पूम्पुहार
क्लेर आर्नि | ओरिएल हेनरी
मैं पूम्पुहार पहुँचा तब एक तूफान वहीं पर आ रहा था। तेज हवा बारिश की धाराओं को गोल-गोल घुमाकर मरोड़ रही थी और समुद्र में डूबे उस पुराने शहर पर लहरें बुदबुदा रही थी। कावेरी का मुख ढूँढते मैं काले रंग की रेत में गरजती हवा में चलता ही रहा। एक समय पर जिस बंदरगाह से चोला रोम शहर तक ब्यापार करते थे उसका कोई निशान बचा नहीं था और बाद में मैंने कावेरी को एक दयनीय धारा के रूप में देखा।
बंगाल की खाड़ी के फेन युक्त उग्र पानी की ओर देखते मैंने महसूस किया कि चोला राजकुमारी आदिमण्डि के प्रेमी - अट्टी -को इन लहरों ने किस प्रकार अन्दर खींच लिया होगा। इस नाले को मैं विशाल कावेरी, दक्षिणी गंगा, के रूप में नहीं देख पाया। यह मिथक की सुंदरी - जिसे ब्रह्मा ने पुत्रहीन राजा कावेरन् को प्रदान किया था और जिसने पंडित अगस्त्य से विवाह किया था - हो नहीं सकती थी।
कावेरी देवी
उस छोटी सी नदी के सामनेवाले तट पर मैंने दाहसंस्कार की एक जलती चिता देखी। ज्वालाएं और धुआँ हवा के झटकारों से धुंधले आकाश की पार्श्वभूमि पर इर्दगिर्द फैल रहे थे और अचानक मैं जान गया कि मेरी मनोदशा ही मेरे मन में बसा नदी का चित्र बदल रही थी। कावेरी ने अपना वचन निभाया था - दो राज्यों का जनजीवन संभलना - और अब वह समुद्र की बाहों में विश्राम करने स्वतन्त्र बन गयी थी।