फ्लोराइड उन्मूलन के बीच जिन्दगी

Fluoride in Madhya Pradesh
Fluoride in Madhya Pradesh

मध्य प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित धार जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है। लेकिन यह पहले से ही पानी के संकट से जूझने वाला जिला है। यहाँ जनवरी से लेकर जून तक हर साल पानी का संकट खड़ा होता है। जिले का उत्तरी भाग मालवा अंचल में आता है। इसका मध्य भाग विंध्याचल में और दक्षिणी भाग नर्मदा घाटी से जुड़ा हुआ है।

आदिवासी बहुल जिला होने के साथ यहाँ के 12 लाख 22 हजार 814 आदिवासियों की जिन्दगी में पानी को लेकर सदैव संकट बना रहता है। अक्सर पानी धरती की गहराई में चला जाता है। भू-जलस्तर 10 से 80 मीटर तक जाता है। पानी में सबसे ज्यादा परेशानी फ्लोराइड की है। 13 विकासखण्ड में 324 ग्राम ऐसे हैं जहाँ फ्लोरोसिस की समस्या है। इनमें से 178 गाँव की 813 बसाहटें ज्यादा प्रभावित हैं। ये सभी गाँव आदिवासी बहुल हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के 1 हजार 683 ऐसे स्रोत हैं जिनमें फ्लोराइड की मात्रा है।

नर्मदा जिले की प्रमुख नदी है। जिले में खनिज सम्पदा बहुत अधिक नहीं है। यहाँ पर नर्मदा किनारे रेत की खदानें हैं। वहीं मनावर व गंधवानी क्षेत्र में चूने की खदाने हैं। चूने की खदानों से यहाँ सीमेंट उद्योग अच्छी स्थिति में है। मुख्य खनिज की उपलब्धता की स्थिति 57 हजार 980 मीट्रिक टन है। जबकि गौण खनिज की उपलब्धता 11 मीट्रिक टन है। यह औसत स्थिति है। जिले में 1 हजार 473 गाँव विद्युतीकृत है। इन गाँवों में फीडर सेपरेशन के माध्यम से बिजली उपलब्ध कराई जा रही है। जिले में मुख्य डाकघर सहित 239 डाकघर हैं। जिले में कुल 8 लाख 19 हजार 500 हेक्टेयर भूमि है। इसमें से 1 लाख 20 हजार 755 हेक्टेयर में वन भूमि है। जबकि कृषि के लिये करीब 6 लाख हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है।

जिले में 764 ग्राम पंचायतें हैं, जो ग्रामीण व्यवस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। ग्यारह शहरी क्षेत्र हैं। इसमें धार, मनावर और पीथमपुर नगर पालिका क्षेत्र है। जबकि डही, कुक्षी, राजगढ़, सरदारपुर, धामनोद, धरमपुरी, बदनावर व मांडू नगर पंचायत हैं। जिले में 4 हजार 172 विद्यालय हैं। इनमें प्राथमिक 3 हजार 321 व माध्यमिक विद्यालय 851 हैं। 238 हायर सेकेंडरी व हाईस्कूल हैं। जिला मुख्यालय पर दो महाविद्यालय और पीथमपुर, राजगढ़, कुक्षी, मनावर, बदनावर, गंधवानी, धरमपुरी में एक-एक महाविद्यालय संचालित हैं। जिले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से सेवाएँ दी जाती हैं।

यहाँ पर 30 बिस्तर वाले 15 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। जबकि छह बिस्तरों वाले 60 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। जिले में उपस्वास्थ्य केन्द्र भी बड़ी संख्या में है। इनकी संख्या 399 हैं, लेकिन इन स्थानों पर स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बुरी है। 300 बिस्तर वाला जिला चिकित्सालय है, जहाँ अब स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हो रहा है। यहाँ प्रति 100 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर 23 किमी सड़क है। जबकि पक्की सड़क की स्थिति प्रति 100 वर्ग किमी पर 19 किमी है।

नई जनगणना के अनुसार जिले की आबादी 21 लाख 84 हजार 672 है। इनमें 11 लाख 14 हजार 267 पुरुष और 10 लाख 70 हजार 504 महिलाएँ हैं। जिले में अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी लोगों की जनसंख्या 12 लाख 22 हजार 814 है। इसमें आदिवासी पुरुषों की संख्या 6 लाख 14 हजार 619 हैं। जबकि महिलाओं की संख्या 6 लाख 8 हजार 195 है। प्रति 10 वर्ष में यहाँ की आबादी करीब 25 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस बार जनसंख्या की वृद्धि 25.53 रही है।

धार जिले में साक्षरता की स्थिति चिन्ताजनक है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ 60.57 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। इसमें महिला साक्षरता और भी कम है। पुरुषों की साक्षरता 71.12 प्रतिशत तो महिलाओं की 49.69 प्रतिशत है।

 

 

