सावन में भी सूखे की चिंता

2 Aug 2014
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बारिश के इंतजार में किसान झारखंड में मौसम की स्थिति को देखते हुए किसानों के माथे पर बल पड़ता दिखाई दे रहा है। सुखाड़ की संभावनाओं को इनकार करने की परिस्थिति अब नहीं बनी हुई है। इन सब हालात को देखते हुए अभी भी कृषि विभाग की प्रतिकूल परिस्थिति से निबटने के लिए किसी विशेष प्रकार की घोषणा नहीं की जा सकी है।

राज्य की राजधानी रांची से सटे अनगड़ा प्रखंड के जानुम गांव के एक किसानों की समिति इस बात पर विचार कर रही है कि आने वाले समय में किस प्रकार से खेती के लिए रणनीति अपनायी जाये। किसानों ने धान के अलावा दूसरी फसलों की खेती के लिए भी योजना बनायी है। इनमें मौसमी सब्जियां भी शामिल हैं। सिंचाई सुविधाओं का अभाव होने के कारण और वर्षा पर निर्भरता होने के बावजूद भी इन किसानों के लिए धान की खेती करना मजबूरी है क्योंकि इससे उन्हें घर में खाने के लिए अनाज प्राप्त हो जाता है। लेकिन नकद के लिए दूसरी मौसमी सब्जियों और फसलों का उत्पादन भी करना पड़ता है। इस परिस्थिति में उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता है।

जानुम गांव के गोवर्धन मुंडा सीमांत किसान हैं। उनके पास करीब दो से तीन एकड़ जमीन है। ये जमीन दो व तीन नंबर की है। वह प्रत्येक वर्ष धान की खेती करते है, लेकिन उन्होंने कुछ वर्षों से खेती करने लिए वैज्ञानिक विधि अपनायी है। अब वह धान की खेती घर के लिए अनाज की जरूरतों को पूरी करने के लिए करते हैं। खेती के लिए कुशल रणनीति में उन्होंने दलहन और तेलहन को भी शामिल किया है। इसके अलावा अब वह प्रत्येक साल सब्जी की भी उपज कर रहे हैं। वह कहते हैं : अब धान नहीं होगा तो खेत तो खाली नहीं छोड़ सकते हैं।

समिति की बैठक में सुखाड़ पर भी बात होती रहती है कि बरसात नहीं हो तो क्या करना होगा। गोवर्धन अपने खेतों में सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और यूएनडीपी की ओर से काफी समय पहले इसकी व्यवस्था की गयी थी। खेत के हिस्से में इस तकनीक को लगाया गया है। जैन इरिगेशन नाम की कंपनी की मशीनों का इस्तेमाल किया गया है।

गोवर्धन बताते हैं कि अब सभी किसानों को बहुफसली खेती को अपनाना होगा। उनकी शिकायत है कि सुखाड़ की स्थिति बनने पर भी सरकारी राहत मिलने से किसान वंचित रह जाते हैं।

सुखाड़ की स्थिति से निबटने के लिए सरकार की ओर से राहत के लिए कई घोषणाएं की जाती हैं, लेकिन ये घोषणाएं कागजों तक ही सीमित होती हैं। इन किसानों की स्थिति यह होती है कि प्रखंड और जिला कृषि कार्यालय का चक्कर लगाते ही पूरा समय निकल जाता है। अगनु महतो प्रगतिशील किसान समिति के अध्यक्ष हैं। वो भी अपने धान के खेती के लिए बारिश की ओर टकटकी लगाये हुए हैं।

समिति की बैठक में सुखाड़ पर भी बात होती रहती है कि बरसात नहीं हो तो क्या करना होगा। गोवर्धन अपने खेतों में सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और यूएनडीपी की ओर से काफी समय पहले इसकी व्यवस्था की गयी थी। खेत के हिस्से में इस तकनीक को लगाया गया है। जैन इरिगेशन नाम की कंपनी की मशीनों का इस्तेमाल किया गया है। अगनु महतो से यह पूछे जाने पर कि सरकार के अलावा क्या निजी कंपनियों जिसके यंत्र का इस्तेमाल किसान अपने खेतों में करते हैं, उनसे सुखाड़ स्थिति में किसी प्रकार की मदद मिलती है, अगनु का जवाब नकारात्मक होता है। वह कहते हैं : किसानों की इस बार स्थिति ठीक नहीं है। यदि कंपनी की बात की जाये तो किसानों की मदद के लिए कोई भी कंपनी आगे नहीं आती है। जब अपना सामान बेचना होता है, तो वह किसानों के पास आती है। इसके अलावा कभी उनकी मदद भी नहीं मिलती है। वह कहते हैं कि किसान अभी भी इस आशा में हैं कि पानी होगा तो वे रोपा कर सकेंगे।

लेकिन सही समय पर पानी नहीं हुआ तो रोपा भी नहीं हो पायेगा। अगनु के पास लगभग दो एकड़ जमीन है और इसके 30 डिसमिल भू-भाग में वह घर के अनाज के लिए धान की खेती करते हैं। उन्होंने खेती के लिए एक नयी रणनीति के तहत काम करना प्रारंभ किया है, लेकिन उनका मानना है कि यदि सिंचाई की पूरी व्यवस्था न हो तो दूसरी फसलों के लिए भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। दलहन और तेलहन लगाते हैं लेकिन यदि बारिश अधिक हो गयी तो इस फसल के भी बरबाद हो जाने की संभावना बनी रहती है। किसान पिछले एक महीने से बिचड़ा लगा रहे हैं। जितेंद्र मुंडा भी किसान है और वह कहते हैं कि सारी चुनौतियों के बावजूद धान की खेती करना किसानों की मजबूरी होती है। किसान बारिश के इंतजार में होते हैं। किसानों का कहना है कि जुलाई महीने में बिचड़ा खेतों में डाल दिया जाता है। पर इस बार यह मुश्किल लग रहा है।

जिला कृषि कार्यालय में कृषि निरीक्षक डीएन सिंह बताते हैं कि जिला कृषि कार्यालय की ओर से सुखाड़ की आकस्मिक परिस्थिति से निबटने के लिए योजना बनायी जा चुकी है, लेकिन वह अभी क्रियान्वयन के चरण में नहीं है। मौसम की स्थिति के अनुसार वैकल्पिक खेती की योजना बनी है और अभी 31 जुलाई तक इंतजार करना है। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से इस खेती के लिए किसानों को सुविधा मुहैया उपलब्ध करायी जायेगी।

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