सिंचाई व्यवस्थाओं के साथ मछली पालन का एकीकरण - एक नया व्यवस्थित दृष्टिकोण

24 Apr 2018
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Mahseer
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भूमिका
सिंचाई व्यवस्थाओं के अंदर मछली पालन जो कभी-कभी एक तरह का उत्पादन अथवा पालन माना जाता है, करीब दो हजार सालों के पहले से ही प्रचलित एक व्यवसाय है। यद्यपि यह कभी लिखित रूप में नहीं दर्ज हुआ है तथापि धान के खेतों में खासकर, भूमध्य रेखा के नजदीक के प्रदेशों में यह व्यापक रूप में फैला हुआ था। इस शताब्दी में थल पर उगाये जाने वाले धानों की प्रगतिशील प्रबंध एवं जलीय आयोजनों को सफलतापूर्ण उत्पादन के मांगों की पूर्ति, दोनों को एक साथ सामना करना आसान नहीं था। पर धान उत्पादन का एकीकरण इस वातावरण को पूर्ण रूपेण बदल दिया है। अलावा इसके, पिछले 50 सालों से पानी को बांधकर अथवा नदियों की रास्ता को घुमाकर, उस पानी से सिंचाई के प्रबंध तेजी से बढ़ गये हैं पर इन व्यवस्थाओं के अंतर्गत मछली - उत्पादन ने उसी अनुपात में प्रगति नहीं की है। अत: इस दिशा में एकीकरण की गयी व्यवसाय की सफलता के बारे में जाँच पड़ताल करना चाहिए।

सिंचाई व्यवस्था के स्तर पर ही मछली उत्पादन की प्रगति का एक व्यवस्थित दृष्टिकोण जो इस एकीकरण को एक लाभदायक व्यवसाय बना देगा, प्रस्तावित किया जाता है। सिंचाई व्यवस्थाओं की सृष्टि सभी मछली उत्पादन क्षेत्र, इस एकीकृत मछली उत्पादन व्यवस्था के अंतर्गत रखे जा सकते हैं। सिंचाई में काम आने वाले स्वयं सिंचे गये खेत पड़ोस में स्थित तालाब या मछली के सब तरह के शरणालय, सभी जगहें मछली उत्पादन एवं मछली पालन के लिये उचित स्थान हैं। मछली उत्पादन केंद्र जो अस्थायी रूप में कार्यरत है, उनमें से अच्छे नमूने लेकर स्थायी जल केंद्रों में सुरक्षित किये जा सकते हैं। पालित मछलियों को इस तरह के केंद्रों में परिवर्तन करना या तबादला करने का एक लचोली तरीका साध्य है। उदाहरण के लिये, जहाँ पानी मात्र एक सीमित अवधि के लिये नालों में वितरण किया जाता है, वहाँ सिंचाई के नालों में मछलियों को पिंजरबद्ध करते हुए प्राप्त कर सरोवरों में सुरक्षित कर सकते हैं।

संसार भर में धान की खेती की सिंचाई फैली हुई है। खाद्य पदार्थों के उत्पादन बढ़ाने में 17 प्रतिशत सिंचाई होती है और उसके द्वारा संसार के खाद्यान्न की एक तिहाई का उत्पादन होती है। सिंचाई व्यवस्था में मछली उत्पादन उतना ही पुराना है जितनी खेती है।

एकीकरण के कई स्तरों में मछलियों की खेती करने के बारे में व्याख्याएँ एवं विश्लेषण मिली है। (रइउल एंड जांग 1988, कोस्छों-पियर्स एंड सोमारवोटो 1990; हेलर 1994, मथियास चार्ल्स 1998) सभी सिंचाई व्यवस्थाओं में मछली की खेती करने में अड़चनें इसलिये आई है कि एक न एक जरूरी पदार्थों का न मिलना तथा सभी उचित विशेषताओं की कमी रहना। पर चीन वालों के हाल के दृष्टिकोण में उस व्यवसाय में हिम्मत बंधाने वाली सूचनाएँ दिख पड़ती है। इन नये सरोवरों के मछली व्यवसाय, धान की खेती एवं तालाबों के मछली व्यवसाय के साथ एकीकरण किया गया है।

