सामुदायिक परियोजनाओं के माध्यम से रोजगार

सीमित भूमि, घटती उत्पादकता केवल छोटे एवं सीमांत खेतों में फसल उत्पादन से होने वाली रोजगार की संभावना तथा आम कृषक परिवारों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होती। इसका परिणाम प्रायः यह होता है कि कृषक परिवार निर्धन होते हैं। वे भुखमरी और कुपोषण के शिकार होते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में घोर अड़चनों से ग्रस्त निर्धन किसान इस स्थिति में नहीं होते कि वे खेती तथा उससे जुड़े कार्यों में बड़े पैमाने पर निवेश कर सकें।

समुदाय आधारित संगठन


समुदाय आधारित संगठन (सीबीओ) विभिन्न संसाधनों जैसे भौतिकीय, प्राकृतिक, वित्तीय, सामाजिक एवं मानव पूंजी के एकीकरण में सहायता करते हैं। यह फसल एवं पशुधन उत्पादन, उत्पादों के विपणन, समूह संबद्धता तथा सदस्यों की जीविका को भी सुसाध्य बनाएगा।

प्रत्याशित परिणाम देने के एक प्रभावी तंत्र के रूप में समुदाय आधारित संगठन बायोडावर्सिटी इंटरनेशनल/कॉजेंट/आईएफएडी के वित्तीय समर्थन से कार्य की गई एक परियोजना के अंतर्गत सिद्ध हुआ। केरल राज्य, भारत में तीन स्थानों (पेथीयूर नारियल समुदाय विकास परिषद, थोड़ीयूर नारियल समुदाय विकास परिषद और देवीकुलांगरा नारियल समुदाय विकास परिषद) में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत समुदाय आधारित संगठनों (सीबीओ) का गठन एवं पंजीकरण किया गया, ताकि बढ़ी हुई आय, रोजगार के अवसरों एवं उन्नत खाद्य सुरक्षा तथा सुधरे पोषण के संबंध में निर्धन किसानों एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं को सीधे लाभ देने के लिए निर्वाह योग्य जीविका के समर्थन में व्यवहार्य आय सर्जक प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सके। उपयुक्त मध्यस्थता तथा कार्यान्वयन को प्रतिपादित करने के लिए प्रत्येक सीबीओ में, सीबीओ के सदस्यों से एक निर्वाचित कार्यकारी परिषद का गठन किया गया। सभी कार्यक्रम कायाकुलम, केरल स्थित क्षेत्रीय केंद्रीय पौधरोपण फसल अनुसंधान संस्थान (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन) द्वारा समान्वित किए गए।

कार्य, भूमि क्षेत्रफल, अन्य खेत संसाधनों आदि की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए सदस्यों द्वारा तैयार की गई वार्षिक कार्य योजना के आधार पर सीबीओ के माध्यम से किए गए। प्रौद्योगिकी मध्यस्थता, इनपुट की व्यवस्था एवं सीबीओ के प्रबंधन के संबंध में सीबीओ के सदस्यों की वैयक्तिक तथा सामूहिक क्षमता का विकास करने के लिए उनके प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण पर व्यापक बल दिया गया। विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने वालों में से 72% सहभागी विभिन्न सीबीओ की महिला सदस्याएं थीं।

कृषक परिवारों की आय सृजन तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कार्यक्रमों में खाद्य एवं आहार सुरक्षा को पूरा करने के लिए विभिन्न फसलों की इंटरक्रॉपिंग और पशुधन एकीकरण एवं नारियल तथा अन्य उत्पादों का वैविध्यकरण करना शामिल था। इन कार्यक्रमों को सीबीओ के माध्यम से दी गई एक आवर्ती निधि तथा तकनीकी प्रशिक्षण (सीबीओ एवं माइक्रोक्रेडिट प्रबंधन सहित) के मध्यम से एक माइक्रोक्रेडिट प्रणाली का समर्थन प्राप्त था।

खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा


..फसलों का उद्देश्य सदस्यों की खाद्य सुरक्षा बढ़ाना था जबकि फल, सब्जियों और मशरूम पोषण संबंधी स्थिति सुधारने के लिए लाक्षित थे। पोषण बागवानी, पशुधन एकीकरण (मात्सयिकी, पॉल्ट्री, गाय, बकरी) तथा मशरूम उत्पादन ऐसे कार्य थे जिन पर, सदस्यों की पोषण संबंधी सुधार लाने के लिए विचार किया गया। नौ महिला समूहों ने छोटे पैमाने पर मशरूम का उत्पादन करने का कार्य प्रारंभ किया और इनमें से चार समूह इस कार्य को एक उद्यम के रूप में सफलतापूर्वक चला रहे हैं। इस पद्धति से कृषक परिवारों की प्रोटीन आवश्यकता को पर्याप्त सीमा तक पूरा किया जा सकता है। सीबीओ द्वारा की गई मध्यस्थता से खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला। खाद्य सुरक्षा के मामले में, पूर्ण रूप से सुरक्षित वर्ग में वृद्धि 67% से बढ़कर 96% हो गई, जबकि पोषण संबंधी सुरक्षा में यह वृद्धि 8% से बढ़कर 72% हो गई थी। परियोजना अवधि के बाद, कोई भी सीबीओ सदस्य दोनों-खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा की दृष्टि से पूर्णतः असुरक्षित वर्ग में नहीं रहा। वास भूमि (होमस्टेड)/बैकयार्ड गार्डनिंग की भूमिका प्रमुख रही है। इसे 87% लोगों ने स्वीकार किया और इसके बाद खाद्य प्रसंस्करण (85%) तथा पशुधन/ मछली/पोल्ट्री रेयरिंग (64%) का नंबर था। सीबीओ की महिला सदस्याएं पोषक खाद्य मदों जैसे बेबी फूड, टर्मरिक पाउडर, स्थानीय रूप में उपलब्ध अन्य जूसों तथा मौसमी कच्चे माल के उत्पादन में प्रशिक्षित थीं। कृषक परिवारों के सदस्यों, विशेष रूप से स्कूल जाने वाले बच्चों के पोषण संबंधी स्तर में सुधार लाने के अतिरिक्त, इस कार्य से महिला सदस्याएं अपनी अतिरिक्त आय टर्मरिक पाउडर के लिए रु. 40/- प्रति किग्रा. से लेकर तिल के तेल के लिए रु. 60/- प्रति लीटर तक बढ़ाने में भी सक्षम रही हैं।

