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सील

सील जल में रहने वाले स्तनीवर्ग के फोसिडी (Phocidae)कुल के नियततापी प्राणी हैं। इनके पूर्वज जमीन पर पाए जाते थे। समुद्र में सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए इनके पैर झिल्लीयुक्त हो गए हैं। पानी हवा की अपेक्षा अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है इसलिए सील की बाह्य त्वचा के नीचे तेलयुक्त वसा से भरा स्पंजी ऊतक (spongy tissue) पाया जाता है। यह ऊतक देहऊष्मा (body heat)को बाहर जाने से रोकता है।

सील को अपने गोलाकार और धारा रेखांकित (streamlined) शरीर के कारण पानी में तैरने में सुविधा होती है। कुछ सील थोड़ी दूरी अत्यंत शीघ्रता से पार कर लेते हैं। ये पानी के अंदर आठ या दस मिनट तक रह सकते हैं। इनके पिछले झिल्लीयुक्त पैर पीछे की ओर मुड़े रहते हैं, जिससे उनके पानी के अंदर तैरने में सहायता मिलती है। ये पैर आगे की ओर न मुड़ सकने के कारण पानी के बाहर चलने में भी सहायक होते हैं।

सील की किस्में- सील की दो स्पष्ट किस्में होती हैं, वास्तविक सील (true seal) तथा कर्ण सील (eared seal)। वास्तविक सील के बाह्य कर्ण नहीं होते हैं। इनके कान के स्थान पर केवल छिद्र होते हैं। इनके झिल्लीयुक्त पैर मछलियों की पूँछ की तरह प्रयुक्त होते हैं। पानी के बाहर सील अपनी तुंद पेशियों (belly muscles) की सहायता से चलता है।

कर्ण सील में, जैसे जलसिंह (sea lion) तथा समूर सील (fur seal), स्पष्ट किंतु छोटे बाह्य कान होते हैं। इनके पिछले झिल्लीयुक्त पैर अपेक्षाकृत लंबे होते हैं। कर्ण सील जमीन पर तेजी से चल सकते हैं। पानी में ये अपने शक्तिशाली अगले पैरों की सहायता से तैरते हैं।

वास्तविक सील, कर्ण सील की तुलना में समुद्री जीवन के लिए विशेष रूप से अनुकूलित होते हैं। वास्तविक सील अनिश्चित काल तक पानी के अंदर रह सकते हैं। इनके बच्चे, जिन्हें पिल्ला (pup) कहते हैं, कभी-कभी पानी में ही पैदा होते हैं।

कर्ण सील के बच्चे अनिवार्य रूप से भूमि पर ही पैदा होते हैं, क्योंकि इनके पिल्ले पैदा होने के तुरंत बाद तैर नहीं सकते। वास्तविक सील शांत प्रकृति के होते हैं। इसके विपरीत कर्ण सील जब चट्टानी तटों पर अत्यधिक संख्या में एकत्रित होते हैं तब अत्यधिक शोर करते हैं। नर भूँकते तथा चीखते हैं। मादा तथा बच्चे गुर्राते तथा मिमियाते हैं।

सभी सीलों का सामान्य बाह्य रूप एक ही तरह का होता है परंतु उनका विस्तार भिन्न-भिन्‌ होता है, जैसे हारबर सील (harbour seal) छह फुट लंबा और 100 पाउंड तथा एलिफेंट सील (elephant seal) 16 फुट लंबा तथा 2.5 टन भारी होता है। सीलों का सामान्य रंग धूसर तथा भूरा होता है। केवल एक या दो प्रकार के ही सील गरम उपोष्ण (subtropical) सागरों में पाए जाते हैं। अधिकांश सील शीतोष्ण तथा ध्रुवी सागर (polar sea) में ही पाए जाते हैं।

समूर सील (Fur seal)- यह जलसिंह से छोटा होता है। इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि फर सील के बड़े रोमों के नीचे समूर (fur) पाया जाता है। इनके कीमती समूर के कारण इनका अध्ययन तथा शिकार इनकी खोज के बाद से ही होने लगा था। ये चट्टानी तटों पर मारे जाते हैं जहाँ ये गरमियों में बच्चे देने आते हैं।

वसंत ऋतु के अंत में नर सील चट्टानी तटों पर समूह में एकत्रित होकर अपने-अपने पसंद का स्थान चुन लेते हैं। मादाएँ नरों के बाद आती हैं। कुछ सक्रिय नरों के निवास स्थल में 60 से 70 मादाएँ रहती हैं। नर पूरी प्रजनन ऋतु तक चट्टानी तटों पर रहता है और कई महीनों तक कुछ नहीं खाता। नर तथा मादा सील बराबर-बराबर संख्या में पैदा होते हैं। एक नर कई मादाओं के साथ मैथुन करता है। आठ वर्ष के पहले नर तथा तीन वर्ष के पहले मादा प्रजनन योग्य नहीं होतीं।

सील के उपयोग-आज भी एस्किमों अपने भोजन तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं के लिए सील का शिकार करते हैं। सील से वे मांस तथा भोजन पकाने और प्रकाश आदि के लिए तेल प्राप्त करते हैं। सील के चर्म से कपड़े तथा तंबू (tent) बनाए जाते हैं।

आर्थिक दृष्टि से सील का शिकार उनसे चमड़े तथा तेल प्राप्त करने के लिए किया जाता है। एलिफैंट सील का शिकार केवल तेल प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अधिकांश सील में एक बार में केवल कुछ रोम ही झड़ते हैं परंतु एलिफैंट सील की पूरी बाह्य त्वचा एक बार में ही झड़ जाती है। ऐसे समय सील समुद्र के लवणित जल में प्रवेश नहीं करता है, क्योंकि उसके त्वचा में लवणित जल से जलन पैदा होती हैं। इसके चर्म से जूते, कपड़े तथा दैनिक उपयोग की वस्तुएँ बनाई जाती हैं। इनकी आँत की बारही त्वचाश् से बरसाती कोट बनाया जाता है। (नंदकुमार राय)

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