रेणुका बांध परियोजना पर पर्यावरण मंत्रालय की रोक


आखिर जो होना था, वह हो गया। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश की रेणुका बांध परियोजना पर रोक लगा दी है। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 31 अगस्त 2010 की तिथि वाले अपने पत्र में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में प्रस्तावित रेणुका बांध परियोजना के लिए हिमाचल प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड के आवेदन पर परियोजना को अनुमति देने से इनकार कर दिया। मंत्रालय को यह अहम निर्णय लेना पड़ा क्योंकि इस परियोजना के लिए 775 हेक्टेअर वनभूमि में पेड़ों की कटाई करके उसके डाइवर्जन की मांग की गई थी। इस परियोजना को दिल्ली सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ‘‘राष्ट्रीय हित’’ के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसे व्यापक स्तर पर स्थानीय विरोध का सामना करना पड़ा।

 

स्थानीय स्तर पर संघर्षरत रेणुका बांध संघर्ष समिति एवं अन्य समूहों ने मंत्रालय के इस निर्णय का स्वागत किया है जो कि इस परियोजना को रद्द करने की मांग करते रहे हैं। प्रभावित समुदायों के सदस्यों एवं अन्य समूहों ने जुलाई 2009 में केन्द्रीय मंत्री श्री जयराम रमेश एवं दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित से मुलाकात करके परियोजना को रोकने की मांग की थी। पिछले एक साल से रेणुका बांध संघर्ष समिति, सहित कई संगठनों ने संयुक्त रूप से मंत्रालय को यह रेखांकित करते हुए पत्र लिखा था कि परियोजना को वन मंजूरी देना गैरकानूनी होगा और यह वन अधिकार अधिनियम 2006 का उल्लंघन होगा क्योंकि स्थानीय वन अधिकारों का निपटारा अभी तक नहीं हुआ है। रेणुका बांध संघर्ष समिति के अलावा अन्य समूहों में सिरमौर; पीपुल्स एक्शन फॉर पीपुल इन नीड, सिरमौर; जन एकता समिति, पौंटा साहिब; भारतीय किसान सभा, सिरमौर; हिमालय नीति अभियान, एनवायर्मेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव, पालमपुर; लोक विज्ञान केन्द्र, पालमपुर; एवं साउथ एशिया नेटवर्क आॅन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल, दिल्ली प्रमुख हैं। प्रभावित क्षेत्र में खासकर 37 गांवो के करीब 1000 परिवार गरीब एवं भूमिहीन हैं, और पशुओं को चराने, ईंधन एवं लघु वनोपज के लिए मुख्यतः वनों पर निर्भर हैं। वन में लाखो पेड़ों के अलावा घने शामलात वनों को भी परियोजना के लिए हस्तांतरित किया जाना है। जबकि परियोजनाकारों द्वारा इन वनों की गणना नहीं की गई है। संघर्ष समिति ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से संयुक्त रूप से अपील की है कि इस परियोजना को दी गई मंजूरी भी रद्द की जाए। साथ ही तमाम भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई तत्काल रोकी जाए और रेणुका बांध परियोजना को हमेशा के लिए रद्द किया जाए।

 

रेणुका बांध परियोजना को अक्तूबर 2009 में मंजूरी मिली थी। जिसे अपीलीय प्राधिकरण में चुनौती दी गई थी। इस परियोजना के व्यापक विरोध के बावजूद हिमाचल प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून-1894 के तहत अनिवार्य घोषित कर इस परियोजना के नाम पर जबरन भूमि अधिग्रहित की। हालांकि जब तक परियोजना पर अमल की स्वीकृति न मिले तब तक ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था। लेकिन हिमाचल प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड ने कार्रवाई शुरू कर दी। इसमें इस बात की भी अनदेखी की गई कि पांच राज्यों में रेणुका नदी के जल के बंटवारे पर हुआ समझौता अवैध है। कॉरपोरेशन ने विस्तृत सामाजिक असर आकलन रिपोर्ट की मांग की भी अनदेखी की और अब तब परियोजना से प्रभावित होने वाले कुल परिवारों की सूची को भी अंतिम रूप नहीं दिया गया है।

 

इस परियोजना का राष्ट्रीय स्तर पर भी विरोध होता रहा है क्योंकि दिल्ली में पानी की बहुत बरबादी होती है और उसके पास पानी के प्रबंधन के लिए बांध से बेहतर विकल्प मौजूद हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को देखते हुए यह सोच बनती है कि इतने व्यापक स्तर पर वनों के विनाश को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।

 

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