प्याऊ

हाउसिंग सोसायटी के बाहर एक घना पेड़ है। गर्मियों में उसकी छाया ठंडी रहती है। इसलिए वहां लोग आराम के इरादे से आ खड़े होते हैं। वहीं एक पान वाले का ठिकाना है। वह पेड़ के नीचे की कच्ची जमीन पर पानी का छिड़काव करता रहता है, जमीन ठंडी हो जाती है। वहां कुछ लोग कबूतरों के लिए दाने डाल देते हैं। कबूतरों का झुंड गुटरगूं करता हुआ, पंख फड़फड़ाता उड़ता-उतरता रहता है।

वहीं पास में कुछ रिक्शा वाले भी खड़े रहते हैं। उन्हें भी पेड़ की छाया का आराम मिलता है। पर आस-पास पानी का की नल नहीं है, इसलिए पेड़ की छाया में खड़े होने वाले लोग कहते हैं। सब बहुत बढ़िया है पर पीने के पानी का इंतज़ाम और हो जाता तो कोई कमी न रहती।

एक दिन दिखाई दिया कि हाऊसिंग सोसाइटी की चहारदीवारी से लगा कर पानी की टंकी का निर्माण किया जा रहा है। टंकी की दीवार पर सफेद टाइलें लगाई गईं। टंकी के आगे चमचमाती टोंटिया लगा दी गईं। सुबह सोसायटी के अंदर लगे नल से पाइप लगाकर टंकी को भर दिया जाता था। गर्मियों में टंकी के सामने पानी लेने के लिए भीड़ लगी रहती थी। सब कहते वाह अब तो मजा हो गया। टंकी लगे हुए कुछ समय बीत गया। गर्मियों का मौसम था पर अभी स्कूलों में गर्मी की छुट्टियाँ नहीं हुई थीं। दोपहर को बच्चों के लिए स्कूल बसें वहां से गुजरा करती थीं। पर रुकती नहीं थी। एक दिन एक स्कूल बस प्याऊ के पास आकर रुकी। बस में कुछ ख़राबी आ गई थी। ड्राइवर इंजन की जांच करने लगा- इस बीच कई बच्चे बस से नीचे उतर और पानी की टंकी के पास आ खड़े हुए। उस समय कई लोग टंकी से पानी ले रहे थे। उनमें तीन बच्चों, अमित, नीरज और रमेश के हाथों में खाली बोतलें थीं। वैसे तो बच्चे अपना पानी साथ लेकर चलते थे पर बस प्याऊ के पास खराब हुई थी और संयोग से उनके पास पानी खत्म हो गया था इसलिए वे बोतलें लेकर टंकी से पानी भरने लगे। तभी न जाने क्या हुआ, अमित जोर से चिल्लाया, ‘भागो यहां से। पानी मत भरो। देखों कितनी गंदगी है यहां।’ अब नीरज और रमेश का भी ध्यान गया- टंकी में लगी टोंटियों के नीचे खुले पाइप में कई काक्रोच चल रहे थे।

नीरज बोला- ‘अरे देखो कितने कीड़े हैं।’ अब सबका ध्यान गया- खुले पाइप में पानी के अंदर कई काक्रोच मरे पड़े थे। कई कीड़े पानी की टोंटियों पर भी रेंग रहे थे। अमित, नीरज और रमेश पीछे भागे। उन्होंने बोतलों में भरा पानी फुटपाथ पर उड़ेल दिया। वहां और भी कई लोग आ जुटे। उन्होंने देखा सचमुच बच्चे ठीक ही कह रहे थे।

एक रिक्शा वाला सुमेर बोला- ‘बाप रे, कितनी गंदगी है। हो सकता है टंकी के अंदर भी पहुंच गए हों ये कीड़े।’

दूसरा रिक्शा वाला - ‘हमें क्या पता - हमें तो जब प्यास लगती है तो यहीं से पानी पीते हैं।’

बस में बैठी बच्चों की टीचर प्रभा ने यह देखा तो वह समझी शायद बच्चों के साथ किसी का झगड़ा हो गया है। वे बस से उतर कर बच्चों के पास आ खड़ी हुईं। पूछने लगीं- क्या हुआ बच्चों। किसी ने कुछ कहा क्या?

‘नहीं मैडम हम पीने का पानी ले रहे थे, पर देखा कि पानी की टंकी पर जगह-जगह काक्रोच चल रहे हैं। आप खुद देख लीजिए।’ रमेश ने कहा।

मैडम ने ध्यान से देखा तो वह भी चौंक गईं। पानी की टंकी पर सचमुच कई कीड़े चल रहे थे और इतना ही नहीं सफेद टाइलों पर जगह-जगह कालिख और कीचड़ के बड़े-बड़े धब्बे उभरे हुए थे। साथ ही टाइलों पर कई छोटे-बड़े पोस्टर चिपके हुए थे। पानी की टंकी के ऊपर लगे सफेद चमचमाते टाइल कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे थे।

प्रभा ने बच्चों से कहा- ‘अरे सच यहां तो बेहद गंदगी है। चलो जल्दी से बस में बैठो। यहां ज्यादा रुकना ठीक नहीं है।’ और फिर खुद बस में जा बैठी। अमित, नीरज और रमेश भी एक-एक कर बस में आ गए। बस चल दी, पर वे तीनों काफी देर तक उधर ही देखते रहे। तीनों में गहरी दोस्ती थी। वे पास-पास ही रहते थे। एक दिन अपने दोस्तों के साथ वे पानी की टंकी पर आ पहुंचे।

