रेत के ढेर में तब्दील हो रही है गंगा

9 Jun 2018
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drying ganga
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पौराणिक आख्यानों पर यकीन करें तो सदानीरा गंगा का सूखना कलयुग के आने का संकेत है। यह कलयुग है कि नहीं, हम यह नहीं कहते। पर गंगा की जिन धाराओं में नावें चलती थीं वहाँ अब रेत है और उस पर लोग कार और मोटरसाइकिलें दौड़ा रहे हैं। इस सच की गवाह हैं इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़ से लेकर बनारस तक की तस्वीरें। यह चिंता तब और घनी हो जाती है जब गंगोत्री से गंगा सागर तक की यात्रा में कई सहायक नदियों का जल भी गंगा में मिल जाता है। बढ़ता तापमान, जमा होती सिल्ट, घाटों का अतिक्रमण जैसे कई मुद्दे भी सदानीरा को जल विहीन कर रहे हैं।

धर्मग्रन्थों मे गंगा जल को अमृत कहा गया है, लेकिन इसके इतर यह हमारी संस्कृति और सभ्यता की भी परिचायक है। पाँच राज्यों (उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल) के करोड़ों लोगों के जीवन को यह आधार देती है, मगर समय की शिला पर गंगा की पहचान संकट में है। ‘अतीत के अमृत’ में अब न निर्मलता है और न ही प्रवाह। गंगा में साल-दर-साल बढ़ती गाद (सिल्ट) सरकारी योजनाओं पर भी चढ़ती जा रही है। टीम हिन्दुस्तान की विशेष रिपोर्ट-

गंगा की तलहटी में उड़ती रेत, दूर-दूर तक सिर्फ टीले-गड्ढे और धूल मिट्टी के अलावा कुछ भी दिखाई न देना वैज्ञानिकों से लेकर गंगा के भक्तों तक को आश्चर्य में डाल रहा है।

वाराणसी में गंगा के अन्दर बाइक और कार दौड़ाने के नजारे ने इस भयावहता को पराकाष्ठा तक पहुँचा दिया है। कानपुर में तो किसी नाले के आकार से ज्यादा नजर नहीं आ रही है गंगा। कानपुर में गंगा की गोद में बचपन और जवानी बिताने वाले नाविक राजू के मुँह से अनायास ही निकल जाता है गंगा मैया का यह रूप हमने कभी नहीं देखा। पानी की पतली धार के अलावा चारों ओर रेत के गुबार नजर आ रहे हैं। राजू की यह चिंता और भय मिश्रित यह वाक्य गंगा की बिगड़ती स्थिति को बयाँ करने में सक्षम है।

घाट और धारा के बीच का रिश्ता अब गज या मीटर में नहीं बल्कि किलोमीटर में पहुँच गया है। हरिद्वार के भीमगोड़ा से छोड़ा गया 8400 क्यूसेक जल कानपुर की सीमा तक पहुँचते-पहुँचते नाम मात्र का रह जाता है। कानपुर बैराज से मात्र 1150 क्यूसेक जल ही गंगा में आगे जा रहा है। जबकि पिछले साल इसी तिथि में 1450 क्यूसेक जल छोड़ा जा रहा था।

हरिद्वार से आगे कमजोर धारा

उत्तराखण्ड में गोमुख से निकलकर मैदानी इलाके के प्रवेश द्वार हरिद्वार तक भले ही गंगा में कुछ जल नजर आता हो लेकिन जैसे ही आगे बढ़ती हैं, खासतौर पर बिजनौर को पार करते ही धारा कमजोर पड़ने लगती है। यह आँकड़ा साल-दर-साल बदल रहा है। बिजनौर में ही पिछले 4 सालों में गंगा का जल-स्तर वर्तमान में सबसे कम है। वर्ष 2015 में 7900 क्यूसेक, 2016 में 4000, 2017 में 12780 और 2018 में मात्र 3959 क्यूसेक गंगा जल ही रह गया है।

अमरोहा के तिगरीघाट में घटी

मध्य गंगा बैराज बिजनौर से अमरोहा के लिये गेट पूरे खोल दिये गये हैं। जेई पीयूष कुमार के मुताबिक हरिद्वार भीमगोड़ा से गंगा में 8400 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है, जो बिजनौर बैराज तक 3900 क्यूसेक ही पहुँच रहा है। अमरोहा तक पहुँचते ही गंगा में इससे आधा पानी ही तिगरीधाम तक पहुँच रहा है। सिंचाई विभाग के मुताबिक 30 मई, 2017 को गंगा में 12788 क्यूसेक जल था। 30 मई, 2016 में 4012 क्यूसेक जल मिला था। 30 मई, 2015 को गंगा में 7981 क्यूसेक जल था।

