संकट के साए में सागरद्वीप

15 Jan 2020
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Image Source The Independent
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"सागर के स्तर में उत्तरोत्तर उछाल के कारण तटीय क्षेत्र के भूगर्भीय जल स्रोत के खारे होने के खतरे हैं। इतना ही नहीं नमभूमि (वेटलैंड) समेत शहरी आबादी वाले इलाके और तटीय क्षेत्रों के निवासियों की रोजी रोटी के लाले पड़ सकते हैं। गंगा के मैदानी भागदक्कन और दक्षिण भारत को भारी स्वामी आजा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट में भी ऐसी चेतावनी दी गई है कि वर्ष 2050 तक मध्य और दक्षिण भारत में जलपूर्ति की समस्या फिर से उठ सकती है।"

महातीर्थ कुंभ का पुण्य-स्नान प्रतिवर्ष नहीं होता लेकिन पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना के सुंदरवन के सागरद्वीप स्थित संख्या दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि के आश्रम में गंगा-सागर का मोक्ष-स्नान प्रतिवर्ष होता है।



सागरद्वीप का कुल क्षेत्रफल 300 वर्ग किलोमीटर है। इसमें गांव बसे हैं जिनकी जनसंख्या 1,60,000 है यहां का यहां के सबसे बड़े गांव का नाम भी गंगासागर है पुनीत यात्रा के उद्देश्य से सागरद्वीप समिति का बकायदा गठन हुआ और इसे 6 प्रशासनिक विभागों में बांटा गया घोड़ा मारा, मुरगंगा, वामन खाली, कंपनीचर सिकारपुर और धोबीलाट। यहीं धोबीलाट विकसित होकर गंगासागर का मेला क्षेत्र बन गया दरअसल यही सर्वप्रथम कपिल मुनि का आश्रम मिला था।

18वीं सदी के आरंभ में सागरद्वीप संपूर्ण वनाच्छादित था द्वीप के मध्य प्रवाहित 37 नाले (खाल) इसे 4 प्राकृतिक विभागों में विभक्त करते हैं।

आज सागर्द्वीप चार प्रकार की प्रकृतिक चुनौतियों से घिरी है पहला समुद्रिक जलोच्छवास, दूसरा तटीय-क्षय, तीसरा प्रबल ज्वार और चौथा चक्रवात। नतीजतन सागर द्वीप क्रमशः सिमटता जा रहा है विगत 9 वर्ष में सागर्द्वीप का आकार 2 मील तक सिमट गया है विगत 1942, 1971, 1973 और 1981  सामुद्रिक जलोच्छवास-झंझावात, जल प्लावन जैसे प्राकृतिक प्रकोप से सागर द्वीप संतरस होता रहा है इसके अनेक  अंचलो का अस्तित्व नदी सागर में विलुप्त होने से नहीं बच पाया हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय केंद्र सागर सूचना सेवा (इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओए ओशन इनफॉरमेशन सर्विसेज) के हवाले से केंद्रीय सरकार ने लोकसभा में सूचित किया है कि पश्चिमी सागर तटीय क्षेत्र जैसे मुंबई समेत खंभात गुजरात के कच्छ समेत कोकंड के कुछ क्षेत्र और केरल में समुद्री स्तर के 2.8 फीट तक बढ़ने का अंदेशा है इसी तर्ज पर गंगा कृष्णा गोदावरी कावेरी और महानदी के डेल्टा क्षेत्रों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं स्पष्टतः गंगासागर भी गर्दिश में हैं।

 

सागर के स्तर में उत्तरोत्तर उछाल के कारण तटीय क्षेत्र के भूगर्भीय जल स्रोत के खारे होने के खतरे हैं इतना ही नहीं नम भूमि वेटलैंड समेत शहरी आबादी वाले इलाके और तटीय क्षेत्रों के निवासियों को रोजी-रोटी के लाले पड़ सकते हैं गंगा के मैदानी भाग दक्कन और दक्षिण भारत को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है यूनेस्को की एक रिपोर्ट में भी ऐसी चेतावनी दी गई है कि वर्ष 2050 तक मध्य और दक्षिण भारत में जल पूर्ति की समस्या सिर उठा सकती है सागरीय जल स्तर के इजाफे में खाद संकट की भी तीव्र संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि बाढ़ की बारम्बारता बर्बादी ला सकती है।

 

 सुंदरवन विकास बोर्ड का अनुमान है कि पिछले दशकों, में सागर्द्वीप का 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सागर के में समा कर गायब हो गया है ।

