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Rupin river in Hindi

हिमाचल की सीमा से लगी फतेह पर्वत से रूपिन नदी निकलती है। फतेह पर्वत से जुड़ी बंदरपूंछ पर्वत श्रृंखलाओं की हिमानियों से निःसृत असंख्य जलधाराओं के मिलने से सूपिन नदी का जन्म होता है। रूपिन और सूपिन अलग-अलग दिशाओं से बहकर नैटवाड़ के पास आकर संगम बनाती हैं। इन दोनों नदियों के संगम-स्थल पर पोरवू देवता का मंदिर है। एकमात्र यहीं के आस-पास का क्षेत्र है जहां दुर्योधन की पूजा होती है, यहां दुर्योधन को समसु देवता कहा जाता है।

कहा जाता है कि एक बार दुर्योधन जॉनसार बावर क्षेत्र में पहुंचा। उसने “महासू” देवता से याचना करके हिमालय से लगा हुआ केदार काठा और बंदरपूंछ का भू-अंचल ले लिया। महासू से आशीर्वाद लेकर लौटते पंचगाई क्षेत्र में किरमिर दानव से उसका जोरदार मुकाबला हुआ। किरमिर दानव ने कहा- “इस क्षेत्र का राजा मैं हूं।” तब इस विवाद पर दुर्योधन और किरमिर दानव का संदरा में युद्ध हुआ। दुर्योधन ने आकाशीय बिजली गिराकर किरमिर दानव का सिर काट दिया। किरमिर का सिर ‘तमसा’ में जाकर उल्टा बहने लगा अर्थात् नदी के उद्गम क्षेत्र की ओर जाने लगा जब दुर्योधन रूपिन और सूपिन के संगम स्थल पर पहुंचा तो किरमिर का सिर उसे देख बोल उठा ‘हे दुर्योधन महाराज यहां से आगे मैं नहीं जा सकता। कृपया मुझे भी थोड़ा सा स्थान दे दें।’ दुर्योधन ने रूपिन और सूपिन के संगम-स्थल पर ही किरमिर दानव का सिर स्थापित किया। वहीं मंदिर पोरवू देवता के नाम से जाना जाता है।

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