गढ़मुक्तेश्वर में दिखते हैं टापू

गढ़मुक्तेश्वर तक पहुँचते-पहुँचते जल-स्तर और घट गया है। गंगा में कई स्थानों पर टापू नजर आ रहे हैं। 2017 के आँकड़ों पर नजर डाली जाए तो 15 मई के बाद जल-स्तर बढ़ा था लेकिन इस बार हालात ठीक उलट हैं। अब आइए अनूपशहर। यहाँ जल इतना कम है हर ओर टापू और उड़ती धूल नजर आ रही है। बुगरासी के गंगा गाँव भगवानपुर और बसी बांगर में गंगा जल-स्तर लगातार घट रहा। बीते वर्ष भी इन दिनों जल-स्तर कम ही रहा था।

कानपुर में ऐसा रूप नहीं देखा

कानपुर आते-आते गंगा की धारा बेहद पतली हो गई। जबकि फर्रुखाबाद और कानपुर के बीच कई सहायक नदियों का जल भी शामिल होता है। सिंचाई विभाग के अनुसार गंगा बैराज से मात्र 1150 क्यूसेक पानी ही डाउन स्ट्रीम में छोड़ा जा रहा है। थोड़ा आगे बढ़ते ही शहर की प्यास बुझाने के लिये 200 एमएलडी पानी लिफ्ट कर दिया जाता है। भैरोंघाट से जाजमऊ तक गंगा नाले जैसी दिखती है। गंगा मुक्ति अभियान से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसा पहली बार देखा जा रहा है।

बनारस में घाटों को छोड़ गईं

वाराणसी में गंगा का जल-स्तर बहुत तेजी से घट रहा है। अस्सी के सामने घाट के बीच गंगा कहीं 60 तो कहीं 70 फीट किनारे से दूर हो गई हैं। सामने घाट से रामनगर किला के बीच मध्य गंगा में रेत उभर आई है। लोग दो पहिया वाहन से लेकर अपने चार पहिया वाहन तक बीच गंगा में ले जा रहे हैं। अस्सी घाट के सामने घाट पुल की तरफ नावें फँस जाती हैं। रामनगर किले से विश्वसुन्दरी पुल के बीच दो किलोमीटर लम्बी रेत देखी जा सकती है।

साहिबगंज में भी छटपटाहट

झारखण्ड के साहिबगंज में गंगा इस समय अपने वजूद के लिये छटपटा रही है। यहाँ सदानीरा का मूल रूप ही बदल चुका है। इस समय गंगा की हालत नाले या सीवर जैसी हो गई है। कई जगह लोग पैदल ही गंगा नदी को पार कर रहे हैं। यहाँ गंगा की यह स्थिति उसकी सतह में निरन्तर गाद और कचरा जमा होने से हुई है। झारखण्ड में सिर्फ साहिबगंज जिले के 83 किमी क्षेत्र में ही गंगा बहती है। नमामि गंगे परियोजना शुरू की गई है मगर अभी तक गंगा का प्रवाह पुराने स्वरूप में नहीं लौटा है।

1. 05 राज्यों से होकर गुजरती है गंगा नदी।
2. 25 फीसदी भारतीय भू-भाग की जीवनधारा।
3. 16 सौ किलोमीटर का क्षेत्र राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित।
4. 3140 मीटर की ऊँचाई से उत्तराखण्ड के गोमुख से है गंगा का उद्गम।
5. 2525 किलोमीटर है गंगा नदी की लम्बाई गोमुख से गंगासागर तक।

बनारस में गंगा नदी इस कदर सूख चुकी है कि नदी के बीचो-बीच तक कारें दौड़ रही हैं। -अमन आलम

गंगा का यह रूप देखकर आश्चर्य में हूँ। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि गंगा की तलहटी में वाहन दौड़ रहे हों। अब तो गंगा ड्राई जोन में नम्बर दो पर है। पहले गंगा इस श्रेणी में शामिल ही नहीं थीं। एक नम्बर पर साबरमती है। -विनोद तारे, आईआईटी कानपुर।

गंगा नदी के जल-स्तर में कमी आने पर शासन को चिट्ठी लिखी है। गंगा में जल छोड़ने के लिये प्रमुख सचिव सिंचाई से कानपुर बैराज या नरौरा बैराज से गंगा नदी में अतिरिक्त जल प्रवाहित करने के लिये शासन से अनुरोध किया है। -योगेश्वरराम, डीएम वाराणसी।


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