समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक

27 Apr 2018
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प्लास्टिक कचरा
प्लास्टिक कचरा


वर्ष 1907 में पहली बार सिंथेटिक पॉलिमर से सस्ता प्लास्टिक बनाया गया और केवल 111 वर्ष में यह पृथ्वी पर जहर की तरह फैल चुका है। हालात की भयावहता इससे समझी जा सकती है कि 2050 तक हमारे समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार यह प्लास्टिक ऐसे छोटे टुकड़ों में बँट रहा है जिसे जलीय जीव खा रहे हैं और समुद्री भोजन (सी-फूड) पर निर्भर आबादी का बड़ा हिस्सा इस प्लास्टिक को अप्रत्यक्ष रूप से खा रहा है। केवल समुद्री भोजन नहीं बल्कि समुद्र से मिलने वाले नमक से भी हमारे शरीर में यह प्लास्टिक पहुँचने के रास्ते खोज रहा है।

बीते दशकों में जितना प्लास्टिक हमने तैयार किया उसका 70 प्रतिशत प्रदूषण और कचरे के रूप में पृथ्वी पर फैलाया जा चुका है। केवल नौ प्रतिशत रिसाइकिल हो रहा है और बाकी उपयोग में है। पृथ्वी पर फैला यह प्लास्टिक किसी-न-किसी रूप में विभिन्न जीवों और उनके जरिए हमारी कोशिकाओं में भी पहुँच रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों की चिन्ताएँ हैं कि यह बड़े स्तर पर हमारे शरीर को प्रभावित करने लगा है।

परिणाम भयावह

प्लास्टिक के तत्व शरीर में पहुँचने से प्रजनन क्षमता व सोचने-समझने की क्षमता पर बुरा असर। मोटापा, डायबिटीज, कैंसर का इलाज निष्प्रभावी होना भी इसके दुष्प्रभावों में।

- 70 प्रतिशत प्लास्टिक हो रहा कचरे और प्रदूषण में तब्दील

प्लास्टिक प्रदूषण और नतीजे

1. जितना प्लास्टिक अब तक बना, उसका आधा बीते 13 वर्ष में बनाया गया है।
2. प्लेमाउथ यूनिवर्सिटी के मुताबिक इंग्लैंड में पकड़ी जा रहीं 1/3 मछलियों में प्लास्टिक है।
रिसाइकिलिंग के हाल

1. 30 प्रतिशत यूरोप में
2. 25 प्रतिशत चीन में
3. 09% अमेरिका-भारत

प्लास्टिक प्रदूषण में हम दुनिया में 12वें नम्बर पर

हमारे जीवन से जुड़ी हर चीज का हिस्सा बन चुके प्लास्टिक के उपयोग से प्रकृति को होने वाले नुकसान में हम विश्व में 12वें नम्बर पर हैं। भारत में हर नागरिक जाने-अनजाने रोजाना औसतन 340 ग्राम गैर-जैविक कचरा पैदा कर रहा है, जिसका तीस प्रतिशत प्लास्टिक है। देखने में यह आँकड़ा भले ही छोटा लगे, लेकिन विशाल जनसंख्या के चलते इसका असर बहुत व्यापक है। यह मुद्दा इतना गम्भीर हो चुका है कि विश्व पृथ्वी दिवस को इस वर्ष ‘प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति’ थीम दी गई है।

उद्योगों और बाकी क्षेत्रों को मिला दें तो साल 2016 तक के दर्ज आँकड़ों के अनुसार भारत हर साल 15.89 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहा है। देश में प्लास्टिक को बनाने और रिसाइकिल करने के काम में 2,243 फैक्टरियाँ लगी हैं जो सात किस्म का प्लास्टिक बना रही हैं। राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुटाए गए आँकड़ों पर आधारित केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट में राजस्थान सहित सात राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के आँकड़े नहीं हैं। दिसम्बर 2017 में केन्द्र सरकार द्वारा लोकसभा में रखी गई रिपोर्ट के अनुसार यह आँकड़ा सालाना 25 लाख टन के करीब पहुँच चुका है।

टॉप 7 राज्य जो सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा फैला रहे

सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा फैलाने वाले 24 राज्यों में महाराष्ट्र अव्वल है, जो देश का करीब 30 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा फैला रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश चौथे स्थान पर है, जबकि गुजरात दूसरे नम्बर पर है।

 

 

 

 

 

महाराष्ट्र

4.69 लाख टन

गुजरात

2.69 लाख टन

तमिलनाडु

1.50 लाख टन

उत्तर प्रदेश

1.30 लाख टन

कर्नाटक

1.29 लाख टन

आन्ध्र प्रदेश

1.28 लाख टन

तेलंगाना

1.20 लाख टन

 

60 प्रमुख शहर पैदा कर रहे सर्वाधिक कचरा

केन्द्र सरकार द्वारा इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च (आईआईटीआर) सर्वे के आधार पर लोकसभा में रखी गई रिपोर्ट के अनुसार देश के 60 बड़े शहर रोजाना 4059 टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहे हैं। इसका कुछ हिस्सा रिसाइकिल हो रहा है।

राह दिखाते, उम्मीद जताते प्रयास : सम्भव है प्लास्टिक कचरे से मुक्ति

मुम्बई वर्सोवा बीच पर प्लास्टिक हटाया तो लौटे कछुए

दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले शहरों में शामिल तटीय शहर मुम्बई का वर्सोवा तट करीब साढ़े पाँच फुट प्लास्टिक के कचरे और मलबे में दब चुका था। साल 2015 में यहाँ अफरोज शाह और उन जैसे कुछ युवाओं ने हालात बदलने की ठानी। करीब हजार लोगों ने सफाई अभियान शुरू किया और अगले कुछ महीनों में 2.5 किमी विस्तार से करीब 5 हजार टन कचरा हटाया। जब सफाई हुई तो यहाँ ओलिव रिडले टर्टल लौटे और अंडे देकर चले गए। पिछले महीने इन अंडों से सैकड़ों की संख्या में रिडले-टर्टल के बच्चे निकले और अरब सागर लौट गए। समुद्रजीव विशेषज्ञों के अनुसार करीब 20 वर्ष बाद मुम्बई के वर्सोवा तट पर ये कछुए लौटे हैं।

प्लास्टिक की सड़क

प्लास्टिक के कचरे से नफरत इसकी अनुपयोगिता की वजह से है, इसे खत्म करने के लिये इसे उपयोगी बनाना होगा। मदुरै के एक केमिस्ट्री प्रो. राजागोपालन वासुदेवन ने सड़क निर्माण में इस कचरे की उपयोगिता खोजी। उन्होंने प्लास्टिक के कचरे को डामर में मिलाकर सड़कों के निर्माण की तकनीक तैयार की।

साल 2002 में इस तकनीक से अपने कॉलेज के पास एक रोड भी बनवाई। इस तकनीक की सफलता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष 2016 में राष्ट्रीय ग्राम सड़क विकास विभाग द्वारा साढ़े सात हजार किमी की सड़कें इससे बनाई। अब तक देश के 11 राज्यों में करीब एक लाख किमी सड़कें इस तकनीक से बनाई गई हैं। प्रो. वासुदेवन की यह तकनीक न केवल प्लास्टिक के कचरे की माँग बढ़ा रही है, बल्कि सरकार भी इसे 2015 में उपयोग करने के लिये निर्देश जारी कर चुकी है।

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