फ्लोराइड प्रभावित जिले की स्थिति


जिले में लगभग सभी 13 विकासखण्डों में फ्लोराइडयुक्त पानी की समस्या है। धार विकासखण्ड ऐसा है, जहाँ सबसे कम ग्राम पंचायतें और ग्राम प्रभावित हो रहे हैं। धार में महज ग्यासाबाद और उटावद ग्राम में यह समस्या है। यहाँ पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम से भी अधिक मिल रही है। नालछा विकासखण्ड में सर्वाधिक ग्राम प्रभावित हैं। इसमें करमतलाई, सामरिया, कछाल, बांगरेड, गौमाल, जीरापुरा, ढाल, बेकलिया, दिग्ठान, कांकलपुरा, सुलीबयड़ी, पलासमाल, कुराड़िया, उमरपुरा, हेमाबयड़ी, बन्धावा, अंबापुरा, भील तलवाडा, कोठी सोडपुर, उज्जैनी, रूपट्टा, पिपलीमाल, मेघापुरा, लोभानपुरा, बंजारी, किशनखोदरा, करोंदिया, रणगाँव, रामगढ़, चार घाटी, करोंदिया कालीपुरा, गल्लामवड़ीपुरा, भूरी घाटी, शिकारपुरा, दुर्गापुरा, भुजियापुरा, भीलकुंडा, भड़किया, सेवरीमाल, आँवलिया, बियाघाटी, इमलीपुरा, पीर घाटीपुरा, अड़ा बयड़ापुरा, बेड़ियापुरा, भेरू घाटीपुरा, चीपखोदरा, हीरापुरा, झिडक्यापुरा, मेवास जामन्या व सराय क्षेत्र प्रभावित है।

तिरला विकासखण्ड में सिंधुकुआँ, चैलाई, पाडल्या, गोदघाट, गढ़, अड़वी, अम्बाकुंडीया, अम्बापुरा, गुवाड़ी, पर्वतपुरा, आमल्याभेरू, अंजनाई, बोड़ाकलां, कोठड़ा, सुलीबयड़ी, भुवावदा, देवीपुरा, सूरजपुरा, नाहर छज्जा, गंगानगर, रेहटिया, सांघी खुर्द, खांदनबुजुर्ग, बड़ी कलां, मोहनपुरा, नीमखेड़ा, बदलीपुरा खुर्द, नीनाखेड़ी व बड़ पीपली शामिल हैं।

सरदारपुर विकासखण्ड में जौलाना, बोदली, बोला, हनुमंतकाग, गोलीखेड़ा, टांडाखेड़ा, मेहगाँव, एहमद, बड़वेली, पासवाड़ा, मोयाखेड़ा, खेमखेड़ी व लेडगाँव शामिल हैं। बदनावर विकासखण्ड के प्रभावित गाँवों में शेरगढ़, बिड़वाल, किशनपुरा, बोरझडी, इन्द्रावल, कड़ौदकलाँ, दत्तीगारा, कोद, चीराखान, खंटुपला व पडुनीकलाँ फ्लोराइड प्रभावित गाँवों में शामिल हैं।कुक्षी विकासखण्ड में अंजनी मल्हार, बड़ग्यार, डेहरी, डोई, कापसी, कावड़या खेड़ा, खरगोन, कुंदारा, रामपुरा, लोंगसरी, कुटेड़ी, टेकी आली, चिकला तालनपुर, कुर्दीपुरा, हल्दी, नैनगाँव, उंडेली, लुन्हेरा, मगरदा, आंवली, गिरवान्या, लोहारा, रोजा, झारड़ा, जुगतलाई, नीमथल व मगरदा में फ्लोराइड की समस्या अधिक है।

बाग विकासखण्ड में बोरकुई, रिसावला, भूमिया, उकाला, खनिअम्बा, जाली, मुहाजा, कालीदेवी, अम्बासोटी, तोगनी, छतवानिया, करणपुरा, बराड़ा, बरदा टांडा, गुराड़िया, चामझर, पाडा बंदा, गयड़ी, काटी व गेटा में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से अधिक है।

निसरपुर विकासखण्ड में खण्डवा, निम्बोल, मसान्या, सुलेगाँव, लोहारी, बड़गाँव, ताना, चिपराटा, देशवान्या, रसवा, ननोदा, धुलसर, अलोदा, सालाखेड़ा, कोलगाँव, खरजना, लोणी, भरूड़पुरा, लिंगवा, दाहोद, भंवरिया, कटनेरा, रेट्टी व तलवाड़ा में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है।

डही विकासखण्ड में डही सहित भगवान्या, चिड़िया पीपल, पन्हाल, नलवान्या, कोटवा, शिदरी, अतरसुमा, नरझली, कांकरिया, गाजगोटा, रणगाँव, फिफेड़ा, थांदला व पन्हाला में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है।

मनावर विकासखण्ड में डोंचा, बनेड़िया, बीड़ापुर, झाबड़ी, देदला, दसवी, बोरूद, सोंडुल, कलवानी, अजंदीमान, गोपालपुरा, जाटपुरा, अजंदीकोट, पिपलकोटा, सिंघाना, रणतालाब, भंसलवाड़, अंजनिया, डोंगरगाँव, साला, जाटपुर, बलवारी खुर्द व टेमरनी शामिल हैं।

गंधवानी विकासखण्ड में बिल्दा, बारिया, कोटा, कोसदाना, बकतला, मलहेरा, गोदड़ापुरा, मुजाल्दा, रेहड़दा, धयड़ीया, खेड़ी बुजुर्ग, मोहनपुरा, साली, ग्वला मगरी, पिपल्दा, गंधवानी, खेड़ा, चाकडुंड, वीरपुर, मालगढ़, कुंडी, सिरोंज, बड़ खुदरा, चुनपया, जीराबाद, घुरसल, करोदिया, अवल्दामान, खड़की, भमोरी, जहेदी, गोपालपुरा, भूतिया, जीरहन, धोला हनुमान, कोदी, होली बयड़ा, बिल्दारी, खोद, कुंडी, मोहापुरा, मोरीपुरा व सेंदला में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। इन गाँवों के लोग बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं।