सरोवरों के बंद में, तथा पिंजड़ों में मछली उत्पादन करने में। पी.आर.सी.। चीन में बृहद फल प्राप्ति मिली है। ठीक अनुपात में इनपुटों को लगाने से मछली पालन एवं खेती, सिंचाई व्यवस्था में साध्य है। (रिडिउंग मिडनल 1991) चीन मिश्र, एवं इंडोनेशिया में धान एवं मछली की खेती बड़े पैमाने में लागू है। धान की खेती करने वाले किसानों द्वारा रूपायित कीड़नाशी तरीका अपनाये जाने से, खेतों में बहुत प्रगति उत्पन्न हुई है। (हलवार्ट-1998) अत: प्रगति की संभाव्यता भी बढ़ गयी है। चौधरी 1995।

यह लेख, सिंचाई व्यवस्थाओं में एकीकरण दृष्टिकोण द्वारा मछली पालन के लिये एक ढाँचा प्रस्तुत करता है। धान उत्पादन के लिये। खासकर उनके लिये मात्र जो सिंचाई व्यवस्थाएँ हैं, उन पर ध्यान केंद्रित हैं। इन व्यवस्थित योजनाओं में कई योजनाओं को सफलताएँ मिली है। फिर भी कई तकनीकी बाध्यताएँ है।

सिंचाई : संसार भर का चित्र
लगभग 240 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र व 17 फीसदी जमीन, जो दुनिया भर में खेती लगाए गये हैं, पानी से सींचे जाते हैं, और दुनिया के खाद्यान्न में एक तिहाई को उत्पन्न करते हैं, फिलहाल, दुनिया के सिंचे जाने वाले क्षेत्र के लगभग तीन चौथाई भाग, विकासोन्मुख देशों में है। (01, 1997) कास्टा-फियर्स और सोमरवाकटो ने (1987) आकलन किया कि, केवल एशिया में मात्र 2,00,000 वर्ग मील का क्षेत्र अपने में बृहद सरोवरों से निहित है। जब 1000 हे. क्षेत्र की सिंचाई होती है, तब हर एक क्षेत्र जिसका विस्तार 1000 हे. क्षेत्र है, उसके लिये 2.5 कि मीटर लंबी नालाएं और उनसे चार गुना उसी लंबाई की नालाएं बनाई जाती हैं। रेडिडग मिडलन (1991) के अनुसार साल 2000 में एशिया में लगभग 2000 मिलियन हे. क्षेत्र की जमीन के लिये 5,00,000 कि मीटर लंबी बड़ी नालाएं और दो मिलियन मीटर लंबी छोटी नालाएं, खोदी गयी होंगी। कई नालाएं और नदियां भी, सिंचाई व्यवस्था में एकीकरण किये जाते हैं, जिससे मछली खेती के उपयुक्त जलक्षेत्र का विस्तार बढ़ जाता है।

संक्षिप्त ब्योरा
फलदायक प्रयोग जो इस दिशा में आरंभ काल से किये गये, उनका विवरण इस लेख में दिया जाता है। यह लेख, लोवर भवानी परियोजना, पुरानी नालों की व्यवस्था, जो भवानी नदी के किनारे बनी सिंचाई के नालों में लगे पिंजरों में पाले गये टिलापिया, ग्रास एवं सिल्वर की बड़ी हुई मछली और आई. एम. सी. मछली आदि की उन्नति, बचने की संभाव्यता आदि पर विवरण देता है।

सामग्री एवं तरीका
तमिलनाडु के लोवर भवानी परियोजना में परियोजना का स्थल चयन किया गया। निम्न स्थानों पर प्रयोग किये गये।

1. प्रयोग का स्थल - 1 वाणीपुत्तर के नजदीक भवानी बेसिन के पुराने तरीके का नाला- अरक्कन कोटै से छठी मील क्षेत्र पर।

2. प्रयोग का स्थल - 2 पुगमपाडी के पास का नाला। लोवर भवानी परियोजना नाला तिरसठवीं मील क्षेत्र पर।

