राजस्थान में शामलात की स्थिति

ग्रामीण समुदाय जिसका जीवन-आधार शामलात पर निर्भर है अक्सर कानूनी मान्यता के बिना इस संसाधन का प्रभावी विनियोग-व्यवस्था नहीं कर पाते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी में भी अलग-अलग कानूनी प्रावधान हैं, बिनालाम भूमि ग्राम सहकारी समिति को आवंटित की जा सकती है। चरागाह भूमि पर पंचायत का हक है और वन भूमि पर सामूदायिक प्रबंधन के लिए संयुक्त वन प्रबंधन 1990 और हाल में आए वन अधिकार अधिनियम 2006 है। देश की लगभग दस प्रतिशत भूमि के साथ राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान राज्य चार भौगोलिक क्षेत्रों में बटां हुआ है। पश्चिमी रेतीले क्षेत्र अरावली पर्वतमाला और अन्य पहाड़ियां और पूर्वी मैदानी और दक्षिण पूर्वी राजस्थानी पठार। राज्य में स्थित अरावली पर्वतमाला देश को अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी के दो जलग्रहण क्षेत्रों में विभाजित करती है।

कृषि और पशुपालन राजस्थान में आजीविका के प्रमुख स्रोत होने के कारण एक खास महत्व रखते हैं तथा आजीविका संवर्धन के लिए एक महत्वपूर्ण घटक का कार्य करते हैं। राज्य के वर्तमान भू-उपयोग में लगभग 20 प्रतिशत भूमि बंजर श्रेणी में मानी जाती है, जो की काफी खेद का विषय है। राष्ट्रीय वन नीति अनुसार जहाँ 33 प्रतिशत जमीन वनभूमि होनी चाहिए वहीं राज्य में वर्तमान में वन क्षेत्र मात्र 7.71 प्रतिशत है, जो पारिस्थितिकीय मानदंड के अनुसार अपर्याप्त है। चरागाह भूमि कुल क्षेत्र का सिर्फ 4.95 प्रतिशत है, जो राज्य के 540.34 लाख जानवरों के पोषण के लिए अपर्याप्त है। राज्य में 7.35 प्रतिशत जमीन बंजर है, जिसमें खेती नहीं की जा सकती। कृषि योग्य भूमि मात्र 13.88 प्रतिशत है तथा 6.77 प्रतिशत भूमि अन्य श्रेणी में आती है।

समय के साथ शामलात भूमि के क्षेत्रफल व रखरखाव में निरंतर गिरावट देखी गई है। भूमि उपयोग में परिवर्तन; स्थानीय संगठनों की कमी और मान्यता ना मिलने के कारण रख-रखाव का पतन; स्थानीय जरुरत जैसे लकड़ी एवं चराई के लिए भूमि का आवंटन एवं स्पष्ट सामुदायिक अधिकारों का अभाव; बढ़ती जनसंख्या का एकाधिक दबाव; खेती के तहत अधिक भूमि के उपयोग को प्रोत्साहन और भूमि वितरण में राजनीति आदि शामलात भूमि के कम होने के मुख्य कारण है। बंजर भूमि के रूप में परिभाषित यह जमीन अक्सर खनन, औदयोगिक विका, जैव ईंधन की खेती आदि जैसे कार्यों में उपयोग होने लगती है जिसकी वजह से स्थानीय समुदायों को विस्थापित होकर अपने महत्वपूर्ण आजीविका के संसाधनों से वंचित होना पड़ता है।

ग्रामीण समुदाय जिसका जीवन-आधार शामलात पर निर्भर है अक्सर कानूनी मान्यता के बिना इस संसाधन का प्रभावी विनियोग-व्यवस्था नहीं कर पाते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी में भी अलग-अलग कानूनी प्रावधान हैं, बिनालाम भूमि ग्राम सहकारी समिति को आवंटित की जा सकती है। चरागाह भूमि पर पंचायत का हक है और वन भूमि पर सामूदायिक प्रबंधन के लिए संयुक्त वन प्रबंधन 1990 और हाल में आए वन अधिकार अधिनियम 2006 है। इस प्रकार शामलात भूमि को गरीब परिवारों की आजीविका के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मान्यता, बंजर शब्द की संज्ञा को दूर करने में मदद करेगी।