धरमपुरी विकासखण्ड में हीरापुर, वासवी, पिपल्याखुंट, पिपल्याकहीम, लोधीपुरा, कुंदा, कछवानिया, सरजपुर, इकलारा बुजुर्ग, कंधान्या, ढापला, कुसुमला, बगवान्या, चिकटयावड़, सनकोटा, दूधी, अहमदपुरा, डेहरिया, गुजरी, सिरसोदिया, भोदल, सेमल्दा, मेहगाँव, बलवाड़ा, मोरगढ़ी, लुन्हेरा खुर्द, दहीवर, शाला, रामपुरा, डोंगरी दसोदा, रूपट्टा, खेड़वी, धेगदा, लोहारी, चंदवाड़ा, तारपुरा, उमरिया, अब्दुल्लापुरा, मतलबपुरा व अनुपपुरा बहादरा में पानी की समस्या है, जहाँ पर फ्लोराइड अधिक पाया जाता है।

उमरबन विकासखण्ड में भी फ्लोराइड की समस्या अधिक है। इसके अनेक गाँव पानी के मामले में दिक्कत से जूझ रहे हैं। उमरबन में चैंकी, भुवावदा, किशनपुरा खेड़ी, बंचेकुनवा, बोहरला, बंजारी सोंदुल, रालामंडल, बल्ड़ीपुरा बुजुर्ग, हनुमंत्या, दसाई, खैरवा, धानखेड़ी, भेमोरी, उपड़ी, कुवाड़, लवानी, हसनपुरा कालापानी, तिरवयड़ा, मिल्दा, उटावद, इशकपुरा खेड़ी, देवलारा, भेमोरी, महापुरा, जलखेड़ा, कच्छादर, सुलीबयड़ी, खरगोन, खैरवा जागीर, लवनी, प्रतापपुरा ढाब्या, रामाधामा, जामन्यापुरा 2002 में जिले में फ्लोरोसिस की स्थिति का पता चला था। तब से लेकर अब तक कई प्रयास हुए। कई तरह की चुनौतियाँ सामने आई। जिले में 1 हजार 463 कुल ग्राम हैं। 264 पंचायतें हैं। बसाहटों की संख्या 6 हजार 685 हैं। जिले में अभी भी 1 हजार 824 ऐसी बसाहटें हैं, जहाँ पर पानी की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। इनमें से बड़ी संख्या में गुणवत्ता से प्रभावित बसाहटें हैं। जिले में कुल हैण्डपम्प 16 हजार 504 हैण्डपम्प हैं। इनके माध्यम से पीने का पानी ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध कराया जाता है।खुर्द, पंजीरिया, निल्दा, उखल्दा, जामन्या मोटा, सालेपुर खेड़ी, टेढ़गाँव, मोतकाना पुर, बगड़ी, जामन्या, धाबड़, करंदिया मोटा, बंजारी, फारसपुरा, उमरबनकलाँ, पिपल्या मोटा, बड़ीया, भमलावदा, मंडलावदा, आमसी, बीरमपुरा, डेडगाँव, उमरबनखुर्द व पंडाला में फ्लोरोसिस की मात्रा अधिक है। इन सभी गाँवों की आबादी और उससे जुड़े हुए मोहल्ले, फलिये बेहद प्रभावित हैं।

 

13 विकासखण्डों की बसाहटें प्रभावित


बदनावर व बाग में 32-32, डही में 67, धरमपुरी में 88, गंधवानी में 70, कुक्षी में 57, मनावर में 40, नालछा में 130, निसरपुर में 55, सरदारपुर में 53, तिरला में 46 व उमरबन में 116 बसाहटें फ्लोराइडयुक्त पानी से परेशान हैं। जबकि धार विकासखण्ड में केवल छह बसाहटें प्रभावित हैं।

 

स्वास्थ्य सुविधाएँ


आदिवासी बहुल धार जिले में 21 लाख की आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाएँ पर्याप्त नहीं है। चूँकि यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ बहुत ही भिन्न हैं, इसलिये यहाँ पर स्वास्थ्य सेवाएँ कमजोर भी हैं। आदिवासी अंचल में लोग अभी भी स्वास्थ्य के मामले में ऐसे लोगों पर निर्भर हैं, जो कि डिग्रीधारी ही नहीं हैं। स्थानीय भाषा में ये झोलाछाप या फर्जी डाक्टरों से उपचार करवाते रहते हैं। यही वजह है कि जिले में स्वास्थ्य के मामले में हर लिहाज से दिक्कतें हैं।

चूँकि 2002 में जिले में फ्लोरोसिस की स्थिति का पता चला था। तब से लेकर अब तक कई प्रयास हुए। कई तरह की चुनौतियाँ सामने आई। जिले में 1 हजार 463 कुल ग्राम हैं। 264 पंचायतें हैं। बसाहटों की संख्या 6 हजार 685 हैं। जिले में अभी भी 1 हजार 824 ऐसी बसाहटें हैं, जहाँ पर पानी की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। इनमें से बड़ी संख्या में गुणवत्ता से प्रभावित बसाहटें हैं। जिले में कुल हैण्डपम्प 16 हजार 504 हैण्डपम्प हैं। इनके माध्यम से पीने का पानी ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध कराया जाता है। पीने के पानी के लिये मुख्य रूप से जिले में 179 नल-जल योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। जबकि 261 स्पाट सोर्स के माध्यम से पानी दिया जाता है।

जिले की औसत वर्षा 833.10 मिलीमीटर है। इस तरह जिले में जब भी बारिश की असामान्य स्थिति बनती है तो दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। धरती की अधिक गहराई से पानी निकालना पड़ता है और यहीं से शुरू हो जाती है फ्लोराइड की समस्या। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने हाल ही में विभिन्न प्रयासों के माध्यम से 144 बसाहटों में पेयजल व्यवस्था के लिये कार्य करना शुरू किया है। 22 ग्रामीण शालाओं में पानी दिया जा रहा है। 73 आँगनवाड़ी शालाओं में पानी दिया जा रहा है।

 

लाखों की आबादी है प्रभावित


लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की दृष्टि से जिला दो खण्डों में बँटा हुआ है। एक धार खण्ड है और एक सरदारपुर खण्ड है। इनके मुख्यालय भी धार और सरदारपुर में ही है। नालछा विकासखण्ड में 57 बसाहटों में 12 हजार 820 की आबादी को फ्लोराइडयुक्त पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि मनावर में 20 हजार 955 व गंधवानी में 46 बसाहटों के 20 हजार 900 लोगों को इस तरह का पानी पीना पड़ रहा है।

सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र में कुक्षी, बाग, निसरपुर व डही क्षेत्र हैं, जहाँ 1 लाख 38 हजार लोगों को पानी स्वच्छ नहीं मिल पाता है। यहाँ सर्वाधिक 439 बसाहटें प्रभावित हैं। सरदारपुर क्षेत्र में 62 बसाहटों में 24 हजार 46 लोगों को पानी के मामले में दिक्कत हो रही है। बदनावर क्षेत्र के 44 गाँवों में 30 हजार 866 लोगों को फ्लोराइड की समस्या से जूझना पड़ रहा है। धरमपुरी में 125 बसाहटें हैं, जहाँ 73 हजार 22 की आबादी प्रभावित है। इस तरह फ्लोराइड एक बहुत बड़ी समस्या है।

कुल 3 लाख 20 हजार से अधिक की आबादी के लिये फ्लोराइडयुक्त पानी एक परेशानी है। यह महज सरकारी आँकड़ा है, किन्तु जिले में इससे भी अधिक लोग फ्लोराइड से प्रभावित हैं। इसकी वजह यह है कि हाल ही में जो अध्ययन हुआ है, उसमें फिर यह बात सामने आई है कि बच्चों में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ती जा रही है। दन्तीय फ्लोरोसिस ने बच्चों को जकड़ रखा है। आमतौर पर स्कूल में बच्चे जब पहुँचते हैं, तो वहाँ पर मालूम होता है कि बच्चों के दाँत पीले हैं। उन बच्चों के लिये दाँत का पीला होना एक सामान्य बात है।

वजह यह है कि कहीं-न-कहीं यह माना जा रहा है कि बच्चों के दाँत ठीक से साफ नहीं करने से यह पीलापन आता है। जबकि जाँच में यह पाया जाता है कि फ्लोराइडयुक्त पानी एक समस्या है और उसी के कारण दन्तीय फ्लोरोसिस हो रहा है। जिले में कंकालीय फ्लोरोसिस के मामले भी आए हैं, किन्तु हड्डी के फ्लोरोसिस से प्रभावित बच्चों की संख्या कम है। जबकि दन्तीय फ्लोरोसिस की संख्या बेहद अधिक है।

 

फ्लोरोसिस की जानकारी


फ्लोरोसिस से लड़ने के लिये आपका पौष्टिक आहार:-
शरीर में कैल्शियम, मैगनीशियम, विटामिन सी एवं प्रोटीन की कमी से फ्लोरोसिस का असर पड़ सकता है। निम्नलिखित पौष्टिक आहार लेने से उपरोक्त कमी दूर हो सकती है।

दूध, आँवला, नींबू, सोया, दलिया, हरी सब्जी, तील चक्की।

आप कैल्शियम, मैगनीशियम और विटामिन सी की गोलियाँ भी ले सकते हैं।

 

फ्लोरोसिस के लक्षण


दाँतों में पीलापन, हाथों व पैर का टेढ़ापन, पैर का अन्दर, बाहर अथवा सामने की ओर झुकाव, घुटनों के पास सूजन, झुकने और बैठने में तकलीफ, कंधा हाथ व पैर के जोड़ों में दर्द, कम उम्र में ही बुढ़ापे के लक्षण, पेट में भारीपन महसूस होना।

 

आप क्या कर सकते हैं

 

जाँच


1. टेस्टिंग रीएजेंट को पानी के सैम्पल के साथ मिलाइए, अगर सैम्पल का रंग पीला हो जाता है तो उसमें फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। अगर उसका रंग लाल है तो उसमें फ्लोराइड की मात्रा कम है। पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक होने पर वह पीने लायक नहीं है।

 

खून व पेशाब की जाँच


2. खून में फ्लोराइड पाए जाने से साबित होता है कि फ्लोराइड शरीर में प्रवेश कर चुका है। इसकी मात्रा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होने पर शरीर के लिये हानिकारक है। पेशाब में फ्लोराइड पाए जाने से यह कह सकते हैं कि खाने पीने में कहीं-न-कहीं जरूर फ्लोराइड है। इसकी मात्रा 1 मिली ग्राम प्रतिलीटर से अधिक होने पर शरीर के लिये हानिकारक है।

 

हड्डी का एक्स-रे


3. हड्डी का एक्स-रे करने से फ्लोरोसिस की पुष्टि हो सकती है। इससे यह पता चलता है कि कुछ हद तक हड्डियों में फ्लोराइड जमा हो गया है।

फ्लोराइड रहित पानी के लिये आप क्या कर सकते हैं
1. फिल्टर का उपयोग एक्टिवेटेड एल्यूमिना फिल्टर, फ्लोराइड को पानी से निकाल देता है। इनरेम फाउंडेशन द्वारा बनाए गए फिल्टर में जीरो-बी भी दिया गया है, जो पानी के कीटाणुओं को निकाल देता है।

