राजस्थान के जल संसाधन

सतही जल की कमी के कारण राजस्थान को बहुत हद तक भूजल संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। बड़ी संख्या में कुएं, बावड़ियां और झालरें प्रमुख परंपरागत जल साधन हैं। राज्य में भूजल की स्थिति भू-आकारकीय संरचना तथा भूमिगत जल धारक संरचनाओं की प्रकृति पर निर्भर करती है। भूजल विकास राजस्थान के पश्चिमी भागों की तुलना में पूर्वी भागों में अधिक है। पश्चिमी राजस्थान में भूजल पुनर्भरण अपेक्षाकृत कम है। अनिश्चित वर्षा, सतही जल संसाधनों की अनुपस्थिति तथा उच्च वाष्पोत्सर्जन इसके कारण हैं। मानव विकास हेतु जल एक सीमांत कारक है, तथा मानव के अस्तित्व हेतु अत्यंत आवश्यक है। राजस्थान में भूमि व सूर्य का प्रकाश प्रचुर मात्रा में है, परंतु उपलब्ध जल-संसाधनों के संबंध में कम भाग्यशाली है। राज्य में ऐसी कोई नदी नहीं है, जिसका उद्गम स्थल हिमपात वाले क्षेत्रों से हो। मानचित्र 3 राजस्थान की नदियों को दर्शाता है।

अधिकांश नदियां मौसमी हैं तथा इनमें बहने वाले जल की मात्रा वर्षा ऋतु के दौरान होने वाले वृष्टिपात के परिणाम पर निर्भर करती है।

सामान्यतः राज्य के पश्चिमी भाग में वार्षिक वर्षा बहुत कम होती है। प्रत्येक मानसून के दौरान राज्य के विभिन्न् भागों में एक ही समय पर अकाल व बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होना इस बात का साक्षात उदाहरण है कि सामान्यतः संपूर्ण राज्य में, और विशेषतया इसके पश्चिमी भाग में वर्षा की अवधि व मात्रा परिवर्तनशील रहते हैं।

इस कारण जल संग्रह करने के साधन जैसे बांधों, टंकियों, तालाबों, खड़ीनों और टांकों का निर्माण आवश्यक हो गया, जिससे कि पूरे वर्ष सिंचाई तथा पीने के पानी की आवश्यकता पूरी हो सके।

बहती हुई नदियों के रूप में और टंकियों, तालाबों, झीलों तथा कृत्रिम जलाशयों में स्थिर जल के रूप में प्राप्त सतही जल का एक मात्र स्रोत वर्षा है। अरावली के पश्चिम की ओर के क्षेत्र में मौसमी तथा सतही नदियां पाई जाती हैं।

सभी नदियां पश्चिम की ओर बहती हैं तथा अरब सागर में गिरती हैं। पूर्वी क्षेत्र की नदियों में जल अधिक समय तक रहता है तथा इनमें से कुछ नदियां जैसे चम्बल और माही पूरे वर्ष बहती हैं। ये नदियां बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर दोनों ओर बहती है।

आंतरिक तथा अंतर-प्रदेशीय आवंटनों से राजस्थान को 30.36 एम.ए.एफ. (M.A.F) सतही जल संसाधन प्राप्त हैं। राज्य ने अंतर-प्रदेशीय नदी जल संग्रहण क्षेत्रों से 38.66 एम.ए.एफ. अतिरिक्त आवंटन की मांग की है।

1. सतही जल के आंतरिक संसाधन


राजस्थान में लगभग 2,23,25,051 हेक्टेयर क्षेत्र खेती युक्त है, परंतु राज्य के आंतरिक जल स्रोत की सतही क्षमता अनुमानतः 15.86 एम.ए.एफ (राष्ट्रीय क्षमता का 1.16 प्रतिशत) है। राजस्थान की नदियों में बहने वाले पानी को सिंचाई विभाग ने 14 मुख्य जल संग्रहण क्षेत्रों सारिणी 2.1 परिशिष्ट 1) में विभक्त किया है।

राजस्थान में उपलब्ध कुल सतही जल का 81.96 प्रतिशत अर्थात 13 एम.ए.एफ (या 16,035.24 एम.सी.एम.) जल तीन नदियों, चम्बल, माही तथा बनास से प्राप्त होता है। नदी जल संग्रहण क्षेत्र राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के केवल 51.41 प्रतिशत भाग का निर्माण करते हैं। शेष 48.59 प्रतिशत भाग राज्य का पश्चिमी भाग है जो जल-संग्रहण क्षेत्र के बाहर स्थित है।

कुल उपलब्ध सतही जल संसाधनों में से 8.19 एम.ए.एफ. (उपलब्ध सतही जल संसाधनों का 51.64 प्रतिशत) विभिन्न विद्यमान योजनाओं में प्रयुक्त हो रहे हैं। कुल 4.64 एम.ए.एफ (15828.50 एम.सी.एम.) सतही जल विभिन्न विद्यमान, प्रचलित तथा प्रस्तावित योजनाओं में प्रयुक्त किया जाएगा। शेष 3.02 एम.ए.एफ. भविष्य में बनाई जाने वाली योजनाओं द्वारा प्रयोग किए जाने हेतु वर्तमान में उपलब्ध हैं।

2. अंतर-प्रदेशीय नदी जल का आंवटन


स्वयं के सतही जल संसाधनों के अतिरिक्त राजस्थान को अंतर-प्रदेशीय नदी जल-संग्रहण क्षेत्रों से काफी मात्रा में जल आवंटित किया जा रहा है। राजस्थान को विभिन्न समझौतों के अंतर्गत अंतर-प्रदेशीय नदियों व संग्रहण क्षेत्रों से 14.50 एम.ए.एफ. जल आवंटित है।

सारणी 2.2 : राजस्थान में अंतर प्रदेशीय नदियों के जल आवंटन पर विभिन्न समझौतों के अंतर्गत उपलब्ध जल


क्रम सं.

स्रोत

आयतन (एम.ए.एफ.)

1

गंगा नहर

1.11

2

भाखड़ा

1.41

3

रावी व्यास

8.60

4

नर्मदा

0.50

5

यमुना

0.91

6

माही

0.37

7

चम्बल कोटा बेराज

1.60

 

कुल

14.50

 



उपरोक्त के अतिरिक्त, राज्य ने गंगा एवं माही नदी जल संग्रहण क्षेत्रों से 38.66 एम.ए.एफ. अतिरिक्त आवंटन की मांग की है। निम्न सारिणी 2.3 राजस्थान में सतही जल की उपलब्धता तथा उसके प्रयोग की स्थिति का सारांश प्रस्तुत करती है।

सारिणी 2.3 : राजस्थान में उपलब्ध सतही जल


क्र.सं.

विवरण

आवंटन दस लाख एकड़ फीट

दस लाख घन मीटर

1.

राजस्थान को आंतरिक सतही जल संसाधनों से जल आवंटन

 

 

(अ)

1) मार्च 1993 तक प्रयुक्त

6.39

7881.94

 

2) चालू योजनाओं द्वारा प्रयुक्त करने हेतु

1.80

2220.26

 

योग

8.19

10102.20

(ब)

अन्य राज्यों में जल प्रवाह सहित भविष्य की अन्य योजनाओं द्वारा प्रयुक्त करने हेतु

 

 

 

1.)     माहि बेसिन

1.20

1480.18

 

2.) कोटा बैराज के नीचे चंबल बेसिन

5.24

6463.43

 

3.       साबरमति बेसिन

0.27

333.04

 

4.       अन्य छोटे बेसिन

0.96

1184.18

 

योग

7.67

9460.79

 

1.       प्रस्तावित एवं अन्वेक्षित परियोजना द्वारा

4.65

5735.68

 

2.)     अतिरिक्त अन्वेक्षण की आवश्यकता वाली परियोजनाओं द्वारा

3.02

3725.11

 

कुल

7.67

9460.79

 

कुल सतही जल क्षमता (अ+ब) 1

15.86

19563.00

2.

