संदीप देव: टॉयलेट गुरु बिंदेश्वर पाठक के लेखक

1 Apr 2020
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संदीप देव: टॉयलेट गुरु बिंदेश्वर पाठक के लेखक
संदीप देव: टॉयलेट गुरु बिंदेश्वर पाठक के लेखक

कहानियों के जरिए किसी व्यक्ति विशेष के जीवन की खास बातों को समझने के लिए संदीप देव की किताबें किसी तोहफे से कम नहीं. शानदार कहानियों वाली उनकी किताबें बेस्ट सेलर भी बनती हैं. हाल में उनकी किताब टॉयलेट गुरु बिंदेश्वर पाठक जागरण बेस्टसेलर में शामिल हुई है. उनसे स्मिता की बातचीत के अंश -

जागरण बेस्टसेलर से लेखकों को क्या फायदा मिलता है ?

'कहानी कम्युनिस्टों की' के बाद जागरण बेस्ट सेलर में शामिल होने वाली यह मेरी दूसरी किताब है. हिंदी पुस्तक बाजार के लिए दैनिक जागरण ने एक मानक तय किया है, जिसके कारण हिंदी में भी बेस्टसेलर हो रहे हैं. यह मानक प्रकाशक, लेखक तथा सबसे ज्यादा हिंदी के करोड़ों पाठकों के लिए बेहतरीन प्रयास है.

बिक्री के लिहाज से आप की किताबों ने लाख का आंकड़ा पार किया है. इसमें किताब के साथ-साथ मार्केटिंग का भी बड़ा रोल है. इस ओर कैसे ध्यान गया ?

सोशल मीडिया के आने से युवाओं में पढ़ने का चाव बढ़ा है। सोशल साइट्स की वजह से हिंदी का वर्चस्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. पहले हिंदी के लेखक को इस बात की कुंठा थी कि उनका काम सिर्फ लिखना है और किताब बेचने का काम प्रकाशक का है. इसे मैंने दूर किया. मेरी राय में मेरी किताब के साथ मेरा एक भावनात्मक रिश्ता है. उसकी वजह से मैं उसकी मार्केटिंग और बेहतर तरह से कर पाऊंगा. मेरी पहली किताब 'केजरीवाल: सच्चाई या साजिश' को प्रकाशक ने छापने से मना कर दिया था। मैंने उस किताब को झोले में रखकर बेचने से लेकर सोशल मीडिया तक सभी मार्केटिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया. कुंभ के अक्सर पर मैंने अपनी किताब 'आशुतोष महाराज : महायोगी का महारहस्य' को ट्रक में डालकर कुंभ स्थल तक पहुंचाया. किताब की 30000 प्रतियां बिकी.

आप व्यक्ति विशेष पर ही लेखन करते हैं ? 

मैं अपनी किताब के जरिए किसी विशेष विषय को सामने लाता हूं. इसके अलावा पाठक किसी के जीवन की कहानियां पढ़ना पसंद करते हैं. इसलिए जीवन की कहानियों के जरिए वह विशेष बात बताता हूं. व्यक्ति केंद्रित बायोग्राफी के रूप में लिखने पर किताबें ज्यादा पसंद की जाती है. उपनिषद के बारे में लोगों को अधिक पता नहीं है, लेकिन रामायण महाभारत नहीं पढ़ने के बावजूद हम उनकी कहानियां जानते हैं. किताब बिक्री के एक बड़े आंकड़े को छूने की वजह विषय को कहानी से जोड़ना भी है।

बिंदेश्वर पाठक से आप किस तरह प्रभावित हुए ?

सबसे पहले तो मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों से प्रभावित हुआ था उन्होंने लाल किला से घोषणा की थी 'देवालय से पहले शौचालय'। इस वाक्य ने देशी-विदेशी मीडिया को हिला कर रख दिया. शौचालय की परेशानी मैंने अपने गांव में देखी है. दूसरी ओर किताब लिखने के लिए यदि मैं कोई मुद्दा उठाता हूं, तो कोशिश करता हूं कि किसी को आत्मकथा के जरिए अपनी बात कहूं, क्योंकि भारत कहानियों का देश है, यदि किताब में केवल शौचालय के आंकड़े देता तो वह सिर्फ आंकड़ों की किताब की तरह हो जाता। तब मुझे लगा कि शौचालय पर तो सबसे बड़ा काम बिंदेश्वर पाठक ने किया. शोध करने और किताब लिखने में मुझे लगभग 3 साल का समय लगा. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कुर्सीनुमा टॉयलेट जिसे हम वेस्टर्न टॉयलेट कहते हैं, यह हड़प्पा सभ्यता की देन है, दुनिया को पहला फ्लश टॉयलेट भारत ने ही दिया था। 

इन दिनों आप क्या लिख रहे हैं ? 

अभी मैं कहानी कम्युनिस्टों की के अगले भाग की रिसर्च में लगा हूं. यह तीन खंड में आना था. साथ ही स्त्रियों और कॉलेज गोइंग लड़कियों की मांग के अनुसार लव स्टोरी श्रृंखला शुरू कर रहा हूं. इसकी कहानियां ऐतिहासिक, पौराणिक और वैदिक भी होगी. अभी मैं पृथ्वीराज संयोगिता की प्रेम कहानी पर काम कर रहा हूं. प्रेम कहानी के माध्यम से उस समय के इतिहास व सामाजिक परिवेश आदि के बारे में लिखने का प्रयास है।

खोजी पत्रकार से लेखक बनने तक का सफर ? 

यहां भी खोज ही चल रही है। अपने खोजी स्वभाव के कारण मैं कई बार परेशानी में भी घिरा। हिंदी का लेखक या तो साहित्यकार होता है या फिर पत्रकार, जो लेख या रिपोतार्ज की तरह अपनी कहानी लिखता है. मैं संवाददाता रहा हूं, लेकिन धर्म, इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान आदि का भी खूब अध्ययन किया. समाजशास्त्र का बैकग्राउंड होने के कारण मैं हर विषय पर गहन शोध करता हूं। कहानियां सुनते हुए बड़े होने के कारण कहानियां लिखता हूं.


 

 

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