शामलात भूमि के वर्गीकरण


राजस्थान में शामलात भूमि को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

1. कानूनी (डि-ज्युर)- यह केवल वह भूमि है जो गांव की सीमा के अंदर आती है और औपचारिक रूप से गांव या पंचायत के आधीन है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के 54वें दौर में भी शामलात को एक भूमि उपयोग की श्रेणी मानी जाती है। भूमि उपयोग वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार कुल 87,64,188 हेक्टेयर शामलात भूमि राजस्थान में है जो कुल भूमि का 26 प्रतिशत है।

2. हकीकत में उपयोग (डी फैक्टो)- इसमें हर गैर निजी भूमि जो शामलात संसाधन के रूप में उपयोग हो रही है भले ही गांव की सीमा के बाहर स्थित है, शामिल है। इसके अंतर्गत निम्न भूमि प्रकार भी शामिल है-

1. वन भूमि
2. गैर कृषि उपयोग का क्षेत्र
3. वर्तमान पड़त भूमि के अलावा पड़त भूमि

वास्तविक उपयोग के आधार पर 1,55,61,765 हेक्टेयर भूमि शामलात के अंतर्गत है यह राज्य की कुल भूमि का 46 प्रतिशत हिस्सा है क्योंकि वन भूमि और गैर कृषि भूमि भी शामलात भूमि के रूप में उपयोग में ली जाती है। ज्यादातर आरक्षित वन क्षेत्र में रियायतें और अधिकार लागू होते हैं और यह वन क्षेत्र ना केवल पारिस्थिकीय रूप में उपयोग किए जाते हैं बल्कि लोगों की ईंधन की मांगों को भी पूरी करते हैं।

22 वर्ष (1984-2007) के अवधि के दौरान शामलाती चरागाह भूमि को भारी मात्रा में किसी अन्य उपयोग के लिए परिवर्तन किया गया है जो नीचे दी गई तालिका से स्पष्ट होता है। कृषि अयोग्य भूमि में 15 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है तथा कृषि योग्य बंजर भूमि में 24 प्रतिशत की गिरावट हुई है। जबकि गैर कृषि एवं कृषि भूमि दोनों में बढ़ोतरी हुई है। यह एक संकेत है कि शामलात भूमि दोनों गैर कृषि एवं कृषि के उपयोग में ली जाने लगी है। यह तथ्य खासकर कानूनी शामलात भूमि में स्पष्ट दिखाई देता है जिसमें 19 प्रतिशत की कमी आई है। अतः यह स्पष्ट होता है कि आधिकारिक रूप से भूमि का रूपांतरण हुआ है। जंगलात जो कि शामलात का एक मुख्य वर्गीकरण है, उसमें गुणवत्ता में ना सही पर कम से कम आंकड़ों में ही बढ़ोतरी हुई है।

हकीकत में उपयोग में आने वाली शामलात भूमि में छः प्रतिशत गिरावट आई है। जो कानूनी शामलात भूमि से थोड़ा कम है पर पारिवारिक आजीविका के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदू हैं।

तालिका : शामलात भूमि के उपयोग के प्रकार में आए बदलाव (लाख प्रति हेक्टेयर


 

हकीकत रूप से उपयोग में शामलात भूमि

कानूनी शामलात भूमि

वर्ष

वन

गैर कृषि

कृषि अयोग्य

अन्य चराई

अन्य पेड़/वृक्ष

कृषि योग्य बंजर जमीन

पड़त भूमि

कुल कानूनी

कुल हकीकत रूप से उपयोग में

1984-1985

21.93

15

28.67

18.54

0.27

60.54

20.24

108.02

165.19

2006-2007

26.98

18.35

24.27

17.06

0.2

46.11

22.65

87.64

155.62

कुल बदलाव

5.04

3.35

-4.39

-1.48

-0.08

-14.42

2.4

-20.38

-9.58

% बदलाव

23

22

-15

-8

-30

-24

12

-19

-6

 



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