अंतरराज्यीय नदी बेसिनों से राजस्थान को जल आवंटन

 

 

1.       रवि ब्यास

  
 

क.    विभाजन पूर्व गंग नहर के माध्यम के प्राप्त अंश

1.11

1370.00

 

ख.    इंदिरा गांधी नहर परियोजना द्वारा चरण-1 सिंचाई 3.37 एम.ए.एफ. पेयजल आपूर्ति .022 एम.ए.एफ

3.59

4432.00

 

ग.     पेयजल आपूर्ति सहित इंदिरा गांधी नहर परियोजना चरण 20.65 एम.ए.एफ

4.00

4938.00

 

घ.     अन्य

  
 

1)      गंग नहर

0.30

370.04

 

2)      भाखड़ा नहर

0.24

296.22

 

3)      सिद्ध मुख नहर

0.47

579.74

ब)

2. भाकड़ा (सतलज से)

1.41

1741.00

स)

3. यमुना

0.91

1119.00

 

माही जल

0.37

457.00

द)

4. कोटा बैराज तक चंबल

1.60

1980.00

य)

नर्मदा

0.50

617.00

 

योग 2

14.50

17901.00

3.

भविष्य में अपेक्षित आवंटन

  
 

1.       माहि

1.56

1926.00

 

2.       गंगा नदी में हिस्सा (मांग)

37.10

45800.00

 

योग 3

38.66

47726.00

4

लंबी अवधि हेतु अपेक्षित जल संसाधनों का योग

  
 

साधन 1+2+3

69.02

85190.00

 



3. भू-जल संसाधन


सतही जल की कमी के कारण राजस्थान को बहुत हद तक भूजल संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। बड़ी संख्या में कुएं, बावड़ियां और झालरें प्रमुख परंपरागत जल साधन हैं। राज्य में भूजल की स्थिति भू-आकारकीय संरचना तथा भूमिगत जल धारक संरचनाओं की प्रकृति पर निर्भर करती है।

भूजल विकास राजस्थान के पश्चिमी भागों की तुलना में पूर्वी भागों में अधिक है। पश्चिमी राजस्थान में भूजल पुनर्भरण अपेक्षाकृत कम है। अनिश्चित वर्षा, सतही जल संसाधनों की अनुपस्थिति तथा उच्च वाष्पोत्सर्जन इसके कारण हैं। तथापि कुछ जलधारक जो गहरे हैं, उनमें वार्षिक पुनर्भरण से कई गुणा अधिक संग्रहण है, अतः शुष्क अवधि में भी किसी प्रतिकूल प्रभाव के बिना, जल का निरंतर दोहन किया जा सकता है।

भूजल की उपलब्धता चट्टानों की प्रकृति तथा उनकी जलवाही विशिष्टता पर भी निर्भर करती है। संपूर्ण राज्य में विभिन्न स्थानों पर जल स्तर की गहराई में अंतर है। अरावली के पूर्व में जल स्तर, पश्चिम की तुलना में अधिक है। जल स्तर का ढाल पूर्वी भाग में तो पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व की ओर है, जबकि अरावली के पश्चिम में यह ढाल पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम की ओर है।

गंगानगर, बांसवाड़ा, कोटा तथा बूंदी जिलों के नहर अधिग्रहीत क्षेत्र में जल स्तर ऊँचा है जबकि राजस्थान के पश्चिमी जिलों विशेषकर जैसलमेर, जोधपुर व बीकानेर में जलस्तर की गहराई बहुत अधिक है।

अनियंत्रित एवं अत्यधिक दोहन के कारण अनेक क्षेत्र गंभीर दबाव की स्थिति में हैं और जल स्तर में गिरावट प्रदर्शित करते हैं। राज्य को 668 भूजल क्षमता वाले मंडलों में विभक्त किया गया है। इनमें से 179 मंडल अत्यधिक दोहन व संकटपूर्ण स्थिति की श्रेणी में आते हैं तथा 85 मंडल अर्द्ध-संकटपूर्ण स्थिति की श्रेणी के अंतर्गत रखे गए हैं। शेष 404 मंडलों को सुरक्षित श्रेणी में रखा गया है।

अधिकांश उच्च-दोहन एवं संकटपूर्ण स्थिति वाले मंडल अलवर बाड़मेर, चूरू, धौलपुर, जयपुर, जालौर, जोधपुर, झुन्झुनू, नागौर पाली, सीकर तथा सिरोही जिलों में स्थित हैं।

राज्य के विकास की कुंजी के रूप में जल संसाधनों का महत्वपूर्ण स्थान है। यह सर्वविदित है कि सभी जल संसाधनों का पुनः भराव मुख्यतः वर्षा के द्वारा होता है, जो निश्चित रूप से सीमित है।

भूजल संपूर्ण जल-विज्ञान तंत्र का एक भाग है। भूजल का कुल पुनर्भरण 12,602 एम.सी.एम. आंका गया (10,206 एम.सी.एम. वर्षा द्वारा तथा 2,396 एम.सी.एम. अन्य साधनों द्वारा) है। भूजल विकास की गति भी निर्बाध रूप से चल रही है, तथा आकलन के अनुसार कुल निकास (ड्राफ्ट ) लगभग 12,019 एम.सी.एम. (11,036 एम.सी.एम. सिंचाई हेतु तथा 983 एम.सी. एम. घरेलू उपयोग हेतु) हैं।

इसमें जल-धारक तक पुनः प्रवाहित होने वाला 30 प्रतिशत कम करने के पश्चात वास्तविक निकास (ड्राफ्ट) 8,708 एम.सी.एम रह जाता है। संपूर्ण परिदृश्य का ध्यान रखते हुए भूजल निकास की अवस्था 69.10 प्रतिशत मानी गई है।

भूजल आकलन समिति 1997 के अनुसार सिंचाई से प्रत्यावर्तित जल की मात्रा का अनुमान वास्तविकता से अधिक है जिसके कारण भूजल की उपलब्धता के आंकड़ों को बढ़ा कर बताया गया लगता है।

वास्तविक भूजल ड्राफ्ट ज्ञात करने हेतु सिंचाई में प्रयुक्त भूजल का 30 प्रतिशत प्रत्यावर्ती जल के रूप में कम कर दिया जाता है, तो भूजल विकास की अवस्था में कमी प्रतीत होती है, जो कि सामान्यतः भूजल स्तर की स्थिति नहीं । सन् 1999 में 32 जिलों में से 27 जिलों में भूजल स्तर में कमी अंकित की गई और उसके बाद सन् 2000 में मानसून वास्तव में असफल रहा जिसके कारण अधिकाधिक क्षेत्रों में जल स्तर में गिरावट होने की सम्भावना है। भूजल दोहन बहुत अधिक है।

राज्य के आठ जिलों यथा जयपुर, सीकर, झुन्झुनू, जोधपुर, अलवर, पाली, जालौर, व नागौर में जल-स्तर में गिरावट 5 मीटर से 43 मीटर के बीच रहती है। राज्य के 237 खंडों में से 67 खंड अति-शोषित व डार्क मंडल श्रेणी में आते हैं, जिनके कारण गुणवत्ता में गिरावट के अतिरिक्त जल-स्तर में कमी तथा जल को भू-पृष्ठ पर लाने की लागत में वृद्धि हो जाती है।

निम्न सारिणी 2.5 राज्य में भूजल स्तर की स्थिति को चित्रित करते हैं। अधिक विवरण परिशिष्ट में सारिणी 2.4 में दिया गया है, जिसमें राजस्थान के विभिन्न राज्यों में भूजल क्षमता, दोहन तथा प्रायोज्य आधिक्य को दर्शाया गया है।

सारणी 2.5 : 1-1-1 998 तक राजस्थान के भूजल संसाधन


क्षेत्र

क्षेत्रफल (वर्ग कि.मी.)

अ.     राज्य का क्षेत्रफल

342239.00

ब. भूजल संभावित क्षेत्र

215141.90

स. पहाड़ी एवं पहाड़ी वन क्षेत्र

21299.39

द. लवणीय क्षेत्र

100222.87

य. कम उपज अथवा जलमग्न भूमि क्षेत्र

5574.84

पुनर्भरण

मात्रा (दस लाख घन मीटर)

अ.     कुल वार्षिक पुनर्भरण

12602.15

ब. वर्षा द्वारा

10206.49

स. अन्य स्रोत द्वारा

2395.66

भूजल निकास (ड्राफ्ट)

मात्रा (दस लाख घन मीटर)

अ.     कुल वार्षिक भू-जल निकास (ड्राफ्ट)

12019.12

ब. वार्षिक सिंचाई निकास (ड्राफ्ट)

11035.70

स. वार्षिक घरेलू और औद्योगिक निकास (ड्राफ्ट)

983.42

द. वास्तविक भूजल निकास (ड्राफ्ट)

(70 प्रतिशत सिंचाई ड्राफ्ट एवं घरेलू एवं औद्योगिक ड्राफ्ट शेष भूजल)

8708.41

शेष भूजल

 

अ.    शेष भूजल 2(अ)-3(द)

3893.74

भूजल विकास की अवस्था

प्रतिशत

अ.    भूजल विकास की अवस्था

69.10

ब्लॉक श्रेणी

कुल (संख्या)

अ.     सुरक्षित

135

ब. अर्द्धसंकटपूर्ण

34

स. संकटपूर्ण

26

द. अत्यधिक शोषित

41

य. लवणीय या खारा

1

संभावित क्षेत्र की श्रेणी

कुल (संख्या)

अ.     सुरक्षित

404

ब. अर्द्ध संकटपूर्ण

85

स. संकटपूर्ण

73

द. अत्यधिक शोषित

106

संभावित जोन श्रेणी का क्षेत्रफल

क्षेत्र (वर्ग कि.मी.)

अ.     सुरक्षित

127702.28

ब. अर्द्ध संकटपूर्ण

27754.61

स. संकटपूर्ण एवं अत्यधिक शोषित

59685.01

भूजल स्तर प्रवणता (मानसून पूर्व 1992-99)

 

अ. भूजल स्तर से कमी की प्रवृति युक्त ब्लॉक

141

ब. भूजल स्तर में वृद्धि की प्रवृत्ति युक्त ब्लॉक

96

स. भूजल की कमी की प्रवृत्ति के अंतर्गत राजकीय क्षेत्र

61 प्रतिशत

सिंचाई के अंतर्गत क्षेत्र

क्षेत्र (हेक्टेयर)

अ.    कुओं द्वारा सिंचाई 1996-1997)

3580647

ब. सतही जल स्रोत द्वारा सिंचाई (1996-1997)

1579925

 



उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि राजस्थान भूमि जल विकास की अवस्था पार करके भूजल प्रबंधन की अवस्था में प्रवेश कर चुका है। विकास की अवस्था में भूजल को एक असीमित संसाधन की दृष्टि से देखा जाता है और नीतियाँ मूलतः भूजल उपयोग द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त करने पर केंद्रित है। इसके विपरीत प्रबंधन अवस्था में भूजल को एक बहुमूल्य मानना होगा जिसका नवीनीकरण सीमित है।

4. भविष्य


पिछले कुछ वर्षों में भूजल उपभोग तीव्र गति से ऊपर उठ रहा है। वर्तमान में उपयोग की प्रवृति के द्वारा अगले पच्चीस वर्षों के परिदृश्य का आकलन सारिणी 2.6 में किया गया है।

सारिणी 2.6 : वर्ष 2025 हेतु पुनर्भरण एवं ड्राफ्ट का संभावित परिकलन


1

1990 तक सिंचाई हेतु भूजल ड्राफ्ट

7523.24 एम.सी.एम.

2

1998 तक सिंचाई हेतु भूजल ड्राफ्ट

11035.69 एम.सी.एम.

3

8 वर्षों में सिंचाई ड्राफ्ट में वृद्धि

3512.45 एम.सी.एम.

4

प्रतिवर्ष ड्राफ्ट में वृद्धि की दर

439.00 एम.सी.एम.

5

25 वर्षों में सिंचाई ड्राफ्ट में अपेक्षित वृद्धि

10976.00 एम.सी.एम.

6

2025 तक अपेक्षित सिंचाई ड्राफ्ट

22012.00 एम.सी.एम.

7

वास्तविक सिंचाई ड्राफ्ट (सिंचाई ड्राफ्ट का 70 प्रतिशत)

15408.50 एम.सी.एम.

8

घरेलू एवं औद्योगिक प्रयोग हेतु आवश्यक जल की अनुमानित मात्रा

2578.00 एम.सी.एम.

9

वास्तविक भूजल ड्राफ्ट) सिंचाई घरेलू एवं औद्योगिक ड्राफ्ट का 70 प्रतिशत)

17986.50 एम.सी.एम.

10

पूर्व में विभिन्न समयों पर अनुमानित पुनर्भरण पर आधारित कुल वार्षिक पुनर्भरण

1300.00

11

भूजल आधिक्य

(-)4986.50 एम.सी.एम.

12

भूजल विकास की अपेक्षित स्थिति

138 प्रतिशत

 



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