रोजगार के अवसर एवं आय सृजन


इंटरक्रापिंग, पशुधन उत्पादन, वैल्यूएडीशन आदि पर विभिन्न कौशल कार्यक्रमों ने रोजगार तथा आय सृजन के अवसर पर्याप्त रूप में बढ़ाए हैं। इस परियोजना ने समुदायों को, सामुदायिक स्तर की प्रोसेसिंग के लिए कुछ ऐसी मशीनरी तथा उपकरण खरीदने में सहायता की है, जो किसी एक किसान के लिए उसकी व्यक्तिगत खरीद सीमा से बाहर थे। इन उपकरणों में नारियल ड्रायर (1000 नारियल की क्षमता), खोपरा (गिरि) कटर वाली नारियल तेल मिल, एक्सपेलर तथा ऑयल फिल्टर, यांत्रिक कॉयर स्पिनिंग यूनिट, प्रोसेसिंग वैसल्स, वेइंग, पैकिंग तथा सीलिंग उपकरण शामिल थे।

महिलाओं द्वारा निर्णय लेने की क्षमता, उनकी अधिकारिता या सशक्तिकरण निर्धारित करने का एक महत्वपूर्ण मानदण्ड है। विभिन्न सीबीओ के लिए इस मानदण्ड का विश्लेषण दर्शाता है कि परियोजना पूर्व अवधि से परियोजना के बाद की अवधि में विशेष रूप में इंटरक्रॉपिंग, पशुधन उत्पादन, वैल्यूएडीशन तथा विपणन – जो इस परियोजना के बड़े मध्यस्थता कार्य थे, में पर्याप्त परिवर्तन आया है।

नारियल आधारित मूल्य वृद्धि के उत्पाद महिला समूहों द्वारा तैयार किए जाते हैं और ये समूह इस कार्य पर अपना बहुत कम समय लगाते हैं, इसलिए ये महिला समूह, इस कार्य को अपनी आय बढ़ाने का एक बेहतर विकल्प मानते हैं। ये समूह इन कार्यों को प्रति माह लगभग 10 दिन, 4 घंटे प्रतिदिन की दर से करते हैं और रु. 170 दैनिक लाभ कमाते हैं, इस तरह एक महिला सदस्य रु. 1700/- प्रतिमाह अतिरिक्त आय कमाती है। अकेले सामुदायिक क्वायर स्पिनिंग यूनिटों के माध्यम से, इस कार्य में लगी महिलाओं में से 40 महिलाएं 90 रु. से 100/- रु. प्रतिदिन लाभ कमाती हैं।

परियोजना –पूर्व अवधि की तुलना में अब नारियल से आय 50% और विभिन्न इंटरक्रॉप के अंतर्गत कृषित भूमि दो गुनी हो गई है। विभिन्न मध्यस्थता कार्य, आय स्तर 700/- रु. से बढ़ा कर 13,100/- रु. करने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

श्री ए.सैफुद्दीन (50 वर्ष), कुट्टियिल पुथेनवेडु, एडाक्कुलंगारा, करुणागपल्ली (डाकघर), केरल थोडीयूर सीबीओ का एक ऐसा किसान है, जिसकी लगभग 75 प्रतिशत भूमि में नारियल के बागान हैं। वह माइक्रोक्रेडिट की सुविधा लेकर अपनी वास-भूमि (होम-स्टेंड) में विभिन्न सब्जियों, कंद फसलों तथा केले की खेती कर रहा है।

उसके खेत में एक मशरुम उत्पादन यूनिट कार्यरत है, जिसकी देखभाल उसकी पत्नी श्रीमती फातिमाकुंजू (43 वर्ष) करती हैं। उसके पास, परियोजना के अंतर्गत दिया गया एक नारियल ड्रायर है, जिसका उपयोग, वर्षा के महीनों में अच्छी किस्म की गिरि बनाने के लिए नारियल को सुखाने के लिए किया जा रहा है। उसने यह सुविधा सीबीओ के अन्य किसानों को दी है। इस कार्य में उसकी सहायता उसकी पत्नी, पुत्र – जो औद्योगिक प्रशिक्षण में एक पाठ्यक्रम कर रहा है। तथा नौंवीं कक्षा में पढ़ रही उसकी पुत्री करती है।

वी. कृष्णकुमार एवं एस. कलावती केंद्रीय पौधरोपण फसल अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, कृष्णपुरम, केरल में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं और जॉर्ज वी. थॉमस केंद्रीय पौधरोपण फसल अनुसंधान संस्थान, कुडलू (डाकघर), कसारगोड, केरल में निदेशक हैं। (ई-मेलः dr.krishnavkumar@gmail.com)

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading