पेड़ों का इतिहास, विकास यात्रा, परम्पराओं में महत्त्व, इन्हें उगाने के सलीके व तरीके आदि को भी इसमें समझाया गया है। इसमें कई कहानियाँ भी दी गई हैं। अंत में तीन कविताएँ और सन्दर्भ सूची भी बेहद महत्त्वपूर्ण है।

इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक की लेखिका भारत सरकार में मन्त्री व पर्यावरण प्रेमी श्रीमती मेनका गाँधी और फिनलैंड की अग्रणी पर्यावरण कार्यकर्ता, चिंतक व लेखक रिस्तो इसोमाकी हैं। श्री रिस्तो मानते हैं कि धरती और मनुष्य सहित तमाम सभ्यताएँ अहिंसा पर आधारित व मुक्त विचारों से ओत-प्रोत होना चाहिए। इसका हिन्दी रुपांतरण डॉ. रमेशचंद्र शर्मा ने किया है। पुस्तक अमूल्य है और शायद इसीलिए इसकी कोई कीमत नहीं रखी गई है। पुस्तक में उल्लेख है कि इस पुस्तक की सामग्री का कोई भी कहीं भी इस्तेमाल कर सकता है।

वृक्ष खेती, रिस्तो इसोमाकी, मेनका गाँधी, हिन्दी अनुवाद - डॉ. रमेश चंद्र शर्मा, पृ. 268, कीमत - अमूल्य, वसुधैव कुटुम्बकम, क्षरा लोकायत, 13 अलीपुर रोड, दिल्ली-110054
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading