समाज का संतुलन बिगाड़ता पानी का असंतुलित बंटवारा

मॉनसून संकट के बीच हरियाणा में पानी को लेकर हरियाणा में चार बड़ी खबरें आईं।

एक : नहरी पानी को लेकर हुए संघर्ष में मुआना गांव के किसानों के दो गुटों में हुई गोलीबारी में एक किसान की मौत हो गई जबकि छह गंभीर रूप से घायल हो गए।

दो: दुनिया भर में इंडिया के विकास के सबसे बड़े मॉडल गुड़गांव में जिला मजिस्ट्रेट ने पानी की चोरी रोकने के लिए पहरेदारी करने के साथ-साथ अधिकारियों की एक टीम बनाई।

तीन: तीसरी बड़ी खबर पानी के लिए जूझ रहे जींद जिले के निडाना गांव से आई। जहां पेयजल की समुचित आपूर्ति करने के लिए मानवाधिकार आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा।

चार: पानी की चोरी का विरोध करने वाले 95 किसानों पर मुकदमें दर्ज।

घोर राजनीति और तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के चलते राज्य में सतलुज-यमुना जोड़, हांसी बुटाना नहरों के निर्माण पर अब तक अरबों रुपया बहाया जा चुका है, लेकिन इन नहरों में पानी की एक भी बूंद नहीं आई है। दादूपुर-नलवी नहर की स्थिति भी जस की तस है। ऊपर से पानी के असंतुलित बंटवारे और गिरते भूजल स्तर ने हरियाणा को खतरें में डाल दिया है। ये खबरें उस समाज के लिए चेतावनी हैं जिसने सत्तर के दशक में पानी की बदौलत हरित क्रांति पैदा की और जहां अब पानी के लिए समाज, गांव और भाईचारा बंट गया है। अब हरियाणा में पानी से वह सवाल खड़े होने लगे हैं जो शायद पूरे देश और दुनिया में आज तक नहीं हुए हैं। गांवों में किसानों के लिए पानी के अलग सवाल हैं तो शहर के अलग सवाल हैं।

पानी की बदौलत पंजाब भी खड़ा हुआ, लेकिन हरियाणा के सवाल एकदम भिन्न हैं। ऐसे में जहां भूमि की जोत प्रति किसान एक एकड़ भी न हो, वहां किसनों के लिए पानी कम होना खतरे की सबसे बड़ी घंटी है।

जहां हरियाणा में पानी की उपलब्धता कम है, वहीं यहां जल प्रबंधन पंजाब से कई गुना ज्यादा बदतर है। यहां परंपरागत जल स्रोतों ने पंजाब के मुकाबले अधिक दम तोड़ा है।

सरस्वती, टांगड़ी, घग्गर, साहिबी, इंदौरी जैसी तमाम नदियां पूरी तरह खत्म हो गई हैं। सरस्वती और गंगा के बीच कौरवों ने कुरुक्षेत्र की कठोर भूमि के 48 कोस क्षेत्र को खेती के लिए विकसित किया था, अब हरियाणा में कहीं नहीं है।

सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। इसके पनुरोद्धार के लिए रोज नए प्रस्ताव बनते हैं और यह प्रस्तावों में बहती रहती है। सरस्वती को लेकर सरकार, गैर सरकारी संगठनों के अब तक के सारे प्रयास विफल हुए हैं।

सिरसा जिले के किसानों के एक बड़े वर्ग की जीवन रेखा घग्गर इस हद तक प्रदूषित हो गई है कि अब उसका पानी किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है। अब इसे बचाने के लिए राज्य सरकार जल संशोधन संयंत्र लगाने पर विचार कर रही है।

महाभारतकालीन तालाब और कुएं इस 48 कोस क्षेत्र में बदहाली की स्थिति में हैं। कलायत, कैथल, कुरुक्षेत्र, जींद, सफीदों, रामरा, पांडु पिंडारा, पिल्लूखेड़ा, सीवन, चीका पेहवा में कौरवों द्वारा विकसित किए गए तालाब, कुएं बड़ी मुसीबत में हैं। इन पर कब्जे हो रहे हैं या फिर ये गंदगी के तालाब हो गए हैं।

यमुना की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। करनाल, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद, पलवल में यमुना पर कब्जे हुए हैं। कई जगहों पर यमुना में पानी की बूंद नहीं है तो कहीं यह मैला ढोने की नदी बन गई है। सरकार की योजनाओं और गैर सरकार संगठनों की परियोजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं, लेकिन यमुना कि स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।

तमाम तालाब, कुएं, जोहड़ और बावड़ियों को अस्तित्व खत्म हो गया है। इतना ही नहीं हरियाणा में कई बड़ी बहुराष्ट्रीय भवन निर्माण कंपनियों ने मुनाफे के चक्कर में अत्यधिक जल दोहन किया है। सरकार और प्रशासन इस ओर से कतई आंखें मूंदे बैठे हैं।

घोर राजनीति और तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के चलते राज्य में सतलुज-यमुना जोड़, हांसी बुटाना नहरों के निर्माण पर अब तक अरबों रुपया बहाया जा चुका है, लेकिन इन नहरों में पानी की एक भी बूंद नहीं आई है। दादूपुर-नलवी नहर की स्थिति भी जस की तस है। ऊपर से पानी के असंतुलित बंटवारे और गिरते भूजल स्तर ने हरियाणा को खतरें में डाल दिया है। हरियाणा के हर जिले में कोई-न-कोई ब्लाक केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने डार्कजोन घोषित किया है।

हरियाणा के 9 जिलों में सूखे का संकट गहराया


धान की रोपाई पर दोनों राज्यों में गंभीर प्रभाव पड़ा है। हरियाणा के सोनीपत, रोहतक और झज्जर में धान उत्पादक किसान गंभीर संकट में आ गए हैं। इन तीनों जिलों में किसानों के रोपे हुए सैकड़ों हेक्टेयर धान सूख गए हैं। दोनों राज्यों के मौजूदा हालातों पर नजर डालें तो बांधों से खेतों तक पानी न पहुंचने से पहले ही लेट चल रही धान की रोपाई का चक्र गंभीर रूप से गड़बड़ा गया है। अपेक्षाकृत अत्यंत कम बारिश होने के चलते हरियाणा में सूखे का संकट गहरा गया है। प्रदेश में कम वर्षा होने के चलते 11 जिले फिलहाल सूखे की चपेट में हैं। इनमें से 9 जिले सूखे से बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं। पंजाब के कई जिलों को भी सूखे ने अपनी चपेट में लिया है।

भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक मेवात, पलवल, कुरुक्षेत्र, जींद, पानीपत, सोनीपत, झज्जर, रोहतक, अंबाला और यमुनानगर में 63 से 93 प्रतिशत तक कम वर्षा हुई है। मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 11 जिले सूखे की चपेट में है। राजस्थान के साथ सटे अहीरवाल के जिले में भी सामान्य से 15 प्रतिशत कम बारिश रिकार्ड की गई है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक अल नीनो के प्रभाव के चलते बारिश का संकट बढ़ा है। अगस्त माह में अल नीनो का प्रभाव कम होगा तो थोड़ा अधिक बारिश होगी।

पंजाब में पौग और भाखड़ा में तो जलस्तर लगातार नीचे जा ही रहा है। ग्लेशियरों के पिघलने से रणजीत सागर डैम में हालांकि पर्याप्त पानी आ रहा है। जानकारों का मानना है कि बारिश में देरी का असर रणजीत सागर डैम पर भी पड़ सकता है। पौंग डैम में 28 प्रतिशत कम पानी पाया गया है। मॉनसून में हुई देरी और कमी के चलते इस बार भाखड़ा में 3000 क्यूसिक से अधिक कम पानी आया है। भाखड़ा में 21.17 फुट तक कम पानी रिकार्ड किया गया है।

