शामलात का पुनर्विकास- पारिस्थितिक एवं सामाजिक न्याय का समागम

भारत के साथ-साथ विश्व के कई भागों में भूमि की उत्पादकता व उपलब्ध जल संसाधनों में कमी, सबसे जटिल समस्याओं में से एक है। इस प्रकार की समस्याएं उन भूमियों पर अधिक है जो परंपरागत रूप से शामलाती रही हैं या जिन पर सरकार का स्वामित्व है। परंपरागत विकास कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से शामलात भूमि के संरक्षण व सुधार की आवश्यकता को नकारते रहे हैं। वास्तविक अर्थों में एक ऐसे परिदृश्य की स्थापना करना अति आवश्यक है, जो विभिन्न संसाधनों व उत्पादन प्रणालियों के मध्य पारस्परिक निर्भरता को पहचान सके। सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सेक्युरिटी (एफ.ई.एस.) की स्थापना वर्ष 2001 में पारिस्थितिक पुनर्स्थापना के व्यापक व महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए हुई।

एफ.ई.एस के कार्यों का मुख्य बिंदु ग्रामीण परिवेश में मौजूद आर्थिक सामाजिक, व पारिस्थितिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत वनों व निर्धारण करना तथा संरक्षण व स्थानीय स्व-शासन के सिद्धांतों के सम्मिश्रण द्वारा गरीबों के जीवनयापन की परिस्थितियों में सुधार लाना है। ऐसे सर्वांगिण विषयों पर काम करने के माध्यम से प्रगतिशील बदलाव लाए जा सकते हैं। हम एक ऐसे भविष्य की संकल्पना करते हैं, जहां स्थानीय समुदाय संरक्षण व सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित वांछनीय भूमि उपयोग को निर्धारित कर सकेंगे।

वर्तमान में एफ.ई.एस. देश के सात राज्यों के 28 जिलों की लगभग 3400 ग्राम स्तरीय संस्थाओं के साथ काम करते हुए, 1,72,000 हेक्टेयर राजस्व बंजर भूमि, अनुपजाऊ वन भूमि व पंचायत चरागाह भूमि के संरक्षण के लिए ग्राम समुदायों की मदद कर रही है। हम प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में सुधार लाने के लिए पंचायतों व उनकी स्थाई समितियों, ग्राम जंगल समितियों, ग्राम वन सुरक्षा समितियों, जल उपयोगकर्ता संगठन व जलग्रहण समितियों की मदद करते हैं। संस्थाओं के स्वरूप से परे, हम सभी को सदस्यता में लाने व निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में गरीबों व महिलाओं की बराबर की सहभागिता के लिए प्रयास करते रहे हैं।

शामलात पर काम करना एक ऐसा अनूठा अवसर प्रदान करता है जहां एक ही मंच के माध्यम से गरीबी उन्मूलन, सामाजिक न्याय व पारिस्थितिक संतुलन में सुधार के विषयों पर एक साथ काम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त शामलात, समानता तथा निष्पक्षता से जुड़े मुद्दों पर काम करने के लिए भौतिक, सामाजिक व राजनैतिक अवसर/ स्पेस प्रदान करती है।

ग्रामीण आजीविकाओं व पारिस्थितिक संरक्षण में शामलात की भूमिका


वर्षों की उदासीनता व ह्रास के उपरांत भी वन, चरागाह, सामुदायिक तालाब पशुधन व अन्य घरेलू पशुओं के लिए जल स्रोत आज भी ग्रामीण आजीविकाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। देश के कई क्षेत्रों में वैकल्पिक आजीविका के स्रोतों अथवा खेती के लिए उपजाऊ भूमि के अभाव व अति सीमित मात्रा में उपलब्ध होने के कारण, ग्रामीण समुदाय इन सार्वजनिक प्राकृतिक संसाधनों पर और अधिक निर्भर हो जाते हैं। गरीबों द्वारा यह निर्भरता और बढ़ जाती है तथा सूखे और फसलों के नुकसान से होने वाली कमी के समय यह अधिक हो जाती है।