14 जुलाई 2014 में सागर द्वीप का प्रायः समग्र क्षेत्र उच्च ज्वार से प्लावित हो गया था पर्यावरणविदों की चिंता परेशानी का सबब बन गई खड़ी फसल बर्बाद हो गई और लोगों के घर बार उजड़ गए पूरे 10 गांव तबाह हुए सागरद्वीप साल में कम से कम 2 बार अप्रैल और सितंबर में मंद ज्वार की चपेट में आता है।  मंद ज्वार निपटाइड जो चांद के पहली या तीसरी तिमाही में मंद ज्वार जर्जरित करता है इस दौरान उच्च या निम्न ज्वार में महज मामूली सा फर्क रह जाता है ऐसा अक्सर सुबह 6:00 बजे और सांयकाल 6:00 बजे होता है पर इससे जल प्लावन नहीं होता था। आकस्मिक बाढ़ को मंद ज्वार कहकर छुट्टी पा लेना उचित नहीं है विशेषज्ञों का मानना है कि नियत तिथि के 2 महीने पूर्व भारत का ऐसा विकराल रूप नहीं दिखा था। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि अस्वाभाविक बाढ़ जलवायु बदलाव का ही संकेत होता है विगत 70 वर्षों में ऐसी दुर्गति नहीं हुई थी सागरद्वीप में धान और पान की खेती बर्बाद हुए बिना नहीं रही ऐसा भी हो सकता है लोगों ने इसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी बाढ़ के खारेपन की वजह से मिट्टी की उर्वरता पर प्रतिकूल असर पड़ा कि दो-तीन वर्षों के लिए खेत बंजर हो गए पर्यावरणविद संभवत संभाव्य कारणों की पड़ताल में जुटे हैं और उनका सामयिक निष्कर्ष है कि मंदज्वार न होने की सूरत में पुनः प्लावित होने का संकट संभव है। पारिस्थितिकी में नुकसान के अलावा मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। बाढ़ की वजह से कीटाणुओं के हुए सफाई के कारण मिट्टी की उर्वरता भी उद्विग्न करने लायक है जलवायु बदलाव जनित अंतरराज्य पैनल की मुखिया  पर्यावरणविद जय श्री राय मानती हैं कि अनियमित व चरम मौसम जनित दुर्गति हो सकती है आकस्मिक बाढ़ की घटनाएं विश्वव्यापी हैं लेकिन सुंदरवन सहित सागरद्वीप भी अछूता प्रभावित नहीं है। अभी इनसे आगाह करना मुमकिन नहीं है और बेमियादी बर्बादी बचाव में बाधाएं हैं अंधाधुंध बने बांधों से भी सुंदरवन के द्वीपों की दुर्दशा बड़ी है क्योंकि निर्मित बांधों से नदियों में गाद इकट्ठा होता रहता है और द्वीपों तक पहुंच नहीं पाता जिससे द्वीपों में हुई क्षति की भरपाई नहीं हो पाती। नतीजतन द्वीपों की जल समाधि की संभावना प्रबल हो जाती है।बांधों का तलाकर्षण (ड्रेजिंग) तत्काल जरूरी है अन्यथा दुष्परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।

भूतात्विकविदों का अनुमान है कि 5000 वर्ष पूर्व सागरद्वीप का गठन संभव हुआ। ग्रीक लेखकों ने जिसे गंगारिढई कहा है, वही गंगासागर प्रमाणित हुआ है। द्वीप गठन की प्रक्रिया का सूत्रपात 6,558 वर्ष से हुआ। इस गणना के अनुसार सागरद्वीप ईशा पूर्व 3,000 साल प्राचीन है। इस प्रकार सागरद्वीप 5,000 साल पुराना है इस द्वीप के अनेक क्षेत्रों जैसे मंदिरतला, धवलाट, मनसाद्वीप, हिरनवाड़ी और सुमितनगर के मिट्टी के गर्भ से पक्के मकान, मंदिर,  चौबच्चा, नौका, मुद्रा, अलंकार समेत विष्णु मूर्तियों के अवशेष मिले हैं ऐसे अवशेष गंगासागर की प्राचीनता पर मुहर लगाते हैं जिन कारणों से समृद्ध सभ्यताएं मिट गई क्या फिर वैसे कारण बन रहे हैं? संकट जनक संकेत तो ऐसी ही है-‘पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश कौन जाने भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है?

 

(श्री संतन कुमार पाण्डे पी,331 पर्णश्री पल्ली, तृतीयतल, फ्लैट-3 ए पो.ऑ.-पर्णश्री पल्ली, कोलकाता 700060 (प.बंगाल)

मोः 033-2449808 एवं 09775646697

ई-मेलः shakuntpan33@gmail.com

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