पंजाब में अब तक सामान्य से 51 प्रतिशत तक कम वर्षा दर्ज की गई है। इसका प्रभाव धान, कपास और मक्का तीनों की फसल पर पड़ रहा है। पंजाब में पिछले वर्ष इस अवधि तक 23.80 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई कर दी गई थी जबकि इस बार यह केवल 22.97 लाख हेक्टेयर है यानी 83 हजार हेक्टेयर कम।

पंजाब जो केंद्रीय अनाज भंडार में हर वर्ष 30 से 35 प्रतिशत तक योगदान देता है ने इस वर्ष 26.50 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई का लक्ष्य रखा है। राज्य में मक्की की बिजाई अभी तक 1.29 लाख हेक्टेयर में हुई है।

विभाग के अधिकारियों का मानना है कि ऐसे में मक्की की 2 लाख हेक्टेयर में बिजाई का लक्ष्य हासिल करना बेहद दुश्कर है। इसी प्रकार राज्य में कपास रोपाई का 5.30 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य हासिल करना भी कठिन कार्य है कारण कि अभी तक 4.50 लाख हेक्टेयर में ही कपास की रोपाई हो पाई है।

कम मॉनसून और उसमें देरी के चलते भाखड़ा के साथ-साथ दूसरे बांधों में भी जलस्तर लगातार घट रहा है। इसके चलते पंजाब, हरियाणा में किसानों के सामने फसलों सिंचाई की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।

अन्न उत्पादन के मामले में देश में सबसे अग्रणी भूमिका निभाने वाले दोनों प्रांत सूखे की ओर बढ़ रहे हैं। जलस्तर घटने का तात्कालिक प्रभाव बिजली के उत्पादन पर पड़ा है। किसान बिजली की जबर्दस्त कटौती से जूझ रहे हैं। परिणामत: इसके विरोध में किसान सड़कों पर उतरने लगे हैं।

उन्होंने भूजल स्तर में गिरावट के दृष्टिगत किसानों के ट्यूबवेल की गहराई बढ़ाने पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिए 100 करोड़ रुपए की अतिरिक्त मांग की है। हुड्डा ने सरकार से धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कम से कम 300 रुपए प्रति क्विंटल और खरीफ की अन्य फसलों पर 100 रुपए प्रति क्विंटल बोनस तुरंत घोषित करने की मांग की।

उन्होंने कहा कि सूखे की स्थिति के कारण सिंचाई के लिए डीजल संचालित पंपसेटों के इस्तेमाल से 600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा जिसकी भरपाई भी होनी चाहिए। इसके अलावा उन्होंने मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अंतर्गत राज्य के सभी खंडों को कवर करने के लिए इसका दायरा बढ़ाने तथा इस योजना के अंतर्गत किसानों की प्रीमियम राशि कम करने की भी मांग की।

धान की रोपाई पर दोनों राज्यों में गंभीर प्रभाव पड़ा है। हरियाणा के सोनीपत, रोहतक और झज्जर में धान उत्पादक किसान गंभीर संकट में आ गए हैं। इन तीनों जिलों में किसानों के रोपे हुए सैकड़ों हेक्टेयर धान सूख गए हैं। दोनों राज्यों के मौजूदा हालातों पर नजर डालें तो बांधों से खेतों तक पानी न पहुंचने से पहले ही लेट चल रही धान की रोपाई का चक्र गंभीर रूप से गड़बड़ा गया है।

कई जिलों में रोपाई 25 दिन तक लेट हो गई है। हरियाणा के कई जिलों के किसानों ने तो आस छोड़ दी है। उधर, दूसरी तरफ पंजाब के बठिंडा, संगरुर, अबोहर-फाजिल्का में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं।

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