3. प्रयोग का स्थल - 3. मुत्तूर के पास - लोवर भवानी परियेाजना नाला - 112 वीं मील क्षेत्र पर। यह व्यवस्था 18,400 हेक्टेयर क्षेत्र को तीन पारस्परिक नालाओं द्वार पानी देती है। इन पर उनका पारंपरिक अधिकार है। इसके अलावा, 1950 में बना एल. भी. पी. नाला के 78,500 हेक्टेयर क्षेत्र भी इसके अंतर्गत है, इन स्थलों में पुराने और नये नालों के पानी की गहराई, बहाव की तेजी एवं पानी की मात्रा का आकलन किया गया कि पानी को रेाके बिना बहते पानी में मछली की खेती संभव है या नहीं।

इस सिंचाई व्यवस्था में दो अंग है; 2 पुराने नालाएं जिनमें अरक्कन कोटै, तडप्पल्ली एवं कालिगशयन निहित है, जिनसे 18,400 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचे जाते हैं। भवानी नदी से इसको पानी पहुँचाया जाता है। नया भाग वह है जो एल. भी. पी पुकारा जाता है। पुराने पैतृक अधिकार द्वारा, यह अधिकार सुरक्षित किया जाता है कि पुराने नालों को हर साल 10 महीने पानी पहुँचाया जाएगा जिससे 250 फीसदी प्रगति उत्पादन में होने की संभावना भी। यहाँ धान, गन्ना, हल्दी, केला जो बहुत पानी का मांग करते हैं, की खेती करते हैं।

लगभग 78,500 हेक्टेयर क्षेत्र एल.भी.पी नाला के द्वारा समृद्ध हुई है। यहाँ पानी इतना प्राप्त है कि हर एक नाला, हर एक दूसरा वर्ष पानी प्राप्त करता था। अलावा इसके, दो मौसमों में पानी का वितरण हुआ। बरसात में लगातार वितरण एवं दूसरे मौसम में बारी-बारी से।

एल.भी.पी. नाला
एल.भी.पी. नाला 200 कि. मीटर लंबी एक अनियमित नाला है। इसमें सात नियमन यंत्र हैं। उसके तट की चौड़ाई 33.5 मीटर से 4.2 मीटर तक है और गहराई 32 मीटर से 10 मीटर तक है। शुरुआत के स्थान में नाले की क्षमता 66.5 3/5 थी, बहाव की तेज या गति 0.5 M/s से 0.7 M/s तक भी, पर ध्यान में आया कि यह सांकेतिक तेज है, जबकि वास्तविक तेज प्रतिबंधन में परिवर्तन होता है।

एल.भी.पी. नाला तीन भागों का बना है। प्रारंभिक भाग अरच्चलर तक है। जिसकी चौड़ाई 101.9 कि. मीटर है, यहाँ पानी गहरा है और यथावत 0.7/की गति से बहता है। मध्य भाग 143.4 कि.मी. तक का है। वह औसत आकार का है और जरा मंद गति से बहता है, फिर भी मछली पालन के लिये उपयुक्त साधन मिश्रित है। अंतिम भाग जो बहुत छोटा और आम तौर पर एक मीटर की गहराई से भी कम गहराई में बहता है, मछली पालन के लिये कम ही उपयुक्त जान पड़ता है। पर पहला निर्धारण यह है कि सिंचाई व्यवस्था त्रुटियुक्त होगा, और पिंजरबद्ध पालन व्यवस्था के लिये पानी की गहराई कम होगी। इस अंतिम भाग को निकालने पर भी एल.भी.पी. नाला की 140 कि.मीटर से लंबी और कुल 450 हेक्टेयर चौड़े क्षेत्र मछली पालन के लिये साध्य क्षेत्र है।

एल.भी.पी नाला, पिंजड़ों में मछली पालन के लिये उपयुक्त है या नहीं, इस निर्णय पर पहुँचने के लिये समयबद्ध आंकड़े, जिनमें गति एवं गहराई का विवरण होते हैं, लेने की जरूरत है उसके लिये दैनंदिन आंकड़े पी. डब्ल्यू.डी. (1991-2000) से ली गई है, एल.भी.पी. नाले में पानी के आवती बहाव की आंकड़े 1983-2000 के लिये इकट्ठे की गयी हैं।

पुराना नाला
एल.भी.पी. व्यवस्था के अंतर्गत, पुराने नालों में अरक्कन कोट्टे, ताडपल्ली एवं कालिंगरायन) साल के दस महीनों में लगातार पानी पाता था। कोडिवेरी बांध में भवानी नदी के दोनों किनारे, पहले दो स्थानें याने कि अरक्कनकोट्टै एवं तादुपल्ली का आरंभ स्थान एक साथ स्थित है। इन नालों का सांकेतिक विस्तार का विवरण जो पी. डब्ल्यू डी से प्राप्त है, सारणी-2 में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत है। भवानी नदी के निचले भाग में कालीबरायन नाला आरंभ होता है। उसकी लंबाई 90 कि.मी. है। यह ताडपल्ली नाला के समस्तर का माना जाता है।

अरक्कनकोट्टै नाले की दो शाखाएँ हैं। पहुँच के स्थान तीन है। पहले दो स्थान 27.7 कि.मी. तक मछली पिंजड़ों को स्थापित करने लायक दिख पड़े। ताडपल्ली नाले में भी दो शाखाएं तीन मुख्य पहुँच के साथ है और 36 कि.मी. तक पिंजड़ों को स्थापित करने लायक दिख पड़ते हैं। शायद इससे आगे के भाग छोटे और प्रवाह भी विश्वास लायक नहीं है। अत: उनके छोड़ देने पर इन दोनों नालों की लंबाई में 64 कि.मी. तक मछली पालन के लिये उपयुक्त दिख पड़े। अर्थात पूर्ण लंबाई की 58 प्रतिशत जो जलतट के लगभग 100 हेक्टेयर क्षेत्र में पालन साध्य है।

बहाव तथा गहराई को समय-समय पर जाँच पड़ताल करने से ही यह आकलन किया जा सकता है कि इन पुराने नालों में मछली पालन साध्य है या नहीं। इसलिये दैनंदिन गहराई का आंकड़ा (1991-2000) पी.डब्ल्यू डी एवं डब्ल्यू आर.ओ. से संकलित किया जाता है। अरक्कनकोट्टै तथा ताडपल्ली नाला का जल बँटवारे का आंकड़ा (कोडिबेरी बांध से) 1983-2000 तक के लिये इक्ट्ठा किया गया है। हर एक स्थल पर तैरने वाले 28 पिंजड़े स्थापित किए गए। शोध के लिये चुने स्थल एक और दो में 1×1×1.3 मी. विस्तार के, क्यूब रूप के पिंजड़े रखे गये, क्योंकि यहाँ पानी गहरा है। तीसरे स्थान में लंबे पिंजड़े 2×1×7 मी. विस्तार के लगाये गये क्योंकि यहाँ पानी गहरा नहीं है।

पिंजरे बनाने के लिये मजबूत पोलितलीन से बने नेटलन सामग्रियाँ का इस्तेमाल किए। ये पिंजड़े तट पर स्थित रस्सियों के साथ हर एक पिंजड़े के बीच 1.5 फीट से बांधे गये।

कतला, रोहु और मृगल (मछली उत्पादन) तथा तिलपिया, ग्रास और सिलवर (मछली संरक्षण) के लिये भिन्न-भिन्न घनत्व में पाले गये। प्राकृतिक तथा अत्युत्तम खाद्य से खिलाने पर भी सिल्वर मछली की वृद्धि तथा उत्तरजीविता में होने वाले प्रभाव पर अध्ययन किया।

मछलियों की रोज स्थानीय चावल के छिलके एवं कसावा आटा मिलाकर 10% bwt/day दिया गया मछलियों को पिंजड़ों के अंदर बंद थैलियों में खाद्य दिया गया।

