राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए

भारत लोकतांत्रिक देश है, जहां किसी भी बड़ी समस्या का समाधान राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना संभव नहीं। गंगा प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के प्रथम व द्वितीय चरण में करीब 1500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। बेसिन प्राधिकरण के गठन के बाद वर्ल्ड बैंक की सहायता से 300 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सात हजार करोड़ रुपए की परियोजना प्रस्तावित है परंतु इतने के बावजूद गंगा के संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदम सार्थक नजर नहीं आ रहे..

दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में एक है - गंगा। माना जाता है कि गंगा जल के स्पर्श मात्र से समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है। गोमुख में अपने मूल से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा 2525 किमी से अधिक की यात्रा तय करती है। गंगा के मुहाने पर विशाल डेल्टा-सुंदरवन डेल्टा-है, जो दुनिया में सबसे बड़ा डेल्टा है। दुनिया में हिंदू धर्म मानने वाला हर व्यक्ति अपने जीवन में कम-से-कम एक बार गंगा स्नान की इच्छा रखता ही है। यकीनन दुनिया में यह सबसे पवित्र नदी है और गहराई से इस देश के लोगों द्वारा प्रतिष्ठित है। गंगा में स्नान करने के लिए कई लोग कुम्भ मेला और कई त्योहारों में बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं।

गंगा नदी देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2071 किमी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक व आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। सौ फीट की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित है। इसके प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावकतापूर्ण वर्णन किए गए हैं।

पहली बार संसद में जब उठा सवाल


1975 में पहली बार गंगा के प्रदूषित होने की बात सामने आने पर संसद में एमएस कृष्णा द्वारा यह सवाल उठाया गया, ‘गंगा प्रदूषण के बारे में सरकार को क्या जानकारी है और इसे रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है?’ संसद में सवाल का जवाब देने के लिए बीएचयू से उत्तर मांगा गया जिसका टेलीग्राम आया तो भूचाल मच गया। इसके बाद से गंगा प्रदूषण के बारे में चर्चा तेज हो गई। 21 जुलाई, 1981 को पहली बार भारतीय संसद में इस बात को स्वीकार किया गया कि गंगा जल प्रदूषित हो रहा है। यदि इसे रोका नहीं गया तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे।

पिछले दो दशक के शोधों के दौरान पाया गया है कि गंगा जल के प्रदूषण की समस्या दूसरे स्तर की हो गई है। आज हमें सोचना होगा कि आगामी दो दशकों में गंगा में पानी बहेगा कि नहीं क्योंकि गंगा में तेजी से सिल्टेशन के कारण उसकी गहराई निरंतर कम हो रही है।

सभी बड़े शहरों के आसपास गंगा के दोनों तरफ की भूमि पर अतिक्रमण होने के कारण गंगा सिकुड़ रही है। पानी का प्रवाह निरंतर कम होने से तनुता कम हो रही है और प्रदूषण की तीव्रता में निरंतर वृद्धि हो रही है।

गंगा को बचाने के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा-
1. गंगा के पानी के प्रवाह को बढ़ाना,
2. गंगा की जल धारण क्षमता में वृद्धि करना और3. गंगा जल के प्रदूषण नियंत्रण के दृष्टिगत सीवेज और कारखानों से निकले विषाक्त पदार्थों के शोधन और पुनर्चक्रण के साथ-साथ नई तकनीकों के माध्यम से उनकी मात्रा को कम करना।

गंगा-समस्या को निम्नलिखित कार्यक्रमों से हल किया जा सकता है-

1. गंगा नीति निर्धारण :


नीति ऐसी हो जो नदी में जल की मात्रा बढ़ाने के साथ ही पारिस्थितिक प्रवाह को भी कायम रख सके। वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण, प्राकृतिक सफाई, भूजल व नदियों के जल का दोहन, नदी के तट की भूमि का प्रयोग, मृत शरीरों का दाह संस्कार, भस्मीकरण सयंत्र, जल के उपभोग, पीने, नहाने, कपड़े धोने, नेविगेशन, जलीय कृषि, पौधरोपण, फसलों की सिंचाई, अपशिष्ट जल निस्तारण, प्रदूषण नियंत्रण तकनीक, एसटीपी के लिए भूमि चयन, जल संग्रह क्षेत्रों में प्रमुख निर्माण, विभिन्न परियोजनाओं में लोगों की भागीदारी, परियोजनाओं की निगरानी, परियोजना प्रमुख की जवाबदेही, संबंधित पक्षों को साथ लेना, जैव विविधता संरक्षण, युवा शक्ति का उपयोग व जनजागरुकता।

2. गंगा संरक्षण योजना :


जल संरक्षण के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजना, पुनर्जनन क्षमता आधारित पर्यावरण प्रबंधन, गंगा बेसिन में सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास समुदाय उपचार सुविधाओं सहित विशिष्ट उपचार।

3. राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति का आह्वान


भारत लोकतांत्रिक देश है, जहां किसी भी बड़ी समस्या का समाधान राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना संभव नहीं है। इतिहास गवाह है कि गंगा प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के प्रथम व द्वितीय चरण में करीब 1500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के 2008 में गठन के बाद वर्ल्ड बैंक की सहायता से 300 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सात हजार करोड़ रुपए की परियोजना प्रस्तावित है परंतु इतने के बावजूद गंगा के संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदम सार्थक नजर नहीं आ रहे हैं। गंगा के संरक्षण का कार्य राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना पूरा नहीं हो सकता।

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