सिनेमा से पानी का रिश्ता

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पानी की दृश्यात्मकता ऐसी है कि किसी भी फिल्मकार के लिये उसकी उपेक्षा सम्भव नहीं। हिन्दी सिनेमा से पानी का रिश्ता आमतौर पर कुछ रोमांटिक सा रहा है, लेकिन कई फिल्में ऐसी भी रही हैं जिन्होंने पानी की समस्या को समाज की गहराई में उतरकर देखा और दिखाया है। पानी, हिन्दी सिनेमा का बहुत गहराई से हिस्सा रहा है। यह बात बिल्कुल ठीक है कि पानी का बहुत से हिन्दुस्तानी फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों को आकर्षक बनाने के लिये बेहद खूबसूरती से इसे समय-समय पर अपनी फिल्मों में इस्तेमाल किया है। इस तरह पानी और सिनेमा का एक गहरा अन्तरसम्बन्ध सहज ही बनता चला गया है।

पानी से सिनेमा का ठीक वैसा ही रिश्ता है जैसे जीवन से। पानी पूरी तरह से सिनेमैटिक चीज है। पानी की अपनी एक स्ट्रांग इमेजरी है। हिन्दी सिनेमा में हमेशा फिल्मकार अपनी फिल्म के दृश्यों को एक सौन्दर्यबोध देने के लिये कभी समुद्र का इस्तेमाल करते रहे, कभी झील का, तो कभी बारिश का, या फिर कभी किसी खूबसूरत दरिया और झरने का।

पानी हिन्दी सिनेमा को हमेशा आकर्षित करता रहा है। हिन्दुस्तानी सिनेमा में ऐसी एक नहीं कई मिसालें हैं। विश्व सिनेमा को भी पानी ने बेहद आकर्षित किया है। मैं पिन प्वाइंट करके नहीं बता सकता, पर मेरा मानना है कि ऐसा हुआ है।

पानी की सबसे बड़ी सिनेमाई ताकत तो यही है कि इसने हिन्दी सिनेमा को हमेशा कोई-न-कोई सब्जेक्ट दिया है, कंटेंट दिया है। यह शिद्दत से हिन्दी सिनेमा का जरिया रहा है। कहानी कहने और इसे प्रवाह देने का जरिया रहा है। दर्शकों के दिलो-दिमाग को ताजगी देने का जरिया रहा है।

अगर सिनेमा की कथावस्तु पर चर्चा न भी करें, तो भी हिन्दी फिल्मों के ऐसे अनगिनत गीत हैं जिनमें पानी केन्द्रीय विषयवस्तु रहा है। मेरा तो यहाँ तक मानना है कि अगर सिनेमा से पानी को निकाल दो तो हिन्दी सिनेमा बेजान-सा होकर रह जाएगा।

मैं समझता हूँ कि सिनेमा की पानी ने जितनी खिदमत की है अब उसका कर्ज चुकाने का वक्त आ गया है। मैं जब भी सिनेमा के विस्तार में जाता हूँ और इसे सशक्त बनाने वाले तत्वों के बारे में सोचता हूँ, तो यह सोचकर हैरान हो जाता हूँ कि पानी और सिनेमा एक-दूसरे के पूरक से हैं।

पानी ने कितने गीतों को अमर कर दिया। पानी के कारण हिन्दी सिनेमा के कई दृश्य अमर हो गए। जब भी दर्शकों की स्मृतियोंं में ये दृश्य उभरते हैं, तो जैसे वे सारी फिल्में उनके दिमाग में रोशन होने लगती हैं।

मैं यह सोचकर अचम्भित हो जाता हूँ कि अगर पानी न रहे तो हिन्दी सिनेमा का क्या होगा? अब तो पूरी दुनिया में जिस तरह पानी के क्राइसिस पर बात होने लगी है और यह कहा जाने लगा है कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह पानी के लिये होगा, ऐसे में पानी के लिये सिनेमा को सोचना होगा।

पानी को सब्जेक्ट बनाकर ऐसी फिल्में बनाने की जरूरत है जो दर्शकों को पानी बचाने का सन्देश दें। आसपास के पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने का सन्देश दें। ये डाक्यूमेंट्री विधा में भी हो सकती हैं और फीचर फिल्में भी हो सकती हैं।

सिनेमा ने अब तक पानी की ‘ब्यूटी’ को इस्तेमाल किया है। इसलिये सिनेमा की ‘ड्यूटी’ बनती है कि वह पानी के कंटेंट को पानी की री-साइक्लिंग को और पानी की गन्दगी को कैसे ट्रीटमेंट कर इसे साफ किया जाये? इस सब्जेक्ट को केन्द्र में रखकर दर्शकों के सामने कोई फिल्म पेश करे।

आज दुनिया में सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह भी है कि खेती बहुत ज्यादा पानी खींचती है। अतः सिनेमा दर्शकों को यह बता सकता है कि ऐसी कौन-सी खेती है जो पानी की फिजूलखर्ची को रोक सकती है। सिनेमा इनसानी दिमागों को झकझोरने वाला बहुत सशक्त माध्यम है। अगर ऐसा सन्देश देने वाली कोई फिल्म दर्शकों के बीच आएगी तो वह उन्हें शिक्षित करने के साथ ही एक सार्थक सन्देश भी देगी।

जहाँ तक मेरी अपनी फिल्मों का सवाल है, तो मेरी फिल्में अवधी तहजीब का बड़ी गहराई से हिस्सा रही हैं। इन सभी फिल्मों में आपको दरिया, नदी और पानी का किसी-न-किसी रूप में इस्तेमाल अवश्य नजर आएगा।

भारतीय फिल्मोद्योग का ऐसा कोई फिल्मकार नहीं रहा पानी जिसकी फिल्मों का हिस्सा नहीं रहा। आज जब पूरी दुनिया में पानी के क्राइसिस पर चिन्तन होने लगा है तो क्या हमारे फिल्मकारों को इस बारे में नहीं सोचना चाहिए? मैं तो अभी से सोचने लगा हूँ। अगर कोई अच्छा सब्जेक्ट मिला तो फिल्म का निर्माण भी शूरू करुँगा।

(लेखक मशहूर फिल्मकार हैं)

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