2. बरसात पानी का संग्रह बरसात के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत कम होती है। बारिश के समय पर घर के छत से पड़ने वाले पानी को एक टंकी में संग्रहित कर इसे साल भर शुद्ध कर पीने के लिये उपयोग कर सकते हैं।

3. अन्य फ्लोराइड रहित पानी अगर आपके घर में किसी दूसरे स्रोत से पानी प्राप्त है, तो हमेशा उसे फ्लोराइड के लिये जाँच कीजिए, फिर आप उसे फिल्टर करने के बाद ही पीजिए।

धार जिले में फ्लोराइड की समस्या

 

अहमदपुरा की दास्ताँ


पीएसआई देहरादून द्वारा पानी की जाँच कराने के बाद धरमपुरी विकासखण्ड की पंचायत ढापला के ग्राम अहमदपुरा में भी फ्लोरोसिस की समस्या सामने आई। यह अध्ययन 2007 में किया गया था। यहाँ न केवल बच्चों में दन्तीय फ्लोरोसिस पाया गया, बल्कि हड्डी सम्बन्धी फ्लोरोसिस भी पाया गया। सबसे अहम बात यह सामने आई कि लगातार अधिक फ्लोराइड की मात्रा का पानी पीने के कारण जानवरों में भी विकलांगता आने लगी। वाटर एड द्वारा भी इस दिशा में ध्यान दिया गया। इसके बाद यहाँ एक कुएँ के माध्यम से लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की दिशा में काम शुरू हुआ।

ग्राम अहमदपुरा में 102 परिवार के 641 लोगों को स्वच्छ पानी इसलिये नहीं मिल पा रहा था, क्योंकि 5 हैण्डपम्प होने के बावजूद वहाँ पर पीने का पानी सुरक्षित नहीं था। इसकी वजह यह थी कि हैण्डपम्प में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम के स्थान पर 4.14 पीपीएम तक मात्रा थी। 15 अगस्त 2008 को स्वतंत्रता दिवस पर हुई ग्रामसभा में केन्द्र सरकार की निर्मल नीर योजना के अन्तर्गत कुआँ बनाने के लिये जगह का निर्धारण हुआ।

ग्रामीण इस बात को जानते थे कि पहाड़ी क्षेत्र में पानी की समस्या गम्भीर है। सूखे जैसे हालात से गुजरने पर कुओं में पानी रह पाना सम्भव नहीं था। धरती की अधिक गहराई से नलकूप के जरिए पानी निकालने में फ्लोराइड भी साथ में आ रहा था। इस योजना के तहत बनने वाले कुएँ को एक स्टापडैम के नज़दीक ही बनाना तय हुआ, जिससे कि कुआँ रिचार्ज होता रहे। नाले में पानी उपलब्ध हो और स्टापडैम भी भरा रहे, इस दिशा में भी ध्यान दिया गया।

ग्राम पंचायत ने करीब साढ़े चार लाख रुपए खर्च कर एक बड़ा कुआँ बनाया है, किन्तु यह अधिक चढ़ाई वाला बन गया। ग्राम पंचायत ने इसे सेनेटरी वेल यानी कुएँ के रूप में तब्दील करने के लिये प्रयास किए, किन्तु वह सफल नहीं हो पाई। कुएँ की चढ़ाई अधिक हो जाने से छत बनाने का काम चुनौती भरा हो गया। इन सबके बावजूद स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिये वाटर एड आगे आया।

वाटर एड ने यहाँ भी बिजली संचालित पानी की मोटर, स्टैंड, टंकी आदि के लिये 2 लाख 10 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी। इससे यहाँ पर कवायद शुरू हुई। वहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने भी 50 हजार रुपए की मदद कर इस योजना में योगदान दिया। अहमदपुरा में भी स्थानीय लोगों द्वारा योजना के क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप आज लोगों को वहाँ पीने का स्वच्छ पानी मिलने लगा है।

 

 

इंसान के साथ जानवरों का भी भला


अहमदपुरा एक ऐसा गाँव है, जहाँ न केवल बच्चों से लेकर बड़े लोगों को वाटरएड व वसुधा विकास संस्था द्वारा निर्मित स्टैंड व टंकी से पानी मिल रहा है, बल्कि गाँव में एक स्थान पर मवेशियों यानी पशुओं के पीने के लिये भी पानी की टंकी बनाई गई है। इस टंकी को स्थानीय भाषा में चाठिया कहा जाता है। यह चाठिया कई जानवरों की प्यास बुझा रहा है और उनमें आने वाली विकलांगता को भी खत्म कर रही है।

 

विफलताएँ

 

अनुपयोगी संरचनाएँ (टंकी)


आदिवासी बहुल धार जिले में फ्लोराइड युक्त पानी से बच्चों में विकलांगता व दाँतों की खराबी की समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में लाखों रुपए की लागत से खरीदकर तिरला सहित सरदारपुर आदि विकासखण्ड में वितरित किये गए फ्लोराइड मुक्त पानी के फिल्टर कबाड़ के रूप में स्कूल में सड़ रहे हैं। फ्लोराइड युक्त पानी को शुद्ध पानी में बदलने वाले इन फिल्टरों को वितरित तो कर दिया गया, किन्तु पीएचई ने विद्यालय के शिक्षकों को उसके उपयोग की विधि नहीं समझाई। वहीं इसमें से ज्यादातर फिल्टर लीक करते हैं। शासन का लाखों रुपया खर्च हो गया और एक भी बच्चा अभी तक शुद्ध पानी नहीं पी पाया है।