पिंजड़े रोज निकालने के लिये अशुद्ध चीजों एवं, अंदर के मल को साफ किए गये। हर पक्ष में मछलियों की उन्नति का आकलन नियमित रूप से लिया गया, तदनुसार खाद्य में भी परिवर्तन किये गये।

सभी स्थलों में पिंजड़ों के बीच के पानी का स्वरूप भी नियमित रूप से आंका गया ताकि, जल में मिला प्राणवायु, ph, आबोहवा, कुल चंचल हठ पदार्थ, और दृढ़ पदार्थ, कुल अलकलानिटी आदि के भिन्न पारामीटर का संशोधन कर सकें।

सारणी 1 : यथावत जलशक्ति एल.भी.पी.नाला का पारा मीटर

पहुँच किमी + मी

तट चौड़ाई मी

गहराई (मी)

गति (मी/से)

0+000 - 53+800

32

2.6

0.72

53+800-86+200

27

2.6

0.70

86+200-101+900

20

2.6

0.68

101+900-119+600

17

2.1

0.65

119+600-143+400

7

1.8

0.61

143+400-181+300

6

1.5

0.59

181+300-200+400

4.5

1.1

0.52

सारणी - 2 : यथावत जलशक्ति पारामीटर पुरानी नाला के लिये

नाला

पहुँच कि मी. + मीटर

तट चौड़ाई (मी)

गहराई (मी)

अरक्कनकोट्टै

0+000-10+900

6

1.6

 

10+900-27+700

6

1.2

 

27+700-32+300

2

0.7

ताडपल्ली

0+000-8+000

15

2.3 

 

8+000-24+000

12

2.1

 

24+000-36+000

10

1.8

 

36+000-65+500

7

1.5

 

65+500-77+400

5

1.3

 

 

सारणी - 3 : तीन स्थानों में पिंजड़ों मछली भंडार की योजना

मछली का प्रकार

पिंजड़ों की संख्या

भंडार शक्ति धन

औसत % उत्तरजीविता

उत्तरजीविता की मात्रा

तीन महीनों की औसत वृद्धि निरीक्षण

टिलापिया

4

300

99.0

98-100

50

सिल्चर

4

100

95.5

80-100

नगण्य

सिल्चर (खाह नहीं)

4

100

98.6

94-100

नगण्य

ग्रास

4

300

99.5

99-100

15-20

कतला

4

1000

09.0

0-19

4-5

रोहूू

4

3000

03.0

0-08

4-5

मृगल

4

3000

12.0

0-34

4-5

सारणी - 4 : तीन स्थलों में आकलन किया औसत जलशक्ति पारामीटर

शोध स्थल

DO mglit-1

PH

आबोहवा डिग्री सेल्शियस

TVS mglit-1

TDS mglit-1

TDVS mglit-1

TSS mglit-1

कुल अल्कलैनिटी

1.

4-6.5

7-8.5

26-31.0

114.4

111.1

84.4

15.5

2.7

2.

359.0

7-10.0

27-30.0

126.7

126.7

76.7

32.9

3.2

3.

4.5-8

8.10.0

26.29.5

113.3

111.1

84.4

14.8

3.0

 

चर्चा एवं निर्णय
एल.भी.पी. नाले में मछली उत्पादन के लिये 140 कि.मी. तक व्यापक गुंजाइश है। अरक्कनकोट्टै नाले में 20 कि.मी. तक है। कुल क्षेत्र 450 हेक्टेयर क्षेत्र और 40 हेक्टेयर क्षेत्र पानी के बँटवारे के दिनों में मछली खेती के लिये उपयुक्त हैं। एल.भी.पी. नाले के एवं अरक्कनकोट्टै के दूसरे प्रदेशों में जाल परकोटा बनाकर, मछली उत्पादन दिया जा सकता है।

