रिस्पना, बिंदाल और सुसवा गंगा में घोल रही जहर

24 Jun 2019
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देहरादून की नदियां जहर बन चुकी हैं।
देहरादून की नदियां जहर बन चुकी हैं।

वेद, पुराण और शास्त्रों में गंगा के जल को अमृत समान माना गया है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है। गंगा की इसी मान्यता के कारण कई स्नान पर्वों पर लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं, लेकिन सभी के पापों को हरने वाला गंगा का जल सहायक नदियों के प्रदूषित होने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण बन सकता है, जो न केवल इंसानों के लिए घातक होगा, बल्कि वन्यजीवों के प्राणों को भी संकट में डाल सकता है। जिसकी भरपाई करना संभव नहीं हो पाएगा, लेकिन शासन और प्रशासन की उदासीनता के चलते योजनाओं पर पैसा खर्च करने के बाद भी धरातल पर परिणाम नहीं दिख रहे हैं। यही कारण है कि रिस्पना, बिंदाल और सुसवा जैसी नदियां गंगा की सांसों में जहर घोल रही हैं।

शासन-प्रशासन के साथ ही जनता को भी ये समझने की आवश्यकता है कि केवल पौधारोपण करके ही पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता। पौधारोपण करने से केवल पर्यावरण संतुलित रहेगा और भूजल स्तर को बनाए रखने में आसानी होगी, लेकिन उद्योगों से निकलने वाले केमिकल और सीवरेज से प्रदूषित होने के बाद वह जल पीने योग्य नहीं रहेगा। 

 
नदियों की पहचान जीवनदायिनी की रूप में है। भारतीय संस्कृति में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है, लेकिन नदियों को मां का दर्जा देने वाले हिंदुस्तान में नदियों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं हैं। देश में कई नदियों पूरी तरह से विलुप्त हो गई है, जबकि कई नदियों विलुप्त होने की कगार पर है। कृष्ण की युमना को इंसानों से मैला करने सहित विषैला भी कर दिया है, तो वहीं सरयू और नर्मदा जैसी नदियों में पानी काफी कम हो गया है। सरस्वती नदी तो धरती के अंदर ही समा गई है। यही हाल भारत की प्रमुख नदी गंगा का भी है, जो सभी के पापों को हरते-हरते आज खुद के ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। गंगा को जहरीला करने में देहरादून से बहने वाली गंगा की सहायक रिस्पना, बिंदाल और सुसवा की निर्मलता की एक रिपोर्ट में पोल खुल गई है।

एक समय पर ऋषिपर्णा (आज की रिस्पना) को देहरादून की विरासत कहा जाता था। कलकल निनाद करती हुई बहती रिस्पना का नजारा सभी को भाता था, लेकिन बढ़ती आबादी और औद्योगीकरण के कारण रिस्पना के निर्मल पानी में जहर घुलता चला गया और आज रिस्पना का पानी पीना तो दूर, आचमन करने लायक भी नहीं बचा है। यही हाल दून की बिंदाल और सुसवा नदी का है। सुसवा मथुरावाला में रिस्पना और बिंदाल नदी से संगम बनाती हुई, 20 किलोमीटर बहकर सौंग नदी में मिल जाती है और फिर सौंद राजाजी टाइगर रिजर्व में गंगा में मिल जाती है। सौंग नदी में मिलने तक कभी निर्मल और आचमन करने योग्य रहा रिस्पना, बिंदाल और सुसवा का पानी सीवरेज, केमिकल वेस्ट आदि के कारण पूरी तरह प्रदूषित हो जाता है। इस बात की भयावह तस्वीर स्पैक्स और जाॅय संस्था की संयुक्त रिपोर्ट में सामने आई है। दोनों संस्थाओं ने विगत नो जून को रिस्पना, बिंदाल और सुसवा से एक-एक किलोमीटर की दूरी से पानी के सैंपल लिए थे।

लैब में जांच करने के बाद सामने आया कि गंदगी के कारण पानी में ऑक्सीजन नाममात्र ही रह गया है। पानी में घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा कम से कम 3 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए, लेकिन यह 0.5 से 0.9 मिलीग्राम पाई गई। फाॅस्फेट, नाइट्रेट, फ्लोराइड, आयरन, क्रोमियम, लैड और टोटल जैसे तत्व शून्य होने चाहिए, लेकिन ये तत्व पानी मे काफी अधिक पाए गए। साथ ही पीएच, ऑयल एंड ग्रीस, टीडीएस और सल्फेट निर्धारित सीमा से कईं अधिक पाए गए। इससे रक्त की संरचना, फेफड़ें, गुर्दे, यकृत और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचने के साथ ही न्यूरोलाॅजिकल प्रोब्लम, नर्वस सिस्टम के डिस्ऑर्डर, प्रजनन क्षमता प्रभावित, शारीरिक क्षमता में कमी, लंग्स, किडनी और लीवर को नुकसान, अल्जाइमर जैसे विभिन्न प्रकार के रोग लग सकते हैं।

राजाजी टाइगर रिर्जव में हाथी, गुलदार, बाघा सहित अन्य वन्यजीव गंगा के पानी से अपनी प्यास बुझाते है। कई बार जंगल में गंगा के तट पर वन्यजीवों को विचरण करते हुए देखा जा सकता है, लेकिन जंगल के बीच में गंगा में मिलने के बाद इन तीनों नदियों का पानी न केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। जिससे वन्यजीवों का संरक्षण वन विभाग के लिए बड़ी पेरशानी बन सकता है। इस समस्या से निजात के लिए सरकार सहित वन विभाग को भी सख्त कदम उठाने होंगे। शासन-प्रशासन के साथ ही जनता को भी ये समझने की आवश्यकता है कि केवल पौधारोपण करके ही पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता। पौधारोपण करने से केवल पर्यावरण संतुलित रहेगा और भूजल स्तर को बनाए रखने में आसानी होगी, लेकिन उद्योगों से निकलने वाले केमिकल और सीवरेज से प्रदूषित होने के बाद वह जल पीने योग्य नहीं रहेगा। इसलिए पानी प्रबंधन के साथ ही जल की गुणवत्ता को सुधारने की आश्यकता है, जिसके लिए प्रभावशाली योजनाएं बनानी होंगी और उन्हें फाइलों से निकालकर धरातल पर लागू करना होगा।

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