शासन द्वारा जिले को करीब 250 फिल्टर उपलब्ध कराये गए थे, जिन्हें स्कूलों में 300 लीटर पानी की टंकी के साथ वितरित कर दिया गया। ये वे विद्यालय है, जो कि फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्र में है, जहाँ के बच्चे विकलांगता झेल रहे हैं। साथ ही दाँतों की खराबी से पीड़ित हैं। तिरला विकासखण्ड के ग्राम हिम्मतनगर के ईजीएस शाला में रखा फिल्टर धूल खा रहा है। इसी प्रकार की स्थिति ईजीएस ग्राम माली की कुंडी में है, जो कि सीमेंट की बोरियों के बीच में फँसा हुआ है। शिक्षक का कहना है कि इसका उपयोग एक भी बार नहीं हो सका। इसके अलावा ग्राम मोहनपुरा के माध्यमिक विद्यालय में शिक्षकों के सामने फ्लोराइड प्रभावित बालक जितेन्द्र एक उदाहरण है। वहाँ भी शिक्षक इसे उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। मोहनपुरा ग्राम के ही प्राथमिक विद्यालय में कबाड़ के रूप में रखे इस फिल्टर का उपयोग ही नहीं हो पा रहा है।

 

 

 

चुनौती पीने का पानी उपलब्ध होना


ग्राम पंचायत सुराणी का ग्राम निल्दा की आबादी के पास में उपलब्ध संसाधनों की पहले ही कमी है, जो दो हैण्डपम्प स्थापित है, वे पीने के पानी के लिहाज से असुरक्षित है। इसलिये 47 परिवार के 253 लोगों के लिये यहाँ पर पहले तो पीने का पानी चुनौती है और उसके बाद सुरक्षित पानी भी उपलब्ध होना बड़ी चुनौती है। इस ग्राम में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक पाई गई।

यहाँ फ्लोराइड की मात्रा 2.6 पीपीएम तक पाई गई जो कि मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यहाँ पीने का पानी खराब है और उसके कारण लोगों को फ्लोरोसिस की परेशानी से जूझना पड़ रहा है, तो सभी के लिये यह चुनौती बन गया है कि किस तरह से काम किया जाए। अभी तक यह होता आया था कि पानी तो उपलब्ध है किन्तु उसे स्वच्छ करना भर है। इस ग्राम की परिस्थिति यह थी कि बहुत ही अल्प मात्रा में जो पानी उपलब्ध है उसे कैसे शुद्ध बनाया जाए। वसुधा विकास संस्थान व वाटर एड ने मिलकर यहाँ प्रयास शुरू किए। इन प्रयासों का ही नतीजा था कि यहाँ एक नई कवायद हुई।

 

 

सीताराम भाई ने निभाई भूमिका


इस ग्रामीण क्षेत्र में सबसे पहले यह देखा गया कि जिस स्थान पर पीने के पानी के लिये सुरक्षित कुआँ बन सकता है। इसके लिये कोशिशें की गई। कुआँ बनाना आसान नहीं था, क्योंकि पथरीली जमीन पर काम करना था। निल्दा ग्राम में पुराना कुआँ ही उपयोग में लाया गया। ग्राम कालीकराय के पर्वत भाई की ही तर्ज पर ग्राम के सीताराम भाई ने अपना पुराना कुआँ दान दे दिया। ग्रामीण आजीविका परियोजना की सहायता से यहाँ पानी के कुएँ का गहरीकरण किया गया।

चट्टानों को फोड़कर पानी निकालना था, इसलिये गहरी खुदाई करने के लिये यहाँ बलास्टिंग की गई। इसके बाद जब सेनेटरी वेल तैयार किया गया। इसमें परियोजना के ग्राम कोष के माध्यम से 20 हजार रुपए खर्च किये गए। इस सेनेटरी वेल को बनाने के लिये वाटरएड संस्था ने करीब 2 लाख 10 हजार रुपए स्वीकृत किये। इस निर्माण को करवाने में वसुधा विकास संस्था ने तुरन्त ही काम किया। इस पर हैण्डपम्प भी स्थापित किया गया। साथ ही विद्युत संचालित मीटर भी लगाया गया जिससे कि बिजली नहीं होने पर ग्रामीण हैण्डपम्प से स्वच्छ पानी ले सके।

 

टंकी को बाँधने की पहल


यह ग्राम खुज नदी के किनारे स्थित है। बारिश के दिनों में यहाँ नदी में पानी की आवक ज्यादा हो जाती है और बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। स्टैंड व टंकी के बह जाने का खतरा रहता है। ग्रामीण इस बात को समझ चुके थे कि स्वच्छ पानी के लिये इन दोनों को ही सुरक्षित रखना जरूरी है। इसलिये उन्होंने खुद ही एक जुगत लगाई। इसी के चलते इन्होंने इन टंकियों को रस्सी से इस प्रकार बाँधा कि अधिक पानी आने पर वे बहकर अन्यत्र न चले जाएँ। इससे यह समझ में आता है कि स्वच्छ पानी पीने के लिये जो गैर सरकारी संस्थाओं ने साधन उपलब्ध कराए हैं, उसे सुरक्षित रखने के प्रति ग्रामीण कितना जागरूक हैं। ग्राम पंचायत द्वारा भी समय-समय पर अहम भूमिका निभाई जाती है। कुआँ निर्माण के मामले में पंचायत ने अच्छा सहयोग किया।