हमारे सामुदायिक संसाधन : एक उपेक्षित संपत्ति


भारत के साथ-साथ विश्व के कई भागों में भूमि की उत्पादकता व उपलब्ध जल संसाधनों में कमी, सबसे जटिल समस्याओं में से एक है। इस प्रकार की समस्याएं उन भूमियों पर अधिक है जो परंपरागत रूप से शामलाती रही हैं या जिन पर सरकार का स्वामित्व है। परंपरागत विकास कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से शामलात भूमि के संरक्षण व सुधार की आवश्यकता को नकारते रहे हैं। वास्तविक अर्थों में एक ऐसे परिदृश्य की स्थापना करना अति आवश्यक है, जो विभिन्न संसाधनों व उत्पादन प्रणालियों के मध्य पारस्परिक निर्भरता को पहचान सके। शामलात संसाधन, निर्भर समुदायों को कई प्रकार से लाभ देने के साथ-साथ जैवविविधता संरक्षण एवं भूजल संसाधनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई क्षेत्रों में ये ही ऐसे स्थान हैं जो कई पौधों व जानवरों को एक मात्र प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं।

सबसे ज्यादा प्रभावित : गरीब व कमजोर वर्ग


इन शामलात भूमियों के बिगड़ते पारिस्थितिक स्वास्थ ने विपरीत आर्थिक व पारिस्थितिक परिणामों का जटिल चक्र खड़ा कर दिया है। अक्सर यह देखा गया है कि ग्रामीण समुदाय व उनें भी सबसे गरीब शामलात के घटने कारण अत्यधिक प्रभावित हुए हैं। यह समुदाय न सिर्फ कई प्रकार के लाभों के लिए इन पर निर्भर हैं, बल्कि शामलात इन समुदायों को भौतिक व राजनीतिक अवसर भी उपलब्ध कराते हैं।

क्षरित भूमि का पुनर्विकास


एफ.ई.एस. पारिस्थितिक ह्रास की प्रक्रिया को रोकने व पूर्व स्थित में वापस ले जाने हेतु विभिन्न भौतिक व संस्थानात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से क्षरित भूमि पर पुनः रोपण एवं मिट्टी पोषक तत्वों व पानी के बहाव को रोकने के कार्य कर रही हैं। हमारे द्वारा किए गए प्रयासों के परिणाम मिलने प्रारंभ हो गए हैं जिसका उदाहरण है कि कई परियोजना क्षेत्र के गाँवों में सूखे के समय भी पशुओं के लिए पानी व चारा उपलब्ध हो पाया है।

तेरहवां द्विवार्षिक अंतरराष्ट्रीय IASC सम्मेलन


शामलात संसाधनों के अध्ययन के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन (IASC) का तेरहवा द्विवार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन जनवरी 10 से 14, 2011 तक हैदराबाद में आयोजित किया गया। यह सम्मेलन दक्षिण एशिया में पहली बार आयोजित किया गया तथा पहली बार किसी कार्यकारी संस्था, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सेक्युरिटी (एफ.ई.एस.) ने इसका आयोजन किया।

स्वागत समारोह, 10 जनवरी 2011 की शाम को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ. एलिनोर ऑस्ट्रॉम तथा श्री जयराम रमेश (पूर्व पर्यावरण एवं वन मंत्री, भारत सरकार), की अपील के साथ शुरू हुआ जिसमें उन्होंने शामालाती संसाधनों के लिए बढ़ते संघर्षों के संदर्भ में देश की मानसिकता में बदलाव लाने की आवश्यकता पर बल दिया। इसके अतिरिक्त प्रतिष्ठित शिक्षाविदों व कार्यकर्ताओं के अभिभाषणों द्वारा सम्मेलन के प्रत्येक दिन की शुरुआत हुई। नीति परक विचार विमर्श व विषयपरक विचार विमर्श भी सम्मेलन के कार्यक्रम का एक अनिवार्य भाग थे, जिसके माध्यम से शामलाती संसाधनों पर नीतियों के क्षेत्रीय व वैश्विक अनुभवों पर व्यापक विचार विमर्श करने के लिए अवसर मिले।

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