जहाँ मछली वृद्धि के लिये पिंजड़े रखे गये अलग-अलग स्थलों में वृद्धि की मात्रा में अंतर था। 63वां मील में वृद्धि ज्यादा थी, शायद इसका कारण नमी है। समस्त रूप में तिलपिया की वृद्धि संतोषजनक था। खाद्य से पालित और अनपालित सिल्वर में कोई महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं थी। इस मछली के पोने ने भी उत्तरजीवितता कम दिखाया था। भिन्न स्थलों में महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं था। पहले हफ्ते में रोहू एवं मृगल के बीच अधिक मृत्यु संख्या दिख पड़ी। पर पोनों में एक महीने की अवधि के बाद भी मृत्यु संख्या दीख पड़ी जिससे यह संकेत मिलता है, बहुत पानी में पोनों के भण्डारण करने के पहले, उनके स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए।

जलगुण के पारामीटर दिखाते हैं कि, हर एक स्थल के पिंजड़े में अंतर नहीं है। स्थलों के बीच विलीन ऑक्सीजन अथवा आबोहवा में अंतर नहीं था। वाणिपुत्तूर और एल.भी.पी. स्थलों के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर पालन में दिख पड़ा।

एल.भी.पी. एवं अरक्कनकोट्टै नालों का पानी, पिंजड़े में मछली उत्पादन के लिये उपयुक्त है।

बाधाएँ
1. कुछ स्थलों में नाला तक के पहुँच में कठिनता दिख पड़ती है।
2. खाद्य और पिंजड़े की सामग्री महँगा है।
3. मछली उत्पादन के लिये उचित समय पर ''मछली'' का प्राप्त न होना एवं महँगाई एक बड़ी समस्या है।
4. सांप और जल जन्तुओं से संरक्षण करना पड़ता है।

क्या आप जानते हैं?

महा समुद्र इसके समृद्ध एवं विविध प्राणिजातियों के लिये विख्यात है। समुद्री जीवों के कुछ रिकॉर्ड नीचे दिये गए हैं:

सबसे बड़ा तिमि : नील तिमिबेलनोप्टीरा मस्कुलस

मादा : 33.27 मीटर 190 टन आंकलित भार

नर : 32.64 मीटर (दोनों को 1926 में शेटलान्ड द्वीप के निकट से पकड़ा गया)

सबसे बड़ी मछली : तिमि सुराराइनोडोन टाइपस 59 फीटथायलान्ड में 1919 में पकड़ा गया

सबसे छोटी समुद्री मछली : दक्षिण पैसिफिक के समोआ में देखी गयी शिन्डलेरिया प्रीमच्युरस12-19 मि.मी लंबाई2 मि.ग्रा भार।

सबसे तेज गति वाली मछली : सेइल फिशइस्तियोफोरस प्लाटिटीरस : 68.18 मी. प्र.घं.

सबसे मंद गति वाली मछली : समुद्री घोड़ा 0.01 मी.प्र.घं

सबसे बड़ी समुद्री तारा : इवास्टेरियस एकिनोसोमो 96 से.मी. व्यासभार 5 किग्रा.उत्तर पैसिफिक से पकड़ा गया।

सबसे छोटी समुद्री तारा : लेप्टीकास्टर प्रोपिनकस 1.83 से.मी कुल व्यास

सबसे गहरी समुद्री तारा : 7,630 मीटर की गहराई से पकड़ी गई एरमिकास्टर टेनेब्रारियस

सबसे भारी मोलस्क (और सबसे भारी अकशेरूकी) : सबसे भारी जयन्ट स्किवड (आर्किटयूथिस प्रिन्सेप्स) को वर्ष 1878 में पकड़ा गया। इसका एक 'आर्म' (टैन्डकिल) 35 फीट लंबाई का थायह आंकलित किया जाता है कि इस जीव का भार लगभग 4000 पाउंड था।

सबसे बड़ी जेली फिश : उत्तर अटलांटिक में देखा गया सयानिया आर्टिकाइस केबेलके आर-पार का दूर 7 फीट 6 इंच और टेन्डकिल 120 फीट का था।

सबसे बड़ा समुद्री शैवाल : जयन्ट केल्प कहे जाने वाला भूरा शैवाल माक्रोसिस्टिस पाइरिफेराइसकी लंबाई 54 मीटरकैलिफ़ोर्निया तट के जयन्ट केल्प जंगल में पाया जाता है।

वी. कृपा, सी एम एफ आर आई से साभार

 

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