 फ्लोराइड प्रभावित ग्रामों में स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की योजनाओं में गम्भीर लापरवाही हो रही है। मान जलाशय पर 11 करोड़ 18 लाख रुपए की लागत से तैयार हो रही योजना के इंटकवेल की गहराई के मामले में लापरवाही कर दी गई। ऐसे में पूरे 11 करोड़ रुपए की योजना ही फ्लाप हो जाएगी। भीषण गर्मी में जब पीने के पानी की दरकार होगी, तब इंटकवेल की कम गहराई के कारण आठ ग्रामों की 46 बसाहटों को एक बूँद पानी नहीं मिल पाएगा।

 

 

आधुनिक फिल्टर की स्थापना


वसुधा विकास संस्थान व वाटरएड भी यहाँ एक अभिनव कोशिश कर रहे हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रहा है। गाँव के एक क्षेत्र में करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत से एक आधुनिक फिल्टर स्थापित किया जा रहा है जो कि एक्टिवेटेड एलुमीना फिल्टर है। इसके माध्यम से प्रति घंटे 500 लीटर स्वच्छ पानी लिया जा सकता है। इसके लिये एक नलकूप का चयन किया गया है जिसमें की फ्लोराइड की मात्रा कम है। ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि इस फिल्टर का मानक यह है कि वह पानी में से 5 पीपीएम तक ही फ्लोराइड खत्म कर सकता है।

उदाहरण के तौर पर यदि किसी हैण्डपम्प के पानी में 10 पीपीएम फ्लोराइड आता है, तो वहाँ यह फिल्टर काम नहीं कर पाएगा। इसकी वजह यह है कि 10 पीपीएम में से 5 पीपीएम फ्लोराइड भी निकल पाएगा। जो पानी शेष रहेगा वह भी खतरे के स्तर पर ही बना रहेगा। उल्लेखनीय है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम तक ही सामान्य मानी जाती है।

ऐसे नलकूप जिसमें कि 5 से 6 पीपीएम तक फ्लोराइड आता हो उसी पर यह फिल्टर काम कर सकता है। बहरहाल वसुधा विकास संस्थान व वाटरएड इन क्षेत्रों में इस तरह की कोशिश जारी रखे हुए हैं। वह भी उन परिस्थितियों में जबकि इस फिल्टर को चलाने के लिये आदिवासी अंचल में बिजली बहुत कम घंटे उपलब्ध होगी। साथ ही आपराधिक दृष्टिकोण से फिल्टर और अन्य कीमती सामानों के चोरी होने का भी भय बना रहता है।

 

 

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रयास और सफलताएँ


जिले में फ्लोराइड उन्मूलन का काम सही तरीके से नहीं हो पाने का नतीजा है कि करोड़ों रुपए खर्च हो जाने के बावजूद भी लोगों तक पानी नहीं पहुँच पा रहा है। इन सारी परियोजनाओं का काम औसत रूप से करीब 90 फीसद पूरा होना बताया जा रहा है। ऐसे में केवल परीक्षण के तौर पर ही ये परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। जबकि इन परियोजनाओं के काम 2013 में ही पूरे हो जाना चाहिए थे। अलबत्ता लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग यह दावा कर रहा है कि कई बसाहटों में पानी पहुँच रहा है।

 

योजनाओं की स्थिति एक नजर में


नालछा विकासखण्ड में सात करोड़ 54 लाख रुपए की लागत से 19 गाँव की 57 बसाहटों में 12 हजार 820 लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने की कवायद चल रही है। मान सरोवर से पानी लेकर फिल्टर प्लांट के माध्यम से पानी स्वच्छ करते हुए उसे वितरित करने का कार्य किया जा रहा है। फिलहाल इस योजना का कार्य 95 फीसदी पूरा हुआ है। मैदानी स्तर पर बहुत ही कम लोगों को पानी मिल पा रहा है। हालांकि पीएचई का दावा है कि 45 बसाहटों में पानी उपलब्ध हो रहा है।

मनावर विकासखण्ड में भी नौ करोड़ रुपए की लागत से 40 बसाहटों में पानी देने की योजना बनाई गई। इससे 20 हजार 955 लोगों को लाभान्वित करने का लक्ष्य है। किन्तु 90 प्रतिशत कार्य पूरे होने वाली योजना से 35 बसाहटों में पानी देने का दावा किया जा रहा है।

गंधवानी विकासखण्ड में भी फ्लोराइड की समस्या है। वहाँ की 46 बसाहटों में पानी देने के लिये 11 करोड़ 18 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। जिससे कि 20 हजार लोग स्वच्छ पानी पी सके। योजना का कार्य 80 फीसद पूरा हुआ है और दावा यह किया जा रहा है कि 11 बसाहटों में पानी मिलना शुरू हो गया है।

 

नर्मदा से लेना है पानी


धरमपुरी और उमरबन विकासखण्ड क्षेत्र में 125 बसाहटों को नर्मदा नदी से पानी देना है। इसके लिये 27 करोड़ 95 लाख रुपए खर्च किये जा रहे हैं। जिससे कि 73 हजार लोगों को लाभ मिलना है। पीएचई का दावा है कि 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है और 51 बसाहटों में पानी मिलना भी शुरू हो गया है। नर्मदा नदी से पानी लाना और उसे फिल्टर करके बाँटना अपने आप में एक चुनौती है। दूसरी ओर बदनावर व सरदारपुर विकासखण्ड के 11 ग्राम की 44 बसाहटों में कालीकिराय जलाशय से पानी लेना है। 13 करोड़ 91 लाख रुपए की इस योजना का काम 95 प्रतिशत पूरा होना बताया जा रहा है।