रिक्शा वालों ने देखा कि बच्चे झाड़ू, ब्रश, बाल्टी और कुछ बोतलें लेकर आए थे। आते ही उन्होंने टंकी के पास खड़े लोगों से पीछे हटने को कहा। फिर अमित और नीरज सोसायटी के दरवाजे में घुस गए। कुछ देर बाद बाहर निकले तो दोनों एक सीढ़ी पकड़े हुए थे। नीरज सीढ़ी के जरिए टंकी की छत पर जा पहुंचा। वहीं से चिल्लाया- अरे देखों, ऊपर लगे पत्थर पर भी बहुत ज्यादा कूड़ा जमा है। टंकी के ऊपर पेड़ था। उससे झड़ते पत्ते और पंछियों की बीट से टंकी का ऊपरी हिस्सा बेहद गंदा हो रहा था।

एक-एक कर तीनों टंकी पर चढ़ गए। उन्होंने टंकी पर पड़ी गंदगी साफ की। तब तक एक तरफ खड़े दो रिक्शा वाले बाल्टी में पानी भर लाए। फिर पानी से टंकी का ऊपरी हिस्सा रगड़-रगड़ कर ब्रश से साफ कर दिया गया। अब टंकी की बाहर वाली टाइलों पर चिपके पोस्टर हटाए जाने लगे। टाइलों को ब्रश से रगड़ा जा रहा था।

बाहर के हिस्से की सफाई के बाद अब टंकी के अंदर की बारी थी। टंकी के नीचे लगे वाल्व को हटाते ही टंकी से भरा पानी तेजी से सोसाइटी की दीवार के साथ-साथ बने नाले में गिरने लगा। थोड़ी देर में टंकी का पानी निकल गया। अब सोसायटी के अंदर पानी का पाइप चालू कर दिया गया। पानी तेजी से टंकी में आ रहा था और साथ ही नीचे लगे पाइप से बाहर निकलता जा रहा था। जल्दी ही टंकी अंदर से भी साफ हो गई।

टंकी में दोबारा साफ पानी भर दिया गया। टंकी पर लगी टाइलें भी अब एकदम चमचमा उठीं। जब तक तीनों बच्चे टंकी की सफाई में लगे थे वहां खड़े तीन रिक्शा वाले टंकी के आसपास फुटपाथ की धुलाई करने लगे। देखते-देखते फुटपाथ का भी सारा कूड़ा-कचरा साफ कर दिया गया।

धुले फुटपाथ पर सफेद टाइलों वाली पानी की टंकी चमचमा उठी थी। अब टंकी पर तो क्या, दूर-दूर तक कूड़े-कचरे और कीड़े-मकोड़ों का नामों निशान तक न था।

‘पानी की टंकी की सफाई तो हो गई, पर नाले की गंदगी का क्या किया जाए?’ नीरज ने कहा। यह कहते हुए वह कुछ सोच रहा था। उसके पिता नगर निगम के सफाई विभाग के अधिकारी को जानते थे। उसने घर जाकर पिता को बताया तो वह मदद को तैयार हो गए। वे सफाई अधिकारी के घर नीरज को ले गए। नीरज ने उन्हें पूरी बात बताई तो सफाई अधिकारी ने पानी की टंकी के पीछे नाले की सफाई करवाने का वादा किया।

अगले दिन नगर निगम की सीवर सफाई मशीन नाले के पास आ लगी। नाले के पत्थर हटाकर मशीन ने दूर तक नाले में पड़ी गंदगी व जमा कीचड़ को बाहर निकाल दिया। उस समय नीरज, अमित और रमेश भी वहां थे। नाले में से काफी गंदगी बाहर निकाली गई।

सफाई के बाहर नाले के ऊपर लगे पत्थरों को भी धो डाला गया। अब जरा भी गंदगी या बदबू नहीं थी। सोसायटी के गार्ड अंदर बाग से फूलों के कई गमले ले आया। उन्हें आसपास रख दिया गया। एक गमला टंकी के ऊपर सजा दिया गया।

नीरज, रमेश और अमित चलने लगे तो आसपास खड़े लोग बोले- ‘शाबाश बच्चों, अगर तुम्हारी कोशिश न होती तो पानी की टंकी इसी तरह गंदी रहती।’

नीरज बोला- ‘लेकिन इसकी सफाई लगातार नहीं होगी तो यहां फिर वैसी ही गंदगी फैल जाएगी।’

‘नहीं अब ऐसा नहीं होगा। हम हफ्ते में एक बार मिल कर प्याऊ की अच्छी तरह सफाई किया करेंगे।’ वहां खड़ी भीड़ से आवाज आई।

इसके बाद से नीरज, अमित और रमेश वाली स्कूल बस लगभग रोज ही वहां आकर रुकती थी। बच्चे चमचमाती पानी की टंकी की ओर देखते तो उनके चेहरे पर हंसी खिल जाती। चमचमाते सफेद टाइल दूर से ही ध्यान खींच लेते थे। इसका कायाकल्प हो गया था।

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