30 हजार से अधिक आबादी को पानी मिलने की स्थिति तब बनेगी जबकि कार्य पूरा हो जाएगा। फिलहाल 33 बसाहटों में पानी मिलना शुरू हो गया है। सरदारपुर विकासखण्ड के ही कुछ अन्य गाँवों में योजना अलग से बनाई गई है। 17 गाँव की 62 बसाहटों के लिये 9 करोड़ 82 लाख रुपए से योजना पर काम किया जा रहा है। जिससे कि 24 हजार से अधिक लोग लाभान्वित हो सकेंगे। कार्य 95 प्रतिशत हुआ है और 44 बसाहटों में पानी मिलने की बात बताई जा रही है।

 

जिले की सबसे बड़ी योजना अधूरी


कुक्षी, बाग, निसरपुर व डही विकासखण्ड की 439 बसाहटों में नर्मदा का पानी उपलब्ध हो इसके लिये जिले की सबसे बड़ी योजना पर काम चल रहा है, जो करीब 86 करोड़ 20 लाख की है। इससे 78 ग्राम लाभान्वित होना है और 1 लाख 38 हजार लोगों को पानी मिलना है। सबसे धीमी गति से काम इसी परियोजना का हो रहा है। केवल 75 प्रतिशत काम ही हो पाया है। अभी तक एक भी बस्ती को पानी मिलना शुरू नहीं हुआ।

 

समुदाय का असहयोग


जिले में फ्लोराइड मुक्ति की स्थिति बेहद कमजोर है। इसकी वजह यह है कि अब मैदानी स्तर पर दिक्कतें आ रही हैं। दरअसल ग्राम पंचायत कुराड़िया में जो फिल्टर स्टेशन बनाया गया है वह पानी को शुद्ध करके पाइप के जरिए गाँव में भेजा तो जा रहा है, किन्तु लोगों के कंठ अभी भी सूखे हैं। ऐसे में अभी भी लोग मजबूरन फ्लोराइडयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। कहीं पर ईंट-भट्टे में पानी का उपयोग हो रहा है तो कहीं खेतों में पानी लिया जा रहा है।

फ्लोराइडमुक्त पानी का यह दुरुपयोग लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को भी मालूम है। अब इस योजना को सफल बनाने के लिये सरकारी विभाग जनप्रतिनिधियों से उम्मीद लगाए हुए हैं।

ग्राम पंचायत कुराड़िया क्षेत्र में फ्लोराइडमुक्ति के लिये एक बड़ा फिल्टर स्टेशन बनाया गया है। इसे अभी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को हस्तान्तरित नहीं किया गया है। इसका पानी बाँटा तो जा रहा है किन्तु वह उपयोग में नहीं आ रहा। सड़क के कुछ फलियों को छोड़कर सभी दूर हालत अच्छी नहीं है। 15 किमी के क्षेत्र में भेजी गई इस पाइप लाइन के जरिए ग्राम पंचायत भड़क्या, सराय, बंजारी, जामनघाटी, आँवलीपुरा, बावड़ीपुरा, मेवासजामन्या, भीलकुंडा, इमलीपुरा आदि स्थानों पर पानी पहुँचाया जाना था। इनमें से कुछ ग्रामों में पानी पहुँच रहा है, किन्तु ज्यादातर ग्रामों में पानी नहीं मिल रहा है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि पाइप लाइन बिछाने में कई तरह की लापरवाहियाँ हुई हैं। उस वजह से पानी नहीं मिल पा रहा है।

 

तकनीकी खामियाँ


धार जिले में फ्लोराइड की समस्याफ्लोराइड प्रभावित ग्रामों में स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की योजनाओं में गम्भीर लापरवाही हो रही है। मान जलाशय पर 11 करोड़ 18 लाख रुपए की लागत से तैयार हो रही योजना के इंटकवेल की गहराई के मामले में लापरवाही कर दी गई। ऐसे में पूरे 11 करोड़ रुपए की योजना ही फ्लाप हो जाएगी। भीषण गर्मी में जब पीने के पानी की दरकार होगी, तब इंटकवेल की कम गहराई के कारण आठ ग्रामों की 46 बसाहटों को एक बूँद पानी नहीं मिल पाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस इंटकवेल की गहराई के मामले में वरिष्ठ इंजीनियरों ने भी कोई ध्यान नहीं दिया।

जिले में 7 बड़ी योजना फ्लोराइड मुक्ति की चल रही है। जिन पर करीब 170 करोड़ रुपए खर्च किये जा रहे हैं। इसमें से मान जलाशय यानी मान डैम पर आधारित 8 ग्रामों की 46 बसाहटों को पानी उपलब्ध कराने के लिये 11 करोड़ 18 लाख रुपए खर्च करके योजना पर काम किया जा रहा है।

 

क्या चाहते हैं लोग और उनकी राय


लोग चाहते हैं कि पानी के मामले मे हो रही लापरवाही का समाप्त किया जाए। इसके लिये वे समिति बनवाकर पंचायत के सहयोग की माँग कर रहे हैं। गाँवों के हालात बदलने के लिये गाँव के शिक्षित लोगों को आगे लाया जाए। साथ ही सरकारी तंत्र के काम को समय-समय पर परखा जाए। इस बाबत एक निगरानी प्रणाली लाने की जरूरत है। इस सम्बन्ध में अभी तक कोई प्रयास नहीं है। बार-बार समुदाय को पानी के लिये सरकार की व्यवस्था पर क्यों निर्भर रहना पड़ता है। धार जिले में जहाँ भी समूह बनाकर काम की शुरुआत की जा रही है, वहाँ बेहतर नतीजे प्राप्त हुए हैं।

 

 

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